Monday 25 June 2018

मेरे सपनों का समाज - कुशराज झाँसी

      भारतीय नारीवादी लेख : " मेरे सपनों का समाज "
            


      समाज में सच्ची दोस्ती लड़कों के बीच, लड़कियों के बीच होती है और लड़का - लड़की के बीच भी। लड़का - लड़की की दोस्ती ज्यादा सच्ची होती है। इस दोस्ती को लोग सच्चे प्यार का नाम देते हैं। मेरी दोस्ती भी अधिकतर लड़कियों से ही है।     

                       इस सन्दर्भ में मैं कहता हूँ - "मेरे सफल जीवन में स्त्रियों का हाथ रहा है। पुरुषों से ज्यादा स्त्रियों का साथ रहा है।।"

                              
मेरा मानना है कि लड़कियाँ लड़कों को कदापि धोखा नहीं देतीं और न ही वो लड़कों का साथ छोड़ती हैं। वो हमेशा साथ निभाती हैं। उनकी दोस्ती में सम्मान होता है। वो लड़कों का बहुत सम्मान करतीं हैं। जब लड़के उनका सम्मान करना बंद कर देते हैं तो वो भी उनका नहीँ करतीं। आजकल जीवन में अधिकतर कॉलेज लाइफ में लड़के लड़की से दोस्ती कर लेते हैं और उससे उसकी मर्जी से या जबर्दस्ती सेक्स करने के बाद लगभग छः माह के अंदर छोड़ देते हैं और फिर दूसरी लड़की को देखते हैं। उसके साथ भी पहली लड़की जैसा व्यवहार करते हैं। ऐसा ही सिलसिला चलता रहता है। विवाह के बाद भी लड़के लड़की की कोई कमी निकालकर या लड़की का चालचलन ठीक नहीँ है, कहकर उसे तलाक दे देते हैं और छोड़छुट्टि कर देते हैं। लड़के लड़कियों को सिर्फ मनोरंजन और भोग - वासना की वस्तु समझते हैं। लड़के हमेशा लड़कियों को ठगते रहते हैं। जब इन लड़कियों को पता चलता है कि उस लड़के ने हम लड़कियों को धोखा दिया। तब वे लड़के से बदला लेतीं हैं।

                             

इस सन्दर्भ में मेरी कविता "अब मैं अबला नहीं, सबला हूँ।" उल्लेखनीय है -:

हे नारी!
अब तुम अबला नहीँ; सबला हो
फिर भी तुम क्यूँ ठगी जाती हो?
मुझे समझ नहीँ आता
तुम जल्द ही किसी के प्रेमजाल में क्यूँ फँस जाती हो?
और हर बार तुम ही दोषी साबित होती हो
मैं ये नहीँ कहता -
प्रेम करना बुरी बात है
लेकिन ये जरूर कहता हूँ -
कि प्रेम सोच समझकर करो
क्यूँकि जमाना बदल गया है
और उसके साथ ही साथ लोग
और उनकी सोच और मानसिकता भी
वो आज भी तुम्हें भोग-विलास की वस्तु समझते हैं
फिर भी तुम सब कुछ जानते हुए भी
अबला ही बनी रह जाती हो
अपने ठगियों को क्यूँ नहीँ समझाती हो
क्यूँकि अब तुम अबला नहीँ, सबला हो
तुम ईंट का जबाव पाथर से दो
जो तुम्हें ठगता है
उनसे कहो -
अब मैं अबला नहीँ, सबला हूँ
पहले मैं तुमको कई बार परखूँगी
फिर तुम्हारे प्रेमजाल में फसूँगी
अगर फिर भी तुम ठगोगे
तो तुम पर दया न बरतकर
तुम्हें उसकी कड़ी से कड़ी सजा दूँगी
यहाँ तक मौत भी
इसलिए सचेत करती हूँ -
अब तुम सुधर जाओ और संभल जाओ
मुझ पर अत्याचार करना बंद करो
क्या तुम्हें पता नहीँ -
कि जहाँ नारियों का सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते हैं
यदि तुम मेरा सम्मान नहीँ करोगे
तो मैं भी तुम्हारा सम्मान नहीँ करुँगी
अब मैं बार - बार मिलन - जुदाई के चक्कर में नहीँ फसूँगी
एक बार ही सोच - समझकर प्रेम करुँगी
अब मैं अबला नहीँ, सबला हूँ।


                        बदला लेना भी चाहिए। जितना समाज पर अधिकार लड़कों का है उतना ही लड़कियों का भी। समाज हिन्दू धर्म में लड़कों को अधिकतम सात विवाह करने का अधिकार देता है और हिन्दुओं की ही उच्च जातियों जैसी ब्राह्मणों और क्षत्रियों में लड़की का दूसरा भी विवाह नहीँ होता। समाज लड़कियों को भी लड़कों के समान सात विवाह करने का अधिकार दे। उन्हें अपने अनुसार जीने का अधिकार दे। विवाह होने के बाद लड़के लड़कियों पर अपना अधिकार जमा लेते हैं और अपने अनुसार काम करने को बाध्य करते हैं। 

                             गाँवों में अधिकतर बुन्देली किसान माँ - बाप लड़कियों को दूर पढ़ने नहीँ भेजते। वे कहते हैं - " जमाना ख़राब चल रहा है। बेटी! तुमने आठ पास कर लिया, यही बहुत है।" गाँवों में यदि कोई लड़की जिद करके दूर जाकर पढ़ लेती है और उच्च शिक्षा ग्रहण कर उच्च पद पा लेती है। तो वो लड़की यदि प्रेमविवाह कर लेती है तो समाज कुछ नहीँ कहता और उसे ससम्मान स्वीकार करता है। यदि कोई अशिक्षित लड़की प्रेमविवाह करती है तो समाज उसका अपमान करता है। यहाँ तक उसके बिरादरी वाले ही उसे अपने यहाँ किसी सुअवसर जैसे - विवाह, जन्मोत्सव आदि पर नहीँ बुलाते और उसे बिरादरी से बंद कर देते हैं।

                              समाज में जिन लड़कियों के माँ - बाप ये बात कहकर लड़कियों को दूर पढ़ने नहीँ भेजते कि जमाना खराब चल रहा है। वो मेरी "अरे! इंसानों समय से साथ बदलो। तभी सब कुछ कर पाओगे।।" को अपनाकर अपनी सोच को उच्च करकर और अपने मन के भ्रमों को मिटाकर लड़कियों को दूर उच्च शिक्षा के लिए भेजेँ क्योंकि लड़का तो एक परिवार का नाम रौशन करता है और लड़की दो परिवारों एक अपने माँ - बाप के परिवार और दूसरा विवाहोपरान्त पति और सास - ससुर के परिवार का नाम रौशन करती है। इसलिए मैं कहता हूँ - "हर बुन्देली किसान माँ - बाप अपने बेटा - बेटियों को हरहाल में शिक्षा अवश्य दिलाएँ। मैं जानता हैं कि बुन्देलखण्ड में बहुत सूखा पड़ती है, पीने के पानी के लिए भी लोग मुहताज हैं। खेती होना तो दूर की बात। फिर भी मजदूरी करके या कर्ज लेकर बच्चों को शिक्षा अवश्य दिलाएँ क्योंकि शिक्षा के द्वारा ही सबकुछ प्राप्त किया जा सकता है। और ज़ल्द ही हमसब बुन्देलखण्डी युवाओं को शिक्षित कराकर अपनों सपनों का पृथक प्रान्त बुन्देलखण्ड राज्य निमार्ण कराएँ।"

                             हे बुन्देली किसान माँ - बाप! आप तो जानते ही हैं कि आप यदि अपनी लड़की को अधिकतम आठ पास ही कराते हैं और उच्च शिक्षा न दिलाकर उसका कम उम्र में ही विवाह कर देते हैं। विवाह में लड़के वालों की माँगकर के अनुसार दहेज नहीँ दे पाते हैं तो लड़के के परिवार वाले आपकी लड़की में कमियाँ निकालते हैं कि लड़की को खाना बनाना नहीँ आता, घर का काम करना नहीँ आता। और सुबह - शाम लड़की की सास उसे डाँटती रहती है और ताने देती रहती है। लड़की से सारे ससुराल वाले बुरी तरह बर्ताव करते हैं। यहाँ तक लड़का उसकी मारपीट भी करता है। और अंत में लड़की इन सब हालातों से तंग आकर फाँसी लगाकर, कुँए में गिरकर या आग लगाकर आत्महत्या कर लेती है या लड़का या उसके घर वाले लड़की की हत्या कर देते हैं।

                           आप अपनी लड़की की मृत्यु के बाद उसके ससुराल वाले हत्यारों का कुछ नहीँ कर पाते हैं। कुछ समय न्यायालय में मुकद्दमा चलता है और फिर राजीनामा होने से मुकद्दमा बंद हो जाता है। आपको सच्ची बात पता नहीँ चलती कि आपकी लड़की के साथ क्या हुआ, उसकी हत्या हुई या आत्महत्या, ये रहस्य ही बना रह जाता है और न ही सच्चा न्याय हाथ लगता है।

इसलिए मैं कहता हूँ - "आप लड़की को उच्च शिक्षा अवश्य दिलाइए। उच्च शिक्षा पाकर लड़की वकील, शिक्षिका और अधिकारी बनकर अपनी रक्षा स्वयं करेगी और साथ ही नारी सम्मान और आपके सम्मान की रक्षा करेगी। समाज में प्रचलित दहेज प्रथा जैसीं कुप्रथाओं का स्वयं अंत करेगी। लड़कों के समान ही लड़कियों के लिए अधिकार यानि समानाधिकार के लिए लड़ेगी और अधिकार प्राप्त करेगी। साथ ही साथ पर्दा प्रथा का भी अंत करेगी।"

               कहा भी जाता है - "पढ़ी - लिखी लड़की, रौशनी घर की।" जब समाज में हर लड़की शिक्षित हो जाएगी। तब समाज में व्याप्त हर समस्या जैसे - बलात्कार, आत्महत्या आदि का समाधान हो जाएगा।

 समाज में सभी नारियों का सम्मान करेंगे और
"लड़का - लड़की एकसमान। सबको शिक्षा सबका सम्मान।।" का नारा गूँज उठेगा। मनुस्मृति के अनुसार - "यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता।" का पालन सारा समाज करेगा।


    - कुशराज झाँसी 
   
_ 24 जून 2018 _ 5:48शाम _जरबौगांव


आलोचना ( Critical Views) -:

Kushraaz Sir has very beautifully explained the Relationship between a man and women in the beginning. Then the current scenario is presented, where the Girls are humiliated and betrayed by Men. With a lot of pain and anguish, through his poem He is encouraging the Girls to be strong and fight for themselves. In particular, Love Relationship is discussed in the poem.  Later, He discusses about his own place that is Bundelkhand and discusses the different Problems and Social evils prevalent. 
The Writer is trying to encourage people to extend their helping hands towards the progress of girls and he looks forward for a reform that will Change the plight of the Girls.

✍ Divyansha Khajuria (दिव्यांशा खजूरिया)
(साथी हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय)






           
                     
     

Sunday 10 June 2018

निबंध - नोटबंदी

निबंध / लेख : " नोटबंदी "

                   
* रुपरेखा -: 1. प्रस्तावना 2. नोटबंदी से लाभ - (क.) कालाधन का बाहर निकलना (ख.) भ्रष्टाचार में कमी (ग.) आतंकवाद में कमी 3.नोटबन्दी से हानि - (क.) समय की बर्बादी (ख.) आमजन की परेशानी (ग.) किसानों की परेशानी (घ.) मजदूरों की परेशानी (ङ) महँगाई 4. उपसंहार।
* 1. प्रस्तावना -: नोटबंदी अर्थात् नोटों का बंद होना। हमारे भारत देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने तारीख 8-9 नवम्बर 2016 को भारतीय मुद्रा नीति में परिवर्तन करते हुए निर्णय लिया कि आज 8-9 नवम्बर 2016 से भारतीय मुद्रा ₹500 और ₹1000 के नोट बंद किए जाते हैं। इन ₹500 और ₹1000 के नोटों के बदले नए ₹500 और ₹2000 के नोट चलाए जाएँगे यानि प्रचलित किए जाएँगे। परिणामस्वरूप ₹500 और ₹1000 के नोट बंद हुए और सारे भारत देश में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अफरा - तफरी मच गई। हमारे देश में नोटबंदी नामक कदम मोदी सरकार का देश के विकास में अहम कदम है और प्रशंसनीय कार्य है।
          नोटबंदी पर किसी की एक कविता अग्रलिखित है -
" जब से नोटबंदी हो गई है,
सियासत और भी गन्दी हो गयी है।
सुना है काश्मीर भी साँसे ले रहा है,
पत्थरों की आवाजें मंदीहो गई हैं।
जो चिल्ला कर हिसाब माँगते थे सरकार से,
वही लोग रो रहे हैं जब पाबंदी हो गई है।
आपस में झगड़ते थे दुश्मनों की तरह ,
उन नेताओं में आजकल रजामंदी हो गई है।
वतन के बदलने का एहसास है मुझको,
पर एक शख्स को हराने के लिए सियासत अंधी हो गई है। "
* 2. नोटबंदी से लाभ -: नोटबंदी से कई सार्थक लाभ हुए हैं। जिनका विवरण अग्रलिखित है -
(क.) कालाधन का बाहर निकलना -:
कालाधन - "देश के नागरिक के पास संचित बेहिसाब धन यानि जिस धन का कोई हिसाब न हो। अर्थात् नागरिक जिस धन को आयकर चोरी, रिश्वतखोरी और घोटाले आदि करके बचाता है। वह संपूर्ण धन 'कालाधन' कहलाता है।"
नोटबंदी की कालेधन को बाहर निकालने में अहम भूमिका है। नोटबंदी होने से व्यक्तियों के पास रखे कालेधन को बैंकों में जमा कराया गया और उस पर आयकर बसूला गया। जमा करने की अधिकतम सीमा से अधिक धन जमा करने पर हिसाब पूछा गया तो व्यक्तियों द्वारा हिसाब न देने पर धन को जब्त यानि नीलाम कर लिया गया।
इस प्रकार सरकार ने आयकर में बढ़ोत्तरी की और कालेधन को बाहर निकालकर उसका खात्मा किया और कालेधन की समस्या से मुक्ति पायी।
(ख.) भ्रष्टाचार में कमी -:
भ्रष्टाचार - "भ्रष्टाचार अर्थात् भ्रष्ट आचरण। किसी व्यक्ति द्वारा नैतिकता और कानून के विरुद्ध आचरण करना 'भ्रष्टाचार' कहलाता है।"
भ्रष्टाचार हमारे देश में चरम सीमा पर पहुँच चुका है। इसके प्रमुख उदाहरण - रिश्वतखोरी, भाई - भतीजावाद, मुनाफाखोरी आदि हैं।
नोटबंदी होने से लोगों के पास बेहिसाब धन अर्थात् कालाधन नहीं बचा हुआ है। जिससे अब लोग रिश्वतखोरी (अर्थात् जिस काम के लिए किसी व्यक्ति को धन मिलता है फिर भी वह अन्य व्यक्ति से जो अतिरिक्त धन लेता है, वह 'रिश्वत' कहलाती है और यह प्रक्रिया 'रिश्वतखोरी' कहलाती है।) के लिए धन नहीँ बचा है। इसलिए रिश्वतखोरी में कमी आयी है। इसी प्रकार कई राजनेता किसी नौकरी के पद पर अपने ही सगे - संबंधियों को धन देकर या अन्य हथकण्डे अपनाकर आसीन कराते हैं। परन्तु अब नोटबंदी होने से इसमें भी पर्याप्त कमी आयी है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नोटबंदी होने से भ्रष्टाचार में पर्याप्त कमी आयी है।
(ग.) आतंकवाद में कमी -:
आतंकवाद - "आतंकवाद का अर्थ है - आतंक + वाद से बने इस शब्द का सामान्य अर्थ है आतंक का सिद्धांत। 'आतंक' का अर्थ होता है - पीड़ा, डर, आशंका। आतंक फैलाने वाले आतंकवादी कहलाते हैं। ये समाज के ऐसे अंग हैं, जिनका परम काम आतंकवाद के माध्यम से किसी धर्म, समाज या राजनीति का समर्थन कराना होता है।
आतंकवादी यह नहीँ जानते हैं कि -
"कौन कहता है कि मौत को अंजाम होना चाहिए।
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी का पैग़ाम होना चाहिए।।"
नोटबंदी होने से आतंकवाद में काफी कमी आयी है क्योंकि आतंकवाद के लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता पड़ती है। आतंकवादियों को आतंक फैलाने के लिए बम, हथियार और वाहन आदि आतंक सामग्री की व्यवस्था करनी होती है। जिसके लिए हमारे बीच के ही कुछ लोग इन्हें धन देते हैं। परंतु अब हमारे बीच के लोगों के पास बेहिसाब धन, अधिक धन बचा ही नहीँ है। तो ये आतंकवादियों को देंगे कहाँ से। इसलिए अब जब धन ही नहीँ है तो आतंकवाद कैसे होगा? अतः हम निष्कर्ष रूप में कहते हैं कि नोटबंदी होने से आतंकवाद में पर्याप्त कमी आयी है।
इस प्रकार नोटबंदी से होने वाले लाभों की पुष्टि होती है।
* 3. नोटबंदी से हानि -: नोटबंदी से कुछ हानियाँ भी हुई हैं। जिनका विवरण अग्रलिखित है -
(क.) समय की बर्बादी -: नोटबंदी होने से आमजन से लेकर अरबपतियों तक को बैंकों और डाकघरों में कतार में लगकर धन जमा करना पड़ा है। जिससे इनके अमूल्य समय की बर्बादी हुई है। जिस समय में ये अपना काम सुचारू रूप से कर सकते थे, उस समय की बर्बादी हुई है। परिणामस्वरूप इन्हें अपार हानि पहुँची है।
जैसे - अरबपतियों के मिनिटों में करोड़ों के धन्धे संपन्न होते हैं और ये धन कमाते हैं। इसी प्रकार आमजन या वो जो मजदूरी करता है या कृषि। मजदूर भी अपनी मजदूरी ठीक से नहीँ कर पाया है और न ही किसान अपनी खेती में भलीभाँति ध्यान दे पाया है। जिससे इन्हें भी पर्याप्त ठेस पहुँची है।
             अतः हम कहते हैं कि समय की बर्बादी के साथ - साथ आमजन से लेकर अरबपतियों तक सभी को हानि पहुँची है।
(ख.) आमजन की परेशानी -: नोटबंदी होने से आमजन को कई परेशानियाँ हुईं हैं। जैसे - यदि नोटबंदी के समय नवम्बर - दिसम्बर में आमजन को अपने लिए आवश्यक वस्तुएँ खरीदने में तथा परिवार की जीविका चलाने में काफी परेशानी हुई है। क्योंकि बाजार और कार्यालयों आदि में ₹500 और ₹1000 के नोट चलना बंद हो गए थे। ये नोट सिर्फ अस्पतालों और पेट्रोलपम्पों पर ही सामान्यतया चलन में थे। बाकी के शेष स्थानों पर जैसे - बाजार से यदि आमजन को खाद्य - सामग्री अथवा रोजाना की आवश्यक वस्तुएँ खरीदना है तो उसने इस समय अपने को असमर्थ पाया है और बेहद परशानी महसूस की है। समाज में ही यदि किसी व्यक्ति के पुत्र या पुत्री का विवाह सम्पन्न होना है तो वह भी नोटबंदी के समय सम्पन्न नहीँ हो पाया है।
           इसी प्रकार अनेक प्रकार की आमजन को परेशानियाँ झेलनी पड़ी हैं।
(ग.) किसानों की परेशानी -: हम सभी जानते हैं कि हमारा भारत देश  प्रमुख कृषिप्रधान देश है। यहाँ लगभग 70% आबादी कृषि करती है। नोटबंदी होने से किसानों को अनेक परेशानियाँ आयीं हैं। जैसे - नोटबंदी के समय यानि नवम्बर - दिसम्बर माह में किसानों को रबी की फसल - गेहूँ, जौ, चना, मटर, आलू आदि बोने के लिए धन की आवश्यकता पड़ी है। परंतु नोटबंदी होने से किसानों ने अपनी आवश्यकताओं को ठीक से पूरा नहीँ पर पाया है क्योंकि बैंकों से धन वापिस नहीँ निकल पा रहा था। केवल जमा हो रहा था। इसलिए किसानों की परेशानियों का समाधान नहीँ हो पा रहा था। कुछ दिनों पश्चात मुद्रा - विनिमय की स्थिति सामान्य हो गई। परिणामस्वरूप परेशानियों का समाधान हो गया।
(घ.) मजदूरों की परेशानी -: हमारे देश में कुछ लोग मजदूरी करके ही अपनी जीविका कमाते हैं। लेकिन नोटबंदी के समय इन्होंने मजदूरी नहीँ कर पायी है क्योंकि सारे देश में अफरा - तफरी, उथल - पुथल मची हुई थी। सारे देशवासी अपना धन बैंको, डाकघरों आदि में जमा करने में व्यस्त थे। कहीं भी मजदूरी कार्य नहीं चल रहा था, जिससे मजदूर अपनी जीविका चलाने यानि भोजन, रोजाना की आवश्यक सामग्री खरीदने में असमर्थ रहे। यही मजदूरों की सबसे बड़ी परेशानी रही।
(ङ) महँगाई -: नोटबंदी के समय महँगाई अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी थी। बाजार में नोट नहीँ चल रहे थे। लोगों के पास जो भी छोटे नोट जैसे - सौ, पचास, दस आदि और जो भी सिक्के ₹10, ₹5, ₹2, ₹1 आदि थे। उनसे उन्होंने आवश्यकताओं की पूर्ति की और हर वस्तु को महँगे दामों पर खरीदा। समाचारों में मैंने देखा कि नोटबंदी होने के दो - तीन दिन तक नमक ₹300 -₹400 प्रति किलोग्राम दर से बिका और अन्य चीजें भी महँगी हुईं। विदेशों से आयात - निर्यात रुक गया। देश में जो वस्तुएँ कम मात्रा में थी, वह महँगी हुईं और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध वस्तुएँ सामान्य रहीं।
            इस प्रकार नोटबंदी का महँगाई पर प्रभाव पड़ा।
           अतः इस प्रकार नोटबन्दी से होने वाली हानियों की पुष्टि होती है।
* 4. उपसंहार -: अतः इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नोटबंदी हमारे देश की महती आवश्यकता थी। नोटबंदी सरकार की महती उपलब्धि है। नोटबंदी निवर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का सराहनीय कार्य है। नोटबंदी होने से देश की और वैश्विक समस्याओं जैसे - भ्रष्टाचार, आतंकवाद, कालाधन आदि जटिल समस्याओं से छुटकारा पाने में पर्याप्त मदद मिली है। देश में इन समस्याओं से निजात भी मिला है। अतः नोटबंदी एक महान कार्य है।
              नोटबंदी पर स्वरचित पंक्तियाँ आपसे साझा कर रहा हूँ।
     "नोटबंदी से कालाधन बाहर निकला,
       घटा आतंकवाद - भ्रष्टाचार।
      सरकार का जो खूब प्रशंसनीय कार्य,
      शत् - शत् धन्य हो मोदी ख्याति पाओ अपार।।

          
- कुशराज झाँसी 

_ 14 नवम्बर 2016 _ 11:45दिन _ बरूआसागर




किसान बचाओ - देश बचाओ

               लेख : " किसान बचाओ - देश बचाओ "

 
                              
                         फोटो साभार : गूगल



हमारा देश भारत प्रमुख कृषिप्रधान देश है, यहाँ पर लगभग 70% आबादी कृषि कार्य पर निर्भर है। इसलिए मैं अपने देश को 'किसानों का देश' कहता हूँ। आजकल देश में किसानों की हालात बहुत बदत्तर हो गयी है। प्रकृति की मार, अतिवृष्टि ने किसानों की फसलों को चौपट कर दिया है। तेज वर्षा के साथ ओलों के गिरने से फसलें सर्वनाश हो गईं हैं। किसानों को खुदका पेट भरने के लिए अन्न उत्पादन करना मुश्किल पड़ रहा है।
              आज भारत के आंध्र प्रदेश और बुन्देलखण्ड क्षेत्र में किसान अपनी फसल को चौपट देखकर आत्महत्या कर रहा है। सरकार इस घटना की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीँ दे रही है। सरकार को पीड़ित किसान को आर्थिक सहायता के रूप में फसल - सर्वेक्षण के आधार पर अधिक से अधिक मुआवजा देना चाहिए। सरकार को किसान के बिजली बिल और बैंक का ऋण माफ़ करना चाहिए।
             हमारी भारत सरकार को किसानों की इस स्थिति पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि किसान ही देश की शान हैं। किसान ही खाद्यान्न, फल, सब्जियों आदि खाद्य - पदार्थों का उत्पादन करता है और सरकार इन खाद्य - पदार्थों का निर्यात विदेशों को करती है और काफी विदेशी मुद्रा कमाती है एवं आर्थिक कोष में बढ़ोत्तरी करती है।
             किसान ही देश की जनता की भूँख मिटाते हैं इसलिए सरकार को किसानों के विकास की अनेक कल्याणकारी योजनाएँ बनानी चाहिए। जैसे - मुफ्त सिंचाई योजना, मुफ्त खाद योजना आदि। सरकार को देश में अनेक कृषि विद्यालय और विश्वविद्यालय खुलवाने चाहिए और किसानों को वैज्ञानिक तकनीक से कृषि कराने में मदद करनी चाहिए।
            जैसे सरकार भारी मुद्रा पार्क बनाने में, बड़े - बड़े राजनेता मूर्तियाँ बनवाने में, शादी, जन्मोत्सव, महोत्सवों में अरबों रुपये खर्च कर देते हैं। उन्हें ऐसा नहीँ करना चाहिए। सरकार और राजनेताओं को ये रुपये किसानों के विकास में खर्च करना चाहिए। सरकार को महँगाई कम करनी चाहिए।
           आज की तरह ही यदि किसान आत्महत्याऐं करते रहे तो हमें अन्न कौन देगा? और देश की अर्थव्यवस्था कैसे मजबूत होगी? भारत कैसे विकसित देश बनेगा? ऐसे हजारों प्रश्न उठते हैं। ऐसे प्रश्नों का जबाव सिर्फ और सिर्फ किसानों का विकास करना है और उन्हें किसी भी हालात में दुःखी नहीँ होने देना है। इसलिए तो मैं कहता हूँ कि 'किसान बचाओ - देश बचाओ।' किसान रहेंगे तो कृषि होगी और कृषि होगी तो अन्न होगा। अन्न होगा तो हम होंगे।
           किसानों पर स्वरचित पंक्तियाँ आपसे साझा कर रहा हूँ -:
                     'किसान'
बारहों महीने जो खेतों में करता है काम।
सच्चा किसान है उसका नाम।।
         खेतों को जोतता, बीज बोता,
         बीज उगकर जब तैयार हो जाता।
         तो फसल को सिंचित करता,
         खाद देता, दवाइयाँ देता।
आदि करता है काम।
सच्चा किसान है उसका नाम।।


          - कुशराज झाँसी 

_ 20 मार्च 2015 _ 3:56 दिन _ बरूआसागर
       

Saturday 2 June 2018

हे कुशराज! तू

आत्मप्रेरणादायी कविता - " हे कुशराज! तू "


हे कुशराज! तू ये मत सोच
तू कॉलेज में क्लास नहीँ करता
तू किताबें कम पढता है
तू हमेशा अतिरिक्त पाठ्यक्रम कार्यकलापों में लगा रहता है
तू हमेशा सामाजिक कार्य करता रहता है
तू लिखने और सोचने में ज्यादा व्यस्त रहता है
इसका मतलब ये नहीँ
तू कुछ नहीँ सीखता
तू सीखता है बहुत कुछ
तू करता है औरों से अलग
तू रहता है औरों से अलग
तू कई काम एक साथ करता है
लेकिन उनका लक्ष्य एक ही होता है
तू जिस काम को पकड़ता है
तू उसे परिपूर्ण करके मानता है
तू आत्मविश्वास रखता है
तू अतिविश्वास नहीँ 
तू जिसको पाने के लिए सोचता है
तू उसको हरहाल में पा ही लेता है
तू कभी - कभी ठगा भी जाता है
तू कभी - कभी अपनी मेहनत का फल नहीँ पा पाता है
फिर भी
तू हमेशा खुश रहता है
तू कभी भी दुःखी क्यूँ नहीँ होता? 
क्योंकि तू जानता हूँ जीवन में उतार - चढ़ाव आते रहते हैं
हर समय एक जैसा नहीँ होता
कभी न कभी फल जरूर मिलता है
तू लोगों की सब बातों पर ध्यान क्यों नहीँ देता
तू लोगों की सब बातें क्यों नहीँ मानता
क्योंकि तू जानता है लोग भला - बुरा कहते हैं
तो कहने दो
उनका काम ही कहना
लोगों का निंदा करना स्वभाव है
तू हमेशा अपनी अन्तरात्मा की सुनता है
तू हमेशा कुछ न कुछ करने में व्यस्त रहता है
और कहता है
काम करेगा जो - नाम करेगा वो
तू हर काम बड़े सोच - विचार कर करता है
तू लोगों से बहुत कुछ सीख लेता है
तू हमेशा नया करता रहता है
तू अपने में नूतनता लाता रहता है
तू  जिस काम में लगा हुआ है
उसी में पूरे जोश और होश के साथ लगा रह
तू उसी के लिए बना है
तुझे उसी में कामयाबी मिलेगी
तू उसी में खुश रहेगा
तेरे काम करने का अंदाज मिसाल बनेगा
यही तेरे जीवन का सार बनेगा

 
- कुशराज झाँसी

_ 21 / 5 / 2018 _ 3:55 दिन _ दिल्ली

           




हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी खों अथाई की बातें तिमाई बुंदेली पत्तिका भेंट.....

  हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी में मुखिया आचार्य संजै सक्सेना जू, आचार्य नबेन्द कुमार सिंघ जू, डा० स्याममोहन पटेल जू उर अनिरुद्ध गोयल...