कविता : किताबें - कुशराज झाँसी
कविता - " किताबें "
दोस्ती और प्रेम में
सिर्फ किताबें ही देता हूँ
औरों की तरह
नहीं देता फूल
फूल भी देने चाहिए
लेकिन नौकरी लग जाने
या सेटल हो जाने के बाद
स्कूल - कॉलेज लाइफ
और बेरोजगारी में नहीं
फूल देना उतना जरूरी नहीं
जितना जरूरी है किताबें लेना - देना
किताबें औरों को भी देनी चाहिए
क्योंकि किताबों से ही होगी नई क्रांति
जिससे बदलेगा समाज
आएगी बराबरी
देहाती और शहरी में
किसान और व्यापारी में
गरीब और अमीर में
सबसे ज्यादा महिलाओं में
महिलाओं को बराबरी मिलनी ही चाहिए
शैक्षिक, आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक
इसलिए हम दोस्ती और प्रेम में
हमेशा देंगे किताबें
फूल कभी नहीं
सेटल होने के बाद भी नहीं
किताबें ही फूल हैं
हमारे लिए।
- कुशराज झाँसी
2/11/22_10:04 रात_झाँसी
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