Thursday 29 June 2023

30 जून 2023 को हम हुए 24 साल के युवा - गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'

 *** 30 जून 2023 को हम हुए 24 साल के युवा ***

(आत्मकथा : " मैं हूँ कुशराज - बुन्देली किसान का बेटा " का अंश...) 


  

      फोटो : जरबो गॉंव में अपने खेत पर किसान कुशराज झाँसी



30 जून को हमारा जनमदिन होता है। शैक्षिक और सरकारी दस्तावेजों के हिसाब से हमारी जन्मतिथि 30 जून सन 1999 है। लेकिन जन्मकुंडली के हिसाब से हमारी जन्मतिथि 6 सितंबर सन 1998 है। परन्तु अब तक हम 30 जून को ही अपना जनमदिन मनाते आ रहे हैं और मनाते रहेंगे।


हमारा जन्म 6 सितंबर सन 1998 को सुबह 9 बजकर 22 मिनट पर माताजी किसानिन ममता कुशवाहा 'अम्मा' के गर्भ से अखंड बुंदेलखंड में जिला झाँसी के बरूआसागर नगर के पास जरबो गॉंव में मकान नम्बर 212, नन्नाघर, कुशवाहागढ़ मुहल्ले के प्रतिष्ठित बुन्देली किसान, कुशवाहा क्षत्रिय हिन्दू परिवार में हुआ था।


दादी और दादाजी बताते हैं कि तुम्हारे जन्म लेते ही तुम्हारी अम्मा की बहुत तबीयत बिगड़ गई थी। अम्मा को झाँसी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। उनका दो - तीन दिन इलाज चला था तब ठीक हुईं थीं। इलाज के साथ ही परदादाजी किसान बलदेव कुशवाहा उर्फ बलदेव माते ने जरबो गॉंव के शंकर जी के मंदिर में महादेव शिव जी से विनती की कि हमारी नतबऊ और परपोता को स्वस्थ और सुखी कर दें, हम आपकी आजीवन सेवा करेंगें। परदादा की विनती महादेव ने सुनी और अम्मा और हम बिल्कुल स्वस्थ हो गए।


परदादाजी ने हमारे जनम से लेकर जब तक वो जीवित रहे तब तक उस शंकर जी के मन्दिर की साफ - सफाई की और प्रातःकाल स्नान - भजन करके शंकर जी को जल चढ़ाया। सायंकाल में परदादाजी ने शंकर जी के मंदिर में और उसके पास स्थित पीपल के पेड़ के तले दिया जलाया और हमारे उज्ज्वल वर्तमान और भविष्य की कामना की। इसके साथ ही हम दुनिया को अपने कल्याणकारी - रचनात्मक कामों से दिए की भाँति प्रकाशित करते रहें, ऐसा वरदान माँगा परदादाजी ने और शिव जी ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया। उस वरदान के बल पर हम दिन - प्रतिदिन प्रगति कर रहे हैं। परदादाजी का स्वर्गवास सन 2015 में हो गया, जब हम हाईस्कूल में बरूआसागर के सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में पढ़ते थे और छात्रसंसद में उपप्रधानमंत्री भी थे। परदादा जी के त्याग, बलिदान, मेहनत और ईश्वर सेवा के कारण ही हम उनके जीवनकाल में शिक्षा और पाठ्येतर गतिविधियों में आगे बढ़ते गए और हाईस्कूल 85% अंकों के साथ पास की। इसके साथ ही कई प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करके अच्छा प्रदर्शन किया और सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता, निबंध लेखन प्रतियोगिता इत्यादि में पुरस्कार जीते। हम परदादाजी बलदेव माते को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए नमन करते हैं।


परदादाजी महान शिवभक्त किसान थे और उनकी शिवभक्ति के कारण ही हमारा वास्तविक नाम गिरजाशंकर कुशवाहा पड़ा और हमारी कुंभ राशि हुई। हमारे गिरजाशंकर कुशवाहा नाम से शक्ति मैया, गिरिजा - पार्वती और महादेव शिव - शंकर के साथ ही भगवान श्रीराम और माँ सीता के वीर सपूत महाराज कुश के वंशज होने का बोध होता है। नाम के अनुसार से हमें ईश्वर ने महिला कल्याण, समाजसुधार और माता एवं मातृभूमि प्रेम की शक्ति और गुण दिए हैं।


घर पे हमें सबकोई प्यार से सतेंद नाम से बुलाता है। घर में हम सबके लाडले सपूत भी हैं। घर पे हमें दादा - दादी, अम्मा - पापा और चाचा - चाचा के साथ ही पड़ोसी बड़े - बूढ़े सतेंद नाम से ही पुकारते हैं। इसलिए हम बुन्देली भाषा में सतेन्द सिंघ किसान नाम से लिखते हैं। 


महिला कल्याण के लिए हम बचपन से ही सोच - विचार करते रहे हैं और स्त्री - शिक्षा में सहयोगी बनने के साथ ही 6 - 7 सालों से स्त्री विमर्श पर कविता, कहानियाँ, डायरी और लेख लिख रहे हैं और निरंतर प्रकाशित करा रहे हैं।


समाजसुधार के लिए भी हम बचपन से ही प्रेरित रहे हैं क्योंकि हमारे आदर्श दादाजी किसान पीताराम कुशवाहा उर्फ पत्तू नन्ना जरबो गॉंव के दो पंचवर्षी ग्रामप्रधान प्रतिनिधि रहे हैं और क्षेत्र के जाने - माने पंच और समाजसेवी हैं। ग्रामसुधार, ग्रामविकास और समाज  सुधार के मुद्दों पर हम हमेशा दादाजी और दादीजी किसानिन रामकली कुशवाहा उर्फ बाई से विचार - विमर्श करते हैं और समसामयिक समाज के नैतिक पतन के साथ ही किसानों की दुर्दशा पर भी चर्चा करते हैं। समाज के नैतिक पतन पर रोक लगान, समाज में अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखने के लिए कुशराजस्मृति किताब पर काम कर रहा हूँ। सबके साथ और सहयोग से हम अपने समाज के नैतिक पतन पर रोक लगा सकेंगे और उर्फी जावेद जैसी सांस्कृतिकआतंकवादी पर भी लगाम लगा सकेंगें। साथ ही सांस्कृतिकआतंकवाद से मुक्ति पा सकेंगे।


माता एवं मातृभूमि प्रेम के कारण ही हम अपना उपनाम "कुशराज झाँसी"  रखे हैं और साहित्य, शिक्षा, कानून, समाजसेवा और राजनीति आदि क्षेत्रों में इसी नाम से हम पहचाने जाते हैं। जैसा कि हम जाति से आदर्श भारतीय नारी - माता सीता और मर्यादा पुरूषोत्तम - भगवान श्रीराम के वीर पुत्र महाराज कुश के वंशज - कुशवाहा हैं। 


माता सीता की ही अग्निपरीक्षा क्यों? उनके चरित्र पर संदेह क्यों? आखिर सीता मैया जैसीं आज तक अनेक स्त्रियों को दोयम दर्जा क्यों? इन सब प्रश्नों का हम ढूँढने के लिए क्षत्रियोचित नाम कुशराज झाँसी ही है हमारा। कुशवाहा झाँसी उपनाम से ही हम हिन्दी भाषा में लिखते हैं और अंग्रेजी में गिरजाशंकर कुशवाहा नाम से संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के कार्यक्रम आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत डीडीआर प्रोजेक्ट के लिए भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्ने - स्वतंत्रता संग्राम की कहानियाँ लिखें हैं और अब तक हमारी सात कहानियाँ आजादी का अमृत महोत्सव पोर्टल पर प्रकाशित भी हो चुकी हैं। मातृभूमि अखंड बुंदेलखंड और मातृभाषा कछियाई - बुन्देली के विकास का संकल्प लेकर चल रहे हैं और आप सबके सहयोग और आशीर्वाद से पूरा भी करेंगे। 


अपने 25 वें जनमदिन पर आपकी शुभकामनाओं का आकांक्षी...।


 ©️ गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'

(सामाजिक कार्यकर्त्ता - युवा बुंदेलखंडी लेखक)

जरबो गॉंव, झाँसी, बुंदेलखंड

_ 29/6/2023 _ 1:50दिन _ झाँसी



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