Friday 15 November 2019

लेख -: आजकल के युवा - युवतियाँ, प्यार और भारत




                 आजकल हम देखते हैं कि भारतीय संस्कृति के केन्द्र माने जाने वाले दिल्ली, मुम्बई जैसे महानगरों के साथ ही हमारे भारत देश के छोटे - बड़े शहरों में पाश्चात्य संस्कृति यानि वेस्टर्न कल्चर बहुत तेजी से अपनायी जा रही है। जिसके कारण भारतीय समाज को कई नुकसान झेलने पड़ रहे हैं और कई नुकसान झेलने पड़ सकते हैं। भारतीय समाज के लिए सबसे बड़ा नुकसान फैशन, नशा, सेक्स और बाजार का शिकार होना है और अपनी भारतीय संस्कृति को छोड़ने का है। कहते हैं कि सिर्फ साहित्य ही नहीं सिनेमा भी समाज का दर्पण है। वो सिनेमा जिसमें आईटम सॉन्ग और डांस कुछेक समकालीन फिल्मों को छोड़कर हर एक में दिखाए जाते हैं। हीरोइन (एक्ट्रेस) को विज्ञापनों और वस्तुओं के कवरों पर वस्तु की तरह पेश किया जा रहा है या हीरोइन खुद पेश हो रहीं हैं। हीरोइन मॉडलिंग के नाम पर अपना देह प्रदर्शन के अलावा कुछ नहीं कर रहीं हैं। वो अपने देह को बेचकर पैसा कमा रहीं हैं। फिल्मों में हीरोइन सिर्फ हीरो की शारीरिक जरूरतों को पूरी करती हुईं नजर आ रहीं हैं। मेरे और भारतीय संस्कृति के हिसाब से ऐसा कतई नहीं होना चाहिए। 


ऐसा भी सुना और माना जाता है कि पितृसत्ता बाहुल्य वाले क्षेत्रों सिनेमा, साहित्य, मीडिया, बिजनेस और पॉलिटिक्स में स्त्री को सबसे पहले डायरेक्टर, एक्टर, एडिटर, प्रकाशक, बोस और नेता को अपनी शारीरिक सेवा देनी होती है यानि सेक्स तक करवाना होता है। इसमें प्यार का तो नामोनिशान ही नहीं होता। सिर्फ अपना काम निकालने के लिए ये सब कुछ किया - कराया जाता है। तब कहीं जाकर स्त्री अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो पाती है। जिसे हम बिल्कुल भी ठीक नहीं मानते हैं।



आजकल हम देख रहे हैं कि 21वीं सदी, जो परिवर्तन और विकास की सदी है, में सारी दुनिया में हमारा भारत देश सबसे युवा देश बनकर उभरा है यानी सबसे ज्यादा युवा शक्ति हम ही हैं। लेकिन सोचनीय और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि युवा और युवतियाँ फैशन, धूम्रपान, नशे और सेक्स की लत के शिकार होते नजर आ रहे हैं। देश की बेजिम्मेदार और तानाशाही सरकार की बदौलत देश के बाजार में चीन और पश्चिमी देशों में बने फैशनेबल वेस्टर्न कपड़े और वस्तुएँ महँगे दामों में धड़ल्ले से बिक  रही हैं। इन वेस्टर्न कपड़ों में लड़कियों का पूरा शरीर तक नहीं ढका होता है। कुछ तो सेक्सी दिखने के लिए ऐसे कपड़े इस्तेमाल करती हैं। इस होड़ में लड़के भी बिल्कुल कम नहीं हैं, वो भी हैण्डसम बनने के चक्कर में सिगरेट तक फूँकने लगते हैं। दिल्ली - बम्बई में तो कॉलेज की लड़कियाँ तक सिगरेट फूँक रहीं हैं। सिर्फ इतना ही नहीं अपने बॉयफ्रेंड के साथ गाँजा, ड्रग्स भी ले रहीं हैं। जो इन सबके के लिए जानलेवा है और समाज की सबसे बड़ी समस्या।



दिल्ली में कॉलेज लाइफ में और सिविल सर्विसेज की तैयारी के बीच में फैशन, नशा और सेक्स के शिकार ज्यादातर लड़के - लड़कियाँ हो रहे हैं। कॉलेज और कोचिंग में झूठे प्यार का नाम देकर लड़के लड़कियाँ एक - दूसरे को पटा लेते हैं और सेक्स एवं यौन शोषण करके छोड़ भी देते हैं। जिसमें टिंडर, सोशल मीडिया और फोन बड़ी अहम भूमिका निभा रहे हैं। यहाँ लड़कों की सेक्स के सुख की अनुभूति के लिए जनरली तीन - चार गर्लफ्रैंड होती हैं और लड़कियों के पाँच - छः बॉयफ्रेंड क्योंकि चाणक्यनीति के अनुसार लड़कियों में सेक्स पॉवर लड़कों से आठ गुना अधिक होती है। इस सेक्स पॉवर का इस्तेमाल तो लड़कियाँ गलत धंधे के लिए कर रही हैं। कुछ कॉलगर्ल बन रहीं हैं तो कुछ वेश्याएँ। कॉलगर्ल कल्चर और वेश्यावृत्ति से नुकसान लड़कियों और लड़कों दोनों को समान हैं। एक ओर लड़के सेक्स के लिए हजारों रूपए खर्च कर देते हैं और साथ ही शारीरिक - मानसिक कमजोरी का दंश भी झेलते हैं और ठीक से पढ़ाई - लिखाई न कर पाने के कारण अपने कैरियर के साथ खिलवाड़ करते हैं। इसके अलावा अपने परिवार और समाज को भी धोखा देते हैं। एक समय बाद ऐसे भोगविलासी और नशेड़ी लड़कों की समाज में न तो कोई इज्जत बचती है और न ही कोई काम - धंधा मिलता है। इनमें से कुछ की हत्या कर दी जाती है और कुछ आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं। दूसरी ओर कॉलगर्ल और वेश्यावृत्ति का धन्धा करने वाली लड़कियों के साथ इन लड़कों से भी बुरा सलूक होता है। ये भी नशे की लत में पड़ जाती हैं और जीवन में अनेकों जानलेवा बीमारियों का सामना करती हैं। ज्यादा सेक्स करने के कारण शरीर को मानसिक और भौतिक कष्ट देने के अलावा अपनी सुंदरता और पहचान भी खो देती हैं। समाज में इनके साथ जानवरों से भी बुरा व्यवहार किया जाता है। इन्हें लोग साली रण्डी है रण्डी, धन्धे वाली है जैसी गालियाँ देते हैं। इनका समाज में वस्तु की तरह यूज़ किया जाता है। इनकी कोई भी इज्जत नहीं करता है सिर्फ अपना काम निकाल कर चल जाता है।



आज के इन फैशन, नशा और सेक्स के शिकार युवा - युवतियों को फैशन, नशा और सेक्स से बचाने का सरकार को और हम सबको यही उपाय करने चाहिए कि देश में जूनियर हाईस्कूल से लेकर पोस्टग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में सेक्स एजुकेशन यानि यौन शिक्षा नामक विषय अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाना चाहिए। सरकार को विदेशी वस्तुओं की देश के बाजार में बिक्री पर रोक लगानी चाहिए और स्वदेशी वस्तुओं एवं भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। धूम्रपान और नशीले पदार्थों के उत्पाद पर पूर्णतः रोक लगानी चाहिए, इसके लिए धूम्रपान सामग्री और नशीले पदार्थों का उत्पादन करने वालीं सारी सरकारी और प्राईवेट कम्पनियों को बंद कर देना चाहिए और इन कम्पनियों को खाद्य - उत्पाद कम्पनी के रूप में तब्दील कर देना चाहिए। सबको शिक्षा मिलना चाहिए और जन - जागरूकता का बिल्कुल अभाव नहीं होना चाहिए। ऐसे मेरे सपनों के समाज का निर्माण करने के लिए जनता को एकबार सशक्त क्रान्ति करनी होगी तभी नशामुक्त, सुरक्षित, शिक्षित और सशक्त भारत का निर्माण होगा और हमसब हरदम हर्षपूर्ण जीवन जिएँगे...।


परिवर्तनकारी कुशराज
       झाँसी बुन्देलखण्ड
   15/11/2019_7:12पूर्वान्ह


Saturday 2 November 2019

परिवर्तनकारी कुशराज की कॉलेज डायरी : गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019, दिल्ली



प्रिय क्रान्ति,

आज मन मे बैचेनी हो रही थी और हाथ - पाँव बहुत दर्द कर रहे थे। पिछले दिनों से इस दिल्ली में वायु - प्रदूषण का कहर इस तरह छाया हुआ है कि साँस लेना भी मुश्किल हो रहा है। आँखों मे जलन ही रही है और दम घुट रहा है इस स्मॉग से। 





इस दीपावली पर सरकार ने आतिशबाजी करने पर रोक लगाई और आदवश दिया कि सभी ग्रीन पटाखे ही चलाएँ लेकिन बेजिम्मेदार नागरिकों ने सरकार की एक न सुनी और धुँआ धार आतिशबाजी की, जिससे सारे दिल्ली - एनसीआर में स्मॉग की भयानक धुन्ध छा गई। जिसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रदूषण मॉनीटरिंग स्टेशन में एयर इण्डेक्स खतरनाक श्रेणी में दर्ज किया गया, जो सोमवार को बहुत खराब श्रेणी में था। इसमें गाजियाबाद, नोएडा और ग्रेटर नोएडा की हालत सबसे खराब रही। सोमवार को प्रदूषण का स्तर दिल्ली में 368 दर्ज किया गया लेकिन मंगलवार को यह 400 तक पहुँच गया, जो कि खतरनाक श्रेणी में आता है।




पर्यावरण को लेकर हम नागरिकों को जागरूक और जिम्मेदार होना चाहिए तभी हम इस भयानक प्रदूषण से छुटकारा पा सकते हैं। इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए और कम - से - कम पैट्रोल - डीजल से चलने वाले वाहनों का प्रयोग करना चाहिए तभी दिल्ली को रहने लायक बचा पाएँगे। इसलिए मैं कहता हूँ कि -

 " यदि हम आतिशबाजी करते जायेंगे,
     तो इस समाज को और दूषित पायेंगे।
     यदि ऐसा ही हम करते जायेंगे,
    तो इक दिन खुदको ही नहीँ बचा पायेंगे।।"

तबीयत ठीक न होने के कारण बिना नहाए ही साढ़े नौ बजे ई-रिक्शे से कॉलेज पहुँचा। कभी - कभार डीटीसी बस में बागी सफर कर लेता हूँ लेकिन भाई - दोज से दिल्ली सरकार के यशस्वी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बसों में महिलाओं की यात्रा को फ्री कर दिया है, जिससे बसों में महिलाओं की भीड़ ज्यादा होने लगी है और हम युवा छात्रों को समस्या होने लगी है। सुनने में आ रहा है कि दिल्ली सरकार जल्द ही छात्रों और वृद्धों के लिए भी बस - यात्रा फ्री कर रही है।

दस बजे से लाइब्रेरी गया जहाँ जनचेतना का प्रगतिशील कथा मासिक - हंस पत्रिका के अक्टूबर अंक का अध्ययन किया और फिर ग्यारह बजे से ऑडिटोरियम पहुँचा। आज का दिन हंसराज कॉलेज के लिए ऐतिहासिक दिन रहा क्योंकि आज एकता दिवस, सरदार पटेल जयंती पर दुनिया के जाने - माने बाल-अधिकार कार्यकर्त्ता, बचपन बचाओ आन्दोलन के प्रणेता(1980), सत्यार्थी - कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन्स फाउंडेशन के संस्थापक एवं नोबेल शांति पुरस्कार विजेता, माननीय कैलाश सत्यार्थी जी का पदार्पण हुआ।





ग्यारह बजे से साढ़े बारह बजे तक कैलाश सत्यार्थी के जीवन और उनके कार्यों पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म - द प्राइस ऑफ फ्री (मुक्ति का मूल्य)  देखी। फ़िल्म में बच्चों के जीवन का संघर्ष दिखाया गया है और दिखाया गया कि सत्यार्थी ने कैसे बच्चों को बाल मजदूरी और बाल वैश्यावृत्ति से मुक्ति दिलायी।
और फिर कैलाश सत्यार्थी ने पत्नी सुमेधा कैलाश सत्यार्थी, प्राचार्या प्रो.रमा, पूर्व छात्रों, छात्र -  छात्राओं और पढ़ाकू के बच्चों के साथ मिलकर दीप - प्रज्जवलन कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ किया। कार्यक्रम संचालक प्रो. प्रभांशु ओझा ने सत्यार्थी जी का परिचय देते हुए कहा कि कैलाश सत्यार्थी का जन्म विदिशा मध्य प्रदेश में हुआ और वहीं से ही इन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। सन 1980 में बच्चों को बाल - दासता, बाल यौन - शोषण और बाल मजदूरी से मुक्ति दिलाने हेतु बचपन बचाओ आंदोलन चलाया। अब तक 88 हजार से ज्यादा बाल मजदूरों को आजादी दिला चुके हैं और नोबेल शान्ति पुरस्कार 2014 से सम्मानित होने के साथ - साथ कई राष्ट्रीय - अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं।




कॉलेज एनएसएस द्वारा संचालित पढ़ाकू, जिसमें कॉलेज के छात्र - छात्रायें गरीब और स्लम एरिया के बच्चों को फ्री पढ़ाते हैं, पर बनी डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई। पढ़ाकू द्वारा स्लम एरिया यमुना खादर, कश्मीरी गेट में शिक्षा देने के साथ - साथ कंप्यूटर साक्षरता अभियान, स्वच्छता अभियान और जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं।

प्रिन्सिपल प्रो. रमा मैम ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि हंसराज कॉलेज कैलाश सत्यार्थी का हार्दिक स्वागत करता है। हंसराज कॉलेज आर्य समाज और डीएवी आंदोलन के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के पद चरणों पर चल रहा है। जिस प्रकार उस समय दयानंद सरस्वती विरचित सत्यार्थ - प्रकाश ने समाज को प्रकाशित किया, उसी प्रकार आज कैलाश सत्यार्थी जी समाज को प्रकाशित कर रहे हैं। मैं इस मंच से घोषणा करती हूँ कि हमारे सामने बैठे युवा छात्र - छात्राओं में से ही कोई हंसराज कॉलेज के लिए नोबेल प्राइज लाएगा। आज से सत्यार्थी जी, आप हंसराज कॉलेज कब सदस्य बन गए हैं। अब से पूरा हंसराज कॉलेज आपके साथ है और आप हमारे साथ...।

इसके बाद लोकसभा टीवी के एंकर और दिल्ली पत्रकार संघ के अध्यक्ष, अनुराग पुनैठा जी ने कैलाश सत्यार्थी जी से बातचीत की। इस दौरान अनुराग जी ने सत्यार्थी से कई सवाल पूँछे। जैसे - आपने अपना सरनेम सत्यार्थी क्यों किया; इसके पीछे क्या प्रेरणा रही? आपकी अबतक की यात्रा कैसी रही? आप छात्रों को क्या सन्देश देना चाहते हैं? आदि - आदि।

सत्यार्थी जी ने अनुराग जी के सवालों का उत्तर देते हुए कहा - " आज मैं नोबेल प्राइज मिलने के बाद किसी कॉलेज, विश्वविद्यालय में पहली बार आया हूँ। इससे पहले मैं छात्र - छात्राओं को कई बार सम्बोधित करता रहा हूँ। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद कुछ समय भोपाल में प्रोफेसर भी रहा। आप युवा छात्र - छात्राओं के बीच पाकर बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। खैर, सन 1969 में गाँधी शताब्दी के उपलक्ष्य में नेताओं के भाषण सुनकर मैंने सोचा 'मैं भी नेता बनूँगा।' लेकिन फिर मैंने अछूत माने जाने वाली दलित स्त्रियों को भोजन बनाने के लिए तैयार किया और नेताओं को भोज पर आमंत्रित किया। इस कार्य से नेता लोग बहुत खुश हुए और प्रशंसा किए फिर हुआ यूँ, मैं ब्राह्मण परिवार से था तो ब्राह्मणवादियों ने मेरे कार्य को घृणित बताया और मेरे परिवार को जात - बिरादरी से बन्द करने का प्रस्ताव रखा लेकिन बात यहाँ पर आकर रुकी कि पापी सिर्फ आपका लड़का ही है इसलिए उसे ही बिरादरी से निष्कासित किया जाए। तब मुझे निष्कासित करके आँगन के एक कोने में बने कमरे में रहना पड़ा। खाना मुझे अकेले ही करना पड़ा। उस रात मैंने खाना नहीं खाया। माँ रात में दो - तीन बार देखने आईं तभी मैंने सोचा कि इस जाति सूचक नाम को हटा देता हूँ और फिर मैंने उसे हटाकर सत्यार्थी नाम जोड़ लिया। सत्यार्थी यानि सत्य का विद्यार्थी। आज भी देश में जाति व्यवस्था समाज को जकड़े हुए है, जिसे मिटाना बहुत जरूरी है। जाति - व्यवस्था शोषण को जन्म देती है। इसलिए शोषण मुक्ति और आजादी के लिए जाति - व्यवस्था से आजादी जरूरी है।




आगे सत्यार्थी ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा - आपके अन्दर ही क्रांतिकारी, परिवर्तनकारी, नेता, धर्मगुरु है। अपने आपको पहचानो। किसी के पिछलग्गू मत बनो। खुद नेतृत्त्व करने का विचार रखो। अपने सारे काम खुद करो। पिछलग्गू बनने से हमने कई तथाकथित धर्मगुरु जैसे - आशाराम बापू, स्वामी चिन्मयानंद, बाबा राम - रहीम बना दिए हैं, जो जेल में हैं। ऐसे ही कई बलात्कारी, भ्रष्टाचारी नेता जेल में हैं। युवा शासन की बागडोर अपने हाथ में लो। समाज में परिवर्तन युवाओं की बदौलत ही होता है। सारी दुनिया के आंदोलन युवाओं ने ही किए हैं। चाहे हांगकांग की आजादी का आंदोलन हो या फिर पर्यावरण जागरूकता का आन्दोलन। मलाला यूसुफजई भी आप ही जैसी युवती है। जिसने शिक्षा के लिए आंदोलन चलाया। दुनिया के हर आंदोलन में परिवर्तनकारी युवा छात्र - छात्राओं की अहम भूमिका रही है।

सारी दुनिया मे हमने छात्रों को केन्द्रित किया। संसार के इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन आज हमने खड़ा किया है - 100 मिलियन फ़ॉर 100 मिलियन अभियान।

एक ओर ऐसे 100 करोड़ बच्चे हैं पूरे भारत में जो बाल - मजदूरी करने को विवश हैं, जो बाल - वैश्यावृत्ति में धकेल दिए जाते हैं। ये बच्चे यौन - शोषण के शिकार होते हैं। दूसरी तरफ आप 100 करोड़ युवा, छात्र - छात्रायें हैं। आप उन 100 करोड़ बच्चों के लिए परिवर्तनकारी, क्रान्तिकारी बनें और उन्हें मुक्ति दिलाएँ। आप पिछड़े, गरीब भाई - बहिनों के लिए काम करें और सुरक्षित भारत - समर्थ भारत का निर्माण करें।




इसके बाद हंसराज कॉलेज से विवेकानंद मूर्ति, आर्ट्स फैकल्टी, दिल्ली विश्वविद्याल तक मार्च हुआ। मार्च में सत्यार्थी जी के साथ गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस, प्रिंसिपल प्रो. रमा, प्रोफेसर, छात्रनेता, एनएसएस, एनसीसी, ईसीए के वालंटियर्स के साथ ही हजारों छात्र - छात्रायें शामिल हुए। मार्च में ऐसे परिवर्तनकारी नारे गूँजे -

1. हर बच्चे का है अधिकार।
   रोटी, खेल, पढ़ाई, प्यार।।
2. हमें चाहिए बाल मजदूरी से आजादी।
    यौन शोषण से आजादी...।।
3. बलात्कारियों को फाँसी दो।
    फाँसी दो, फाँसी दो।।
4. लड़का हो या लड़की।
    सबको शिक्षा एकसमान।।




  
विवेकानंद मूर्ति पर फूलमाला अर्पित करने के बाद सत्यार्थी ने संबोधित करते हुए कहा - शिक्षा केवल अधिकार नहीं बल्कि यह ढेर सारी समस्याओं का उपचार है। युवा समाज में समस्या नहीं बल्कि सब समस्याओं का समाधान हैं। आप सब 100 मिलियन फ़ॉर 100 मिलियन आंदोलन से जुड़ें और शिक्षित, आजाद, सुरक्षित समाज निर्माण में अहम भूमिका अदा करें।

आज कैलाश सत्यार्थी जी को सुनकर गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ कि मैं भी परिवर्तनकारी हूँ।
           
            जय हो!

आपका, कुशराज
 झाँसी बुन्देलखण्ड

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