Friday 24 July 2020

बुंदेली भासियन के लानें अखंड बुंदेलखंड राज्ज बनें चज्जे और उते की राजभासा बुंदेली - किसानी...




जब तेलगू भासियन के लानें आंध्रा और तेलंगाना राज्ज
तमिलन के लानें तमिलनाडु
मराठियन के लानें महारास्ट्र
गुजरातियन के लानें गुजरात
बंगालियन के लानें बंगाल
तो बुंदेलखंडियन के लानें अखंड बुंदेलखंड काय नईं?
बुंदेली भासियन के लानें अखंड बुंदेलखंड राज्ज 
बनें चज्जे और उते की राजभासा बुंदेली-किसानी...।

✒️ सतेंद सिंघ किसान 
   (संस्तापक : बुंदेली - बुंदेलखंड आंदोलन)

      _२४ जुलाई २०२०_७:४४दिन_ जरबौगांओं झाँसी


जब तेलुगु भाषियों के लिए आंध्रा और तेलंगाना राज्य
तमिलों के लिए तमिलनाडु
मराठियों के लिए महाराष्ट्र
गुजरातियों के लिए गुजरात
बंगालियों के लिए बंगाल
तो बुंदेलियों के लिए अखंड बुन्देलखण्ड क्यों नहीं?
बुन्देली भाषियों के लिए अखंड बुन्देलखण्ड राज्य
 बनना चाहिये और वहाँ की राजभाषा बुन्देली-किसानी...।

✒️ सतेंद सिंह किसान 'कुशराज झाँसी' 
   (संस्थापक : बुंदेली - बुंदेलखंड आंदोलन)

      _24 जुलाई 2020_7:55दिन_ जरबौगांव झाँसी


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Wednesday 22 July 2020

कहानी : मजदूरी - कुशराज झाँसी

कहानी - " मजदूरी "


सिया काकी को एक हफ्ते से मजदूरी के लिए कोई काम नहीं मिल रहा है। गाँव के हर मुहल्ले में काम तलाशा फिर भी किसी के यहाँ कोई काम - धंधा न मिला। हताश होकर हाथ पर हाथ धरे  अपने छोटे से खपरैल घर में बैठी है। टेंशन में दो दिन से कुछ भी खाया - पिया नहीं है। शाम होने वाली है लेकिन अभी तक नहा भी नहीं पाया है क्योंकि घर के बगल वाला हैण्डपम्प कल से खराब पड़ा है। मुहल्लेवाली औरतों और लड़कियों को डेढ़ - दो किलोमीटर दूर से पानी भरने जाना पड़ रहा है। ग्रामप्रधान से हैण्डपम्प सुधरवाने की गुजारिश की गई तो उसने आश्वासन दिया कि नरसों तक अवश्य ठीक करा दूँगा।


इसी वक्त सिया की नन्दबाई रिया आ जाती हैं। भौजी का मुरझाया चेहरा देखकर आते ही पूँछती हैं -


" भौजी क्या हुआ? ऐसे मुँह लटकाए काय बैठी हो??? "" कछु न बिन्नू। भगवान ने बहुत बुरा किया है हमारे साथ। घर कंगाल कर दिया है। दाने - दाने के लिए मोहताज कर दिया है। अब तो और बुरी दशा है ढूँढें- ढूँढें मजदूरी नहीं मिल रही है...।"


" कोई न भौजी। धैर्य रखो। आपका भी फिर से अच्छा समय आएगा। और हमलोग तो हैं आप लोगों की मदद खातिर..."" हाँ बिन्नू। ठीक कह रहीं आप। चलो अब आप हाथ - मुँह धोकर खाना खा लो।"" भौजी! अभी भूँख नहीं है। रात को खा लेंगे...।"


देर रात को रिया के भाईसाहब रामचन्द्र भी आ जाते हैं। उन्हें शराब का नशा ऐसा चढ़ा था कि गली में झूम - झूमकर कहीं कीचड़ में गिर गए होंगे तभी तो सारे कपड़े और बदन कीचड़ से लतपथ है। उनके बाल तो बेथी - बेथी जितने लम्बे हो गए हैं और दाढ़ी तो रीछों जैसी लटक रही है। महीने में चार - पाँच बार ही नहाते हैं सिर्फ जुआ खेलने और शराब पीने में मस्त रहते हैं। किसी काम धन्धे और घर - परिवार से कोई लेना - देना नहीं है...


शराबी रामचंद्र को रात में ही सिया और रिया ने नहलाया और साफ - सुथरे कपड़े पहनाए। रात ग्यारह बजे तीनों ने भोजन किया। सिया की बेटी संध्या आठ बजे ही भोजन करके सो गई थी...


बड़ा बेटा जितेन्द्र बरूआसागर के राजकीय इण्टर कॉलेज में हाईस्कूल में पढ़ रहा है। छोटा बेटा शैलेन्द्र बरूआसागर के माते रेस्टोरेन्ट में वेटर का काम करता है। जो अभी सिर्फ दस साल का ही है। संध्या गाँव की ही सरकारी कन्या पाठशाला में कक्षा चार में पढ़ती है। जो बड़ी होनहार है...दो साल बाद, रामचन्द्र की हालात और बिगड़ जाती है। वो वैसे ही गाँव के नम्बर एक के जुआड़ी और शराबी थे। दिनभर जुआ खेलते थे। जुए में ही अपनी पन्द्रह - बीस बीघा जमीन और बहुत बड़ा मकान गवाँ बैठे थे। अब सर्फ एक खपरैल कच्चा घर और मवेशियों के लिए बेड़ा बचा है। नाममात्र की जमीन बची है सिर्फ आधा बीघा। जिसमें मवेशियों हेतु चारा उग जाता है और थोड़ी बहुत साग - सब्जी भी। अब घर बिल्कुल कंगाल हो गया है। जितेन्द्र और संध्या का स्कूल छूट गया है। शैलेन्द्र वैसे ही स्कूल नहीं जाता था...


रामचन्द्र जुआ खेलते वक्त इतने मस्त - मौला हो जाते थे कि खाने - पीने पर बिल्कुल ध्यान ही नहीं देते थे। बिना खाए - पिए सवेरे से शाम तक और कभी - कभार देर रात तक खेलते रहते थे। कभी जीतते थे और अधिकतर बार हारते ही थे। जीतना रामचन्द्र के भाग्य में था ही नहीं। तभी तो सब कुछ गवाँ दिया इस जुए की लत में...


देशी, महुआ माता और अंग्रेजी शराब तीनों का पैग एक साथ लगा लेते थे। महुआ माता तो बिना पानी मिलाए ही ढँगोस जाते थे। दिनभर में चार - पाँच सौ के गुटखा थूंक देते थे और सिगरेट फूँक जाते थे। तभी तो आज कैंसर और टी० बी० के मरीज बनकर परलोक सिधार गए। जितना घर में धन - धान्य था। वो भी अपने इलाज में खर्च करा गए। घर को शत प्रतिशत बर्बाद कर गए...


अब सिया और जितेन्द्र नमकीन फैक्ट्री में मजदूरी करते हैं। शैलेन्द्र वहीं माते रेस्टोरेन्ट में वेटर का ही काम करता है। संध्या विवाह लायक हो गई है...


दो साल बाद, मजदूरी से प्राप्त धनराशि को संध्या की शादी हेतु पच्चीस हजार रुपए बुन्देलखण्ड सर्वजातीय विवाह सम्मेलन में पंजीकरण के रूप में जमा कर दिए गए और संध्या का विवाह संपन्न हो गया...


शादी के एक साल बाद, संध्या ने अपने पति के साथ मिलकर, समाज सुधार अभियान चलाया और समाज में जुआ, शराब, धूम्रपान पर रोक लगाने में कामयाब हुई और समाज के हर आदमी को शिक्षा का महत्त्व समझाया। वो खुद पढ़ाती और साथ ही दूसरों को पढ़ने - पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती। पाँच साल में ही इस संध्या ने समाज में संध्या यानी शाम की भाँति छाए अज्ञानता और अजागरुकता के अंधकार को मिटाकर शिक्षा और जागरूकता की रोशनी से भर दिया। 


✒️ कुशराज झाँसी _15/3/2019_10:31रात_जरबौगाँव




Saturday 4 July 2020

पीरियड्स पे चर्चा - कुशराज झाँसी

लेख - " पीरियड्स पे चर्चा "


आज हम उस विषय पे चर्चा करने जा रहे हैं, जिस पर चर्चा करना आज के वैज्ञानिक युग और स्त्री सशक्तिकरण के दौर में हमारे भारत देश के हर इलाके में जरूरी ही नहीं बल्कि अनिवार्य होना चाहिए। हाँ, तो वो विषय है - पीरियड्स यानि माहवारी।




आज की पीरियड्स पे चर्चा में हम पीरियड्स के विभिन्न पहलुओं के बारे में जान रहे हैं कि असल में पीरियड्स होता क्या है? उसके क्या कारण हैं? पीरियड्स में होने वाली समस्याएँ क्या हैं और उनके समाधान क्या हैं? पीरियड्स जागरूकता अभियान क्या है? आदि - आदि।

* पीरियड्स - :

चलो तो अब हम पीरियड्स पे चर्चा शुरू करते हैं। सबसे पहले हम पीरियड्स के बारे में जान लेते हैं। पीरियड्स यानि माहवारी एक जैववैज्ञानिक क्रिया (बायलोजिकल प्रोसेस) है, जो सामान्य तौर पर 10 से 15 साल आयु वाली लड़कियों में शुरू होती है और स्त्री के जीवन में लगातार चलती रहती है। 



सामान्य तौर पर महीने में एक बार ही सामान्यतः 28 से 32 दिनों के अन्तराल पर स्त्रियों में होने वाले प्राकृतिक रुधिर स्राव (ब्लीडिंग) को ही पीरियड्स माना जाता है। जो दुनिया के जीवन चक्र को चलाने के लिए अनिवार्य क्रिया, प्रजनन के लिए बहुत जरूरी भी है। 



ज्यादातर पीरियड्स का समय तीन से पाँच दिन रहता है, परन्तु दो से सात दिन तक की कालावधि को नॉर्मल माना जाता है। सभी स्त्री और पुरुषों के लिए सबसे जरूरी बात ये है कि पीरियड्स के किसी भी समय गर्भाधान (प्रेगनेंसी) होने की सम्भावना रहती है। इसलिए युवतियों और युवाओं को अवैधानिक प्रेगनेंसी से बचने के लिए परिवार नियोजन के उपायों जैसे - सेक्स के समय कॉन्डम (कंडोम) का यूज जरूर करना चाहिए ताकि भारत के सामाजिक कानूनों से न टकराना पड़े।

पीरियड्स को आज से समय कई नामों से जाना जा रहा है। जैसे - माहवारी, रजोधर्म, रजो चक्र, रजो अवस्था,मासिकधर्म, मईना, मेंसुरेशन साइकिल और एमसी।

* पीरियड्स से होने वाली समस्याएँ और समाधान -:

पीरियड्स के बारे में जानने के बाद अब हम पीरियड्स से आने वाली समस्याओं और उनके समाधानों पर चर्चा को आगे बढ़ाते हैं। ज्यादातर स्त्रियाँ पीरियड्स (माहवारी) की समस्याओं से परेशान रहती है लेकिन पीरियड्स की समुचित जानकारी के अभाव में या अज्ञानतावश और धार्मिक अंधविश्वास के चलते या फिर शर्म या झिझक के कारण लगातार इस समस्या से जूझती रहती हैं। 



* पीड़ादायक पीरियड्स -: 

पीरियड्स में होने वाली कई समस्याएँ हैं, जिनको बारी - बारी से जानना जरूरी है। सबसे पहली समस्या पीड़ादायक पीरियड्स है। पीड़ादायक यानी दर्द देने वाले पीरियड्स में  निचले पेट (उदर) में ऐंठनभरी पीड़ा होती है। किसी स्त्री को तेज दर्द हो सकता है, जो आता और जाता रहता है या मन्द चुभने वाला (मामूली-सा) दर्द हो सकता है। पीरियड्स से पीठ में दर्द हो सकता है। दर्द कई दिन पहले भी शुरू हो सकता है और पीरियड्स के एकदम पहले भी हो सकता है। पीरियड्स का रक्त स्राव कम होते ही सामान्यतः यह दर्द भी खत्म हो जाता है।

* पीरियड्स जागरूकता अभियान -:

पीड़ादायक पीरियड्स से स्त्रियों को निजात दिलाने के जो सबसे ज्यादा जरूरी उपाय है, वो है पीरियड्स के बारे में जागरूकता लाना। हम चाहते हैं कि सरकार और हम नागरिक मिलकर, स्कूल और कॉलेज के छात्र - छात्राओं को साथ लेकर पीरियड्स के प्रति सशक्त जागरूकता अभियान चलाएँ। अभियान हर गाँव - गाँव और शहर - शहर में चलना चाहिए।




* पीड़ादायक पीरियड्स का घर पर उपचार -:

पीरियड्स जागरूकता अभियान की कुछ बातें इस प्रकार हैं। सबसे पहले हम स्त्रियों को ये जानकारी देंगे कि हम पीड़ादायक पीरियड्स का घर पर इस तरह उपचार कर सकते हैं - सबसे पहले हमें आज के बाजारवाद के दौर में आ रहीं कई तरह की रासायनिक दर्दमारक दवाइयों से बचना चाहिए। इसकी जगह हमें घरेलू आयुर्वेदिक नुख्से अपनाना चाहिए। जैसे - (1) अपने पेट के निचले हिस्से को (नाभि से नीचे) गर्म पैड से सेंकना चाहिए और ये भी ध्यान रखना चाहिए कि सेंकने वाले पैड को रखे - रखे सो मत जाएँ। (2)इस दौरान गर्म पानी से ही नहाना चाहिए। (3) गर्म पेय ही पियें जैसे - गरम पानी (कुनकुना पानूँ) या थोड़ा गरम दूध बगैरा (4) निचले पेट के आसपास अपनी अंगुलियों के पोरों से गोल - गोल हल्की मालिश भी करें। (5) सैर करें या नियमित रूप से व्यायाम (एक्सरसाइज) करें और उसमें श्रोणी को घुमाने वाले व्यायाम भी करें। (6) साबुत अनाज, फल और सब्जियों जैसे मिश्रित कार्बोहाइड्रेटस से भरपूर सन्तुलित आहार लें पर उसमें नमक, चीनी, मदिरा एवं कैफीन की मात्रा कम हो या बिल्कुल भी न हो। (7) हल्के परन्तु थोड़े-थोड़े अन्तराल पर भोजन करें। (8) ध्यान अथवा योग जैसी विश्राम परक तकनीकों का प्रयोग करें। (9) नीचे लेटने पर अपनी टांगे ऊंची करके रखें या घुटनों को मोड़कर किसी एक ओर सोयें।




पीड़ादायक पीरियड्स दौरान इस परिस्थिति में डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए। जब यदि स्व-उपचार से लगातार तीन महीने में दर्द ठीक न हो या खून के बड़े-बड़े थक्के निकलते हों तो डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए। यदि पीरियड्स होने के पांच से अधिक दिन पहले से दर्द होने लगे और पीरियड्स के बाद भी दर्द कम न हो, तब भी डाक्टर के पास जाना चाहिए।

* पी.एम.एस (पीरियड्स के पहले की बीमारी) -: 

अब हम  पीरियड्स से पहले की स्थिति के लक्षणों के बारे में जानते हैं। पीरियड्स होने से पहले (पीएमएस) के लक्षणों का नाता माहवारी चक्र से ही होता है। सामान्यतः ये लक्षण पीरियड्स शुरू होने के 5 से 11 दिन पहले शुरू हो जाते हैं। पीरियड्स शुरू हो जाने पर सामान्यतः लक्षण बन्द हो जाते हैं या फिर कुछ समय बाद बन्द हो जाते हैं। इन लक्षणों में सिर दर्द, पैरों में सूजन, पीठ दर्द, पेट में मरोड़, स्तनों का ढीलापन अथवा फूल जाने की अनुभूति होती है।

पी.एम.एस. यानी पीरियड्स से पहले बीमारी का कारण जाना नहीं जा सका है। यह ज्यादातर 20 से 40 साल उम्रवाली औरतों में होता है। जो  एक बच्चे की माँ बन गयी हो या फिर जिनके परिवार में कभी कोई दबाव रहा हो या पहले बच्चे के होने के बाद दबाव के कारण कोई स्त्री बीमार रही हो- उन्हें होता है।

* पी.एम.एस (पीरियड्स के पहले की बीमारी) का घर पर इलाज -:

हम पी.एम.एस (पीरियड्स के पहले की बीमारी) का घर पर इस तरह इलाज कर सकते हैं। पी.एम.एस के स्व- उपचार में शामिल है - (1) नियमित व्यायाम – प्रतिदिन 20 मिनट से आधे घंटे तक, जिसमें तेज चलना और साईकिल चलाना भी शामिल है। (2) आहारपरक उपाय साबुत अनाज, सब्जियों और फलों को बढ़ाने तथा नमक, चीनी एवं कॉफी को घटाने या बिल्कुल बन्द करने से लाभ हो सकता है।
(3) दैनिक डायरी बनायें या रोज का रिकार्ड रखें कि लक्षण कैसे थे, कितने तेज थे और कितनी देर तक रहे। लक्षणों की डायरी कम से कम तीन महीने तक रखें। इससे डाक्टर को न केवल सही निदान ढ़ंढने में मदद मिलेगी, उपचार की उचित विधि बताने में भी सहायता मिलेगी। (4) उचित विश्राम भी महत्वपूर्ण है।

* भारी पीरियड्स -:

पीरियड्स के स्राव को इस स्तिथि में भारी माना जाता है। जब यदि लगातार छह घन्टे तक हर घंटे सैनेटरी पैड स्राव को सोख कर भर जाता है तो उसे भारी पीरियड कहा जाता है। भारी पीरियड्स के स्राव के समय ये कारण होते हैं। जैसे - (1) गर्भाशय के अस्तर में कुछ निकल आना।
(2) जिसे अपक्रियात्मक गर्भाशय रक्त स्राव कहा जाता है। जिसकी अब तक व्याख्या नहीं हो पाई है।
(3) थायराइड ग्रन्थि की समस्याएँ
(4) रक्त के थक्के बनने (ब्लड क्लोटिंग) का रोग
(6) दबाव।

* लम्बा माहवारी / पीरियड -: 

लम्बा पीरियड वह है जो कि सात दिन से भी ज्यादा चले। लम्बे माहवारी / पीरियड के सामान्य से कारण ये हैं - (1) अण्डकोष में पुटि (2) कई बार कारण पता नहीं चलता तो उसे अपक्रियात्मक गर्भाषय रक्त स्राव कहते हैं। (3) रक्त स्राव में खराबी और थक्के रोकने के लिए ली जाने वाली दवाईयाँ (4) दबाव के कारण माहवारी पीरियड लम्बा हो सकता है।

* अनियमित माहवारी पीरियड -: 

अनियमित माहवारी पीरियड वो होता है, जिसमें समयसीमा एक चक्र से दूसरे चक्र तक लम्बी हो सकती है, या वे बहुत जल्दी-जल्दी होने लगते हैं या असामान्य रूप से लम्बी अवधि से बिल्कुल बिखर जाते हैं। किशोरावस्था के पहले कुछ वर्षों में अनियमित पीरियड़ होना  सामान्य बात है। शुरू में पीरियड अनियमित ही होते हैं। हो सकता है कि लड़की को दो महीने में एक बार हो या एक महीने में दो बार हो जाए, समय के साथ-साथ वे नियमित होते जाते हैं।

* अनियमित माहवारी के कारण -:

जब पीरियड असामान्य रूप में जल्दी-जल्दी होते हैं तो उनके ये कारण होते हैं - (1) अज्ञात कारणों से इन्डोमिट्रोसिस हो जाता है जिससे जननेद्रिय में पीड़ा होती है और जल्दी-जल्दी रक्त स्राव होता है।
(2) कभी-कभी कारण स्पष्ट नहीं होता तब कहा जाता है कि स्त्री को अपक्रियात्मक गर्भाशय रक्तस्राव है।
(3) अण्डकोष की पुष्टि
(4) दबाव।

यदि सामान्य पांच दिन की अपेक्षा अगर माहवारी रक्त स्राव दो या चार दिन के लिए चले तो इसमें चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है। समय के साथ पीरियड्स का स्वरूप बदलता है और एक चक्र -  दूसरे चक्र में भी बदल जाता है।

* भारी, लम्बे और अनियमित पीरियड होने पर ये उपाय करना चाहिए - :

(1) माहवारी चक्र का रिकॉर्ड रखें- कब खत्म हुए, कितना स्राव हुआ (कितने पैड में काम में आए उनकी संख्या नोट करें और वे कितने भीगे थे) और अन्य कोई लक्षण आप ने महसूस किया हो तो उसे भी शामिल करें।
(2) यदि तीन महीने से ज्यादा समय तक समस्या चलती रहे तो डॉक्टर से सलाह लें।

* पीरियड्स का अभाव -: 

यदि 16 साल की आयु तक पीरियड्स न हो तो उसे माहवारी अभाव / पीरियड्स अभाव कहते हैं। उसके ये कारण हो सकते हैं -
(1) औरत के जनन तंत्र में जन्म से होने वाला विकास
(2) योनि (योनिच्छद) के प्रवेशद्वार की झिल्ली में रास्ते की कमी
(3) मस्तिष्क की ग्रन्थियों में रोग।

पीरियड्स पे चर्चा में आज इतना ही....।


✒️ कुशराज झाँसी (#पीरियड्सपेचर्चा)

_ 3/7/2020_9:33रात _जरबौगाँव

#पीरियड्सपेचर्चा
#TalkOnPeriods

Friday 3 July 2020

आज की आत्महत्या भी हत्या है। - कुशराज झाँसी

* आत्महत्या पर कुशराज झाँसी की टिप्पणी *  


" आज की आत्महत्या भी हत्या है।  - कुशराज झाँसी "



इस सदी की सबसे बड़ी दु:ख की बात ये है कि इन्सान आत्महत्या करके दुनिया छोड़कर जा रहे हैं, कुछ तो अपने ही घर में फाँसी पर लटककर... 

हर किसी को आत्महत्या करने को मजबूर किया जा रहा। किसान महँगाई की मार, फसलों के गिरते दाम और बढ़ते कर्ज के बोझ से आत्महत्या कर रहे हैं और अभिनेता सिनेमा में फैले परिवारवाद के कारण। सदी की ये आत्महत्याएँ भ्रष्ट लोकतांत्रिक व्यवस्था की हत्याएँ हैं। किसी को ऐसे नहीं जाना चाहिए बल्कि भ्रष्ट लोकतांत्रिक व्यवस्था से टकराकर, क्रांति करके और उसमें सुधार करके जाना चाहिए। जिससे आने वाली पीढ़ियाँ आप जैसी न बनें....

हम भी क्या कर सकते हैं आजकल की इस भयानक बीमारी 'डिप्रेशन - मानसिक तनाव' के  आगे। खैर, दुनिया के हर मानव - मानवी को डिप्रेशन से बचना चाहिए क्योंकि जिन्दगी है तो सारी दुनिया है और जिन्दगी नहीं तो दुनिया भी नहीं... जिस अभिनेता ने हमें कई शिक्षादाई और प्रेरणादाई फिल्में दी लेकिन वो उसे ही प्रेरणा नहीं दे सकीं...ये कैसा खेल है इस दुनिया का.....। 


✒️ कुशराज झाँसी

_3/7/2020_5:55भोर _ जरबौगाँव


गुवाहाटी हाईकोर्ट के निर्णय पर पुनर्विचार हो और स्त्री - पुरूष हेतु नियम समान हों।

लेख - " गुवाहाटी हाईकोर्ट के निर्णय पर पुनर्विचार हो और स्त्री - पुरूष हेतु नियम समान हों। "





" मैं एक आधुनिक विचार वाला पुरुष हूँ। मैं चाहे पितृसत्ता हो या मातृसत्ता दोनों का विरोध करता हूँ। मेरा सपना है कि मानवता के नाते स्त्री और पुरुष में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, वैचारिक और शैक्षिक समानता हो। आने वाली पीढ़ियाँ स्त्री - पुरूष में किसी भी तरह का भेदभाव न देखें। असमानता मिटाने के लिए और समाज में बदलाओ लाने के लिए हम सबको मिलकर काम करने की जरूरत है। तो आओ हम असमानता मिटाने के लिए अभी से काम करना शुरू करें। जै हो।"

अब हम बात करते हैं गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक निर्णय की। अभी हाल ही में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक तलाक के मुकद्दमे की सुनवाई करते हुए कहा है कि "अगर पत्नी चूड़ियाँ पहनने और सिंदूर लगाने से मना करे तो इसका मतलब है कि  उसे शादी मंजूर नहीं है।" कोर्ट ने इस आधार पर तलाक के लिए याचिका डालने वाले इंसान को तलाक दे दिया भी है। जबकि फैमिली कोर्ट ने इसके उलट में फैसला सुनाया था, जिसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुँचा।

हाईकोर्ट के इस निर्णय पर मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि जब हमारे कानून, भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों में से एक है - समता का अधिकार, आर्टिकल 14-18। जिसमें कहा गया है कि "विधि यानि कानून के समक्ष एवं विधियों का समान संरक्षण (आर्टिकल 14)। धर्म, मूलवंश, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर विभेद का रोक (आर्टिकल 15)। लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता (आर्टिकल 16)। अस्पृश्यता यानि छुआछूत का अंत और उसका आचरण निषिद्ध (आर्टिकल 17)। सेना और विद्या सम्बन्धी सम्मान के सिवाय सभी उपाधियों पर रोक (आर्टिकल 18)। दूसरा मौलिक अधिकार है - स्वतंत्रता का अधिकार, आर्टिकल - 19-22। जिसमें सबकी आजादी की बात कही गयी है। जैसे कि "छह अधिकारों - वाक एवं अभिव्यक्ति, सम्मेलन, संघ, संचरण, निवास और वृत्ति की सुरक्षा (आर्टिकल 19)। अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंधों में संरक्षण (आर्टिकल 20)। प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण (आर्टिकल 21)। शिक्षा का अधिकार (आर्टिकल 21'क)। कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण (आर्टिकल 22)। एक और सबसे जरूरी अधिकार था - सम्पत्ति का अधिकार, जिसे सन 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक अधिकार (आर्टिकल 31) से विधिक अधिकार (आर्टिकल 300'क) में बदल दिया गया है।

अब हम हाईकोर्ट के इस फैसले को कानूनों के हिसाब से देखते हैं। सबसे पहले हम समता के अधिकार के आधार पर यदि बात करें तो इस मामले में या कहें स्त्री - पुरुष के अन्य मामले समता कहीं दूर - दूर तक नजर नहीं आती। स्त्री - पुरूष भेदभाव की खाई तो समाज में और गहरी है। जब हाईकोर्ट ही स्त्री और पुरुष में भेदभाव करेगा तो समाज का कहना ही क्या। जब एक स्त्री को विवाह के बाद साज - सिंगार करने (जैसे - माँग में सिंदूर लगाना, कलाई में चूड़ियाँ पहनना, गले में मंगलसूत्र पहनना आदि - आदि।) को कानूनी तौर पर सही माना जाता है। तो ऐसा विधान पुरूषों के लिए क्यों नहीं है। पुरुष को भी विवाह के बाद साज - सिंगार करने और विशेष पहनावे को लेकर कानून बनना चाहिए। या फिर स्त्री को भी साज - सिंगार और विशेष पहनावे से आजादी मिलनी चाहिए। स्त्री को साज - सिंगार आदि के आधार पर कुँवारी या विवाहित नहीं मानना चाहिए। आज का समाज बदलाओ चाहता है। 


अब इस मामले को स्वतंत्रता के अधिकार के आधार पर आँकते हैं। जब सबको अभिव्यक्ति, वृत्ति,  प्राण और दैहिक आदि की स्वतंत्रता है। तब कोई स्त्री को साज - सिंगार करने आदि को विवश नहीं कर सकता और  न ही उस पुरुष से अगल रहने से मना कर सकता है।

इस मामले को हम संपत्ति के अधिकार के आधार पर भी विश्लेषित करना चाहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए एक निर्णय में नागरिकों के निजी संपत्ति पर अधिकार को मानवाधिकार घोषित किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रहा इसके बावजूद भी राज्य किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से उचित प्रक्रिया और विधि के अधिकार का पालन करके ही वंचित कर सकता है। दरअसल, समाज में सम्पत्ति के मामले में स्त्री और पुरुष में काफी भेदभाव देखने को मिलते हैं। और सबसे दुःख की बात ये है कि आज भी पुरुष औरत को अपनी निजी सम्पत्ति समझता है और इससे भी ज्यादा दुःखद ये है कि पुरुष औरत को भोग - विलास की वस्तु समझता है। ऐसा कतई नहीं होना चाहिए। न ही औरत पुरुष की सम्पत्ति है और न ही पुरुष औरत की। अब पुरुष औरत को भोग - विलास की वस्तु समझना बन्द करे बरना कहीं ऐसा न हो कि औरत पुरूष को भोग - विलास की वस्तु समझने लगे। मैं चाहता हूँ कि जमीनी स्तर पर पुरुषों की भाँति स्त्रियों को भी संपत्ति का मालिकाना हक मिले। चाहे कृषि योग्य भूमि हो या फिर निवास योग्य, हर भूमि में पुरूष की भाँति स्त्री को भी यानि 50- 50% मालिकाना हक मिले। जमीनी कागजातों पर पुरुष किसान यानि किसान से साथ महिला किसानों यानि किसानिनों का भी नाम दर्ज हो। तभी दुनिया की आधी आबादी को अपना हक मिल सकेगा।

अब वक्त आ गया है, स्त्री और पुरुष दोनों को अपनी सोच में बदलाओ लाने का। समाज में असमानता को मिटाकर समानता लाने का क्योंकि स्त्री और पुरुष में सामंजस्य जरूरी है। आपसी सामंजस्य से ही ये दुनिया चलती है।

इस मामले की एक जरूरी बात ये भी है कि - 
पति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, चीफ जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस सौमित्र सैकिया ने फैमिली कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि "पत्नी की ओर से पति पर कोई क्रूरता नहीं दिखाई गई है, जिसके चलते तलाक का कोई आधार नहीं बनता।"

19 जून 2020 को दिए गए इस फैसले में हाईकोर्ट ने कहा - "पत्नी का चूड़ियाँ पहनने और सिंदूर लगाने से मना करना उसे या तो कुंवारी दिखाता है या फिर इसका मतलब है कि उसे शादी मंजूर नहीं है। पत्नी का ऐसा रुख यह साफ करता है कि वो अपना विवाह जारी नहीं रखना चाहती।"

गौर करने की बात ये है कि इस केस में उस पुरूष की महिला से शादी 17 फरवरी, 2012 को हुई थी, लेकिन जल्द ही उनका किसी कारण से आपस में झगड़ा होने लगा था। पति - पत्नी, प्रेमी - प्रेमिका में छोटा - मोटा झगड़ा होना लाजिमी है। पत्नी अपने ससुराल के सदस्यों के साथ नहीं रहना चाहती थी। जिसके बाद दोनों ही 30 जून, 2013 से अलग रह रहे हैं।" 

पत्नी ने पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी और उस पर और अपने ससुरालवालों पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था। लेकिन बेंच ने कहा कि आरोप प्रमाणित नहीं हो पाए हैं।" कोर्ट ने यह भी कहा कि पति और ससुराल पर प्रताड़ना पर प्रमाणित होने योग्य आरोप लगाना क्रूरता के बराबर है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा फैमिली कोर्ट ने इस तथ्य को भी पूरी तरह से नजरअंदाज किया था कि महिला अपने पति को अपनी बूढ़ी मां के प्रति  Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 के तहत बताए गए दायित्वों को निभाने से भी रोकती थी। ऐसे साक्ष्य प्रमाणित होना इसे क्रूरता की श्रेणी में रखते हैं। 

 इस मामले में यदि महिला की पति के पुलिस में की गई एफआईआर पर विचार करें तो हम इस तरीके से देख सकते हैं कि महिला को किसी ने प्रताड़ित नहीं किया किन्तु पति से अगल होने का उसने ये उपाय निकाला और हम इस तरीके से भी देख सकतें हैं कि महिला को उसके पति ने और ससुराल वालों ने दहेज के कारण प्रताड़ना दी। पति ने पत्नी पर घरेलू हिंसा की। जैसा देश - दुनिया के ज्यादातर मामलों में पाया जाता है। हम माननीय सुप्रीम कोर्ट से माँग करते हैं कि "दहेज उत्पीड़न क़ानून (498 A) यानि परिवार में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की प्रमुख वजहों में से एक दहेज के ख़िलाफ़ है ये क़ानून। इस धारा को आम बोलचाल में 'दहेज के लिए प्रताड़ना' के नाम से भी जाना जाता है।
498-ए की धारा में पति या उसके रिश्तेदारों के ऐसे सभी बर्ताव को शामिल किया गया है जो किसी महिला को मानसिक या शारीरिक नुकसान पहुँचाये या उसे आत्महत्या करने पर मजूबर करे। दोषी पाये जाने पर इस धारा के तहत पति को अधिकतम तीन साल की सज़ा का प्रावधान है।" का सख़्ती से पालन किया जाए। समाज से दहेज प्रथा, पर्दा  प्रथा आदि बुराइयों का कलंक मिटाने लिए गाँव - गाँव और शहर - शहर में कानून - जागरूकता अभियान चलाए जाएँ, जिसमें वकीलों, छात्र - छात्राओं और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं का सहयोग लिया जाए।


✒️ कुशराज झाँसी 

(छात्र - दिल्ली विश्वविद्यालय)

_ 2/7/2020_1:43रात _जरबौगाँव
 







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