Saturday 30 December 2023

कहानी (Story) : मजदूरी (Majdoori) - कुशराज झाँसी (Kushraj Jhansi)

 *** कहानी (Kahani) - " मजदूरी " (Majdoori) ***


( हमारी सातवीं कहानी 'मजदूरी' है। यह बदलाओकारी नारीवाद, कुशराजवादी स्त्री विमर्श की कहानी है। इसमें बुंदेलखंड की मजदूरिन सिया के जीवन संघर्ष को चित्रित किया गया है और उसके शराबी, जुआखोर, निक्कमे, परिवार के प्रति गैर जिम्मेदार पति रामचंद्र की हालातों को उजागर किया गया है। रामचंद्र का कैंसर और टीबी के इलाज में परिवार का सारा धन खर्ज कराके और परिवार को कर्ज में डुबोकर मर जाना बड़ा त्रासदी भरा है। बुंदेलखंड के 90% परिवार नशाखोरी और जुआखोरी के कारण ही बर्बाद हैं। इस कहानी में सिया और रामचंद्र की बेटी संध्या का अपने पति के साथ मिलकर समाजसुधारक के लिए अभियान चलाना और शराबबंदी कराने एवं धूम्रपान और जुआ पर रोक लगाने में सफलता पाना बदलाओकारी है। संध्या का सशक्त अभियान चलाकर अशिक्षा के अंधकार को मिटाना युगांतकारी है। क्या सरकार और नागरिकों को बुंदेलखंड में शराबबंदी, धूम्रपान और जुआ पर पाबंदी लगाने के लिए कदम उठाने चाहिए ? क्या शिक्षा को बढ़ावा देकर और जागरूकता फैलाकर शराब, धूम्रपान और जुआ पर लगाम लगाई जा सकती है ? क्या शराब, धूम्रपान और जुआ ही बुन्देलखंडी समाज के पतन के कारण हैं ? क्या बुंदेलखंड के विकास के लिए शिक्षा ही एकमात्र उपाय है या अखंड बुंदेलखंड राज्य बनना जरूरी है ? )

         

सिया काकी को एक हफ्ते से मजदूरी के लिए कोई काम नहीं मिल रहा है। गाँव के हर मुहल्ले में काम तलाशा फिर भी किसी के यहाँ कोई काम - धंधा न मिला। हताश होकर हाथ पर हाथ धरे अपने छोटे से खपरैल घर में बैठी है। टेंशन में दो दिन से कुछ भी खाया - पिया नहीं है। शाम होने वाली है लेकिन अभी तक नहा भी नहीं पाया है क्योंकि घर के बगल वाला हैण्डपम्प कल से खराब पड़ा है। मुहल्लेवाली औरतों और लड़कियों को डेढ़ - दो किलोमीटर दूर से पानी भरने जाना पड़ रहा है। ग्रामप्रधान से हैण्डपम्प सुधरवाने की गुजारिश की गई तो उसने आश्वासन दिया कि नरसों तक अवश्य ठीक करा दूँगा।



इसी वक्त सिया की नन्दबाई रिया आ जाती हैं। भौजी का मुरझाया चेहरा देखकर आते ही पूँछती हैं - " भौजी क्या हुआ? ऐसे मुँह लटकाए काय बैठी हो ??? "


" कछु न बिन्नू। भगवान ने बहुत बुरा किया है हमारे साथ। घर कंगाल कर दिया है। दाने - दाने के लिए मोहताज कर दिया है। अब तो और बुरी दशा है ढूँढें- ढूँढें मजदूरी नहीं मिल रही है...।"



" कोई न भौजी। धैर्य रखो। आपका भी फिर से अच्छा समय आएगा। और हमलोग तो हैं आप लोगों की मदद खातिर..."


" हाँ बिन्नू। ठीक कह रहीं आप। चलो अब आप हाथ - मुँह धोकर खाना खा लो।"


" भौजी! अभी भूँख नहीं है। रात को खा लेंगे...।"



देर रात को रिया के भाईसाहब रामचन्द्र भी आ जाते हैं। उन्हें शराब का नशा ऐसा चढ़ा था कि गली में झूम - झूमकर कहीं कीचड़ में गिर गए होंगे तभी तो सारे कपड़े और बदन कीचड़ से लतपथ है। उनके बाल तो बेथी - बेथी जितने लम्बे हो गए हैं और दाढ़ी तो रीछों जैसी लटक रही है। महीने में चार - पाँच बार ही नहाते हैं सिर्फ जुआ खेलने और शराब पीने में मस्त रहते हैं। किसी काम धन्धे और घर - परिवार से कोई लेना - देना नहीं है…।



शराबी रामचंद्र को रात में ही सिया और रिया ने नहलाया और साफ - सुथरे कपड़े पहनाए। रात ग्यारह बजे तीनों ने भोजन किया। सिया की बेटी संध्या आठ बजे ही भोजन करके सो गई थी।



बड़ा बेटा जितेन्द्र बरूआसागर के राजकीय इण्टर कॉलेज में हाईस्कूल में पढ़ रहा है। छोटा बेटा शैलेन्द्र बरूआसागर के माते रेस्टोरेन्ट में वेटर का काम करता है। जो अभी सिर्फ दस साल का ही है। संध्या गाँव की ही सरकारी कन्या पाठशाला में कक्षा चार में पढ़ती है। जो बड़ी होनहार है...दो साल बाद, रामचन्द्र की हालात और बिगड़ जाती है। वो वैसे ही गाँव के नम्बर एक के जुआड़ी और शराबी थे। दिनभर जुआ खेलते थे। जुए में ही अपनी पन्द्रह - बीस बीघा जमीन और बहुत बड़ा मकान गवाँ बैठे थे। अब सर्फ एक खपरैल कच्चा घर और मवेशियों के लिए बेड़ा बचा है। नाममात्र की जमीन बची है सिर्फ आधा बीघा। जिसमें मवेशियों हेतु चारा उग जाता है और थोड़ी बहुत साग - सब्जी भी। अब घर बिल्कुल कंगाल हो गया है। जितेन्द्र और संध्या का स्कूल छूट गया है। शैलेन्द्र वैसे ही स्कूल नहीं जाता था।



रामचन्द्र जुआ खेलते वक्त इतने मस्त - मौला हो जाते थे कि खाने - पीने पर बिल्कुल ध्यान ही नहीं देते थे। बिना खाए - पिए सवेरे से शाम तक और कभी - कभार देर रात तक खेलते रहते थे। कभी जीतते थे और अधिकतर बार हारते ही थे। जीतना रामचन्द्र के भाग्य में था ही नहीं। तभी तो सब कुछ गवाँ दिया इस जुए की लत में।



देशी, महुआ माता और अंग्रेजी शराब तीनों का पैग एक साथ लगा लेते थे। महुआ माता तो बिना पानी मिलाए ही ढँगोस जाते थे। दिनभर में चार - पाँच सौ के गुटखा थूंक देते थे और सिगरेट फूँक जाते थे। तभी तो आज कैंसर और टी० बी० के मरीज बनकर परलोक सिधार गए। जितना घर में धन - धान्य था। वो भी अपने इलाज में खर्च करा गए। घर को शत प्रतिशत बर्बाद कर गए।



अब सिया और जितेन्द्र नमकीन फैक्ट्री में मजदूरी करते हैं। शैलेन्द्र वहीं माते रेस्टोरेन्ट में वेटर का ही काम करता है। संध्या विवाह लायक हो गई है।



दो साल बाद, मजदूरी से प्राप्त धनराशि को संध्या की शादी हेतु पच्चीस हजार रुपए बुन्देलखण्ड सर्वजातीय विवाह सम्मेलन में पंजीकरण के रूप में जमा कर दिए गए और संध्या का विवाह संपन्न हो गया।



शादी के एक साल बाद, संध्या ने अपने पति के साथ मिलकर, समाज सुधार अभियान चलाया और समाज में जुआ, शराब, धूम्रपान पर रोक लगाने में कामयाब हुई और समाज के हर आदमी को शिक्षा का महत्त्व समझाया। वो खुद पढ़ाती और साथ ही दूसरों को पढ़ने - पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती। पाँच साल में ही इस संध्या ने समाज में संध्या यानी शाम की भाँति छाए अज्ञानता और अजागरुकता के अंधकार को मिटाकर शिक्षा और जागरूकता की रोशनी से भर दिया.....।



 15/03/2019 _ 10:31 रात _ जरबो गॉंव, झाँसी



( 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी-संग्रह से...)



©️ कुशराज झाँसी (प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा, बुंदेलखंडी युवा लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता)


" गाँव के परिवेश में लिखी गई 'मजदूरी' कहानी स्त्री-विमर्श की अवधारणा को पुष्ट करती है। इस कहानी में शराबी और निक्कमे पति रामचंद्र के साथ उसकी पत्नी सिया का संघर्ष दिखाई देता है। रामचंद्र का गाँव के बिगड़ैल लोगों के साथ जुआखोरी करना, शराब पीना, पत्नी के साथ मारपीट करना, बच्चों की पढ़ाई - लिखाई आदि का इंतजाम न करना जैसी आम समस्याओं का समाधान सिया-रामचंद्र की बेटी संध्या बनती  है। संध्या विवाह होने के पश्चात पति के साथ गाँव आती है और गाँव में शिक्षा के संस्कार पैदा करने के लिए जनजागरण करती है। गाँव से जुआ के अड्डे, शराबखोरी जैसी बुराइयों से लोगों को सचेत करके लोगों में शिक्षा, संस्कार और स्वावलंबन पैदा करती है। इस कहानी के मूल में गाँधीजी के ग्राम सुधार की भावना भी परिलक्षित होती है। "

- डॉ० रामशंकर भारती 'गुरूजी' (साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी)

२७/११/२०२३, झाँसी


" सातवीं कहानी 'मजदूरी' है, जो किसान की जुआ और नशाखोरी की समस्या पर आधारित है, किन्तु कथा सूत्रों का अति सरलीकरण इसे बेहतर नहीं बनने देता। "

- प्रो० पुनीत बिसारिया

(आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष - हिन्दी विभाग, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी)

20/12/2023, झाँसी



बुंदेली भासा की बकालत करत हैगी 'अथाई की बातें' पत्तिका - किसान गिरजासंकर कुसबाहा 'सतेंद सिंघ किसान'

 *** बुंदेली भासा की बकालत करत हैगी 'अथाई की बातें' पत्तिका ***



बुंदेली भासा की एकमात्त तिमाई पत्तिका 'अथाई की बातें' कौ ताजौ अंक (साल - १५ , अंक - १ , कुँआर-कातिक-अगन) पढ़कैं भौत खुसी भई। कायकी अथाई की बातें पत्तिका बुंदेली भासा की बकालत कर रई हैगी उर बुंदेली भासा खों देस - दुनिया के कोने-कोने में पौंचाबो चा रई। 




बुंदेली भासा बोलबे बारों की जनसंख्या दस - बारा करोड़ हैगी। हम बुंदेली भासी यानी बुंदेलखंडी उत्तर परदेस के बुंदेलखंड (जिला झाँसी, ललितपुर, जालौन, महोबा, हमीरपुर, बाँदा, चित्तकूट, फतेहपुर) उर मध्य पिरदेस के बुंदेलखंड (जिला जबलपुर, सागर, टीकमगढ़, निवाड़ी, दतिया, ग्वालियर, शिवपुरी, भिंड, मुरैना, सियोपुर, पन्ना, छ्तरपुर, दमोह, असोकनगर, रायसेन, विदिसा, नरसिंघपुर, भोपाल) में यानी 'अखंड बुंदेलखंड' में रेऊत हैगें। हम बुंदेलखंडी अपनी बुंदेली भासा में बोलत, लिखत और पढ़त हैगें। हमाई बुंदेली भासा मेंईं जगनिक नें आला-चरित लिक्खो और तुलसीदास नें रामचरितमानस में भी बुंदेली कौ पिरयोग करौ। बुंदेली भासा कीं केऊ बोलीं हैंगीं जैसें - कछियाई, ढिमरयाई, अहिरयाई, लुधियाई, डंगाई बमनऊ, बनियाऊ उर चमरयाऊ।


छतरपुर सें पिरकासित 'अथाई की बातें' पत्तिका के यी अंक के पिरधान संपादक डॉ० राघबेंद उदैनियाँ 'सनेही' (छतरपुर) हैंगे। संपादक मंडल में डॉ० बहादुर सिंघ परमार (छतरपुर) उर डॉ० सुधाकर उपाध्याय (ललितपुर) हैं। सुरेंद अग्निहोतरी (ललितपुर) सलाहकार संपादक उर गुप्तेसुर द्वारका गुप्त (जबलपुर) अतिथि संपादक हैगें। जौ अंक  जबलपुर की बुंदेली पे केंद्रित हैगो।



यीमें लेख, किसा, हलकी किसा, कबीता, बियंग, विमर्स, किसान बिमर्स, इस्तरी बिमर्स की रचनाएँ उर पोथी समिक्छाएं छपी हैंगीं। यीमें " झाँसी की बुंदेली किसायें - सतेंद सिंघ किसान " सीर्सक सें हमाईं कछियाई बोली में लिखीं दो किसायें - 'पिरकिती' उर 'रीना' भी छपी हैगी। 'पिरकिती' पर्याबरन बिमर्स की किसा हैगी, जीमें पर्याबरन की रक्छा उर पिरदूसन खों दूर भगाबे कौ संदेस हैगो उर 'रीना' किसान बिमर्स की किसा हैगी। जीमें बुंदेलखंड के किसान की दसा उर दिसा के संगे सिरकार की ताएँ सें बुंदेलखंड की अनदेखी उर रुजगार उर सिक्छा की समस्या खों उजागर करौ गओ हैगो।



यी अंक में सुरेंद अग्निहोतरी कौ लेख 'त्योहारन कौ मेला' , डॉ० सुमनलता श्रीबास्तओ की किसा 'स्वयंसिद्धा' , डॉ० सुधाकर उपाध्याय की कबिताएं 'प्यारौ गॉंव' उर 'मोबाईल' , जयपिरकास श्रीबास्तओ की किसा 'झिर फूटी' , द्वारका गुप्त गुप्तेसुर कौ लेख 'जबलपुर छेत्त की बुंदेली कौ सरूप' , संतोस कुमार पटैरेया की कबीता 'सूखौ' , साधना उपाध्याय की किसा 'काकी नें देखो ब्याह' , अभिमन्यु जैन को बियंग 'मामा के आँगें' , बिजयलच्छमी बिभा की कबीता 'जा बुंदेलखंड की धरती' , प्रो० बहादुर सिंघ परमार कौ लेख 'निहारौ नोंनों बुन्देलखण्ड' , नीतेंद सिंघ परमार कीं बुंदेली चौकड़ियां , नंदकिसोर पटैल की पोथी समीक्छा 'रैन की पुतरिया' , आमिल हबीबी की कबीता 'हमाए सबरे रुपइया डकार कें' , मनोरमा तिबारी की किसा 'बसोरी कक्का' , ममता तिबारी की किसा 'दायजौ के सहेजौ' , अरुन कुमार मिस्र की हलकी किसा 'तिनका-तिनका घौंसला' , सुरेन्द सिंघ पबार कौ लेख 'सरग नसैनी पाट की, जा पै चढ़ न्यौते देंय' , डॉ० राघबेंद उदैनियाँ सनेही की गजल उर आचार्य भगबत दुबे की कबीता 'हँसी उड़ाई बेचारी की' भौतई नौंनीं लगीं। सबई रचनाएँ एक सें बढकें एक हैंगीं। सबमें बुंदेली समाज उर संसकिरती की अनोखी झलक दिखाई गई है। 






आप सबई जनन सें हांत जोरकें हमाई जा बिनती हैगी के आप 'अथाई की बातें' पत्तिका के सदस्य बनों उर अपने संगी-साथियन खों भी सदस्य बनाओ। बुंदेली भासा के पिरचार - पिरसार के यी जग्ग में सब जनन की आहुति जरूरी हैगी, ऐईसें  बुंदेली के लानें हम सब बुन्देलखण्डीयन खों तन, मन उर धन सें सैयोग कन्नैं है। जब हम बुन्देलखंडी बुंदेली भासा के लानें आंदोलन में सैयोग करहैं, तबईं बुंदेली भासा खों सिरकारी मान्यता मिलहै। हम सिरकार सें माँग करतई के बुंदेली भासा खों संबिधान की आठमीं अनुसूची में सामिल करौ उर बुंदेली खों सिक्छा कौ माध्यम बनाओ। 


।। जै जै बुंदेली - जै जै बुंदेलखंड ।।




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हर अंक - 75 रूपज्जा

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©️ किसान गिरजासंकर कुसबाहा 'कुसराज झाँसी'

(( सतेंद सिंघ किसान ))

(अगुआईकारी - बदलाओकारी बिचारधारा, बुंदेली भासा पिरचारक, लिखनारो)

फोन - 9596911051, 8800171019

ईमेल - kushraazjhansi@gmail.com

पतौ - २१२, नन्नाघर, जरबो गॉंओं, बरूआसागर, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड (१२८४२०१)

३०/१२/२०२३, झाँसी


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Friday 29 December 2023

किसान गिरजासंकर कुसबाहा 'कुसराज झाँसी' नें गढ़-कुडार महोत्सओ में बाँचौ सोदपत्त...

 ** किसान गिरजासंकर कुसबाहा 'कुसराज झाँसी' नें गढ़-कुडार महोत्सओ में बाँचौ सोदपत्त... **



मध्य पिरदेस सिरकार की ताएँ सें आयोजित तीन दिनाई (२७-२९ दिसंबर २०२३) महाराजा खेतसिंघ खंगार जैंती समारोह - "गढ़-कुडार महोत्सओ" के दूसरे दिनाँ २८ दिसंबर २०२३ खों कामकाजीघर उपसंचालक, पुरातत्व, अभिलेखागार उर संग्रहालय मध्य पिरदेस उत्तरी छेत्त, गबालियर की ताएँ सें "बुंदेलखंड छेत्त में खंगार राजबंस कौ राजनैतिक उर सांसकिरतिक बैभओ" बिसै पे कुडार किले में आयोजित इक दिनाई सोद संगोसठी में हमनें "कुडार कौ राजनैतिक - सांसकिरतिक बैभओ" नांओं कौ सोदपत्त बाँचौ। गुरूजी डॉ० रामसंकर भारती नें संगोसठी के तीसरे सत्त की अध्यक्छता करी उर महाराजा खेतसिंघ खंगार की जीबनी उर खंगार राजबंस खों प्राथमिक सिक्छा सें लेकें उच्च सिक्छा के पाठकिरम में सामिल करबे की बकालत करी। मातापिसाद साक्य नें बुंदेली लोकनाट्य - 'टेसू' से बुंदेली संसकिरती की अनोखी झलक दिखाई।










यी औसर पे उपसंचालक पी० सी० महोबिया, रमेस सिंघ यादब, डॉ० पिरमोद कुमार अगरबाल, डॉ० बसीम, पन्नालाल असर, आरिफ सैडोली, संतोस पटैरेया, रामप्रकास गुप्ता, बासुदेओ सिंघ समेत अखंड बुंदेलखंड के इतहासकार, पुरात्तवबिद, अफसर, लिखनारे, पत्तकार, सोदार्थी उर सैकड़न लोग - लुगाई मौजूद रए।





- किसान गिरजासंकर कुसबाहा 'कुसराज झाँसी'

(अगुआईकारी - बदलाओकारी बिचारधारा, सोदार्थी, युबा इतहासकार)

२८/१२/२०२३, झाँसी


** किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी' ने गढ़कुंडार महोत्सव में पढ़ा शोधपत्र...**


मध्य प्रदेश शासन द्वारा आयोजित तीन दिवसीय (27 - 29 दिसंबर 2023) महाराजा खेतसिंह खंगार जयंती समारोह - " गढ़कुंडार महोत्सव " के दूसरे दिन 28 दिसंबर 2023 को कार्यालय उपसंचालक, पुरातत्त्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय मध्य प्रदेश उत्तरी क्षेत्र, ग्वालियर द्वारा " बुंदेलखंड क्षेत्र में खंगार राजवंश का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक वैभव" विषय पर गढ़कुंडार दुर्ग में आयोजित एक दिवसीय शोध संगोष्ठी में हमने "गढ़कुंडार का राजनैतिक - सांस्कृतिक वैभव" नामक शोधपत्र पढ़ा। गुरूजी डॉ० रामशंकर भारती ने संगोष्ठी के तृतीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए महाराजा खेतसिंह खंगार की जीवनी और खंगार राजवंश को प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने की वकालत की। माताप्रसाद शाक्य ने बुंदेली लोकनाट्य - 'टेसू' से बुंदेली संस्कृति की अनोखी झलक दिखाई।


इस अवसर पर उपसंचालक पी० सी० महोबिया, रमेश सिंह यादव, डॉ० प्रमोद कुमार अग्रवाल, डॉ० बसीम, पन्नालाल असर, आरिफ शहड़ोली, संतोष पटैरिया, रामप्रकाश गुप्ता, वासुदेव सिंह समेत अखंड बुंदेलखंड के इतिहासकार, पुरात्तवविद, अधिकारी, लेखक, पत्रकार, शोधार्थी और सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।


- किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'

(प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा, शोधार्थी, युवा इतिहासकार)

२८/१२/२०२३, झाँसी


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कहानी (Story) : घर से फरार जिंदगियाँ (Ghar Se Farar Zindagiyan) - कुशराज झाँसी (Kushraj Jhansi)

 *** कहानी (Kahani) - " घर से फरार जिंदगियाँ " (Ghar Se Farar Zindagiyan) ***


(हमारी छठी कहानी है 'घर से फरार जिंदगियाँ'। यह कहानी 21वीं सदी की युवा पीढ़ी, नई पीढ़ी के जीवन पर आधारित है। यह एक प्रेम कहानी भी है। इसमें आज की पीढ़ी के किशोर - किशोरियों के प्रेम प्रसंगों और अंतरजातीय विवाहों का सजीव चित्रण हुआ है। आज की पढ़ी - लिखी पीढ़ी के जीवन का यथार्थपूर्ण चित्रण किया गया है और बुंदेलखंड में शिक्षा के प्रति जागरूकता को भी दिखाया गया है। साथ ही किशोर - किशोरियों और युवा - युवतियों के विवाह से पहले स्थापित यौन संबंधों को भी उजागर किया गया है और पढ़े - लिखे युवा - युवतियों के प्रति समाज के दोहरे चरित्र को भी उजागर किया गया है। क्या अंतरजातीय विवाहों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए या फिर अंतरजातीय विवाहों पर रोक लगानी चाहिए ? क्या समाज को अपने दोहरी चरित्र में बदलाओ करना चाहिए ?)


         उतरत दिसंबर की भोर अम्मा ने साक्षी को जगाते हुए बड़े लाड़ - प्यार से कहा -

 " उठो बिन्नू! उठो! मुहल्ला के सारे मौड़ी - मौड़ा जग गए हैं। का तुमें उठने नईंयांँ ? जितेंद्र सर की टूशन की बेराँ होबे बाई हैगी, बीसई मिनट बचे हैं। फटाफट तज्जार हो जाओ। कायकि यी साले तुमाई दो - ढाई मईना बाद हाईस्कूल की परीक्षा है। सो तनक पढ़ाई - लिखाई में सीरियस हो जाओ। संजाँ - सवेरें मन लगाकें लिख - पढ़ लेऊ करे। "


 " हओ अम्मा! अबे हाल उठ रए रोज तो उठ जाऊत। आज तनक ठंड जादा लग रई ती और ऐतवार भी तो है। स्कूल की छुट्टी है। लेकिन जितेंद्र सर पिछले दो हफ्ता से छुट्टी के दिनाँ दो घण्टे पढ़ा रए हैं। वैसें एकई घण्टा की टूशन क्लास होत हमाई। "


" अच्छा! उठो जल्दी और तज्जार हो। जब तक हम पोहा बनाएँ दे रए। थोड़ा खाकर चले जाना। संजाँ को पापा बजार से सेवफल भी लाए हतै।   ये रखे हैं डलिया में। खाकर जाना काय तुमने रात कैं भी नईं खाए ते। भज्जा ने तो खा लए ते।"


साक्षी पंद्रह मिनट के भीतर तैयार हो गई। जब तक अम्मा ने पोहा बनाकर तैयार कर दिया था और प्लेट में उसके लिए परोस भी दिया था। पोहा के संगे सेवफल भी रख दिया था। झट से खाया - पिया और वो टूशन के लिए रेंजर साईकिल से रवाना हो गई। टूशन घर से आदा किलोमीटर दूर था। सो आज वो पन्द्रा - बीस मिनट लेट हो गई। आज सर जी को भी कुछ अर्जेंट काम आ गया था। वो अपने लौरे भज्जा को बाईक से झाँसी रेलबे टेसन छोड़बे गए थे क्योंकि उसका आज शाम चार बजे आगरा में एसएससी - सीजीएल का एग्जाम था। सर भी लौटते टैम लेट हो गए क्योंकि बेतवा पुल पर भारी - भरकम जाम लग गया था। डम्फरों की भौत लम्बी - लाइन लग गई थी। फिर भी साढ़े सात बजे तक टूशन लौट आए। अभी आदा घण्टे ही देरी हुई थी।


स्टूडेंटों से सर जी ने पूछाँ -

" क्या पढ़ना हैं ? पुल पर अगर जाम न लगो होतो तो टाइम से आ जाते। " 


साक्षी बोली -

" सर जी! आज परिसंचरण तन्त्र के बारे में समझा दो और ह्रदय का डायग्राम भी। "


 " ठीक है। "


सर जी ने चालीस मिनट में ह्रदय के दो डायग्राम बोर्ड पर बनाकर तैयार कर दिए। इनके बारे में डिटेल में बताकर बच्चों को भी डायग्राम की बार - बार प्रैक्टिस करने को कहा। फिर परिसंचरण तन्त्र पर गहन चर्चा की।


छुट्टी में साक्षी अपनी बेस्ट फ्रेंड सोनाली से बोली - 

" यार तूँ एक हफ्ते से टूशन क्यों नहीं आ रही थी। किते गई थी तूँ। तेरे बिना हमाओ मन ही नहीं लग रओ तो। "

                           

" अरे यार ! मैं अपने ननिहाल गई थी, खजुराहो। छोटे मामा सत्येंद्र की शादी में। शादी में बड़ा मजा आया। मामा सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और मामी भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। दोनों क्लासमेट रहे हैं। आईआईटी दिल्ली से कम्प्यूटर साइंस में बीटेक किया है। मैं मामा से पाँच साल बाद मिली थी। मामा घर पर कम ही आते थे। जब वो आते थे। तब मैं नहीं जा पाती थी और जब मैं जाती थी तब उनकी छुट्टियांँ नहीं होती थीं। भले फोन पर डेली बात हो जाती थी और कभी-कभार वीडियो-कॉल भी। 


शादी पर मामा जी ने मुझे आईफोन-एक्स गिफ्ट किया है। मामा जी बोल रहे, दो - चार महिने मे लैपटॉप भी दिलवा देंगे। बहुत चाहते है मामा हमें और अपनी बहिन दीपा को। हमाई मामी बहुत खूबसूरत हैं। बिल्कुल अप्सरा जैंसीं और मामा भी कोनऊ हीरो से कम नईं लगत। मामी में जितनी फिजिकल ब्यूटी है, उतनी ही स्पीरिचुअल ब्यूटी। माइंड से बहुत क्रिएटिव हैं। उर्दू में शायरियांँ लिखती हैं, हिन्दी में उपन्यास तो अंग्रेजी में रोमेंटिक कविताएँ। मामी कॉलेज में स्टूडेंट ऑफ द ईयर भी रह चुकीं है और मिस फ्रेशर भी। वो मॉडलिंग भी करती हैं और सोशल एक्टिविस्ट भी हैं। मामा ने भी हिन्दी में चार कहानियांँ और बुंदेली में कविता - संग्रह लिखा है। वो अभी अंग्रेजी में उपन्यास लिख रहे हैं। मामा - मामी दोनों में एक जैसे टेलेन्ट हैं। भगवान ने उन्हें बड़े सोच - समझकर बनाया होगा। "


" अच्छ! और ये बता कि तेई एग्जाम की तैयारी कैसी चल रही है ? मुझे तो ट्रिकनोमेट्री के सवाल बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहे और न ही फिजिक्स के न्यूमेरिकल लग पा रहे। "


" यार ! मेरी तैयारी तो बहुत अच्छी चल रही है। कल से तू मेरे घर आया कर शाम को चार बजे । हम तुझे सवाल और न्यूमेरिकल समझा देंगे। अपन दोनों सात बजे तक अच्छे से पढ़ लिया करेंगे। "

                         

" ओके! बाय-बाय। आती हूँ कल से तेरे यहाँ, आज मार्केट जाना है, ड्रेस खरीदने...। "

" चलो, ठीक है। कल से जरूर आना...। "


अगले दिन से साक्षी रोजाना शाम चार बजे सोनाली के घर जाने लगी। सोनाली का घर किसान बाजार में साक्षी के घर से सात - आठ सौ मीटर दूर था। ढाई - तीन घंटे दोनों लगन से पढ़ाई करने लगीं। सोनाली के परिवार में उसके मम्मी - पापा और बड़े भाई हर्ष समेत चार सदस्य थे। मम्मी और पापा दोनों शहर के बरुआसागर राजकीय इंटर कॉलेज में लेक्चरर थे। पापा सोशलॉजी पढ़ाते थे तो मम्मी बायलॉजी। 


अभी हर्ष बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी, झाँसी में बी० एस०सी० फॉरेंसिक साइंस, फर्स्ट ईयर में था। वो यूनिवर्सिटी हॉस्टल में ही रहता था। लेकिन हर शनिवार को शाम को घर आता था और रविवार की शाम को वापिस लौट जाता था। साक्षी को देखकर वो मोहित हो गया और उससे बहुत प्यार करने लगा। 


मार्च के आखिरी में साक्षी और सोनाली की परीक्षाएँ समाप्त हुईं। दोनों के पेपर बहुत अच्छे हुए। जून के दूसरे सप्ताह में रिजल्ट आया तो सोनाली चतुर्वेदी स्कूल में सेकेंड टॉपर रही और साक्षी पाल ने जिला टॉप किया। दोनों के घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। साक्षी के माता - पिता किसान थे। साक्षी और सोनाली फिर से एक ही क्लास में पढ़ने लगीं और अब साक्षी सेशन की शुरूआत से ही सोनाली के साथ उसके घर पर पढ़ने लगी।


एक दिन हर्ष ने साक्षी को प्रपोज कर दिया और साक्षी ने खुशी - खुशी इसका प्रपोजल असेप्ट भी कर लिया है। दोनों एक - दूसरे से बहुत प्यार करने लगे। इन दोनों की प्रेमीकहानी की भनक दो साल तक किसी को न लगी। यहाँ तक की सोनाली को भी नहीं। दोनों की व्हाट्सएप पर चैट होने लगी और कभी - कभार वीडियो कॉलिंग भी हो जाती। रविवार को साक्षी हर्ष से तीन - चार घंटे बात करती है और उसके प्यार में पागल रहती है।

             

जब साक्षी इंटरमीडिएट में पढ़ रही थी तब उसने प्री - बोर्ड एग्जाम के एक महीना पहले हर्ष के साथ झाँसी की श्रद्धा होटल में रोमांस किया। हर्ष ने दो हजार में ओयो से ए०सी० रूम बुक किया था। 


साक्षी इंटरमीडिएट में फर्स्ट डिवीजन से पास हुई। रिजल्ट के अगले दिन जब सोनाली ने उससे पूछा -

" यार! हाईस्कूल में तो तूने जिला टॉप किया था और अब स्कूल टॉप भी न कर पाई। क्या हुआ तुझे ? "

                         

" कुछ नहीं यार! बस प्यार के पागलपन में ये सब हुआ है। प्यार के सिवाय और कुछ अच्छा ही नहीं लगता। किताब तो उठाई ही नहीं जाती । दिन - रात व्हाट्सएप चैटिंग में ही निकल जाता है। "

" अच्छा! किसके प्यार में पागल हो तुम ? "

                " जानू हर्ष "

                " कौनसा हर्ष ? "

                " तुम्हारा भाई "

                    " ओह! "

 

" यार! सोनाली मेरी लवस्टोरी के बारे में किसी को भी मत बताना, प्लीज। "

              " नहीं बताऊंगी। "

                 " प्रोमिस! "

              " हओ प्रोमिस! "


शाम को डिनर के वक्त सोनाली बेझिझक होकर साक्षी और हर्ष की लवस्टोरी अपने मम्मी - पापा को सुनाती है। जब हर्ष भी मम्मी के बगल में बैठा खाना खा रहा होता है। लवस्टोरी सुनकर वो भौचक्का रह जाता है। मम्मी और पापा दोनों उससे पूँछते हैं -

 " ये सब कब से चल रहा है ? ये हो रही है तुम्हारी बी० एस० सी० फोरेंसिक साइंस। ऐसे पास कर लोगे फॉरेंसिक इंस्पेक्टर का एग्जाम। कल से कॉलेज मत जाना। रहो यहीं घर पर...। "

" कुछ नहीं पापा! अभी डेढ़ - दो साल ही हुआ है। कुछ ज्यादा नहीं। "

" नालायक! डेढ़ - दो साल ज्यादा नहीं है तो क्या तुझे बीस - तीस साल ऐसे ही रहना है। एडवोकेट हितेंद्र की बेटी राधा से तेरा रिश्ता तय कर रहा हूँ, जो तेरी ही क्लासमेट है। शादी होने पर ही तेरी अक्ल ठिकाने पर लगेगी। "


हर्ष थोड़ी देर चुप रहकर चिल्लाकर बोलता - 

" हमें नहीं करनी किसी और से शादी। करूँगा तो सिर्फ साक्षी से ही......। "

 " उससे तो तुम्हारी शादी होने से रही। तुम्हारी साक्षी से कभी भी शादी न होने दूँगा…..।"

" देखता हूँ, कैसे नहीं होने देंगे आप ? "

                           

इतना कहकर हर्ष अपने कमरे में चला जाता है और फिर आधी रात को साक्षी को वीडियो कॉल करता है। वो भी उसकी कॉल का इंतजार कर रही होती है। हर्ष पापा - मम्मी के साथ जो बातें हुईं, वो सब बताता है और कहता है - 

" मेरे पापा बोल रहे हैं। तुम्हारी शादी साक्षी से कभी भी नहीं होने देंगे। अब तुम बताओ। क्या करना चाहिए हम लोगों को ? "

 " तुम जैसा चाहो जानू। हम तो तुम्हारी हर बात में राजी हैं। "

" अच्छा! ठीक है फिर तो। चलो अपन घर से फरार होकर नई जिंदगी की शुरूआत करते हैं…। "

" ओके जानू! लव यू। बाय। गुडनाइट। कल मिलते हैं अपन…। "

" ओके स्वीटी। लव यू। बाय…। "


घरवालों की जिंदगी की परवाह किए बिना बरुआसागर की दो जिंदगियाँ, हर्ष और साक्षी रविवार की शाम में अपनी जिंदगी की नई पारी की शुरूआत करने के लिए घर से फरार हो गईं…..।  


सोमवार की सुबह ओरछा में हर्ष और साक्षी ने बेतवा की पावन धारा में स्नान करने के बाद रामराजा सरकार को फूल - माला और प्रसाद चढ़ाकर दर्शन किए और वहीं राम भगवान और सीता मैया को साक्षी मानकर एक - दूसरे के गले में जयमाला डालकर विवाह रचाया। इसके बाद दोनों महल - किले घूमने लगे। घूमते  - घूमते दोपहर हो गई और भूख भी लग आई तो फिर उन्होंने कुशवाहा भोजनालय में खाना खाया और आराम करने के लिए यादव होटल में जा ठहरे।


दोनों शाम में फिर घूमने निकले। इस सुहावनी शाम में नई जिंदगी के खूबसूरत पलों को कंचना घाट से नौका विहार करके संजोया। साक्षी और हर्ष की ये पहली नौका विहार थी। इससे पहले इन्होंने कभी नौका विहार नहीं की था। 


नौका विहार करने के बाद, दोनों प्रकृति के खूबसूरत नजारों को देखने के लिए नदी के ठंठे - ठंठे पानी में पॉंव डुबोकर घाट किराने की बेंच पर सुकुन से बैठकर बतियाने लगे -

" यार! साक्षी, अब यहाँ से कहाँ चलना चाहिए अपन को ? "

" तुम जहाँ ले चलो… "

" चलो, फिर तो अपन झाँसी चलते हैं। "

" ठीक है…।"


इसके बाद हर्ष ने अपने दोस्त मोहित रजक को फोन किया -

" हैलो! मोहित भाई। हम और साक्षी आ रहे हैं तुम्हारे रूम पर अभी। "

" ठीक है भाई। आ जाओ…।"


बस से रात आठ बजे दोनों झाँसी आ गए और साढ़े आठ बजे आंतियाँताल मोहित के रूम पर पहुँच गए। पहुँचते ही मोहित है दोनों को नमस्ते की -

" नमस्ते हर्ष भाई, नमस्ते भाभी जी।"

" नमस्ते भाई, नमस्ते भैया जी। "


इसके बाद, तीनों ने मिलकर खाना बनाकर खाया और फिर आधी रात तक बतियाते रहे।


कल सुबह हर्ष और साक्षी के लिए यहीं आंतियाँताल में किराए के कमरे की व्यवस्था करने का तय हुआ।


कई लोगों के यहाँ कमरा ढूँढा लेकिन घर से फरार होकर शादी करने वाले इन अठारह - बीस साल के लड़की - लड़का को कोई भी किराए पर कमरा देने को तैयार नहीं हुआ। बड़ी मशक्कत करने के बाद गुप्ता जी के यहाँ तीन हजार रुपए हर महीने के किराए पर कमरा मिल गया और आज शाम से ही शिफ्ट होने की बात हो गई।


गुप्ता जी के यहाँ दोनों हँसी - खुशी रहने लगे। इस समय हर्ष के पास पन्द्रह - सोलह हजार रुपए थे और पाँच - छह हजार साक्षी के पास भी थे। इतने में दो - ढाई महीने आराम से खर्चा चल जाए। इसी हिसाब से ये काम कर रहे थे। अच्छा करियर बनाने के लिए दोनों मिलकर रोजीना गंभीरता से पढ़ाई भी कर रहे थे। 


एक महीने के बाद, हर्ष का फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर का रिजल्ट आया। उनसे अच्छे नम्बरों से एग्जाम पास कर लिया और अब फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर बन गया। हर्ष, साक्षी और मोहित ने इस खुशी में पार्टी मनाई और इसी बीच मोहित ने हर्ष के पापा को फोन किया -

" नमस्ते चाचाजी! "

" नमस्ते मोहित बेटा।

" चाचाजी! अपना हर्ष फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर बन गया। अभी - अभी रिजल्ट देखा हमने…। "

" अच्छा! बहुत बढ़िया। और हर्ष कहाँ से इस समय…।"

" हमारे पास ही है। "

" हर्ष साक्षी को लेकर जब घर से फरार हुआ था तब हमने तुम्हें फोन किया था तो तुम बोल रहे थे कि चाचाजी, हमें नहीं पता कहाँ है हर्ष। हमें हर्ष से क्या लेना - देना…। उस दिन से एक महीने बाद आज तुम फोन कर रहे हो और…।"

" सॉरी चाचाजी! उस समय आप गुस्से में थे और हर्ष भी परेशान था इसलिए दोस्ती की खातिर आपसे झूठ बोला। पुरा महीने हमने हर्ष और साक्षी का पूरा ख्याल रखा…।"

" अच्छा ठीक है। चलो हर्ष से बात कराओ। "

" हओ चाचाजी! अभी हाल कराते हैं। "

" बधाई हो! बेटा। तुम तीनों घर आओ शाम तक। आ जाओगे या हम लेने आएँ…। "

" धन्यबाद! पापा…सॉरी पापा, उस दिन के लिए हमने आपसे ऊँची आवाज में बात की। आपके मना करने के बावजूद पाल समाज की लड़की साक्षी से शादी रचाई और आप लोगों को बिना बताए घर से फरार हुआ…।"

" कोई नहीं बेटा… इस उम्र में गलती हो जाती है। अब आराम से घर आ जाओ, यहीं सब बातें करते हैं अपन…। "

" ठीक है पापा…। "


शाम चार बजे मोहित की बाईक से हर्ष, साक्षी और मोहित घर पहुँच जाते हैं और घर से फरार जिंदगियाँ अपने घर वापिस आ जाती हैं। 


हर्ष और साक्षी नई जिंदगी की शुरुआत करने की बधाई दी जाती है और उनका स्वागत किया जाता है। साक्षी को चतुर्वेदी परिवार अपनी बहु स्वीकार कर लेता है। साक्षी के घरवाले भी हर्ष के फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर बनने की बात सुनकर हर्ष के घर आ जाते हैं और उसे बधाई देकर अपना दामाद स्वीकार कर लेते हैं। अब से साक्षी और हर्ष के घरवालों के बीच की तनातनी दूर हो जाती है। दोनों परिवार रिश्तेदार बन जाते हैं…।


जब हर्ष साक्षी को लेकर घर से भागा था तो मुहल्ला - पड़ोस वाले, रिश्तेदार और समाज वाले इस तरह तंज कश रहे थे -

" यादव जी! देखो तो चतुर्वेदी मास्साब का बेटा पाल की लड़की को लेकर घर से फरार हो गया…।"

" राखी की अम्मा! देखो तो अपने मिलान वाले पाल साब की बिटिया ऊ पंडित के मौड़ा के संगे प्यार में फरार हो गई…।"


हर्ष के फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर बनने पर आज वही मुहल्ला - पड़ोस वाले, रिश्तेदार और समाज वाले आपस में खुशी - खुशी बतिया रहे हैं -

" अपने चतुर्वेदी जी का बेटा अफसर बन गया, फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर की सर्विस मिली है उसे… "

" पाल साब की बिटिया के तो भाग्य चमक गए…पंडित खानदान की बहू बन गई और पति भी नौकरी वाला मिल गया…।"


'आज के समाज के हाल' मुद्दे पर मीडिया में हर्ष और साक्षी के प्रेमप्रसंग का जिक्र करते हुए सामाजिक कार्यकर्त्ता दीपचंद कुशवाहा उर्फ दीपू भैया कहते हैं -

" हर्ष और साक्षी के घर से फरार होने के वक्त और हर्ष की नौकरी के बाद दोंनो के घर वापिस लौटने के वक्त, समाज की टिप्पणियाँ आज के समाज के दोगले चरित्र को उगाजर करती हैं…। समाज की परवाह किए बगैर आज के युवाओं - युवतियों अपने विवेक से हर काम करना चाहिए। युवा - युवतियों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ाई करनी चाहिए क्योंकि इस समाज में, देश में, दुनिया में पढ़े - लिखे लोगों के लिए सब जायज है। गवारों - आवारों के लिए ही समाज के नियम - कानून बने हैं और जिनका उन्हें पालन हरहाल में करना ही चाहिए क्योंकि शिक्षित लोग ही सारी दुनिया चलाते हैं इसलिए यदि किसी को परम्पराएं तोड़कर नई शुरुआत करनी है, तो उसे उच्च शिक्षा पाकर समाजहितैषी, बदलाओकारी काम करने चाहिए, चाहे सरकारी पद पर रहकर या फिर नेता बनकर। जै हो....। "     

          

_ 03/02/2019 _ 12:08 दिन _ मल्कागंज दिल्ली


( 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी-संग्रह से...)


   ©️ कुशराज झाँसी

(प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा, बुंदेलखंडी युवा लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता)


" 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी इस कहानी संग्रह की शीर्षक कहानी है। इस कहानी में अंतरजातीय विवाह के साथ ही स्त्री विमर्श और सामाजिक मनोवृति का बड़ा ही मनोवैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। किसान परिवार की बेटी साक्षी पाल और ब्राह्मण परिवार के बेटे हर्ष चतुर्वेदी के प्रेम प्रसंग पर गाँव भर में हाएतोबा मचती है। दोनों जातियों के लोगों द्वारा तमाम तरह के लाँछन एक - दूसरे पर लगाए जाते हैं, पर जैसे ही साक्षी और हर्ष सरकारी बड़े ओहदे के अधिकारी बनकर गाँव आते हैं तो दोनों बेमेल परिवारों में मेलमिलाप हो जाता है। पहले विरोध करने वाले वही गाँव के लोग दोनों की जय - जयकार करते हैं। इस कहानी में समाज के दोहरे चरित्र का भी पर्दाफाश किया गया है। " 

- डॉ० रामशंकर भारती 'गुरूजी' (साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी)

 २७/११/२०२३, झाँसी


" संग्रह की छठवीं कहानी 'घर से फरार जिंदगियाँ' है, जो युवा प्रेम और सफलता की कहानी है। इसे इस संग्रह की  सर्वश्रेष्ठ कहानी कहा जा सकता है क्योंकि कथा सूत्रों का यथोचित निर्वाह इस कहानी में हुआ है और कहानी पूर्णता को प्राप्त हुई है। प्रेम, अन्तर्जातीय विवाह, सफलता और सफलता के साथ बदलती सामाजिक सोच वे सूत्र हैं, जिनसे यह कहानी बुनी गई है और अपनी कहन शैली के कारण पठनीय बन गई है। "

- प्रो० पुनीत बिसारिया

(आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष - हिन्दी विभाग, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी)

20/12/2023, झाँसी


Thursday 28 December 2023

कहानी (Story) : तीन लौण्डे (Teen Launde) - कुशराज झाँसी (Kushraj Jhansi)

*** कहानी (Kahani) - " तीन लौण्डे " (Teen Launde) ***


( हमारी पाँचवी कहानी 'तीन लौण्डे' है। यह दिल्ली के विश्वविद्यालयीय जीवन की कहानी है। इस कहानी में दिल्ली की कॉलेज लाइफ का जीवंत चित्रण हुआ है। इसमें तीन मुख्य पात्र हैं - मेहू, रॉनी और निहाल। मेहू सिविल सेवा की तैयारी करने वाला गंभीर छात्र है और रॉनी और निहाल दोनों आवारा, नशाखोर, लड़कीबाज हैं। इन  तीन लौंडों के माध्यम से समाज की स्त्रियों, लड़कियों के प्रति सोच को उजागर किया गया है। साथ ही समाज के लिए वेश्याओं / रंडियों की जरूरत को दिखाया गया है और नशाखोरी, आवारागर्दी के नुकसान भी बताए गए हैं। क्या भारत के युवाओं को इन लौंडों जैसा जीवन जीना चाहिए या इन लौंडों जैसे साथियों से युवा - युवतियों को दूरी बनाकर सतर्क होकर जीवन जीना चाहिए ? )


       मेहू आज कूड़ा फेंक दिया। नहीँ भैया, आज भी आंटी नहीँ आयी। चलो ठीक है। कल ध्यान से ये सब कूड़ा और वियर की बोतल भी फेंक देना। वैसे एक हफ्ता से पड़ा है, भौत बदबू मार रहा है। खाने वाली आंटी भी बोल रही थी शाम को। जब तुम मल्कागंज तरफ गए थे अपने दोस्तों से मिलने। 

मैंने कह दिया - "आंटी कल जरूर फिकवा देंगे। मेरा मेहू ही कूड़ा फेंकता है, फ्लैट में  ऊकी जा ड्यूटी है। हम दोनों तो आठ बजे तक सूते रहते हैं। वो ही सवेरे पाँच बजे जग जाता है। ये ऊकी आदत है कायकी वो हर काम बड़ी लगन से करता है। यूपीएससी में लगन बड़ी जरूरी है। हमें लगता है कि दो साल में ही मेहू आईएएस ऑफिसर बन जाएगा।"


"हाँ भैया! आप लूगन को भी नाम ऊँचो होईगो।

हम भी धन्य हो जाऊँगी। ऑफिसर बनके कभी मिलेगा तो हम भी काम पड़ने पे ऊसे अपना काम करा लेबी।"

"हओ आंटी।"


बड़ा नेक दिल है मेहू। टाइम पे पैसा देता है, ऊमें कॉलेज के लौण्डों जैसे कोई एमाल भी नहीँ हैं। न ही सिगरेट फूँकता है और न ही गुटका खाता। कभी कभार हम लोगों के साथ बैठ जाता है, जब वियर चल रही होती है। वियर का तो पैग नहीँ लगाता। सिर्फ थोड़ा भौत चिखना खा लेता है और घण्टों बैठकर बतियाता रहता है।


"अरे रॉनी भैया! ये बताओ आज खाने में क्या बनाना है?"

"आंटी, अभी आलू के परांठे बना दो। शाम को मटर पनीर और रोटी बना देना।" 

"ओके। "

"निहाल भैया तो तीन - चार दिन से बिल्कुल नहीँ दिख रहे हैं। कितै गए हैं वो?"

"आंटी! वो अभी गाँव गए हैं। उनके बड़े भाई की शादी है इसी 21 को।"

"अच्छा!!!"


"उनकी साली बड़ी सेक्सी है। झक्कास माल है, एक नम्बर। निहाल फोन में फोटो दिखा रहा था। एक बार वीडियो कॉलिंग भी कर रहा था। जब मैं भी ऊके बगल में ही बैठा था, तब ऊने हमाई भी वीडियो कॉलिंग कराई ती। कह रहा था - यार रॉनी! रेखा बड़ी अच्छी लगती है, मुझे प्यार हो गया है उससे। भैया की शादी निपट जाए फिर हम भी भाभी से बात करते हैं अपने और रेखा की शादी के बारे में।"


मैं फिर भी तुमको चाहूँगा.......फोन की रिंगटून बजती है। निहाल का फोन आया था......

"हैलो निहाल!"

"हाँ भाई"

"क्या कर रहा है। तूँने तो फोन ही नहीँ किया जब से तूँ गया। आज पाँच दिन हो गए बिना बतियाए…..।"


"कुछ नहीँ भाई। परसों भैया की शादी है, उसी की तैयारी में बिजी हूँ। कल बुआ यहाँ बाँदा गया था। बुआ को लिबाने के लिए। अभी सवा घण्टे पहले ही लौटा हूँ। बहुत थक चुका हूँ। जब से दिल्ली से आया हूँ, तभी से इधर - उधर के चक्कर काट रहा हूँ। चैन से बैठ ही नहीँ पा रहा…..।"


"कोई न भाई। शादी के बाद चैन से बैठना ही है। और ये बता, रेखा भी आएगी न।"

"हाँ भाई।"

"और तूँ नहीँ आ रहा।"

"नहीँ भाई। सॉरी!!!"

"काय?"


"23 को एनिमल डायवर्सिटी का इंटरनल है। अभी पता चला है। चौक पर गया था तो चाय वाले पर हिस्ट्री वाला पवन मिला था। तो बोल रहा था। भई तूँ तो आठ दिन से क्लास ही नहीँ जा रहा है। तुझे पता नरसों दीपिका मैम दो यूनिट्स का टेस्ट ले रही हैं। बोल रहीं थीं। जो इस बार और नहीँ आया तो मैं उसका फिर से टेस्ट नहीँ लूँगी। ये दूसरी बार टेस्ट हो रहा है। समझे बच्चो। यस मैम।"


"अरे बेंचो! भई तूने नोट्स तो बनाए होंगे न। मुझे भी दे दे यार कुछ मेरा भी भला हो जाए। अभी तक कुछ भी नहीँ पढ़ा हूँ। तेरे पीजी तक चलता हूँ। इन दो - तीन दिनों में तेरे नोट्सोँ से भौत कुछ पढ़ लूँगा। पास होने लायक तो हो ही जाएगा।"

"कोई न भाई। अच्छे से इंटरनल देना।"

"ओके भाई।"

" और भाई तूँ, भैया - भाभी को मेरी तरफ से शादी की बधाई दे देना और अंकल - आंटी को सादर नमस्कार बोल देना।"

"ठीक है भाई।"

"ओके बाय! टेक केयर।"

शाम को मेहू ने रॉनी से पूँछा - 

"भैया खाना लगा लें।"

"अभी नहीँ। तुम खा लो, मैं बाद में खा लूँगा।"

"ओके भैया।"

"यार ध्यान से मुझे सुबह छह बजे जगा देना। इंटरनल है अभी तीन चैप्टर ही पढ़ पाए हैं। पाँच चैप्टर बाकी हैं। इसलिए तुम ध्यान से सुबह जगा दिया करना........।"

"ओके भैया।"


खाना खाकर मेहू नीलोत्पल मृणाल जी की डार्क हॉर्स उपन्यास पढ़ने लगा। इसके बारे में दोस्तों से बहुत सुना था। आज ही वो पटेल चेस्ट से इसे खरीद लाया था। उसके पास पैसे न होने के बावजूद अपनी दोस्त रश्मि से पाँच रूपये उधार लिए। एक सौ बीस की तो डार्क हॉर्स खरीदी और बाकी के तीन दिन के खर्चे के लिए बचा लिए। क्योंकि तीन दिन में ही दादाजी पैसे भेजने वाले थे। नौ बजे से उपन्यास पढ़ते - पढ़ते रात के दो बज गए और वो हाथ में किताब पकड़े ही सो गया क्योंकि आज पाँच बजे कॉलेज से आने के बाद वो सो भी नहीँ पाया था इसलिए ज्यादा थकान महसूस कर रहा था। सत्तर परसेन्ट किताब पढ़ चुकी थी। जो थोड़ी बहुत बची थी, वो अगले दिन लाइब्रेरी में ही पढ़ डाली।


सुबह साढ़े पाँच बजे मेहू जाग गया। फ्रेश होकर फिर से पढ़ने वाला ही था। पहली क्लास जीई - इंग्लिश वूमन एण्ड एम्पावरमेंट इन कंटेम्पोररी इण्डिया की थी। जिसमें मैम को बेगम रोकैया की कहानी - सुल्ताना का सपना पढ़ानी थी। क्लास के व्हाट्सएप ग्रुप में रात को मैम ने कहानी की लिंक भी भेजी थी और मैसेज किया था कि सभी स्टूडेंट्स इसे जरूर रीड करके आना।


जैसे ही मेहू स्टडी टेबल पर पढ़ने बैठा तो उसे ध्यान आया कि रात में रॉनी भैया ने जगाने को कहा था। तो वह उठकर रॉनी भैया के रूम की ओर जाता है। गेट को नॉक करता है और कुंदी भी बजाता है। सात - आठ बार कॉल भी कर चुका होता है। फिर भी रॉनी को कुछ असर नहीँ पड़ता है। सात बजे फिर से रॉनी को जगाता है तो वह उसके दो बार आवाज लगाने पर ही जाग जाता है।


"जागो भैया जागो। साथ बज गए हैं। आप तो बोल रहे थे, छह बजे जगा देना। आप तो अब ऐसे सो रहे हैं जैसे कुम्भकर्ण हों। उठ जाओ अब बहुत हो गया आलस - मालस। जागो और पढ़ो। इंटरनल है आपका.......।"


"चलो ठीक है। जाग गया हूँ। भाई ऐसे ही रोज जगा दिया करना।"

आज शाम छः बजे मेहू कॉलेज से लौटकर आया तो रॉनी से बोला -

"भैया! क्या आप आज भी कॉलेज नहीँ गए थे?"

"नहीँ।"

'क्यों?"

"तुम्हें पता नहीँ। आज तुम्हारी भाभी आयी थी। जैसे ही मैं कॉलेज के लिए निकलने ही वाला था, तभी उसका कॉल आ गया। वो बोली - "यार जानू! मैं आ रही हूँ।"

"कहाँ?"

"तुम्हारे फ्लैट पर।"

"आओ जानू। मैं भी कॉलेज नहीँ जा रहा हूँ। बहुत दिनों के बाद मिल रही हो...................।"

"भैया कौन - सी?"

"वही, लाइफ साइंस वाली, महक।"

"अच्छा!"

"वोई वाली, जो दो महीने पहले विश्वविद्यालय मेट्रो पर मिली थी।"

"हाँ मेहू।"

"भैया! भाभी तो बड़ी मस्त लग रही थी उस दिन ब्लैक हॉट जीन्स और ऑरेंज टॉप में........।"


"अगली बार आए तो मिल बाईएगा जरूर।"

"ओके भाई।"

"भैया! और ये बताओ कि भाभी कितनी देर पहले इतै से चली गई।"

"अभी बीस मिनिट पहले ही उसे उसके पीजी कमलानगर तक छोड़कर आया हूँ।"

"खाना क्या बना है आज?"

"हमें नहीँ पता यार! तुम जाकर देख लो।"

"क्या आपने नहीँ खाया?"

"नहीँ भाई। रोमांस करते - करते ही एक बज गया थाऔर अम्बा सिनेमा में मूवी भी देखने गए।"

"कौन से मूवी लगी थी?"

"धड़क"

"अच्छा!'

"बहुत मजा आया आज। सारा खर्चा महक ने ही किया।"

"अरे वाह! आप इसलिए तो ज्यादा खुश हैं। अब पता चली असली बात................।"

"और कल के इंटरनल की क्या तैयारी है?"

"हो गयी तैयारी ठीक ठाक। बड़े दिनों में हो महक मिली थी। इंटरनल तो फिर दे देंगे.................।"

"ठीक है भैया। आप जानें और आपका काम..........।"

"मैं तो चला खाना खाने। लगातार क्लासेज होने से लंच तक नहीँ कर पाया। अभी क्लासमेटों के साथ सुदामा पर चाय पी कर आ रहा हूँ। बहुत जोर से भूख लगी है।"

"चलो तुम खाना खा लो। मैं तो सोने जा रहा हूँ।"


खाने में आलू गोभी, रोटी और रायता बना हुआ था। आस्ते से खाना खाने के बाद मेहू भी सो गया। रात में फिर दस बजे जागा और उपन्यास लिखने लगा। चार बजे तक लिखता रहा और फिर सो गया। सुबह साढ़े आठ बजे जगा इसलिए पहली क्लास छोड़नी पड़ी। रॉनी इंटरनल देने कॉलेज जा चुका था। ये भी कॉलेज पहुँचा। लंच में कैण्टीन में मेहू रॉनी से मिलता है और हाय - हैलो करता फिर बोलता -

"भैया! कैसा हुआ इंटरनल?"

"अच्छा हुआ। ठीक ठाक।"

"क्या खाओगे तुम?"

"मैं मसाला डोसा और फ्रूटी।"

"ओके।"

दो दिन बाद निहाल भी लौट आता है। अभी सुबह पाँच बजे ही ट्रेन से नई दिल्ली पर उतरा था। फिन करके बोला था -

"हैलो रॉनी! अगर फ्री हो तो स्टेशन आ जाओ, सामान बहुत है।"

"ओके आता हूँ।"


फटाक से ओला किया और जा पहुँचा और फिर दोनों साढ़े छह बजे फ्लैट आ गए।

फ्लैट पर ही आज शाम को अपने भाई की शादी की खुशी में  निहाल ने दोस्तों के लिए पार्टी रखी थी। पार्टी में सात - आठ दोस्तों ने खूब वियर पी। सिगरेट की पन्द्रा - सोलह डिब्बियाँ फूँकी और दो ने तो दारू भी गटकी। चिकन का मजा चखा। धीरज ने तो इतनी पी ली थी कि रात को बॉमटिंग करता फिरा और सबको डिस्टर्ब करता रहा। बेफिजूल गरियाता रहा - हट भोसड़ी के। बेन्चो। झाँट तुम औरें कुछ नहीँ कर पाओगे। साले लौण्डों! तुम सब हरामी हो........।"


रात में एक बजे दो रण्डियाँ बुलाईं। सातों - आठों ने बारी - बारी से रण्डियों के साथ मजे किए सिर्फ मेहू अपने रूम में जाकर सो गया था। रात भर बकचोदी चलती रही। आज दस - ग्यारह हजार खर्च हुए। छः हजार रण्डियों में और बाकी वियर - चिकन में। सारे जागते रहे। जागते - जागते ही सुबह हो गयी। इस दिन कोई भी कॉलेज नहीँ गया। ये तीन लौण्डे - मेहू, रॉनी और निहाल भी........।


_27/01/2019 _ 09:08 रात _ मल्कागंज दिल्ली


( 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी-संग्रह से...)


   ©️ कुशराज झाँसी

(प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा, बुंदेलखंडी युवा लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता)


" 'तीन लौंडे', जैसा कि कहानी के शीर्षक से ही स्पष्ट हो जाता है। यह आवारागर्दी करते हुए बड़े घरों के लड़कों की कॉलेज लाइफ की फ्री स्टाइल कहानी है। "

- डॉ० रामशंकर भारती 'गुरूजी' (साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी)

२७/११/२०२३, झाँसी


" 'तीन लौंडे' एक अधूरी प्रतीत होने वाली कहानी है, जो दिल्ली में रहने वाले विद्यार्थियों की जीवन शैली को दिखाकर बिना कोई तार्किक अंत दिए खत्म हो जाती है। यह इस कहानी की बहुत बड़ी कमी मानी जानी चाहिए। "

 - प्रो० पुनीत बिसारिया 

(आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष - हिन्दी विभाग, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी)

20/12/2023, झाँसी




Wednesday 27 December 2023

कहानी (Story) - भूत (Bhoot) - कुशराज झाँसी (Kushraj Jhansi)

 *** कहानी - " भूत " (Bhoot) ***


( हमारी चौथी कहानी 'भूत' है। ये बुंदेलखंड के भूतिया किले की कहानी है। इस कहानी में प्रेत आत्माओं, भटकती आत्माओं, भूत - भूतनियों में समाज का विश्वास और  भूत - भूतनियों का समाज पर आतंक को उजागर किया गया है। हम पूरे दावे के साथ कहते हैं कि इस दुनिया में भूत - भुतनियाँ होते हैं। भूत - भुतनियों की भी दुनिया होती है। भूत - भुतनियों को तंत्र - मंत्र के द्वारा भस्म किया जा सकता है। भूत - भुतनियों के मनुष्यों को परेशान करने वाले कारनामों पर और समाज पर भूत - भुतनियों के बुरे प्रभावों पर तंत्र विद्या से रोक लगाई जा सकती है। क्या भूत - भुतनियों की दुनिया को मिटा देना चाहिए ? भूत - भुतनियों की दुनिया को मिटा देने से समाज - व्यवस्था में कुछ बदलाओ आएगा ? भूत - भुतनियाँ भगवान शिव के बाराती हैं तो भूत - भुतनियों की दुनिया को समाप्त करने की सोचना, क्या धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन होगा, शिव के उपासकों धार्मिक भावनाएँ आहत होंगीं ? )

     
           *****

गावँ का पुराना किला डरावनी जगह बन गयी है। 'हू - हू' की अजीब तरह की आवाजें आती हैं। किले के सारे कक्ष एक ही डिजाइन के दिखते हैं। सारे दरवाजे एक जैसे लगते हैं। पता ही नहीँ चलता किससे भीतर घुसे हैं और किससे बाहर निकलें। नीचे कई तलघर हैं, जिनमें से कईयों में ताला पड़ा है। दो - चार ही खुले रहते हैं। उनमें भी कई दिनों से सफाई नहीँ हुई है। अजीब तरह की स्मैल आती है। दीवारों पर उस समय की कलाकृतियाँ बनी हुई हैं। जिनमें कुछ देवी - देवताओं की हैं और कुछ रमणियों कीं। कुछ ऐसी भी कलाकृतियाँ हैं। जिनमें राजा कई नर्तकियों के साथ रागरंग में मस्त दिखते हैं। कुछ में तो नग्न स्त्रियों का भी चित्रण है। 



किले के आसपास का इलाका वीरान है। बड़े - बड़े खेत हैं। ऊँची - नीची पहाड़ियाँ हैं। घना जंगल हैं जो डाकुओं से भरा पड़ा हैं। ये दिनरात लूट - मार मचाए रहते हैं। कभी किसी की बाईक पकड़ लेते और स्त्रियों के जेवर और आदमियों के पैसे, फोन समेत छीन लेते। जंगल के बीच से सिया नदी की कलकल धारा भी बहती है। किले से बस्ती चार - पाँच सौ मीटर दूर है। दोपहर में निराट सुनसान माहौल रहता है। सिर्फ और सिर्फ गिद्ध, उल्लू, चमगादड़ और मधुमक्खियों के छत्ते ही नजर आते हैं। कभी - कभार पर्यटक चले आते हैं और कभी - कभार प्रेमी युगल। प्रेमी युगल रोमांस करके घूम - घामकर चले जाते हैं और पर्यटक इसकी ऐतिहासिकता और शिल्पशैली पर नाज करते हैं।



सर्दियों की दोपहर को कपिल किला घूमने जाता है। जिसका घर बगल की बस्ती में ही है। बारह - तेरह साल का शर्मिला, गेहुँआ रंग का सुंदर मोड़ा है। घरवालों का बहुत लाड़ला है और सरकारी पाठशाला में कक्षा छः में पढ़ता है। वो किले में दो - तीन घण्टे तक घूमता रहा। अकेला पाकर नेमू कक्का की भटकी आत्मा उस पर सवार हो गयी। नेमू कक्का किले का पहरेदार था। जिसे कुछ सालों पहले डाकुओं ने मार गिराया था। वो चालीस - ब्यालीस साल का हट्टा - कट्ठा जवान था। उसकी उम्र पूरी नहीँ हुई थी इसलिए उसकी आत्मा अभी तक भटक रही है। वो कई मासूमों को अपने आगोश में ले चुका है। उन्हें बुरी तरह से परेशान कर चुका है। कभी बेवजह जोर - जोर से रुलाता है तो कभी नींबू माँगता है और कभी अण्डे। 



कपिल जैसे ही घर आया तो अम्मा ने कहा -

"बेटा! तोई आँखें चढ़ी - चढ़ी लग रही हैं। तू हर रोज से परेशान क्यूँ दिख रहा है।"

"कुछ नहीँ अम्मा। अभी - अभी किला घूमकर आया हूँ सो ऐसा लग रहा है। और कुछ नहीँ। मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"



रात को कपिल अम्मा के साथ सो रहा था। पापा खेत पर फसल में पानी लगाने गए थे और दद्दा - बाई, भज्जा - बिन्नू लखनऊ एक शादी समारोह में गए थे। घर पर कोई नहीँ था कपिल और अम्मा के सिवाय। जैसे ही ग्यारह बजे तो कपिल जोर - जोर से रोने लगा। नींबू और अण्डा माँगने लगा। किवार खोलकर बाहर की ओर भागने लगा। तनक देर में वह बिल्कुल शांत हो गया। अम्मा बहुत डर गई। कपिल को साथ लेकर और घर में ताला लगाकर पड़ोस में पाँच - छः घरों की कुंदी बजायी जिनमें से एक ने किवार खोले। उन्हें पूरी बात बताई कि ये कपिल ऐसीं - ऐसीं हरकतें कर रहा है। जैसी मैंने आज तक नहीँ देखीं।



शीला काकी और रामलाल कक्का अम्मा के साथ उसके घर आ गए। कक्का ने कहा - 

"लक्ष्मी बिटिया! कपिल बेटा को भूत लग गया है। रमशु कक्का को बुला लाओ। वे क्षेत्र के जानेमाने गुनियाँ हैं। भूत - भूतनियाँ भगाना अच्छी तरह से जानते हैं।"

"हओ कक्का। अबेहाल जा रए।"

"ओ रमशु कक्का! खोलो किवार। हमाए कपिल खों जाने का हो गओ। देखलो तनक जाकैं।"

"हओ लक्ष्मी बिटिया। अबेहाल चल रए।"



रमशु कक्का ने आते ही कपिल के मुँह पर पानी का किंछा मारा और हाथ देखा। पाँच मिनिट में ही भूत बक्कर गया। भूतसवार कपिल से गुनियाँ ने पूँछा -

"कौन है तूँ?"

"कहाँ से आया है?"

"क्यूँ आया है?"



भूत ने जोर से चिल्लाकर कहा -

"भूत हूँ मैं। भूत..........। नेमू कक्का नाम है मेरा।"

"पूजा लेना और मासूमों को परेशान करना काम है मेरा।"

"मैं इसे अपना साथी बनाने आया हूँ।"



इतना सुनकर रमशु कक्का ने अघोरी बब्बा के नाम पर अगरबत्ती लगाईं और तंत्र - मंत्र फूँके। जिससे कपिल ठीक हो गया और भूत भाग गया। भोर हँसते - कूँदते पाठशाला गया। जब पतिदेव महेश खेत से लौटे तब रात का सारा किस्सा सुनाया, जिससे वो भी भयभीत हो। सारे घर वाले बहुत परेशान और चिंतित रहने लगे।



तीन महीने बाद लक्ष्मी और महेश के साथ रोजाना की भाँति कपिल सो रहा था। रात के डेढ़ बजे अचानक जोर - जोर से रोने लगा। नींबू, अण्डा, दारू और मिठाई माँगने लगा। फिर से रमशु कक्का आए। इस बार भूत को बहुत बड़ी पूजा लगायी गयी। पूजा में पान, सुपारी, नींबू, अण्डा, दारू, मुर्गा और पचबन्नी मिठाई दी गयी और अंत में इसे नारियल में बाँधकर रमशु कक्का ने अपनी तंत्रविद्या से सदा के लिए भस्म कर दिया। जिससे कपिल और सारे गाँववासी सदा से लिए इसके कृत्यों से मुक्त हो गए।



दो साल बाद ननिहाल में पढ़ने वाली राण्या जब सहेलियों के साथ अपने गाँव के मातेघाट कुँए से पानी भरने गयी थी तो शाम को वो आँगन में बेहोश होकर गिर पड़ी। हाथ में थोड़ी चोट आ गई। फटाफट डॉक्टर के पास ले गए। इलाज हुआ और सप्ताह भर में बिल्कुल टकाटक हो गई। फिर दस दिन बाद तेज बुखार और सिरदर्द से पीड़ित हो गई। डॉक्टर के पास एक - डेढ़ महीना इलाज हुआ। फिर भी उसकी तबीयत में तनक भी बदलाव नहीँ आया। शरीर दिन - प्रतिदिन सूखकर लकड़ी जैसा होता जा रहा है। न ही ठीक से खाना खाती है और न ही सोती है। सिर्फ अभी तीन - चार दिन से रात में बारह बजे से तीन बजे तक रोती रहती है और फिर शांत हो जाती है। घरवाले बहुत परेशान हैं। न कोई काम ढंग से कर पा रहें हैं और  न टेम से खा - पी रहे हैं। सिर्फ लाड़ली की चिंता में डूबे जा रहे हैं। 



घर में वह अकेली ही बची है। एक भाई था जो हैजा के कारण तीन साल पहले मर गया था। राण्या के पापा नंदू से धर्मपत्नी शीला ने कहा - "ये जी। लाड़ली को डॉक्टर के पास बहुत दिखा लिया है। जिससे कुछ लाभ न हुआ। अब इसे गुनियाँ रमशु कक्का के पास और दिखा लेते हैं। शायद राम की कृपा से लाड़ली बच जाए।"

"हाँ ठीक है। मैं अभी रमशु कक्का को बुलाकर लाता हूँ।"



रमशु कक्का अभी घर पर नहीँ थे। उनकी पत्नी ने बताया कि वो अपनी ससुराल गए हैं। शाम तक लौट आएँगे। जैसे ही आएँगे तो मैं बता दूँगी कि दोपहर में नंदू भज्जा आए थे। बहुत रो रहे थे और कह रहे थे -

"भौजी! हमारी राण्या डेढ़ - दो महीना से बीमार है। कई बार डॉक्टर को दिखाया फिर भी कुछ फर्क नहीँ पड़ा। वो दिन - प्रतिदिन सूखती ही जा रही है। उसके साथ मैं, उसकी अम्मा और सारे घरवाले चिंता में मरे जा रहे हैं। भज्जा को जल्दी भेज देना।"

"हओ लला।"



शाम को रमशु कक्का नंदू भज्जा के यहाँ आ गए। लाड़ली राण्या खाट पर लेटी हुयी थी। बहुत कमजोर और चिंतित थी। उसकी पढाई छूट रही थी। इस बार उसे हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा देनी है। फूट - फूटकर रोती हुए बोली - "कक्का! क्या होगा मेरा? न जाने क्या हो गया है? ऐसा लगता है जैसे मेरे अंदर कोई हो जो मेरी भूख मार रहा है।"

"चिन्ता मत करो लाडली। मैं आ गया हूँ। अभी हाल सब ठीक हो जाएगा।"



रमशु कक्का ने अगरबत्ती लगायीं और तंत्र - मंत्र फूँके। उसके मुँह पर पानी का किंछा मारा और नीम के झोंके से झाड़ा - फूँका। जिससे उसकी झक्की खुल गई। फिर उसकी चोटी में गाँठ लगाई जिससे भूतनी बक्कर आयी। कक्का ने जोर देकर पूँछा -

"कौन है तूँ?"

"कहाँ से आयी है?"

"किसलिए आयी है?"

"भूतनी हूँ मैं। निर्मला मेरा नाम है।"

"नेमू कक्का की बेटी हूँ। मातेघाट कुँआ में रहती हूँ।"

"और राण्या को अपनी संगिनी बनाने आयी हूँ।"



"अच्छा! तूँ वही निर्मला है न। जो अपने प्रेमी अतुल के साथ घर से भाग गई थी। चार महीने में वापिस लौटकर घर आयी थी। अम्मा ने डाँटा था। पापा ने थप्पड़ मारा था और भाई ने भी पीटा था। सबने प्रेमी से सम्बन्ध तोड़ने को बोला था। तूँ सम्बन्ध तोड़ने को तैयार न थी इसलिए तूँने व्यथित होकर मातेघाट कुँए में कूँदकर अपनी जान   दी थी।"

"हाँ! मैं वही निर्मला हूँ। अब मैं राण्या को भी अपनी संगिनी बनाकर रहूँगी।"

"मूर्ख पुत्री! ये नामुमकिन है। हम ऐसा कभी नहीँ होने देंगे।"



इतना सब होने पर रमशु कक्का ने पूजा का सामान लगवाया और घर से दूर पहाड़ किनारे पूजा लगायी गयी। जिसमें सुहागिन के सिंगार का पूरा सामान, नीबू, अण्डे और मिठाई थी। अंत में भूतनी निर्मला को नींबू में कैद करके भस्म कर दिया गया और सदा के लिए राण्या और गाँववासी इसके भय को छोड़कर चैन की साँस लेने लगे।



  _25/12/2018 _ 12:12 रात _ जरबो गॉंव, झाँसी


( 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी-संग्रह से...) ©️ कुशराज झाँसी (प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा, बुंदेलखंडी युवा लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता)


" 'भूत' कहानी, गाँव में व्याप्त अंधविश्वासों की बेड़ियों में जकड़े समाज के मनोविज्ञान को बखूबी उद्घाटित करती है। "

- डॉ० रामशंकर भारती

(साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी)

२७/११/२०२३, झाँसी


" संग्रह की चौथी कहानी 'भूत' अंधविश्वासों को बढ़ावा देती है और प्रतिगामी सोच की परिचायक है, किन्तु इससे इक्कीसवीं सदी के समाज में भी ऐसी कुप्रथा जड़ें जमाए हुए है, यह स्पष्ट अनुभूत किया जा सकता है। लेखक को भविष्य में ऐसी कहानियाँ लिखने से बचना चाहिए। "

- प्रो० पुनीत बिसारिया

(आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष - हिन्दी विभाग, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी)

20/12/2023, झाँसी


हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी खों अथाई की बातें तिमाई बुंदेली पत्तिका भेंट.....

  हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी में मुखिया आचार्य संजै सक्सेना जू, आचार्य नबेन्द कुमार सिंघ जू, डा० स्याममोहन पटेल जू उर अनिरुद्ध गोयल...