Friday 16 November 2018

कुशराज और मैं -: मो. आतिफ



                          परममित्र गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' बहुमुखी प्रतिभा के धनी, रचनात्मक व्यक्तित्त्वसम्पन्न जैसा व्यक्तित्त्व  हमें अपने महाविद्यालय हंसराज कॉलेज में विद्यार्थी स्तर पर किसी का नहीँ लगता है। जब हम कुशराज से कक्षा में पहली या दूसरी बार मिले तब हमें उनके बारे में कुछ ज्यादा जानकारी नहीँ थी। उस समय मैंने सोचा कि वे सामान्य विद्यार्थी के समान ही होंगे। मगर जब हमारे प्राध्यापक महोदय डॉ. राजेश कुमार शर्मा ने कक्षा में उपस्थित विद्यार्थियों को तत्काल एक लेख लिखने को कहा तब कुशराज का लेख सर्वश्रेष्ठ आया। तभी हमें उनके ज्ञान, शब्द-शक्ति, नवीन दृष्टिकोण का पता चला। मेरी दृष्टि में कुशराज एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी सक्रियता, प्रबलता और कर्मठशीलता से महाविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में रेवोलुशन पैनल को जिताने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। मैं बिना कुशराज के इस ऐतिहासिक जीत की कल्पना नहीँ कर सकता। कुशराज में खास बात है कि वे  सच्चे हृदय वाले, हमेशा सबका भला सोचने वाले हैं और सबकी सहायता करने के लिए तत्पर रहते हैं। कुशराज केवल अपने पाठ्यक्रम तक सीमित नहीँ हैं बल्कि महाविद्यालय की विभिन्न सोसायटियों में कार्यरत हैं। कुशराज ने अपनी अभूतपूर्व सक्रियता और अपने रचनात्मक कार्यों से महाविद्यालय के सभी विद्यार्थियों को प्रभावित किया है। इस कथ्य में कोई अतिश्योक्ति नहीँ है। कुशराज में रचनात्मकता और कलात्मकता का अपार भण्डार है।
                         वे अपने लेखों, निबंधों, कविताओं और अन्य साहित्यिक विधाओं से लोगों को प्रभावित करते हैं। विशेषतः जिन्हें महाविद्यालय की यशस्वी प्राचार्या डॉ. रमा जी द्वारा प्रशंसा मिली हो, वे कुछ खास अवश्य होंगे ही। कुशराज, जो पृथक बुन्देलखण्ड प्रान्त निर्माण के दृढ़ संकल्प को अपने जीवन का सार समझ बैठे हैं और मुझे पूर्ण विश्वास है कि अगर तुम इसी तरह अपने कर्त्तव्य - पथ पर चलायमान और प्रवाहमय रहे तो निःसंदेह तुम इस महान संकल्प को साकार कर लोगे। कुशराज, जिस प्रकार तुम आतंकवाद, बलात्कार, यौन शौषण, सामाजिक न्याय, बालश्रम, परिवारवाद, वंशवाद पर अपनी कलम चलाते हो। जो उद्देश्यपूर्ण है और प्रशंसनीय भी। मैं चाहता हूँ कि आप जैसी कलम हर विद्यार्थी चला सके। कुशराज की अगर पृष्ठभूमि की बात करें तो ये झाँसी बुन्देलखण्ड सेे हैं, जो एक यशस्वी वीरांगना, हमारी मार्गदर्शिका और प्रेरणास्रोत झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरभूमि है
। मुझे लगता है कि कुछ न कुछ प्रभाव कुशराज पर दिखता है झाँसी की रानी का। कुशराज अपने विद्यालय की छात्र संसद में प्रधानमंत्री रहे हैं और इनके लेख, कवितायेँ स्थानीय अखबारों में दिन - प्रतिदिन  प्रकाशित होते रहे हैं। तो इस आधार पर कुशराज की सामान्य विद्यार्थी से रूप में गणना नहीँ कर सकते, इनकी गणना तो केवल और केवल विशेष विद्यार्थी के रूप में ही हो सकती है। कहने को तो बहुत उपलब्धियाँ, विशेषताएँ और योग्यताएँ हैं कुशराज कीं मगर मैं यहीँ अपनी कलम को विराम देता हूँ।

  ✍ मो. आतिफ, दिल्ली

   बी.ए. हिंदी (प्रतिष्ठा) द्वितीय वर्ष

हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय



Thursday 15 November 2018

तू एक किताब है

कविता -  " तू एक किताब है "



प्रिन्सेस! तू एक किताब है
तुझे कई बार पढता हूँ
फिर भी तुझसे मन नहीँ भरता
तुझे बार - बार पढ़ने का जी करता है
तू हर बार कुछ नया सिखा जाती है
तू हमेशा साथ देगी
ऐसा भी अनुभव करा जाती है
तुझे पढ़कर दिल को सुकून मिलता है
तेरे - मेरे प्यार को नया मुकाम मिलता है
तुझे पाकर मैं धन्य हो गया
तेरा मुझ पर जादू छा गया।

- कुशराज झाँसी

_17 मई 2018_11:00 रात _ दिल्ली





हे राम! हमें वही भारत लौटा दो।


कविता - " हे राम! हमें वही भारत लौटा दो। "


हे राम! हमें वही भारत लौटा दो।

जब देश सोने की चिड़िया था,
अपार धन - धान्य से परिपूर्ण था।
जब देश विश्वगुरु था,
ज्ञान - विज्ञान का खूब प्रचार - प्रसार था।
हे राम!..........
जब गुरूकुल में गुरू - शिष्य में सम्मान था,
एकलव्य सा शिष्य गुरू की प्रतिमा से ही शिक्षा पाता था।
जब शिक्षा देशी धर्म, दर्शन, साहित्य की वाहक थी,
साथ - साथ संस्कारों और मानवमूल्यों की पोषक थी।
हे राम!..........
जब देश मातृभाषा में ही सारा कामकाज करता था,
विदेशी भाषा का तो नाममात्र का प्रयोग करता था।
जब भाषा आज की भाँति संस्कृति और अस्मिता की वाहक थी,
कई भाषाऐं होने के वाबजूद देशी ही राजभाषा और राष्ट्रभाषा थी।
हे राम!..........
जब बलात्कार,यौनशोषण,बालश्रम से अत्याचारों से देशमुक्त था,
भ्रष्टाचार,आतंकवाद,मार्क्सवाद सी दानवी हरकतों से समाजमुक्त
था।
जब राजपरिवारों में स्वयंवरों से विवाहसंस्कार होता था,
आज सा प्रेमी - प्रेमिका का घर से भागकर विवाह करना न होता था।
हे राम!..........
जब कई राजा बहुविवाह और कई एक ही विवाह करते थे,
लेकिन राम सा राजा समाज आरोपण से अपनी एकमात्र रानी सीता का भी त्याग कर देता है।
जब लव - कुश से पूत माँ के सम्मान हेतु पिता से प्रश्न करते हैं,
सीता मैया सी नारी को पवित्रनारी साबित करते हैं।
हे राम!..........
जब स्वदेशी वस्तुओं की बिक्री ज्यादा थी,
आज सी विदेशी वस्तुओं की बिक्री नाममात्र भी न थी।
जब हर देशवासी वीर - जवान देश पर मर मिट जाता था,
कोई भी किसी से और न ही अपनों से धोखेबाजी करता था।
हे राम!..........
जब न राम - मन्दिर अयोध्या पर विवाद था,
और न ही भगवान राजनीति के घेरे में थे।
जब सत्य का बोलबाला और सत्य की ही जीत थी,
झूठ का नाम नहीँ और रावण से असत्य की हार थी।
हे राम! हमें वही भारत लौटा दो।।
               
          
      - कुशराज झाँसी

  _15/11/2018_10:11 दिन _ दिल्ली


आलोचना -:


                 सबसे पहले तो आपको बधाई कि आप आज भी भारत की सांस्कृतिक विरासत और संस्कृति के प्रति चिंतित हो। यही हंसराज कॉलेज की विशेषता है जो अपने युवाओं को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देने के साथ ही अपनी जड़ों से जुड़े रहना सिखाता है। 

                 जहाँ तक कविता का सवाल है तो इस तरह की कवितायेँ पहले भी लिखी गई हैं। आपकी कविता का भाव सुन्दर है। यह ठीक है कि हमें अपने अतीत को नहीं भूलना चाहिए लेकिन उसके प्रति इतना भी आग्रही भी नहीं होना चाहिए। यह जरुर है कि आपने जिन चीजों की माँग राम से की, उसे स्वयं इकट्ठा करना होगा। यह प्रामाणिक सत्य है कि देश और समाज को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी हमेशा मनुष्य के कंधों पर होती है। ईश्वर यह जिम्मेदारी इसलिए हमारे कंधे पर सौंपता है कि हम जिम्मेदार बन सकें और अपने समय और समाज के विकास में अपना सहयोग दे सकें। आपने अपनी कविता में राम से जो माँग की, वह आप जैसे युवाओं द्वारा ही संभव है। हंसराज एक विश्वस्तरीय संस्था है जहाँ से आप कोई भी आवाज उठाएंगे, लोगों तक पहुँचेगी। व्यक्ति को अपनी संस्था और गरिमा का ध्यान रखते हुए उसके संसाधनों का उचित प्रयोग करना चाहिए। मैं आप जैसे युवाओं पर पूरा भरोसा करती हूँ। कविता का कथ्य सामयिक है। भाषा और शिल्प पर कार्य करने की जरूरत है। निरंतर लिखते रहो, धीरे-धीरे अच्छा लिखोगे। बधाई!

    -  डॉ. रमा

 (प्राचार्या, हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय)
   _ 15/11/2018_04:44 शाम _ दिल्ली


Very Beautiful.
The poet has emphasized the concept of "Made in India", it's a great thought towards promoting Nationalism. Hopefully the prayers of the poet to Lord Rama will come true and we will get our India back.

✍दिव्यांशा खजूरिया (Divyansha Khajuria)
{BSc. Anthropology Hons., Hansraj College, Delhi University}

_20/11/2018_10:00pm



Tuesday 6 November 2018

आतिशबाजी से नहीं होगा रोशन समाज

लेख : " आतिशबाजी से नहीं होगा रोशन समाज "




             दीपावली अंधकार में प्रकाश का, गंदगी में सफाई का, बुराई में अच्छाई का, दुःख में सुख का, नफरत में प्यार का और सकारात्मक ऊर्जा के संचार का पावन पर्व है। समाज को प्रकाशमय, शांतिपूर्ण और खुशहाल बनाने का सुअवसर है। दीपावली चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण करने के पश्चात मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के अपने घर - अयोध्या वापसी के उपलक्ष्य में मनायी जाती है। इस सुअवसर पर अयोध्यावासियों ने सारे नगर को दीपों से जगमगा रखा था। इसमें मुख्यतः घी के दिये जलाए थे, जिसका आधुनिक अर्थ होता है - खुशी मनाना।

               आज आधुनिकीकरण के दौर में हमने दीपावली मनाने का तरीका बदल दिया है। जितने हम दीप नहीँ जलाते, उतने से कहीं अधिक आतिशबाजी करते हैं। जहाँ दीप समाज को रोशन करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं, वहीं आतिशबाजी दिल्ली जैसे महानगरों के साथ - साथ छोटे - छोटे गाँवों को भी ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण आदि पर्यावरणीय प्रदूषणों से अंधकारमय बना देती है। पिछली दीपावली को मैंने जब दिल्ली में देखा तब मैंने पाया कि अंधाधुंध आतिशबाजी से सारे शहर में जहरीली और हानिकारक धुंध दो - तीन दिन तक रही, जिसका समाज पर बड़ा कुप्रभाव पड़ा।

               आज हम जो दीपावली जैसे त्यौहारों पर अंधाधुंध आतिशबाजी करते हैं। जो क्षणिक खुशी प्रदान करने के साथ अपना दीर्घकालिक हानिकारक प्रभाव छोड़ती है। इसीलिए मैं कहता हूँ - "आतिशबाजी से नहीँ होगा रोशन समाज"। इन हानिकारक प्रभावों से हम इंसानों को आँखों में जलन, बहरापन के साथ - साथ कैंसर, दमा और हृदयरोग जैसी जानलेवा बीमारियाँ भी घेर लेती हैं। यह स्थिति हमारे पतन की ओर संकेत करती है। इसलिए मैं कहता हूँ -:

                "यदि हम आतिशबाजी करते जायेंगे,
                 तो इस समाज को और दूषित पायेंगे।
                 यदि ऐसा ही हम करते जायेंगे,
                तो इक दिन खुदको ही नहीँ बचा पायेंगे।।"

                 हमें आतिशबाजी से समाज को दूषित करने के बजाय दीपावली के सुअवसर पर समाज को दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा जैसी कुप्रथाओं; छुआछूत जैसी कुरीतियों; बलात्कार, यौन-शोषण, किसान-मजदूर शोषण और बाल-श्रम जैसे अत्याचारों एवं भ्रष्टाचार, आतंकवाद और मँहगाई जैसी गंभीर समस्याओं को पूर्णतः समाप्त करने के लिए कदम उठाना चाहिए और सभ्य समाज के निर्माण में हाथ बढ़ाना चाहिए।

               उपर्युक्त समस्याओं से छुटकारा प्राप्ति हेतु हमें सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक क्रांति करना चाहिए और अधिकाधिक जनभागीदारी के साथ आंदोलन करना चाहिए। मैंने कहा भी है - "क्रांति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं।" अर्थात क्रांति होती है तो परिवर्तन होता है। परिवर्तन होता है तो विकास होता है। विकास होता है तो हम लक्ष्य प्राप्ति करते हैं। इस दीपावली को हम संकल्प लेते हैं कि "कभी भी आतिशबाजी से समाज को दूषित नहीँ करेँगे बल्कि गम्भीर समस्याओं को मिटाकर सभ्य समाज का निर्माण करेंगे और समाज को दिव्य रोशनी से रोशन करेंगे।" संकल्प को सिद्धि तक पहुँचने हेतु अंनत शुभकामनाएँ और साथ ही साथ आप सभी को प्रकाशपर्व दीपावली की अनंत शुभकामनाएँ और बधाई!

  -  कुशराज झाँसी

_06/11/2018_09:20 दिन _ दिल्ली



Thursday 1 November 2018

नेता - कुशराज झाँसी

                     लेख : " नेता "


एक योग्य नेता की आवश्यकता हर युग और हर क्षेत्र में रही है और आज भी है और हमेशा रहेगी। चाहे वह क्षेत्र धर्म हो, शिक्षा हो, समाजसुधार हो या राजनीति। आज लोग सामान्यता नेता का सन्दर्भ राजनेता से जोड़ते हैं। जो शत् प्रतिशत सही नहीँ हैं। नेता तो अभिनेता भी होता है जो अपने अभिनय के द्वारा समाज में जागृति लाता है और समाज की परिस्थितियों को प्रत्यक्ष रूप में प्रदर्शित करता है। 

                      मेरे अनुसार - "सच्चा नेता वह है जो निःस्वार्थ सेवा करता है और सदा परोपकारी कामों में लगा रहता है।" वास्तव में समाजसेवी नेता निःस्वार्थ सेवा करते हैं और कुछ राजनेता भी। कुछ तथाकथित राजनेता चुनाव जीतने के बाद अपने चुनावी क्षेत्र में वर्षों कदम तक नहीँ रखते। जिससे ये राजनेता न ही क्षेत्र की जनता की हालातों को जान पाते हैं और न ही उस क्षेत्र के बारे में। ये विकास के नाम पर करोड़ों का घोटाला करते हैं और भ्रष्टाचार के आरोप में राजनेताओं की नाक कटाते हैं। 

                        हर नेता को चाहे वह छात्रनेता हो, अभिनेता हो या राजनेता हो। उसे अपने क्षेत्र में पूरी ईमानदारी और तत्परता के साथ काम करना चाहिए। तभी वह आसमान की बुलंदियों को छू सकेगा और अपना नाम और देश - विदेश का कल्याण कर सकेगा।
इस दुनिया में रचनात्मक कार्य और उनसे मिली प्रसिद्धि ही शाश्वत है। बाकी कमाया हुआ धन, मोह - माया, यहाँ तक की हमारा शरीर भी नश्वर है। इसलिए मैं कहता हूँ - "परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीँ है।" 

                        छात्रनेता को हमेशा छात्रों के अधिकारों के लिए काम करते रहना चाहिए। आज छात्र को कॉलेज में सभी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए जिससे शिक्षा का सकारात्मक विकास हो सके और देश - समाज का कल्याण हो सके। छात्रनेता को छात्रों को अधिकार दिलाने के लिए क्रांति करना चाहिए। क्रांति होने से परिवर्तन होता है। परिवर्तन होता है तो विकास जरूर होता है। मैंने लिखा भी है - "क्रांति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं।" 

- कुशराज झाँसी 

_1/6/2018_8:38 रात _ दिल्ली



                                आलोचना -:
                           नेता होना आवश्यक नहीँ, मानव में नेता जैसे गुण भी विद्यमान होने चाहिए। मगर वर्तमान युग में वे दृष्टिगोचर नहीँ होते। प्राचीन विद्वानों व विशेषज्ञों ने भी एक ऐसे नेता की परिकल्पना की है, जो कर्मठ हो, मैत्रीपूर्ण - स्नेहवान हो, रचनात्मक हो, सामाजिक हो और जिसमें निर्णयक्षमता, नैतिकता, सहानुभूति - संवेदना हो, अच्छा संदेशवाहक हो, भेदभावरहित हो। मगर दुर्भाग्य की बात ये है कि आज ऐसे नेता नहीँ हैं। मगर कहीं - कहीं शैक्षणिक संस्थानों, विभागों और सामाजिक संस्थाओं में कई नेतृत्त्व करने वाले नेता अपने व्यक्तित्व, अपनी सक्रियता और अपने कार्यों के लोगों को प्रभावित कर रहे हैं और लोग भी प्रभावित हो रहे हैं। और विशेषकर कुशराज, मेरी दृष्टि में तुम में नेता जैसे गुणों का धीरे - धीरे विकास हो रहा है और तुम अपने निबंध, लेख, कविता व अन्य साहित्यिक विधाओं द्वारा लोगों को प्रभावित करते हो।
                  ✍ मो. आतिफ 

                                  The way you write is so beautiful.Your Revolutionary views about Our Country is so very impressive.

       ✍ Divyansha Khajuria (दिव्यांशा खजूरिया)

                 

70वाँ वार्षिक पारितोषिक वितरण समारोह हंसराज कॉलेज 2018

दिनाँक 27 मार्च 2018 को हंसराज कॉलेज का 70 वाँ वार्षिक पारितोषिक वितरण समारोह मुख्य अतिथि - कर्नल राज्यवर्द्धन सिंह राठौर (माननीय राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार, युवा एवं खेल मंत्रालय, राज्य मंत्री सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार); विशिष्ट अतिथि - श्री अशोक कुमार पोद्दार (मुख्य अधिकारी RITES रेल मंत्रालय भारत सरकार); अध्यक्ष - डॉ. रमेश कुमार आर्य (उपाध्यक्ष - डी. ए. वी. कॉलेज प्रबंध समिति); शैलू सिंह (समन्वयक - वार्षिकोत्सव समारोह); डॉ. रमा (प्राचार्या - हंसराज कॉलेज); प्राध्यापक -प्राध्यापिकाओं और छात्र - छात्राओं की विशिष्ट उपस्थिति में संपन्न हुआ।
                     जिसमें सर्वप्रथम यज्ञशाला में हवन किया गया, उसके पश्चात अतिथि सम्मान समारोह और स्वागत भाषण फिर वार्षिक विवरण प्रस्तुति, इसके पश्चात विशिष्ट अतिथि और मुख्य अतिथि का उद्बोधन, फिर वार्षिक विवरण (ऐन्नुअल रिपोर्ट) 2017 -18 एवं वार्षिक पत्रिका 'हंस' का लोकार्पण हुआ, इसके पश्चात मेधावी विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया और राष्ट्रगान से समारोह का समापन हुआ।
                   वार्षिक विवरण 2017-18 में मेरी अतिरिक्त पाठ्यक्रम कार्यकलाप (ई.सी. ए.) की रिपोर्ट और वार्षिक पत्रिका 'हंस' 2018 मेँ मेरी रचना "काम करेगा जो - नाम करेगा वो" प्रकाशित हुई।
#कुशराज_30/03/2018_5:04pm




   

हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी खों अथाई की बातें तिमाई बुंदेली पत्तिका भेंट.....

  हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी में मुखिया आचार्य संजै सक्सेना जू, आचार्य नबेन्द कुमार सिंघ जू, डा० स्याममोहन पटेल जू उर अनिरुद्ध गोयल...