Monday 21 October 2019

देश को विकसित बनाने के लिए जनता को करनी होगी क्रान्ति ...


    21वीं सदी को विकास की सदी की संज्ञा देना ठीक है क्योंकि इसी सदी में ही हर क्षेत्र में विकास हो रहा है, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी, इंटरनेट और सोशल मीडिया की अहम भूमिका है। इंटरनेट के कारण हर खबर क्षण भर में सारी दुनिया में फैल रही है और इसके कारण ही भाषा, समाज और संस्कृति में कई सार्थक परिवर्तन हुए हैं।

    हर क्षेत्र में परिवर्तन होने भी चाहिए क्योंकि क्रान्ति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं। आज भारत में इंटरनेट और सोशल मीडिया का प्रयोग ज़ोरों पर हो रहा है। गाँव-गाँव में सोशल मीडिया का सार्थक उपयोग होते हुए देखा जा रहा है। जो खबरें और समाचार अखबारों और पत्रिकाओं में कुछ घंटों बाद मिलती थीं, वह सोशल मीडिया पर तत्काल मिल रही है, वह भी अधिक प्रमाणिकता के साथ।
    सोशल मीडिया ने हर आदमी को अभिव्यक्ति की सच्ची आज़ादी दी है। यह दौर है, बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे अर्थात् अपनी हर बात सब तक बेझिझक पहुंचाने का। हर लेखक को सच्चाई लिखकर समाज का सही मार्गदर्शन करके विश्व कल्याण में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

    आज कुछ लेखक अच्छा कर रहे हैं -
    आज युवा लेखक और नए लेखक बहुत बेहतर कर रहे हैं लेकिन स्थापित लेखक नहीं। तथाकथितों द्वारा ऐसा माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में भारत विकसित बनकर उभरा और देश में विकास की गंगा बही लेकिन हकीकत कुछ यूं है कि इस दौर में किसान आत्महत्याओं और बलात्कार के मामले हद से ज़्यादा सामने आए।

    महाराष्ट्र में सन् 2015 से 2018 के बीच तकरीबन 12 हज़ार से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्याएं की। सारी दुनिया की भूख मिटाने वाले धरती पुत्र को दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं हुई। 

    यत्र-तत्र किसान आंदोलन हुए लेकिन तानाशाही सरकार से किसान अपना हक पाने में नाकामयाब रहे। मज़दूरों की हालात भी बहुत बुरी रही और सूखे की मार से ग्रसित बुन्देलखण्ड हमेशा उपेक्षित रहा।

    किसानों-मज़दूरों के बच्चोँ की अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई क्योंकि कुछ को छोड़कर ज़्यादातर सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था अस्त-व्यस्त रही।
    प्राईवेट शिक्षण संस्थानों और कॉन्वेंट स्कूलों का हाल और बुरा रहा। छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद रोज़गार और नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। भारत में शिक्षित बेरोज़गार युवाओं की भरमार हो गई है और युवाओं को सरकार सिर्फ जुमले दे रही है। 

    आरक्षण घातक सिद्ध हुआ -

    भारत के लिए आरक्षण घातक सिद्ध हो रहा है, आरक्षित लोग ही नौकरी पाने में सफल हो रहे हैं। इसमें वह ही लोग हैं, जो कुछ हद तक सम्पन्न हैं लेकिन आज भी गरीब किसान मजदूर और आदिवासियों के बच्चे आरक्षण नहीं पा रहे हैं क्योंकि देश में जागरूकता का अभाव है।

    अब भारत के हालात बहुत ठीक हो चुके हैं और अब समय आ गया है, आरक्षण को खत्म करने का। मोदी सरकार ने सन् 2018-19 में 10% सवर्णों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था करी। आरक्षण देना अब भारत के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि विश्व गुरू भारत के निवासी वैसे ही प्रतिभाशाली होते हैं और आज के युवा तो 21वीं सदी के हैं, जो बहुत ज़्यादा प्रतिभाशाली हैं।

    भुनाए गए कुछ मुद्दे -

    सन् 2014 का आम चुनाव अयोध्या राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर जीता गया लेकिन अभी तक राम मंदिर नहीं बना और ना ही बनने की संभावना है। सन् 2019 का आम चुनाव पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर जीता गया लेकिन देश के अंदर के विवादों को सुलझाने की कोशिश भी नहीं की जा रही है।

    अब धर्म और सीमा सुरक्षा को चुनावी मुद्दा बनाना भारत के हित में नहीं है। भारत के हित में है- शिक्षा, पर्यावरण, महिला सुरक्षा, किसान, मजदूर कल्याण और रोज़गार को चुनावी मुद्दा बनाकर चुनाव जीतना और भारत को विकसित भारत बनाने में अपना अतुलनीय योगदान देना।

    क्रान्ति से ही आएगा परिर्वतन -

    अब लगने लगा है कि देश का पतन हो रहा है लेकिन सब चुप बैठे हैं। अपने काम से मतलब है और किसी से कोई लेना-देना नहीं। देश को बचाने के लिए सरकार के खिलाफ सशक्त क्रान्ति करो, तभी हम भी बच पाएंगे।

    मोदी सरकार ने देश की ऐतिहासिक इमारत लाल किले समेत अनेकों सरकारी कम्पनियों को बेच दिया है और निजीकरण कर दिया है। जागरूक देशवासियों अपना एक ही लक्ष्य बनाओ- क्रान्ति मन, क्रान्ति तन और क्रान्ति ही मेरा जीवन।



    भाषायी भेदभाव बढ़ गए -

    देश में भाषायी भेदभाव कुछ ज़्यादा ही देखने को मिले। हर ओर हिन्दी बनाम अंग्रेज़ी का बोलबाला रहा। आज हिन्दी भाषा आधुनिक भारतीय भाषाओँ का नेतृत्त्व कर रही है और देश की आधी से अधिक आबादी हिन्दी का प्रयोग कर रही है।
    हिन्दी दुनिया में सबसे ज़्यादा बोली जानेवाली भाषा भी बन गई है फिर भी उसकी जन्मभूमि भारत में ही हिन्दी और उसकी जननी संस्कृत की घोर उपेक्षा की जा रही है।

    आजकल सिर्फ अंग्रेज़ी का दौर है  -

    आज दुनिया के विभिन्न देशों के स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा और साहित्य का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है और हमारे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में भारतीय संघ की राजभाषा और देश की सम्पर्क भाषा, कई राज्यों की राजभाषा होने के बावजूद विदेशी भाषा अंग्रेज़ी से मात खाती हुई दिखाई दे रही है, जो हम सबके लिए सोचनीय है। 

    आजकल हमारे देश में उस अंग्रेज़ी को विकास की भाषा, आधुनिक बुद्धजीवियों और प्रतिभाशालियों की भाषा करार दिया जा रहा है। हर जगह हिन्दी सह अंग्रेज़ी की बदौलत हिन्दी बनाम अंग्रेज़ी नज़र आ रही है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348  में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में संसद व राज्य विधानमण्डल में विधेयकों और अधिनियमों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा उपबंध होने तक अंग्रेज़ी जारी रहेगी। 

    जब देश की आम जनता को न्याय उसकी मातृभाषा में ही ना सुनाया जाए तो इससे बड़ा अन्याय और क्या हो सकता है? आखिर कब हमें न्याय अपनी भाषा में मिलेगा?

    गाँव-गाँव में अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल -

    आज हमारे लिए सबसे बड़ी दुःख की बात यह है कि भारतीय संस्कृति पर नाज करने वाली, हिन्दूवादी एवं राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्त्व वाली योगी सरकार प्रदेश के गाँव-गाँव ने अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल खोल रहे हैं और देश के भविष्य छात्रों को अंग्रेज़ी का मानसिक गुलाम बना रहे हैं और हमारी मातृभाषा हिन्दी का अपमान कर रहे हैं।

    हमारी शिक्षा व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त ना होने की वजह से इन गाँवों के सरकारी स्कूलों में हिन्दी माध्यम की पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं हो रही है। ऊपर से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के माता -पिता, किसान या मजदूर हैं, जिन्हें अपने काम से ही फुर्सत नहीं मिलती। यदि फुर्सत मिले तो ही यह अपने बच्चों की पढ़ाई का जायजा भी ले सकें।

    यह किसान और मजदूर कर ही क्या सकते हैं, जो करना है सरकार को करना है। सरकार द्वारा अंग्रेज़ी माध्यम के सरकारी स्कूल खोलकर जनमानस में बेरोज़गारी और कुशिक्षा को बढ़ावा देने की साजिश नज़र आ रही हैं।

    क्षेत्रीय भाषाओँ में स्कूल खुलने चाहिए -
    अंग्रेज़ी माध्यम की जगह सरकार को क्षेत्रीय भाषाओँ और बोलियों वाले माध्यमों में स्कूल खोलने चाहिए ताकि विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा प्राप्त कर सके और मातृभाषा का विकास कर सके।

    सरकार को अंग्रेज़ी माध्यम में संचालित होने वाली संस्थाओं पर प्रतिबंध भी लगाना चाहिए। माननीय मुख्यमंत्री को हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत भाषा को अनिवार्य करना चाहिए और अंग्रेज़ी का पूर्णतः बहिष्कार करना चाहिए तभी हमारी भारतीय संस्कृति की विजयी पताका सारी दुनिया में लहरा सकेगी और भारत देश विकसित देश बन सकेगा।

    ✍ परिवर्तनकारी कुशराज झाँसी बुन्देलखण्ड___13/6/2019__9:00अपरान्ह
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    क्षेत्रीय भाषा और बोली बने शिक्षा का माध्यम - कुशराज झाँसी


    लेख - " क्षेत्रीय भाषा और बोली बने शिक्षा का माध्यम "



    21वीं सदी को विकास की सदी की संज्ञा देना ठीक है, क्योंकि इसी सदी में ही हर क्षेत्र में विकास हो रहा है, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी, इंटरनेट और सोशल मीडिया की अहम भूमिका है। इंटरनेट के कारण हर खबर क्षण भर में सारी दुनिया में फैल रही है और इसके कारण ही भाषा, समाज और संस्कृति में कई सार्थक परिवर्तन हुए हैं।

    हर क्षेत्र में परिवर्तन होने भी चाहिए क्योंकि क्रांति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं। आज भारत में इंटरनेट और सोशल मीडिया का प्रयोग ज़ोरों पर हो रहा है। गाँव-गाँव में सोशल मीडिया का सार्थक उपयोग होते देखा जा रहा है। जो खबरें और समाचार अखबारों और पत्रिकाओं में कुछ घंटों बाद मिलती थीं, उन्हें सोशल मीडिया पर लोग तुरन्त देख पा रहे हैं, वह भी अधिक प्रमाणिकता के साथ।
    सोशल मीडिया ने हर आदमी को अभिव्यक्ति की सच्ची आज़ादी दी है। यह दौर है, बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे अर्थात अपनी हर बात सब तक बेझिझक पहुंचाने का। हर लेखक को सच्चाई लिखकर समाज का सही मार्गदर्शन करके विश्व कल्याण में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।




    शिक्षित बेरोज़गार युवाओं की भरमार - 

    आज युवा और नए लेखक बहुत बेहतर कर रहे हैं लेकिन स्थापित लेखक नहीं। तथाकथितों द्वारा ऐसा माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में भारत विकसित बनकर उभरा और देश में विकास की गंगा बही लेकिन हकीकत कुछ यूं है कि इस दौर में किसानों की आत्महत्याएं और बलात्कार के मामले हद से ज़्यादा सामने आए हैं।

    महाराष्ट्र में सन् 2015 से 2018 के बीच तकरीबन 12 हज़ार से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्या की। सारी दुनिया की भूख मिटाने वाले धरती पुत्र को दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं हुई।

    यत्र-तत्र किसान आंदोलन हुए लेकिन तानाशाही सरकार से किसान अपना हक पाने में नाकामयाब रहे। मज़दूरों के हालात भी बहुत बुरे रहे और सूखे की मार से ग्रसित बुन्देलखंड हमेशा उपेक्षित रहा। किसानों-मज़दूरों के बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई, क्योंकि कुछ को छोड़कर ज़्यादातर सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था अस्त-व्यस्त रही।

    प्राइवेट शिक्षण संस्थानों और कॉन्वेंट स्कूलों का हाल और बुरा रहा। स्टूडेंट्स को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद रोज़गार और नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। भारत में शिक्षित बेरोज़गार युवाओं की भरमार हो गई है और युवाओं को सरकार सिर्फ जुमले दे रही है।

    देश में भाषायी भेदभाव कुछ ज़्यादा ही देखने को मिले। हर ओर हिन्दी बनाम अंग्रेज़ी का बोलबाला रहा। आज हिन्दी भाषा आधुनिक भारतीय भाषाओं का नेतृत्त्व कर रही है और देश की आधी से अधिक आबादी हिन्दी का प्रयोग कर रही है।
    हिन्दी दुनिया में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा भी बन गई है फिर भी उसकी जन्मभूमि भारत में ही हिन्दी और उसकी जननी संस्कृत की घोर उपेक्षा की जा रही है।

    आज कल सिर्फ अंग्रेज़ी का दौर है -

    आज दुनिया के विभिन्न देशों के स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा और साहित्य का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है और हमारे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 मेंभारतीय संघ की राजभाषा और देश की सम्पर्क भाषा, कई राज्यों की राजभाषा होने के बावजूद विदेशी भाषा अंग्रेज़ी से मात खाती हुई दिखाई दे रही है, जो हम सबके लिए सोचनीय है।

    आज कल हमारे देश में अंग्रेज़ी को विकास की भाषा, आधुनिक बुद्धिजीवियों और प्रतिभाशालियों की भाषा के तौर पर देखा जा रहा है। हर जगह हिन्दी सह अंग्रेज़ी की बदौलत हिन्दी बनाम अंग्रेज़ी नज़र आ रही है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348  में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में संसद व राज्य विधानमंडल में विधेयकों और अधिनियमों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा उपबंध होने तक अंग्रेज़ी जारी रहेगी।

    जब देश की आम जनता को न्याय उसकी मातृभाषा में ही ना सुनाया जाए, तो इससे बड़ा अन्याय और क्या हो सकता है? आखिर कब हमें न्याय अपनी भाषा में मिलेगा?

    गाँव-गाँव में अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल -

    आज हमारे लिए सबसे बड़ी दुःख की बात यह है कि भारतीय संस्कृति पर नाज़ करने वाली, हिन्दूवादी एवं राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्त्व वाली योगी सरकार प्रदेश के गाँव-गाँव ने अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल खोल रहे हैं और देश के भविष्य को अंग्रेज़ी का मानसिक गुलाम बना रहे हैं और हमारी मातृभाषा हिन्दी का अपमान कर रहे हैं।




    हमारी शिक्षा व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त ना होने की वजह से इन गाँवों के सरकारी स्कूलों में हिन्दी माध्यम की पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं हो रही है। ऊपर से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के माता-पिता, किसान या मज़दूर हैं, जिन्हें अपने काम से ही फुर्सत नहीं मिलती। यदि फुर्सत मिले तो ही यह अपने बच्चों की पढ़ाई का जायज़ा भी ले सकें।
    यह किसान और मज़दूर कर ही क्या सकते हैं, जो करना है सरकार को करना है। सरकार द्वारा अंग्रेज़ी माध्यम के सरकारी स्कूल खोलकर जनमानस में बेरोज़गारी और कुशिक्षा को बढ़ावा देने की साज़िश नज़र आ रही हैं।

    क्षेत्रीय भाषाओं में स्कूल खुलने चाहिए -

    अंग्रेज़ी माध्यम की जगह सरकार को क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों जैसे - बुन्देली, भोजपुरी, मैथिली, तमिल, मराठी आदि वाले माध्यमों में स्कूल खोलने चाहिए ताकि स्टूडेंट्स अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा प्राप्त कर सके और मातृभाषा का विकास कर सके। माननीय मुख्यमंत्री को हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत भाषा को अनिवार्य करना चाहिए और अंग्रेज़ी का पूर्णतः बहिष्कार करना चाहिए तभी हमारी भारतीय संस्कृति की विजयी पताका सारी दुनिया में लहरा सकेगी और भारत देश विकसित देश बन सकेगा।




    ✒ कुशराज झाँसी
          
    _10/10/2019_10:11दिन _ दिल्ली

    Saturday 19 October 2019

    स्टूडेंट यूनियन द्वारा आयोजित हंसराज कॉलेज फ्रेशर्स पार्टी 2019 में क्षेत्रवादी और जातिवादि गानों से फ्रेशर्स हुए नाखुश…

    लेख - " स्टूडेंट यूनियन द्वारा आयोजित हंसराज कॉलेज फ्रेशर्स पार्टी 2019 में क्षेत्रवादी और जातिवादि गानों से फ्रेशर्स हुए नाखुश "




    कल 01 अक्टूबर 2019 को हंसराज कॉलेज स्टूडेंट यूनियन द्वारा कॉलेज ग्राऊण्ड में फ्रेशर्स पार्टी करायी गयी। जो हंसराज के इतिहास में सबसे ख़राब फ्रेशर्स हुई। इस फ्रेशर्स में सिर्फ एक क्षेत्र विशेष हरियाणा को केंद्र में रखा गया। स्टेज पर उसी क्षेत्र के धुंआधार गाने बज रहे थे और उसी क्षेत्र के लोग मौज कर रहे थे। बाकी सारे भारत और दुनिया से आये स्टूडेंट्स पुलिस बेरिगेट्स के बाहर बेबस होकर नाखुश स्थिति में अपने मन को शांत कर रहे थे। फ्रेशर्स में ये सब क्षेत्रवादी और जातिवादी माहौल को देखकर कॉलेज प्रशासन भी नाराज हो गया और प्रिंसिपल मैम प्रोo रमा ने आकर फ्रेशर्स के बीच में ही म्यूजिक रुकवा दिया और पार्टी बंद करवा दी, जो प्रशासन का सराहनीय कदम है। इस साल का फ्रेशर्स सिर्फ डेढ़ – दो घण्टे तक चली और वो भी सिर्फ कुछ लोगों को खुश करने के लिए। फ्रेशर्स में स्टूडेंट यूनियन की क्षेत्रवादी और जातिवादि गतिविधियों को देखकर कॉलेज प्रशासन से मैं छात्र – संघ भंग करने की माँग करता हूँ और माँग करता हूँ कि जल्द से जल्द छात्र – संघ में नेता विपक्ष की व्यवस्था की जाए ताकि छात्र – संघ छात्रहितों में काम कर सके और प्रशासन को भी अपने कार्य में कोई बाधा न आए।
    ✒ गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज’
    (सचिव प्रत्याशी – हंसराज कॉलेज छात्र संघ 2019-20, नायाब पैनल)
    _2/10/2019 _ 10:45 दिन _ जरबौगांव
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    कपटी दोस्त से दुश्मनी भी हो जाए तो चिंतित मत होईए और ज़्यादा खुश रहिए...



    ज़िंदगी में दोस्ती बहुत ज़रूरी है। सच्ची दोस्ती ज़िन्दगी को बना देती है और कपटी दोस्ती बनी हुई ज़िन्दगी को मिटा देती है। आजकल सच्ची दोस्ती होना बड़ा मुश्किल हो गया है। सच्चे दोस्त बड़ी मुश्किल और बहुत देर से मिलते हैं। ये दोस्त बन तो जल्दी जाते हैं लेकिन इनके सच्चे होने की परख बहुत दिनों बाद होती है।
    इसलिए मैं कहता हूं कि सच्चे दोस्त बहुत देर से मिलते हैं।
    सच्चे और कपटी दोस्तों में से हमें ही सच्चे दोस्तों की परख करनी होती है। हम सच्चे दोस्तों की परख बहुत दिनों बाद करते हैं लेकिन उनके साथ रहने से परख जल्दी हो जाती है कि वे सच्चे हैं या कपटी।

    कौन होता है दोस्त?

    एत दोस्त वह होता है, जो आपके दोष यानि कमियां बताए। आज के समय में मुझे यह मतलब सही नहीं लगता क्योंकि आजकल कई ऐसे दोस्त भी होते हैं, जो आपमें कमियां ही निकालते रहते हैं और आपको हतोत्साहित करते रहते हैं। ज़रूरी नहीं कि आपमें वह सारी कमियां हो जिसे आपके दोस्त गिनाते रहते हैं।
    कभी-कभी आपमें कमियां नहीं होती हैं। वे आपसे ईर्ष्या करते हैं और आपसे जलते हैं। वे आपकी प्रगति को नहीं देखना  चाहते इसलिए आपकी निंदा करते हैं। वे आपकी निंदा इस तरह करते हैं कि आपके सही और रचनात्मक कार्य को भी गलत ठहरा देते हैं।
    फिर एक समय बाद आपको भी अपने कार्य से नफरत होने लगती है। अपने कार्य से नफरत करना बहुत गलत है। जब आप स्वयं से ही सहमत नहीं हैं, तो भला आप दूसरों से कैसे सहमत हो सकते हैं।
    आप हमेशा स्वयं से सहमत रहिए और हमेशा यह मानकर काम कीजिए कि मैं जो कर रहा हूं वह सही है और मैं सही हूं। तभी आप सार्थक बन पाओगे और ज़िन्दगी में अच्छा कर पाओगे।
    इस संदर्भ में मैं कहता हूं,
    आपके बारे में दुनिया क्या बोलती है, यह मायने नहीं रखता। आपकी अन्तर्रात्मा जो बोलती है, वह मायने रखता है

    किन दोस्तों से दूर रहना चाहिए

    ऐसे दोस्त जो आपमें हर समय कमियां निकालते रहते हैं और आपके हर काम में दखल देते रहते हैं, आपको कोई भी काम आपके मन से नहीं करने देते हैं और अपनी सलाह आप पर थोपते हैं, तो आपको ऐसे दोस्तों की कोई भी बात नहीं माननी चाहिए।
    इनसे दूरियां बनाना ही हितकर है क्योंकि ये “मुंह में राम बगल में छुरी” नामक कहावत को चरितार्थ करते हैं। ऐसे दोस्त कपटी दोस्त कहलाते हैं। जो खुद तो कुछ नहीं करते और दूसरों को भी कार्य करने नहीं देना चाहते।
    ऐसे दोस्तों से सावधान रहिए। कपटी दोस्त आपको कई बार ठगते हैं और आपको धोखा देते हैं। कोई रचनात्मक कार्य करते आप हैं लेकिन उसका श्रेय वे खुद लेना चाहते हैं। कभी-कभी वे आपको धमकाते भी हैं। उनसे कदापि मत डरिए। उनका साहस से सामना कीजिए।
    एक समय बाद आपको पता चल जाता है कि इसने मुझे धोखा दिया है। तो उसी समय से उस धोखेबाज़ से दोस्ती तोड़ दीजिए। उससे ज़िंदगी में पुनः दोस्ती मत कीजिए, चाहे कुछ भी हो।

    इस संदर्भ में मैंने लिखा है,
    यदि आपका कोई मित्र धोखा देता है और मूर्ख बनाता है लेकिन फिर भी आप उससे मित्रता रखते हैं तो यह आपकी सबसे बड़ी मूर्खता और जीवन की सबसे बड़ी भूल होगी। यदि कपटी दोस्त से दुश्मनी भी हो जाए तो चिंतित मत होईए और ज़्यादा खुश रहिए।
    चाणक्यनीति में आचार्य चाणक्य ने कहा है,
    कामयाब होने के लिए अच्छे दोस्तों की आवश्यकता होती है और ज़्यादा कामयाब होने के लिए अच्छे शत्रुओं की आवश्यकता होती है।
    ऐसे दोस्त जो आपके रचनात्मक कार्य की प्रशंसा करते हैं। यदि उस कार्य में कहीं सुधार की ज़रूरत होती है तो वे ज़रूरत पूरी करते हैं। वे दोस्त जो हर समय आपको प्रोत्साहित करते रहते हैं और आपको पूरे मन से काम करने को कहते हैं। जो काम आप मन से करते हो, उसमें पूरी लगन और जोश लगा देते हैं। ऐसे दोस्त आपको सलाह देते हैं परंतु उसे मानने के लिए बाध्य नहीं करते। वो दोस्त जो ज़रा-ज़रा सी बात पर बुरा नहीं मानते।
    ऐसे दोस्त अगर बुरा मान भी जाते हैं तो उन्हें मना लेना चाहिए। ये आपके कार्य में सहयोगी बनते हैं और ज़रूरत पड़ने पर हर प्रकार से यानि तन, मन और धन से मदद करते हैं। ये दोस्त आपकी खुशी को अपनी खुशी और दुःख को अपना दुःख समझते हैं। वे आपको अपने भाई – बहन जैसा प्यार देते हैं। ऐसे दोस्त ‘सच्चे दोस्त’ कहलाता है।

    किसान - विमर्श : कुशराज झाँसी


    सिंद्धात : " किसान - विमर्श "




    जबसे इस धरती पर जीवन की उत्पत्ति हुई है तब से ही किसान खेती - किसानी करके खाद्य - सामग्री उत्पादित कर रहे हैं। यानि किसान ही सारी दुनिया के लिए भोजन हेतु खाद्यान्न, फल, सब्जियाँ और चारे का उत्पादन करते आ रहे हैं। इन धरतीपुत्र किसानों को 'अन्नदाता' भी कहा जाता है। लेकिन मैं इन्हें "दूसरा जीवनदाता" कहता हूँ। यदि किसान खेती - किसानी नहीं करेंगे तो खाद्यान्नों का उत्पादन नहीं होगा और जब खाद्यान्नों का उत्पादन नहीं होगा तो हमारे भोजन की भी व्यवस्था नहीं होगी। बिना भोजन के हमारा जीवित रहना असंभव ही नहीं नामुमकिन है। यदि हम भोजन नहीं करेंगे तो भूखों मर जाएँगे और कुछ भी नहीं कर पाएँगे...

    आज हमारे देश भारत में ही नहीं सारी दुनिया में सबसे ज्यादा दुर्दशा किसानों की ही है। किसान सबके लिए तो अन्न उगा रहे हैं और खुद भूखों मरने के लिए विवश हैं। किसान अपनी फसलों से इतना नहीं कमा पाते कि वो अपने  परिवार के लिए ठीक - ठाक कपड़ों और शिक्षा का प्रबंध कर सकें। किसान दिन - रात एक करके अन्न उपजाता है। वो न जेठमास की तमतमाती धूप देखता है और न ही माव -  फूस की कड़ाके की ठण्ड। किसान जितना परिश्रमी और धैर्यवान कोई नहीं है। फिर भी किसान सुखी नहीं है। कभी वो भयानक अकाल (सूखा) की मार से मारा जाता है और कभी प्रलयकारी बाढ़ से। इन आपदाओं से ज्यादा तो किसान कर्ज के बोझ से आत्महत्या करने मजबूर होते हैं। अब तक की अधिकतर सरकारें किसान विरोधी रहीं हैं। सरकारों  ने कभी किसानों का भला करना नहीं चाहा इसलिए तो अब तक देश पीछे है। सरकारी और प्रशासनिक व्यवस्था किसान को ही हमेशा हर प्रकार से लूटती रही है और दमनकारी रवैया चलाती रही है। लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा। अब मेरे जैसे किसानों के बेटे जागरूक हो गए हैं  और किसान भी एकजुट हो गए हैं। वो अपने अधिकारों की आर - पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो गए हैं। बाजारवाद के इस दौर में किसान अपनी फसलों के आज से चार - पाँच गुने मूल्य पाने के लिए परिवर्तनवादी आन्दोलन कर रहे हैं और अपनी हालात बेहतर करके विश्वकल्याण में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। इन किसानों की विचारधारा परिवर्तनवाद का नारा है - दुनिया के किसानों एक हो।...

    किसानों को अब से समाज, साहित्य, राजनीति और सिनेमा में अगल से सम्मानीय दर्जा दिया जाए। दुनिया के हर स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय के हर कक्षा के पाठ्यक्रमों में किसान - साहित्य और किसान विमर्श को अनिवार्यता के साथ शामिल किया जाए। क्योंकि किसानों के बिना ये दुनिया नहीं चल सकती। इसलिए किसानों की हर माँग को पूरा किया जाए। मेरे अनुसार किसान - साहित्य की परिभाषा इस प्रकार है : "किसान के जीवन पर लिखा गया अनुभूतिपरक एवं स्वानुभूतिपरक साहित्य ही किसान - साहित्य है और ऐसा विमर्श जिसमें किसानों हर मनोदशा, भावना और अधिकारों की अभिव्यक्ति हुई हो, वो किसान - विमर्श है।"



    तथाकथितों द्वारा ऐसा माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में भारत ‘नवभारत – विकसित भारत’ बनकर उभरा और देश में विकास की गंगा बही। लेकिन हकीकत कुछ यूँ है – इस दौर में किसान आत्महत्याओं और बलात्कार के मामले हद से ज्यादा सामने आए। महाराष्ट्र में सन् 2015 से 2018 के बीच तकरीबन 12 हजार किसानों ने आत्महत्याएँ कीं। सारी दुनिया की भूँख मिटाने वाला, धरतीपुत्र किसान को दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं हुई। यत्र – तत्र किसान – आन्दोलन हुए लेकिन तानाशाही सरकार से किसान अपना हक पाने में नाकामयाब रहे। मजदूरों की हालात भी बहुत बुरी रही। सूखे की मार से ग्रसित बुन्देलखण्ड हमेशा उपेक्षित रहा। किसानों – मजदूरों के बच्चोँ की अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई क्योंकि कुछेक को छोड़कर ज्यादातर सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की शिक्षा – व्यवस्था अस्त – व्यस्त रही। प्राईवेट शिक्षण – संस्थानों और कॉन्वेंट स्कूलों का हाल और बुरा रहा। छात्र – छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद रोजगार और नौकरी के लिए दर – दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। भारत में शिक्षित बेरोजगार युवाओं की भरमार हो गयी है। युवाओं को सरकारें सिर्फ जुमले दे रही हैं।

    सन् 2010 के बाद भारत के लिए आरक्षण घातक सिद्ध हो रहा है। आरक्षित लोग ही नौकरी – पेशा पाने में सफल हो रहे हैं। इसमें वो ही लोग हैं, जो कुछ हद तक सम्पन्न हैं लेकिन आज भी गरीब किसान – मजदूर और आदिवासियों के बच्चे आरक्षण नहीं पा रहे हैं क्योंकि देश में जागरूकता का अभाव है। अब भारत के हालात बहुत ठीक हो चुके हैं और अब समय आ गया है – आरक्षण को खत्म करने का। मोदी सरकार ने सन् 2018 -19 में 10% सवर्णों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था करी। आरक्षण देना अब भारत के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि विश्वगुरू भारत के निवासी वैसे ही प्रतिभाशाली होते हैं और आज के युवा तो 21वीं सदी के हैं, जो बहुत ज्यादा प्रतिभाशाली हैं।



    किसान - विमर्श पर मेरा लेख -  "किसान बचाओ - देश बचाओ" उल्लेखनीय है। जो इस प्रकार है -:

               हमारा देश भारत प्रमुख कृषिप्रधान देश है, यहाँ पर लगभग 70% आबादी कृषि कार्य पर निर्भर है। इसलिए मैं अपने देश को 'किसानों का देश' कहता हूँ। आजकल देश में किसानों की हालात बहुत बदत्तर हो गयी है। प्रकृति की मार, अतिवृष्टि ने किसानों की फसलों को चौपट कर दिया है। तेज वर्षा के साथ ओलों के गिरने से फसलें सर्वनाश हो गईं हैं। किसानों को खुदका पेट भरने के लिए अन्न उत्पादन करना मुश्किल पड़ रहा है।
                  आज भारत के आंध्र प्रदेश और बुन्देलखण्ड क्षेत्र में किसान अपनी फसल को चौपट देखकर आत्महत्या कर रहा है। सरकार इस घटना की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीँ दे रही है। सरकार को पीड़ित किसान को आर्थिक सहायता के रूप में फसल - सर्वेक्षण के आधार पर अधिक से अधिक मुआवजा देना चाहिए। सरकार को किसान के बिजली बिल और बैंक का ऋण माफ़ करना चाहिए।
                 हमारी भारत सरकार को किसानों की इस स्थिति पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि किसान ही देश की शान हैं। किसान ही खाद्यान्न, फल, सब्जियों आदि खाद्य - पदार्थों का उत्पादन करता है और सरकार इन खाद्य - पदार्थों का निर्यात विदेशों को करती है और काफी विदेशी मुद्रा कमाती है एवं आर्थिक कोष में बढ़ोत्तरी करती है।
                 किसान ही देश की जनता की भूँख मिटाते हैं इसलिए सरकार को किसानों के विकास की अनेक कल्याणकारी योजनाएँ बनानी चाहिए। जैसे - मुफ्त सिंचाई योजना, मुफ्त खाद योजना आदि। सरकार को देश में अनेक कृषि विद्यालय और विश्वविद्यालय खुलवाने चाहिए और किसानों को वैज्ञानिक तकनीक से कृषि कराने में मदद करनी चाहिए। सरकार को केन्द्रीय किसान आयोग और राज्य किसान आयोग का गठन करना चाहिए।
                जैसे सरकार भारी मुद्रा पार्क बनाने में, बड़े - बड़े राजनेता मूर्तियाँ बनवाने में, शादी, जन्मोत्सव, महोत्सवों में अरबों रुपये खर्च कर देते हैं। उन्हें ऐसा नहीँ करना चाहिए। सरकार और राजनेताओं को ये रुपये किसानों के विकास में खर्च करना चाहिए। सरकार को महँगाई कम करनी चाहिए।
               आज की तरह ही यदि किसान आत्महत्याऐं करते रहे तो हमें अन्न कौन देगा? और देश की अर्थव्यवस्था कैसे मजबूत होगी? भारत कैसे विकसित देश बनेगा? ऐसे हजारों प्रश्न उठते हैं। ऐसे प्रश्नों का जबाव सिर्फ और सिर्फ किसानों का विकास करना है और उन्हें किसी भी हालात में दुःखी नहीँ होने देना है। इसलिए तो मैं कहता हूँ कि 'किसान बचाओ - देश बचाओ।' किसान रहेंगे तो कृषि होगी और कृषि होगी तो अन्न होगा। अन्न होगा तो हम होंगे।
               किसानों पर स्वरचित पंक्तियाँ आपसे साझा कर रहा हूँ -:
                         'किसान'
    बारहों महीने जो खेतों में करता है काम।
    सच्चा किसान है उसका नाम।।
             खेतों को जोतता, बीज बोता,
             बीज उगकर जब तैयार हो जाता।
             तो फसल को सिंचित करता,
             खाद देता, दवाइयाँ देता।
    आदि करता है काम।
    सच्चा किसान है उसका नाम।।
              #कुशराज -: 20 मार्च 2015

    किसान - विमर्श पर मेरी कहानी - " रीना " इस प्रकार है -:

     
                        रीना भोर अपने आँगन में झाडू लगा रही थी। नाटे और गोरे बदन पर फटी - पुरानी साड़ी पहने, कड़ाके की ठण्ड से रोम - रोम खड़े हो रहे थे और वह मैला - कुचैला हल्का साल ओढ़े रोजाना का काम निपटा रही थी। उसने भुनसारें चार बजे डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित कुएँ से पीने और खर्च के लिए पानी भर लिया था क्योंकि घर के पास वाला हैण्डपम्प खराब पड़ा था।
                          पानी भरने के साथ ही गोबर इकट्ठा कर लिया था। जिससे झाडू से निपटने पर ईंधन हेतु कण्डे पाथे और डलिया लेकर तरकारी बेचने गाँव में निकल गयी। बड़ी मधुर आवाज दे रही थी - " बाई हरौ, भज्जा - बिन्नू  ले लो भटा; ताजे - ताजे हाले भटा। बीस रूपए में डेढ़ किलो, नाज  के बराबर।" माते भज्जा ने तीन किलो भटा खरीदे और मन्नू काकी ने नाज के बराबर। आज सवा सौ रूपए और चार किलो नाज की आमदनी हुई। हाथ - मुँह धोया और खाना पकाने बैठ गई। चना की दाल बनाई और जब रोटी सेंक रही थी तो लकड़ियों और भटन के डूठों का धुआँ आँखों में हद से बेजां लग रहा था। आँखे मडीलते - मडीलते लाल हो गईं, बड़ी मश्किल से रोटी सेंक पाईं।
                           इतने में पतिदेव शिम्मू हार से पिसी में पानी देकर लौट आए। ढाई बीघा के आधे खेत में पिसी लगी थी और आधे में तरकारियाँ और मटर। माघ की अँधेरी रात में शिम्मू गायों से खेत की रखवाली करते, उसी सस्ते और रद्दी कम्बल को ओढ़कर जो पिंटू नेताजी ने पिछले चुनाव में बाँटा था। हल्की सी टपरिया डाले, मूँगफली के टटर्रे से तापते - तापते रात गुजारते। दिन में कलेवा करके खेत में लग जाते, कभी रीना के साथ तरकारियाँ तोड़वाते तो कभी पिसी में खाद देते।
                           रीना डाँग में बकरियाँ चराने निकल जाती। दोपहर का भोजन न करके कन्दमूल फलों से गुजारा करती। देर रात तक बड़े बेटे करन के साथ जागती रही थी क्योंकि वह डाकिया की परीक्षा देने झाँसी जा रहा था। इसलिए उसको नींद आ गयी और तीन पागल कुत्तों ने उसकी एक बकरी को तोड़ दिया। बिलखती हुई आज जल्दी घर आ गई। शाम को पतिदेव ने उसे बहुत डाँटा और अगले सुबह तीनों बकरियाँ खटीक को बेच दी गईं। अब बाल - बच्चे दूध से भी बंचित हो गए। ये बकरियाँ ही उनकी गायें थीं।
                        छोटा बेटा वरुन बगल के गाँव में एक हॉटल में बर्तन धोने का काम बड़ी जिम्मेदारी से करता। वह सिर्फ कक्षा छह तक पढ़ा है। वह हमेशा कहता - " अम्मा! बड़े भज्जा पढ़ जाएँ, हम तो ऐसे ही ठीक हैं।" करन वरुन से बहुत प्यार करता। वह किसी भी परिस्थिति में उसे दुःखी नहीँ होने देता। करन ने बीस किलोमीटर साईकिल भांजकर इण्टर तक पढाई पूरी की और डाकिया बन गया। वरुन बेचारा अब भी जूठी प्लेटें धोता और अम्मा - पापा खेत में दिनरात लगे रहते हैं।
                      रीना दूसरों के खेतों में मजूरी करती और कभी बेलदारी करके अपनी लाड़ली पिंकी के विवाह हेतु धन इकट्ठा करती। हफ्ते में एक बार जंगल में लकड़ियाँ काटने जाती। शाम को चिलमी जलाकर अपने कच्चे - खपरैल घर में उजाला करके रात का खाना पकाती। एकसाथ सब प्रेम से खाना खाते और शिम्मू रोजाना की भाँति खेत की रखवाली हेतु हार को निकल जाते। लाड़ली का वैशाख में विवाह आ गया। लड़के वालों ने डेढ़ लाख का दहेज माँगा है। करन की नौकरी को अभी चार महीने ही हुए हैं। घर में जैसे - तैसे एक लाख रूपए का बंदोबस्त हुआ और पचास हजार तीन प्रतिशत प्रति सैकड़ा की मासिक दर से नमेश सेठ से कर्जा लेकर लाड़ली का विवाह किया।
                      पिंकी की सास सुबह - शाम ताने मारती और छोटी - छोटी बातों पर झगड़ती रहती। बार - बार कहती - " तेरे बाप ने फ्रिज नहीँ दिया, वॉशिंग मशीन नहीँ दी।" खाने में भी कानून करती - " तरकारी में तेल ज्यादा डाल दिया, नमक का तो स्वाद ही नहीँ है।"  पिंकी को भरपेट खाना भी नहीँ खाने देती। वह चिंता में रात को बिना खाए ही सो जाती। एक साल के अंदर पिंकी का पति भी उसकी मारपीट करने लगा। वह अपनी पड़ोस की युवती ऋतु के प्रेमजाल में फँसा था। उसे पिंकी की बिल्कुल भी परवाह नहीँ थी, वह उसे घर की नौकरानी से बदत्तर समझता था। डेढ़ साल के अंदर पिंकी ने दुष्ट पति और कपटी सास से तंग आकर पंखे से लटककर अपनी इहलीला समाप्त कर ली।
                     करन की भी नौकरी छूट गई क्योंकि ग्रामप्रधान ने रिश्वत देकर उसकी जगह अपने बेटे की नौकरी लगवा दी। रीना के घर पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। शिम्मू बेचारा, सीधा - साधा बुंदेली किसान पिंकी के ससुराल वालों का कुछ न बिगाड़ सका। पिंकी के मरने के चार साल बाद करन का गरीब लड़की से संबंध तय हुआ। विवाह में दहेज की तो दूर की बात, बहु के रिश्तेदारों के स्वागत - सत्कार की व्यवस्था शिम्मू ने ही की। शिम्मू तीन - चार लाख के कर्ज में डूब गया। पिछले दो साल से भयंकर सूखा पड़ रही थी। सारा परिवार दाने - दाने के लिए मुहताज हो गया। कुछ गाँववासी मजूरी करने दिल्ली निकल गए तो कुछ अपने दूर के रिश्तेदारों के यहाँ रोजगार करने लगे। नमेश सेठ बार - बार शिम्मू से कर्ज चुकाने  के लिए गालीगलौच करता। शिम्मू डर जाता और मंगलवार को टेंशन में आकर इमली से लटककर फाँसी लगा लेता और कर्ज में ही अपने और किसान भाईयों की भाँति वही कहानी दुहराता।

    ✍ कुशराज झाँसी_ 18/12/18_01:02pm

    किसान - विमर्श पर मेरी विकासवादी कविता : सब समान हों... इस प्रकार है-:

    चाहे हों दिव्यांग जन
    चाहे हों अछूत
    कोई न रहे वंचित
    सबको मिले शिक्षा
    कोई न माँगे भिक्षा

    दुनिया की भूख मिटानेवाला
    किसान कभी न करे आत्महत्या
    किसी पर कर्ज का न बोझ हो
    सबके चेहरे पर नई उमंग और ओज हो

    न कोई ऊँचा
    न कोई नीचा
    सब जीव समान हों
    हम सब भी समान हों

    न कोई बनिया नाजायज ब्याज ले
    न कोई कन्यादान के संग दहेज ले
    कोई बहु - बेटी पर्दे में न रहे
    सबको दुनिया की असलीयत दिखती रहे

    कोई न स्त्री को हीन माने
    वह साहस की ज्वाला है
    अब तक वह चुप रही
    तो हुआ ये

    सिर्फ मानवता की हीनता
    और हैवानियत का चरमोत्कर्ष
    अब सब कुरीतियों - असमानताओं को मिटाना है
    मानवता और विश्व शांति लाना है...

    ✒ कुशराज झाँसी

    _14/1/2019_11:56 रात _ झाँसी बुन्देलखण्ड

    “कुरीतियों, असमानताओं को मिटाकर मानवता और विश्व शांति लाना है” https://www.youthkiawaaz.com/2019/06/we-need-a-equality-based-society-hindi-poem/#.XSpM0UXWFMI.whatsapp

     कुशराज झाँसी
        
    _26/12/2018_11:49 दिन_ झाँसी बुंदेलखंड

    (ब्लॉग - कुशराज की रचना, दुनिया के किसानों एक हो - कुशराज...)


    #कुशराज
    #किसान
    #भारतीयकिसान
    #किसानविमर्श
    #किसानसाहित्य
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    #किसानसाहित्यकार
    #खेती
    #किसानी
    #गाँव
    #kushraaz
    #farmer
    #kisan
    #KisaanVimarsh
    #KisaanSahitya
    #KisaanLekhak
    #farming
    #Village
    #IndianFarmers

    भारत में किसानों को उनके परिश्रम का फल कब मिलेगा - कुशराज झाँसी

    लेख - " भारत में किसानों को उनके परिश्रम का फल कब मिलेगा ? "




    जबसे इस धरती पर जीवन की उत्पत्ति हुई है, तब से किसान खेती करके खाद्य-सामग्री उत्पादित कर रहे हैं। यानी किसान ही सारी दुनिया के लिए भोजन हेतू खाद्यान्न, फल, सब्जियां और चारे का उत्पादन करते आ रहे हैं।

    इन धरती पुत्र किसानों को अन्नदाता भी कहा जाता है लेकिन मैं इन्हें दूसरा जीवनदाता कहता हूं। यदि किसान खेती-किसानी नहीं करेंगे तो खाद्यान्नों का उत्पादन नहीं होगा और जब खाद्यान्नों का उत्पादन नहीं होगा तो हमारे भोजन की भी व्यवस्था नहीं होगी। बिना भोजन के हमारा जीवित रहना असंभव ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। यदि हम भोजन नहीं करेंगे तो भूखे मर जाएंगे और कुछ भी नहीं कर पाएंगे।

    कभी अकाल की मार तो कभी प्रलयकारी बाढ़

    आज हमारे देश भारत में ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया में सबसे ज़्यादा दुर्दशा किसानों की ही है। किसान सबके लिए तो अन्न उगा रहे हैं लेकिन खुद भूखे मरने के लिए विवश हैं। किसान अपनी फसलों से इतना नहीं कमा पाते हैं कि वह अपने परिवार के लिए ठीक-ठाक कपड़ों और शिक्षा का प्रबंध कर सकें।

    किसान दिन-रात एक करके अन्न उपजाते हैं, वह ना जेठ मास की तमतमाती धूप देखते हैं और ना ही माव-फूस की कड़ाके की ठंड। किसान जितना परिश्रमी और धैर्यवान कोई नहीं है फिर भी किसान सुखी नहीं है। कभी वह भयानक अकाल की मार से मारा जाता है तो कभी प्रलयकारी बाढ़ से। इन आपदाओं से ज़्यादा तो किसान कर्ज़ के बोझ से आत्महत्या करने में मजबूर होते हैं।

    किसान विरोधी सरकार

    अब तक की अधिकतर सरकारें किसान विरोधी रही हैं। सरकारों ने कभी किसानों का भला नहीं करना चाहा है और शायद इसलिए देश अब तक पीछे है। सरकारी और प्रशासनिक व्यवस्था किसान को ही हमेशा हर प्रकार से लूटती रही है और दमनकारी रवैया चलाती रही है लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा। अब मेरे जैसे किसानों के बेटे जागरूक हो गए हैं और किसान भी एकजुट हो गए हैं। वह अपने अधिकारों की आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो गए हैं।

    बाज़ारवाद के इस दौर में किसान अपनी फसलों के चार-पांच गुणा मूल्य पाने के लिए परिवर्तनवादी आंदोलन कर रहे हैं और अपनी हालात बेहतर करके विश्व कल्याण में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। इन किसानों कि विचारधारा परिवर्तनवाद का नारा है कि दुनिया के किसानों एक हो।

    किसानों को अब समाज, साहित्य, राजनीति और सिनेमा में अगल से सम्मानीय दर्ज़ा दिया जाए। दुनिया के हर स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की हर कक्षा के पाठ्यक्रमों में किसान-साहित्य और किसान-विमर्श को अनिवार्यता के साथ शामिल किया जाए क्योंकि किसानों के बिना यह दुनिया नहीं चल सकती इसलिए किसानों की हर मांग को पूरा किया जाए।
     
    किसान-साहित्य की परिभाषा

    मेरे अनुसार किसान-साहित्य की परिभाषा इस प्रकार है- “किसान के जीवन पर लिखा गया अनुभूतिपरक एवं स्वानुभूतिपरक साहित्य ही किसान-साहित्य है और ऐसा विमर्श जिसमें किसानों हर मनोदशा, भावना और अधिकारों की अभिव्यक्ति हुई हो, वह किसान-विमर्श है।”
    तथाकथितों द्वारा ऐसा माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में भारत, नवभारत- विकसित भारत बनकर उभरा और देश में विकास की गंगा बही लेकिन हकीकत यह है कि इस दौर में किसान आत्महत्याओं और बलात्कार के मामले हद से ज़्यादा सामने आए।

    किसानों की आत्महत्या और बेरोज़गार युवा

    महाराष्ट्र में सन् 2015 से 2018 के बीच तकरीबन 12 हज़ार से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्याएं की। सारी दुनिया की भूख मिटाने वाला धरती पुत्र को दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं हो रही है। यत्र-तत्र किसान आन्दोलन हुए लेकिन तानाशाही सरकार से किसान अपना हक पाने में नाकामयाब रहे।

    मज़दूरों की हालात भी बहुत बुरी रही। सूखे की मार से ग्रसित बुंदेलखंड हमेशा उपेक्षित रहा। किसानों और मजदूरों के बच्चोँ को अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई क्योंकि कुछ को छोड़कर ज़्यादातर सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था अस्त-व्यस्त रही।

    प्राईवेट शिक्षण-संस्थानों और कॉन्वेंट स्कूलों का हाल और बुरा रहा। छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद रोज़गार और नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। भारत में शिक्षित बेरोज़गार युवाओं की भरमार हो गई है, युवाओं को सरकार सिर्फ जुमले दे रही हैं।

    भारत के लिए घातक आरक्षण

    भारत के लिए आरक्षण घातक सिद्ध हो रहा है, आरक्षित लोग ही नौकरी पाने में सफल हो रहे हैं। इसमें वह ही लोग हैं, जो कुछ हद तक सम्पन्न हैं लेकिन आज भी गरीब किसान, मजदूर और आदिवासियों के बच्चे आरक्षण नहीं पा रहे हैं क्योंकि देश में जागरूकता का अभाव है।

    अब भारत के हालात बहुत ठीक हो चुके हैं और अब समय आ गया है कि आरक्षण को खत्म किया जाए। मोदी सरकार ने सन् 2018-19 में 10% सवर्णों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की थी लेकिन आरक्षण देना अब भारत के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि विश्व गुरू भारत के निवासी वैसे ही प्रतिभाशाली होते हैं और आज के युवा तो 21वीं सदी के हैं, जो बहुत ज़्यादा प्रतिभाशाली हैं।

    हमारा देश भारत प्रमुख कृषि प्रधान देश है और यहां लगभग 70% आबादी कृषि कार्य पर निर्भर है इसलिए मैं अपने देश को किसानों का देश कहता हूं। आजकल देश में किसानों की हालात बहुत बदत्तर हो गई है। प्रकृति की मार और अतिवृष्टि ने किसानों की फसलों को चौपट कर दिया है। तेज़ वर्षा के साथ ओलों के गिरने से फसलें सर्वनाश हो गई हैं। किसानों को अपना पेट भरने के लिए भी अन्न उत्पादन करना मुश्किल हो गया है।

    सरकार को उठाने चाहिए कदम

    आज बुंदेलखंड क्षेत्र में किसान अपनी फसल को चौपट देखकर आत्महत्या कर रहे हैं मगर सरकार इस घटना की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है।

    सरकार को पीड़ित किसान को आर्थिक सहायता के रूप में फसल-सर्वेक्षण के आधार पर अधिक से अधिक मुआवजा देना चाहिए।
    इसके साथ ही सरकार को किसानों का बिजली बिल और बैंक का ऋण माफ करना चाहिए।
    भारत सरकार को किसानों की इस स्थिति पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि किसान ही देश की शान हैं। किसान ही खाद्यान्न, फल और सब्जियों आदि खाद्य-पदार्थों का उत्पादन करता है और सरकार इन खाद्य-पदार्थों का निर्यात विदेशों को करती है और काफी विदेशी मुद्रा कमाती है एवं आर्थिक कोष में बढ़ोत्तरी करती है।
    किसान ही देश की जनता की भूख मिटाते हैं इसलिए सरकार को किसानों के विकास की अनेक कल्याणकारी योजनाएं बनानी चाहिए। जैसे- मुफ्त सिंचाई योजना और मुफ्त खाद योजना आदि। सरकार को देश में अनेक कृषि विद्यालय और विश्वविद्यालय खुलवाने चाहिए और किसानों को वैज्ञानिक तकनीक से कृषि कराने में मदद करनी चाहिए। सरकार और राजनेताओं को रुपये किसानों के विकास में खर्च करना चाहिए। सरकार को महंगाई कम करनी चाहिए।

    आज की तरह ही यदि किसान आत्महत्याएं करते रहे तो हमें अन्न कौन देगा? देश की अर्थव्यवस्था कैसे मजबूत होगी? भारत कैसे विकसित देश बनेगा? ऐसे हज़ारों प्रश्न उठते हैं।

    ऐसे प्रश्नों का जवाब सिर्फ और सिर्फ किसानों का विकास करना है और उन्हें किसी भी हालात में दुःखी नहीं होने देना है इसलिए तो मैं कहता हूं, किसान बचाओ-देश बचाओ। किसान रहेंगे तो कृषि होगी और कृषि होगी तो अन्न होगा, अन्न होगा तो हम होंगे।

    किसानों पर स्वरचित पंक्तियां आपसे साझा कर रहा हूँ - 

                        ‘किसान

    बारहों महीने जो खेतों में करता है काम।
    सच्चा किसान है उसका नाम।

    खेतों को जोतता, बीज बोता,
    बीज उगकर जब तैयार हो जाता,
    तो फसल को सिंचित करता।
    खाद और दवाइयां देता

    आदि करता है काम।
    सच्चा किसान है उसका नाम।

    #कुशराज- 20 मार्च 2015

    किसान-विमर्श पर मेरी विकासवादी कविता : सब समान हों। इस प्रकार है-

    चाहे हो दिव्यांगजन,
    चाहे हो अछूत,
    कोई ना रहे वंचित
    सबको मिले शिक्षा
    कोई ना मांगे भिक्षा।

    दुनिया की भूख मिटाने वाला,
    किसान कभी ना करे आत्महत्या।
    किसी पर कर्ज़ का ना बोझ हो
    सबके चेहरे पर नई उमंग और ओज हो।

    ना कोई ऊंचा
    ना कोई नीचा
    सब जीव समान हो
    हम सब भी समान हो।

    ना कोई बनिया नाजायज ब्याज ले,
    ना कोई कन्यादान के संग दहेज ले,
    कोई बहू-बेटी पर्दे में ना रहे,
    सबको दुनिया की असलीयत दिखती रहे।

    कोई ना स्त्री को हीन माने
    वह साहस की ज्वाला है।
    अब तक वह चुप रही
    तो हुआ यह,
    सिर्फ मानवता की हीनता,
    और हैवानियत का चरमोत्कर्ष।

    अब सब कुरीतियों-असमानताओं को मिटाना है,
    मानवता और विश्व शांति लाना है।

    कुशराज झाँसी

    _17/10/2019_ 2:45 रात _ झाँसी बुन्देलखण्ड


    https://www.youthkiawaaz.com/2019/10/condition-of-indian-farmers-hindi-article/





    Thursday 17 October 2019

    परिवर्तनकारी कुशराज की कॉलेज डायरी - गुरूवार, 17 अक्टूबर 2019, दिल्ली


    " परिवर्तनकारी कुशराज की कॉलेज डायरी -  गुरूवार, 17 अक्टूबर 2019, दिल्ली "



    प्रिय क्रान्ति,

    मैं आज सुबह साढ़े नौ पर सोकर उठा तब तक एक क्लास का समय निकल चुका था। जल्दी - जल्दी बिना नहाए तैयार हुआ और नेहरू विहार बस स्टैण्ड से ई-रिक्शा पकड़कर विश्वविद्यालय मैट्रो स्टेशन पहुँचा। रिक्शे में पाँच लोग बैठते हैं और इसमें तीन ही बैठे, तो रोड पर गड्ढे होबे के कारण आज दचका कुछ ज्यादा ही लगे। मैट्रो गेट नम्बर 1-2 से 3-4 की ओर जाने के लिए हाईवे पर करना पड़ता है। बस, कार, ट्रैक और बाइक्स का लम्बा जाम होने के कारण इस पार से उस पार जाने में पन्द्रह मिनट लग गए। देश की राजधानी, महानगर दिल्ली में ट्रैफिक जाम लगना आम बात है। यातायात नियमों के मुताबिक गाड़ी चलाने की स्पीड और आत्मसुरक्षा के साधन निश्चित किए गए हैं फिर भी लोग हाई - स्पीड में बिना हेलमेट के ही गाड़ी चलाते हैं और जाने - अनजाने में दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। आज के युवा और युवतियाँ तो फोन पर बात करते हुए और ध्रूमपान के साथ - साथ कुछ नशे में गाड़ी चलाते हैं और फिर इसका इल्जाम भुगतते हैं। गेट नम्बर 3-4 पर ई-रिक्शों की भारी संख्या होने के बावजूद मुझे  वहाँ से अपने कॉलेज, हंसराज कॉलेज जाने के लिए रिक्शा नहीं मिला क्योंकि अधिकतर रिक्शे गर्ल्स कॉलेज, दौलतराम और मिराण्डा हाऊस की सवारियाँ बैठा रहे थे, जो कॉलेज हंसराज स्व पहले पड़ते हैं। तो हमें थोड़ा दूर चलकर मैनरोड से रिक्शा लेना पड़ा। रास्ते में मैंने देखा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी की वॉल ऑफ डेमोक्रेसी पर छात्र राजनैतिक पार्टी, क्रांतिकारी युवा संगठन - KYS के पर्चे चिपके हुए थे। जिन पर लिखा हुआ था - स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग - SOL और दिल्ली विश्वविद्यालय - DU ने मिलकर SOL में भी स्टूडेंट्स को बिना अवगत कराए हुए DU की भाँति CBCS, सेमेस्टर परीक्षा सिस्टम लागू किया है। जो स्टूडेंट्स के लिए अन्याय है। और आगे लिखा था - UGC के रवैए पर हल्ला बोल, छात्र - छात्राओं के साथ अत्याचार नहीं सहेंगे...

    KYS का छात्र-आन्दोलन करना उचित है। आंदोलन होने भी चाहिए क्योंकि क्रांति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं। देश की टॉप यूनिवर्सिटीज में छात्र - छात्राओं के साथ ज्यादा ही अन्याय हो रहे हैं। कभी बेबजह फीस बढ़ा दी जाती है तो कभी सिलेबस बदल दिया जाता है। और लड़कियों को हॉस्टल से रात में बाहर जाने पर पाबंदी लगाई जाती है जबकि लड़के रात - रात भर हॉस्टल से बाहर कैम्पस में आजाद घूमते हैं। DU की छात्राओं ने कुछ दिनों पहले अपनी आजादी के लिए और पाबंदियों को हटाने के लिए 'पिंचड़ा तोड़ो आन्दोलन' किया था। जो आज के लिए परम आवश्यक है।

    आगे चलकर आर्ट्स फैकल्टी पुलिस बैरिकेट लगे हुए थे और चार ट्रैफिक पुलिस वाले वाहनों की चैकिंग कर रहे थे। मेरे रिक्शे के जस्ट पीछे स्कूटी से आने वाली सुन्दर युवती हेलमेट को लगाने  के बजाय हाथ में लटकाए हुए थी तो पुलिस ने उसे रोका और डाँटा। रिक्शे ड्राइवर के बगल में ही मैं बैठा था तो ड्राइवर ने कहा - मैडम, हेलमेट क्यों लगायेंगी, इन्हें तो अपनी सूरत दिखानी होती है...

    रिक्शे ने हंसराज हॉस्टल गेट पर ही उतार दिया। 10:40 से 11:40 तक 'अस्मितामूलक विमर्श और हिन्दी साहित्य' विषय की क्लास ली। डॉ० प्रेमप्रकाश मीणा सर ने स्त्रीविमर्शवादी कविता " मैं किसकी औरत हूँ।" का अध्यापन कराया। जिसकी रचयिता सविता सिंह हैं। कविता की मूलसंवेदना यह है कि पितृसत्तात्मक समाज में औरत की खुदकी कोई पहचान नहीं है। यहाँ उसे सिर्फ और सिर्फ एक उपभोग की वस्तु माना जाता है और इससे ज्यादा कुछ नहीं। एक औरत को हमेशा किसी की पत्नी, बहिन, बेटी के नाम से ही जाना जाता है। जबकि सविता सिंह इस पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं और कहती हैं कि मैं किसी की औरत नहीं हूँ। मैं अपना खाती हूँ। जब जी चाहता है तब खाती हूँ। मैं किसी की मार नहीं सहती... एक औरत को अपनी पहचान खुद बनानी होगी बिल्कुल आत्मनिर्भर और सशक्त बनकर तभी इस समाज का कल्याण हो सकेगा और व्यवस्था में सामंजस्य बन सकेगा।

    11:40 से 12:40 तक 'पाश्चात्य काव्यशास्त्र' विषय की क्लास ली। इसमें डॉ० नृत्यगोपाल शर्मा सर ने 'मिथक' के बारे में समझाया। उन्होंने कहा कि कुछ बजहों से मिथक जैसे रामायण, महाभारत और इतिहास जैसे आधुनिक भारत का इतिहास भिन्न - भिन्न होते हैं। जबकि कल मैंने सर से डिबेट की और सिद्ध करने  की कोशिश की कि मिथक भी इतिहास है। मैं मिथक को भी इतिहास मानता हूँ और सबको मानना भी चाहिए क्योंकि राम-मन्दिर अयोध्या और बाबरी मस्जिद के बीच के विवादों को कोई झुठला नहीं सकता...

    12:40 से 01: 00 के बीच लंच हुआ तब हम दोस्तों के साथ कैण्टीन गए तब मैंने देखा कि मेरी प्रेयसी क्रान्ति सिंह अपने क्लासमेट्स के साथ लंच कर रही है। जो आज पिंक टॉप और क्रीम जीन्स पहने थी और पिंक कलर का ही बैग लायी थी क्योंकि इसे मैंचिंग बहुत पसन्द है। इस प्रेयसी से मेरी कुछ दिनों से बात नहीं है जो शायद ठीक ही है क्योंकि आज का जमाना ऐसा ही चल रहा है। और कॉलेज लाइफ में तो प्रेमी - प्रेमिकाओं के रिलेशन मुश्किल से अधिकतम साल - छः महीने तक ही चल पाते हैं और इससे भी बड़ी बात यह है कि दिल्ली जैसे शहरों में एक लड़के की कई गर्लफ्रैंड और एक लड़की के कई बॉयफ्रेंड रहते हैं। जो मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं। मैं अपने जीवन मैं सिर्फ एक गर्लफ्रैंड चाहता हूँ और वो भी प्रिन्सेस जैसी। साहसी, निडर, जीनियस और आन्दोलनकारी लड़की...

    लंच में हम लोगों ने रोटी - सब्जी, मसाला डोसा और अण्डा - चाऊमीन लिया और फिर सारे दोस्त अलग - अलग हो गए और मैं लाइब्रेरी गया जहाँ से चार किताबें घर के लिए इसू करवायीं। जिनमें साहित्य, सिनेमा, समाज, मीडिया , सोशल मीडिया और विमर्श जैसे विषय समाहित हैं। लगभग 2 बजे कॉलेज के मैनगेट से ई-रिक्शा लिया और विश्वविद्यालय आ पहुँचा। वहाँ 20₹ के अन्नानास खाए और फिर दूसरा रिक्शा पकड़कर नेहरू विहार आ गया। जहाँ मेरा फ्लैट छटवें फ्लोर पर है। फ्लैट तक तकरीबन 80 - 90 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। इतनी ऊँची चढ़ाई में सबकी हालात पस्त हो जाती है। ये है हम युवा स्टूडेंस्ट्स का संघर्ष...।।

      आपका, कुशराज
      झाँसी बुन्देलखण्ड






    Sunday 13 October 2019

    अब ऐसा ही होगा - कुशराज झाँसी

    कविता - " अब ऐसा ही होगा "

    ( सुपर 30 फिल्म पर विशेष.....)



    अब ऐसा कतई नहीं होगा...
    हम तुमाए इतै मजूरी नहीं करेंगे
    हम तुमाई बातों के झमेलों में नहीं फँसेंगे
    हम भी आंनद कुमार की फ्री आईआईटी कोचिंग में पढ़ने जाएँगे
    हम भी चाँद पर जाएँगे
    तुम भी ताकते रह जाओगे मेरा मुँह...

    अब ऐसा ही होगा...
    अब राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा
    राजा वही बनेगा जो हकदार होगा
    हम सारी व्यवस्थाओं से टकराऐंगे
    तुमाई बनी बनाई परिपाटी को तोड़ेंगे
    हम मजदूर - किसान के बच्चे हुए
    तो क्या हुआ???
    हम भी इंजीनियर और साइन्टिस्ट बनेंगे...

    अब ऐसा ही होगा...
    सारी दुनिया देखेगी
    ये चमत्कार
    बदलती हुई मानसिकता
    बदलता हुआ समाज
    भृष्टों की पराजय
    और श्रेष्ठों की जय - जय
    तुम भी नाज करोगे हम पर...

    अब ऐसा ही होगा...
    कोई भी धनाभाव में कैम्ब्रिज छोड़ने को न होगा मजबूर
    न ही किसी जीनियस की गर्लफ्रैंड ब्रेकअप करेगी
    वो भी अपने जीनियस का साथ निभाएगी
    अब ऐसे नेता नहीं रहेंगे
    जो प्रशासन की मिलीभगत से कालेधन्धे चलाते हैं
    न ही जीनियस को जान से मारने वाले बचेंगे
    बचेंगे वही 'वीर भोग्यम् वसुंधरा' वाले परोपकारी इंसान
    अब ऐसा ही होगा...।।

    ✒ कुशराज झाँसी

    (पूर्व महासचिव : हिन्दी साहित्य परिषद् , हंसराज कॉलेज)

      
    _18/9/2019_01:49 दिन _ दिल्ली


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