Tuesday 21 February 2023

अपनी मातृभाषा में काम करो। - कुशराज झाँसी

 लेख - " अपनी मातृभाषा में काम करो। - कुशराज झाँसी"



21 फरवरी के दिन को हर साल 'अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' के तौर पर मनाया जाता है। मेरी मातृभाषा बुन्देली या बुंदेलखंडी भाषा की कछियाई - किसानी बोली है। हमारी सबसे बड़ी बात ये है कि मैं विदेशी भाषा विशेषकर अंग्रेजी को उतना महत्त्व नहीं देता जितना अपनी मातृभाषा बुन्देली और राष्ट्रभाषा हिन्दी को और आपसे भी कहता हूँ कि आप भी मेरा साथ दीजिए और विदेशी भाषा का कामचलाऊ ज्ञान रखिए और अपनी मातृभाषा में सारा काम कीजिए और अपनी तरक्की और अपने देश की तरक्की कीजिए । 


                     कोई भी देश किसी विदेशी भाषा में कामकाज करके तरक्की नहीं करता और न ही कर सकता है। प्रत्येक विकसित देश सदैव अपनी मातृभाषा में काम करके इस मुकाम तक पहुँचा है। इसी संबंध में महान सामाजिक क्रान्तिकारी लेखक - भारतेंदु हरिश्चन्द जी ने कहा है - 

" निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति कौ मूल।

बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।। "


                     हमारे भारत देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि ये मातृभाषा के साथ विदेशी भाषा अंग्रेजी में अपने राज - काज का क्रियान्वयन करता है। जिस दिन से हमारा देश विदेशी भाषा अंग्रेजी, जिसके हम मानसिक गुलाम हैं, उसमें राज - काज करना छोड़ देगा और केवल अपनी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा हिंदी में सारा राज - काज का क्रियान्वयन शुरू कर देगा। उसी दिन से इसकी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होना शुरू हो जायेगी और ये विकसित देश बन जायेगा और साथ ही साथ फिर से 'विश्वगुरु' और 'सोने की चिड़िया' की पदवी को पा लेगा। 


सब जनन खों दुनियाई मताईभासा दिनाँ की भौत - भौत बधाई!


(29 अप्रैल 2018 को दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक के दौरान लिखा लेख)


- कुशराज झाँसी 'सतेंद सिंघ किसान'

(जरबौगाँव, झाँसी बुंदेलखंड)


20/2/2023_2:34दिन _ झाँसी




Friday 10 February 2023

लघुकथा : पुलिस की रिश्वतखोरी Shortstory - Police Ki Rishwatkhori

लघुकथा - पुलिस की रिश्वतखोरी


मामला फरवरी साल २०२३ के उस दिन का है। जब हम झाँसी से अपनी बुआ की शादी में गुरसरांय जा रहे थे। अपनी एलएलबी पांचवें सेमेस्टर की वायवा परीक्षा देने के बाद झटपट अपने घर खुशीपुरा आए। फटाफट बकीली की ड्रेस बदलकर और सिविल ड्रेस पहनकर झाँसी बस स्टैंड पहुँचे। दरअसल, संग में गुरसरांय तक बकालत की एक साथी को भी जाना था लेकिन वो अपने रिश्तेदारों से भेंट करने की बजह से थोड़ी लेट हो गई। इसलिए हमने उसका इंतजार करने हेतु, बस स्टैंड पर बने सरकारी शेल्टर होम में बैठना उचित समझा। जैसे ही हम शेल्टर होम के प्रवेश द्वार पर पहुँचे तो ऑफिस के कर्मचारी से हमने कहा कि भाईसाब! आधा घंटे तक हमें रुकना है यहाँ शेल्टर होम में क्योंकि उसके बाद मेरी बस है। तो कर्मचारी ने कहा - ठीक है! भैया आप रुक सकते हैं। और फिर एक पुलिसवाले के साथ हमें शेल्टर होम में अंदर भेज दिया। जिसकी ड्यूटी इस शेल्टर होम के मुसाफिरों की सुरक्षा में लगी थी। जैसे ही हम उसके साथ अंदर आए तो वो पुलिसवाला हमसे सवाल - जवाब करने लगा। कितने टैम तक रुकोगो यहाँ? कहाँ से आए हो? तब हमने कहा भाईसाब! आधा घंटे रूकेंगे हम और यहीं अपने बगल वाले खुशीपुरा से आए हैं हम। फिर पुलिसवाले ने कहा कि अच्छा! ठीक है। आप यहाँ रुक सकते हो लेकिन आपको बीस रुपए देने होंगे? बाकी आपकी मर्जी यदि नहीं रुकना चाहते तो।


चूँकि ये शेल्टर होम सरकार द्वारा मुसाफिरों, यात्रियों की सुविधा के लिए फ्री चलाए जा रहे हैं। लेकिन सरकार की पुलिस ही फ्री सेवा में चलाए जा रहे इन शेक्टर होम में रिश्वत ले रही है। पुलिस की रिश्वतखोरी की हम कड़े शब्दों में निंदा करते हैं। जब जनता की रक्षक कहलाने वाली पुलिस ही, जतना की भक्षक बनी फिर रही हो तो इस देश का विकास कैसे हो सकता है? आप ही बताईये।


हमने सोचविचार कर पुलिसवाले को बीस रुपए दिए तो फिर उसने हमें हिदायत देते हुए कहा - ये बीस रूपए के लेनदेन वाली बात बाहर किसी को मत बताना तो हमने कहा - ठीक है! भाईसाब। हम भी बकील हैं। हम समझते हैं आप लोगों को। बीस रुपए की रिश्वत लेकर वो पुलिसवाला बाहर चला गया और हम आराम करने की बजाए देश के समसामयिक हालातों पर सोच - विचार करने लगे और कहानी लिखने बैठ गए। कानून कहता है कि रिश्वत लेना और देना दोनों दण्डनीय अपराध हैं। ठीक है हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं लेकिन जब आपकी मजबूरी में आपसे रिश्वत ली जा रही हो और उसके सिवा कोई चारा न हो तो रिश्वतलेने वाला ही दोषी है क्योंकि यदि रिश्वत नहीं माँगी होती तो हम देते है क्यों।


जब हमने उस पुलिसवाले को बताया कि हम भी बकीली करते तो यदि उसे अपनी ड्यूटी के प्रति ईमानदारी और निष्ठा होती और इसके साथ कानून का डर होता तो वो पुलिसवाला हमारे बीस रुपए वापिस लौटा देता। लेकिन उस पुलिसवाले को अपनी ड्यूटी रिश्वत लेना ही ठीक लगा; सब कानूनी, नैतिक और व्यवहारिक बातों के जानते हुए भी कि रिश्वत लेना अपराध है। रिश्वत लेना पाप है। तो ऐसे रिश्वतखोर पुलिसवाले को दण्ड जरूर मिलना चाहिए। आज नहीं तो कल पुलिस की रिश्वतखोरी पर लगाम लगाने के लिए रिश्वतखोर पुलिसवालों को सजा देनी ही होगी। नहीं तो हो गया देश का उद्धार...।

©️ गिरजाशंकर कुशवाहा
'कुशराज झाँसी'

(युवा बुंदेलखंडी लेखक, जिलामंत्री - कलार्पण जिला झाँसी)

6/2/2023 _ 2:14 दोपहर _ झाँसी बसस्टैंड








Wednesday 1 February 2023

बुन्देली गजल के जनक : महेश कटारे 'सुगम (Father of Bundeli Ghazal : Mahesh Katare 'Sugam')

 बुन्देली गजल के जनक : महेश कटारे 'सुगम'

Father of Bundeli Ghazal : Mahesh Katare 'Sugam'




बुन्देली भाषा में गजल लेखन करने वाले बुंदेलखंड के वरिष्ठ साहित्यकार महेश कटारे 'सुगम' Mahesh Katare 'Sugam' का जन्म 24 जनवरी सन 1954 को पिपरई गॉंव जिला ललितपुर, बुंदेलखंड में हुआ था। इनके पिता स्व० श्री दुर्गाप्रसाद कटारे थे और इनकी माता स्व० श्रीमती यशोदा कटारे थीं।


सुगम जी की प्रारंभिक शिक्षा - दीक्षा पिपरई गाँव में हुई है और फिर इन्होंने मिडिल से हाईस्कूल तक ग्वालियर में   और उच्च शिक्षा मुरैना में रहकर प्राप्त की। 


इन्होंने मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य विभाग में प्रयोगशाला तकनीशियन के रूप में सेवा करने के साथ - साथ बुन्देली भाषा में नया प्रयोग करते हुए बुन्देली गजल लिखी। गजल लेखन प्रायः उर्दू में प्रेम प्रसंग और श्रृंगारिकता को लेकर होता है लेकिन सुगम जी ने बुन्देली में गजल लिखकर गजल को प्रेम प्रसंग और श्रृंगारिकता से इतर लोकजीवन, किसानों की दशा और दिशा, बुंदेलखंड के हालात और देश - दुनिया के  समसामयिक मुद्दों की मुखर आवाज बनाया। जिससे गजल की विषयवस्तु का क्षेत्र भी समृध्द हुआ और बुन्देली भाषा और साहित्य का विकास हुआ। 


जिस तरह हिन्दी गजल लेखन की शुरूआत दुष्यंत कुमार ने की और दुष्यंत कुमार हिन्दी गजल के जनक कहलाए तो उसी तरह बुन्देली गजल लेखन की शुरूआत महेश कटारे 'सुगम' ने की इसलिए हम महेश कटारे 'सुगम' को बुन्देली गजल का जनक मानते हैं। सुगम जी बुन्देली गजल के जनक सिर्फ शुरूआत करने के कारण ही नहीं हैं अपितु उन्होंने बुन्देली गजल की एक सन्तान की तरह, उसके जन्म से लेकर उसकी प्रौढ़ावस्था तक देखरेख करके उसको दुनिया की नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया इसलिए हैं।


सुगम जी का प्रथम बुन्देली गजल संग्रह - 

" गांव के गेंवड़े " है, जो सन 1998 में प्रकाशित हुआ। 


सुगम जी बुन्देली गजल के साथ - साथ हिन्दी गजल, कविता, कहानी और उपन्यास आदि विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएँ किए हैं। इनकी रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी ग्वालियर और दूरदर्शन भोपाल से समय - समय पर होता रहा है। साथ - साथ ही देश के प्रमुख पत्र - पत्रिकाओं में भी इसकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहा है। 


स्वास्थ्य विभाग के प्रयोगशाला तकनीशियन के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद वर्तमान में 69 वर्षीय सुगम जी सागर जिले के बीना कस्बे में अपने निजनिवास काव्या, चंद्रशेखर वार्ड में रहकर साहित्य सेवा कर रहे हैं। 


सुगम जी के सानिध्य में उनकी 15 वर्षीय पोती " काव्या कटारे "भी बचपन से ही साहित्य सृजन कर रहीं हैं। जिसका सौ कविताओं का पहला काव्य संग्रह - धामाचौकड़ी सन 2021 में प्रकाशित हुआ है। काव्या ने कविताओं के साथ - साथ कहानियाँ और उपन्यास भी लिखा है। जिसका पहला कहानी संग्रह - काली लड़की भी प्रकाशित हो चुका है। "काली लड़की" कहानी हिन्दी की विख्यात पत्रिका कथाबिंब में प्रकाशित होकर बहुत चर्चित हुई।


विख्यात शिक्षाविद और लेखक प्रो० पुनीत बिसारिया जी ने सुगम जी के विषय में ठीक ही कहा है - 


" मुझे यह लिखने में तनिक संकोच नहीं है कि महेश कटारे सुगम जी बुन्देली के सर्वश्रेष्ठ गजलकार हैं और मानक हिन्दी गजल के क्षेत्र के पाँच सर्वश्रेष्ठ गजलकारों में शुमार हैं। इसकी बानगी दिखाती हुई उनकी एक बुन्देली और एक मानक हिन्दी की गजल आप सभी के लिए प्रस्तुत है


                (१)

जब सें तुम आ जा रये घर में

हल्ला भऔ मुहल्ला भर में

मौका है तो मन की कैलो

बखत नें काटो अगर मगर में

मिलवे कौ नईं हौत महूरत

मिलौ सवेरें साँझ दुफर में

देखो कौल करार करे हैं

छोड़ नें जईयौ बीच डगर में

रोग प्रेम कौ पलत सबई में

नारायन होवैं कै नर में

प्रीत की खुशबू ऐसी होवै 

सुगम नें मिलहैं कभऊँ अतर में


            (२)

बच्चा रोटी माँग रहा है,

माँ का रो अनुराग रहा है।

बेटे के अश्कों से डरकर,

यहाँ, वहाँ मन भाग रहा है।

आधी रात हो गई लेकिन,

पिता अभी भी जाग रहा है।

आँखों में आक्रोश अछूता,

प्रश्न अनेकों दाग रहा है।

लूटमार होती मेहनत की,

उसके हिस्से झाग रहा है।

मजबूरी ने बर्फ कर दिया,

वर्ना तो वह आग रहा है। "


सुगम जी की बुन्देली रचनाओं को महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, छतरपुर (बुंदेलखंड - मध्यप्रदेश) के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। जिससे छात्र - छात्राएं अपनी मातृभूमि बुंदेलखंड के समसामयिक साहित्य सृजन को और अपनी मातृभाषा बुन्देली भाषा की समसामयिक स्थिति को समझ पा रहे हैं। 


सुगम जी की "बंजारे" नामक कविता को रत्न सागर दिल्ली द्वारा प्रकाशित माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में भाग - 6 यानी कक्षा छठी में शामिल किया गया है। 


सुगम जी की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं - :

 1. प्यास (हिन्दी कहानी संग्रह - 1997), 2. गांव के गेंवड़े (बुन्देली गजल संग्रह - 1998), 3. हरदम हँसता जाता नीम ( हिन्दी बालगीत संग्रह - 2006), 4. वैदिही विषाद (लम्बी कविता - 2012), 5. तुम कुछ ऐसा कहो (नवीनतम संग्रह - 2012), 6.  आवाज का चेहरा (गजल संग्रह - 2013), 7. अब जीवै को एकई चारौ (बुन्देली गजल संग्रह - 2016), 8. महेश कटारे सुगम का संसार (डॉ० संध्या टिकेकर द्वारा संपादित - 2015), 9. बात कैत दो टूक कका जू (बुन्देली गजल संग्रह - 2018), 10. दुआएँ दो दरख्तों को (गजल संग्रह - 2018), 11. सारी खींचतान में फरेब है (गजल संग्रह - 2018), 12.  आशाओं के नए महल (गजल संग्रह - 2018), 13. ऐसौ नईं जानते (बुन्देली गजल संग्रह), 14. रोटी पुत्र (हिन्दी उपन्यास), 15. शुक्रिया (गजल संग्रह - 2018), 16. ख्वाब मेरे भटकते रहे (2019), 17. महेश कटारे सुगम की श्रृंगारिक गजलें (प्रवीण जैन द्वारा संपादित)


सुगम जी को निम्नलिखित सम्मानों और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है - :

1. हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा सहभाषा सम्मान (बुन्देली भाषा में अनूठा साहित्य सृजन हेतु )

2. जनकवि मुकुट बिहारी 'सरोज' सम्मान, ग्वालियर (मध्यप्रदेश) 

3. आँचलिक भाषा सम्मान, भोपाल (मध्यप्रदेश)

4. दुष्यंत संग्रहालय सम्मान, भोपाल (मध्यप्रदेश)

5. स्पेनिन साहित्य सम्मान, राँची (झारखंड)

6. जनकवि नागार्जुन सम्मान, गया (बिहार) 

7. आर्य स्मृति साहित्य सम्मान, किताब घर (दिल्ली)

8. स्वदेश कथा पुरस्कार, इंदौर (मध्यप्रदेश)

9. स्व० बिजू शिंदे कथा पुरस्कार, मुंबई (महाराष्ट्र)

10. कमलेश्वर कथा पुरस्कार, मुंबई (महाराष्ट्र)

11. पत्र पखवाड़ा पुरस्कार (दूरदर्शन)

12. लोक साहित्य अलंकरण, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

13. जयशंकर कथा पुरस्कार (उत्तरप्रदेश)

14. डॉ० राकेश गुप्त कविता पुरस्कार


 

शोध - आलेख -:

गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'

(युवा बुंदेलखंडी लेखक, सदस्य - बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, सामाजिक कार्यकर्त्ता)

(पुस्तक - " बुंदेली और बुंदेलखंड " से...)

30 जनवरी 2023, 4:15 शाम, झाँसी

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