Saturday 28 January 2023

सामाजिक मुद्दे : प्रेम प्रसंग और दिखावटी जीवन पर टिप्पणी - कुशराज झाँसी / Social Issues : Commentary on Love Affair and Vanity Life - Kushraj Jhansi

 सामाजिक मुद्दे : प्रेम प्रसंग और दिखावटी जीवन पर टिप्पणी - कुशराज झाँसी

Social Issues : Commentary on Love Affair and Vanity Life - Kushraj Jhansi


" मिडिल क्लास फैमिली के कॉलेज स्टूडेंट्स के लिए लव अफेयर्स और दिखावे वाली लाइफ बिल्कुल भी जरूरी नहीं है। यदि लव अफेयर्स और दिखावे वाली लाइफ में वो पड़ता या पड़ती है तो अपनी और अपनी फैमिली की उम्मीदों पर पानी फेरता या फेरती है। इसलिए मिडिल क्लास कॉलेज स्टूडेंट्स को सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई पर फोकस करना चाहिए क्योंकि स्टडी करके ही अच्छा कैरियर बनता है जिससे जिंदगी बदल जाती है और फैमिली भी अपग्रेड होकर अपर क्लास बन जाती है। "


 ©️ कुशराज झाँसी

_13/10/2022_ 06:45 भोर_ जरबौगाँव


         कुशराज झाँसी अपनी अध्य्यनशाला में


हमने उर्पयुक्त टिप्पणी को अपने व्हाट्सएप स्टैटस पर 27 जनवरी 2023 को शेयर किया तब इस पर प्रतिक्रियास्वरूप मित्र - रिश्तेदार युवा युवतियों की ये टिप्पणियां आईं -


1. " भाई जिस हिसाब से तुमने लिखा है उस नज़रिये से लग है कि तुम्हें समय से कोयले की तरह पका दिया गया है। इतनी यथार्थ तभी लिख सकता है व्यक्ति।" - मित्र रोहित प्रजापति, झाँसी; लेखक एवं पूर्व छात्र बुंदेलखंड विश्वविद्यालय


2. " Nice thinking bhai I am agree with you."  - दीदी नंदनी कुशवाहा, मोंठ झाँसी


3. " Right bade bhaiya." - मित्र आनंद सिंह, प्रयागराज; कार्यकर्त्ता - अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP)


4. " भज्जा धरती पकड़ सच्चाई है मानना पड़ेगा, बड़े अनुभव की बात है कि जब हम लव अफेयर्स में होते हैं तब सच्चाई से अनजान हो जाते हैं। " - साथी रूपेंद्र झाँ, सकरार झाँसी; विधि छात्र - बुंदेलखंड विश्वविद्यालय

5. " absolutely right👍👍 " 

- दीदी कल्पना सिंह नरबरिया झाँसी; सहपाठी एम० ए० हिन्दी - बीकेडी कॉलेज झाँसी

Thursday 26 January 2023

बुंदेलखंड के महान गणितज्ञ पद्मश्री प्रो० राधाचरण गुप्ता हैं आधुनिक आर्यभट्ट

बुंदेलखंड के महान गणितज्ञ पद्मश्री प्रो० राधाचरण गुप्ता हैं 'आधुनिक आर्यभट्ट'  - कुशराज झाँसी


                     गणितज्ञ प्रो० राधाचरण गुप्ता, झाँसी



आदिकवि वाल्मीकि, महर्षि वेदव्यास, गुरु द्रोणाचार्य, वीर लव - कुश, भक्त प्रहलाद, आचार्य चाणक्य, गोस्वामी तुलसीदास, मेजर ध्यानचंद, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसी महान विभूतियों की कर्मभूमि - जन्मभूमि रही बुंदेलखंड की पावन धरा पर महान गणितज्ञ पद्मश्री प्रो० राधाचरण गुप्ता (Prof. Radhacharan Gupta or R. C. Gupta)  का जन्म वीरभूमि झाँसी में सन 1935 में  श्रावण पूर्णिमा - रक्षाबंधन के दिन साधारण वैश्य परिवार में हुआ था। इनकी माताजी बिनो गुप्ता और पिताजी छोटेलाल गुप्ता थे। इनके पिता मुनीम / मुंशी का काम करते थे। इन्हें घर पर परिवार के लोग प्यार से ' पुनू ' कहकर पुकारते थे।


इनकी प्रारम्भिक शिक्षा - दीक्षा झाँसी में ही हुई। इन्होंने सन 1881 में स्थापित झाँसी के प्रतिष्ठित विद्यालय बिपिन बिहारी इंटर कॉलेज से सन 1953 में इंटरमीडिएट की परीक्षा भौतिकी, गणित और रसायनशास्त्र में उत्कृष्टता के साथ उत्तीर्ण की।


उन दिनों झाँसी बुंदेलखंड में विज्ञान में उच्च शिक्षा प्रदान करने हेतु कोई डिग्री कॉलेज या विश्वविद्यालय नहीं होने के कारण उच्च शिक्षा हेतु ये लखनऊ चले गए। जहाँ इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से सन 1955 में विज्ञान स्नातक (बी०एस०सी०) और सन 1957 में विज्ञान परास्नातक - गणित (एम०एस०सी - गणित) की उपाधि अर्जित की। गुप्ता जी बीएससी में लखनऊ यूनिवर्सिटी के सुभाष हॉस्टल में और एमएससी में तिलक हॉस्टल में रहे। 


जब गुप्ता जी बीएससी प्रथम वर्ष में पढ़ रहे थे तब इनका विवाह 12 दिसम्बर 1953 को सावित्री देवी गुप्ता के साथ हुआ। इनकी तीन संताने पैदा हुईं। बड़ी बेटी आभा गुप्ता, मंजला बेटा रविन्द्र गुप्ता और छोटी बेटी ज्योति गुप्ता। 


प्रो० गुप्ता जी के पहली बार दर्शन करने का हमें सौभाग्य 29 जुलाई 2022 को बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी के गाँधी सभागार में मंडलायुक्त झाँसी डॉ० अजय शंकर पांडेय जी के निर्देशन में गठित 'पर्ल्स ऑफ बुंदेलखंड सोसायटी, झाँसी' द्वारा आयोजित उनके सम्मान समारोह ' पर्ल्स ऑफ बुंदेलखंड / बुंदेलखंड के मोती - प्रो० राधाचरण गुप्ता, महान गणितज्ञ' में मिला। इस सम्मान समारोह में हम बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति के सदस्य के नाते पधारे थे। समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व मण्डलायुक्त झाँसी डॉ० अजय शंकर पाण्डेय जी ने अपने संबोधन में कहा था - " प्रो० राधाचरण गुप्ता बुंदेलखंड के मोती हैं। वे बुंदेलखंड की अमूल्य धरोहर हैं, जिन्होंने अपना सारा जीवन गणित के इतिहास पर शोध करने में लगा दिया। 500 से अधिक रिसर्च पेपर और 80 से अधिक किताबें लिखीं। अपने शोध से भारतीय - वैदिक गणित को दुनिया में फिर से प्रतिस्थापित किया और गणित के महत्त्व को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया। प्रो० गुप्ता के शिक्षा के लिए दिए योगदान का ही नतीजा है कि आईआईटी बॉम्बे द्वारा उनका जन्मदिवस मनाया जाता है। यह सम्मान कुछ ही लोगों को प्राप्त होता है। ऐसे प्रतिभावान व्यक्तित्व को हम 'प्रथम बुंदेलखंड का मोती सम्मान'  देकर गर्व महसूस कर रहे हैं। धन्य हो बुंदेलभूमि जिसने ऐसे सपूत को जन्म दिया। " 


सम्मान समारोह में प्रो० गुप्ता जी अपनी पत्नी सावित्री देवी गुप्ता के साथ पधारे थे। वो हमें सच्चे तपस्वी नजर आए। वो अन्य वैज्ञानिकों - प्रोफेसरों की तरह सूट - बूट नहीं पहने थे। वे सादा सफेद कुर्ता - पैंट और चप्पलें पहने थे। उनका सादा जीवन - उच्च विचार देखकर हम बहुत प्रभावित हुए। हम प्रो० गुप्ता जी को उनके गणित के इतिहास में अनोखे योगदान हेतु 'आधुनिक आर्यभट्ट' और 'बुंदेलखंड के रामानुजन' की उपमा देते हैं। 


प्रो० राधाचरण गुप्ता अभी 88 साल के हो गए हैं और झाँसी के सीपरी बाजार इलाके में रसबिहार कॉलोनी में निजनिवास पर रहते हुए आज भी दुनिया की चकाचौंध से दूर किताबों की दुनिया में डूबे रहते हैं और गणित के नए - नए तथ्यों और सिद्धांतों की खोज करने में लगे हुए हैं। 


भावना जर्नल में अक्टूबर 2019 को प्रकाशित सी० एस० अरविंद को दिए गए साक्षात्कार में प्रो० राधाचरण गुप्ता जी ने अपने जीवन के कई तथ्यों को साझा किया जिनमें से एक तथ्य है कि वो बचपन में लक्ष्मी व्यायाम मंदिर झाँसी में आर० एस० एस० (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की शाखा में जाते थे और नियमित व्यायाम करते थे। यहाँ इन्होंने व्यायाम विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की और मल्लखंभ, जिम्नास्टिक जैसे खेलों की अभ्यास किया और फिर लखनऊ विश्वविद्यालय में जिम्नास्टिक चैम्पियन और स्पोर्ट्स सिल्वर जुबली 1955 - 56 के लिए कप्तान भी रहे।  


प्रो० गुप्ता जी ने एमएससी करने के बाद लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज में एक साल अस्थायी प्रवक्ता के तौर पर गणित पढ़ाई और फिर उसके बाद सन 1958 में उन्हें बीआईटी (बिडला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी), मेसरा, राँची (झारखंड) में नौकरी मिल गई। जहाँ इन्होंने सन 1958 से 1961 तक वरिष्ठ प्रवक्ता, सन 1961 से 1976 तक असिस्टेंट प्रोफेसर, सन 1976 से 1982 तक एसोसिएट प्रोफेसर और सन 1982 से 1995 तक प्रोफेसर के तौर पर सेवाएँ दीं। यहाँ इन्हें सन 1979 से 1995 तक विज्ञान का इतिहास अनुसन्धान केंद्र का प्रभारी प्राध्यापक ( प्रोफेसर इन चार्ज, रिसर्च सेंटर फॉर हिस्ट्री ऑफ साइंस) नियुक्त किया गया। 


प्रो० गुप्ता सन 1973 में अमेरिकन सोसायटी ऑफ मैथमेटिक्स में 'द मैथमेटिक्स रिव्यू ' के रिव्यूवर (समीक्षक) रहे और सन 1980 में यू० कैलगरी, कनाडा के रिसर्च एसोसिएट भी रहे और सन 1982 से 1985 तक एसोसियेशन मैथमेटिक्स टीचर्स ऑफ इंडिया में लोकल कनवेनर टैलेंट कॉम्पटीशन्स भी रहे। वे फरवरी 1995 में विज्ञान के इतिहास के अंतर्राष्ट्रीय अकादमी के संबंधित सदस्य भी बने। सन1995 में गणित और तर्क के इतिहास के एमेरिटस प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त होकर अपनी जन्मभूमि झाँसी उन्होंने बीआईटी में नौकरी करने के दौरान डाक पत्राचार के माध्यम से ब्रिटिश इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कोर्स किया और सन 1971 में राँची विश्वविद्यालय, राँची (झारखण्ड) से प्रो० टी० के० सरस्वती अम्मा के निर्देशन में 'गणित के इतिहास' नामक शोध प्रबंध पर पी०एच०डी० की।


उनका गणित के प्रति असाधारण जुनून है। सन 1969 में प्रो० गुप्ता ने भारतीय गणित में 'प्रक्षेप' को संबोधित किया। उन्होंने गोविंदस्वामी और साइन टेबल के प्रक्षेप पर भी लिखा। भारतीय गणित के लगभग सभी पहलुओं और गणित के इतिहास पर उन्होंने लगभग 500 शोधपत्र और 80 किताबें लिखीं। सन 1979 में 'गणित भारती' पत्रिका  की स्थापना करके उसका निरन्तर संपादन और प्रकाशन किया। जिसने भारत में गणित के इतिहास पर शोध को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई।


सन 1991 में उन्हें नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी) का फैलो चुना गया और सन 2009 में उन्हें गणित के इतिहास के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित सम्मान " केनेथ ओ मे " के साथ ही ब्रिटिश गणितज्ञ आइवर ग्राटन - गिनीज अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पाने वाले वे एकमात्र भारतीय हैं।


आईआईटी बांबे (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुम्बई) ने प्रो० गुप्ता जी के चुनिंदा शोधपत्रों को "गणितानंद" नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है। भारतीय - वैदिक गणित के इतिहास पर केंद्रित यह पुस्तक गणित के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और शिक्षकों के बीच काफी चर्चित हुई है। इसके साथ ही आईआईटी गाँधीनगर (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गाँधीनगर) उनके सभी शोधपत्रों और किताबों को डिजिटलाइज करने जा रही है। भारतीय वैदिक गणित के तपस्वी के रूप में ख्यातिलब्ध होने के बाद भी वे बेहद सादगीपूर्ण जीवन जीते रहे। लेखन और शोध के अलावा उनकी कभी दुनिया की किसी चीज में दिलचस्पी नहीं रही। शहर के आयोजनों में शायद ही उन्हें कभी देखा गया हो। संयोग की बात है कि पिछली साल - 2022 में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी में मंडलायुक्त झाँसी डॉ० अजय शंकर पांडेय जी, जिन्हें हम उनके बुंदेलखंड की कला, साहित्य, संस्कृति के विकास में अतुलनीय योगदान हेतु " बुंदेलखंड के पुर्नजागरण के जनक " की संज्ञा से सम्बोधित करते हैं, की अनोखी पहल पर प्रो० गुप्ता जी को पर्ल्स ऑफ बुंदेलखंड / बुंदेलखंड के मोती सम्मान देकर एक सार्वजनिक समारोह में सम्मानित किया गया था। आज 25 जनवरी 2023 को गणतंत्र दिवस 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर उसी बुंदेलखंड के मोती को भारत सरकार ने साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान - पद्मश्री देने की घोषणा करके उनकी साधना को सम्मान दिया है। हम प्रो० राधाचरण गुप्ता जी को पद्मश्री से नवाजे जाने पर भौत - भौत बधाई देते हैं और उनकी साधना को नमन करते हैं।




©️ गिरजाशंकर कुशवाहा

'कुशराज झाँसी'


(युवा बुंदेलखंडी लेखक, सदस्य - बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, सामाजिक कार्यकर्त्ता)


26/1/2023 _ 5:30 शाम, झाँसी बुंदेलखंड






















Monday 23 January 2023

भारतीय संस्कृति की परिभाषा - कुशराज झाँसी

 कुशराज झाँसी के अनुसार भारतीय संस्कृति की परिभाषा -

 " भारतीय संस्कृति एक ऐसी सनातन आचरण पद्धति है जिसमें व्यक्ति को नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए जीवन जीना चाहिए और सोलह संस्कारों का जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में निर्धारित रीति रिवाज से जरूर पालन करना चाहिए। " 


©️ कुशराज झाँसी

23/1/23 _ 10:15 रात _  झाँसी






भारतीय समाज की संवेदनशीलता पर कुशराज झाँसी की टिप्पणी....

वो पहले दर्ज करूँगा, जिस पर समाज ज्यादा संवेदनशील है। स्त्री की आजादी, प्यार और जरूरतों जैसे संवेदनशील मुद्दों को जरूर दर्ज करूँगा, जिनको समाज समस्या मानता आया है अब तक लेकिन हम उनका समाधान लाए हैं। समाधान है संस्कारवान बनो, सचेत रहो और पढ़ाई करो जिससे आजादी भी मिलेगी, प्यार भी मिलेगा और जरूरतें पूरी भी होंगी।


©️ कुशराज झाँसी


23/1/23 _ 6:30 शाम, झाँसी




Monday 16 January 2023

झाँसी के युबा कबी सतेन्द सिंघ किसान कीं तीन कछियाई - बुंदेली कबिताएँ

 झाँसी के युबा कबी सतेन्द सिंघ किसान कीं तीन कछियाई - बुंदेली कबिताएँ



१. " किताबें " 

Kitabein - किताबें - Books



दोस्ती और पियार में

सिरप किताबेंईं देऊत

दूसरन की तराँ

नईं देऊत फूला


फूला भी देंएं चज्जे

नौकरी लग जाबे पे

या काम - धंदे में लग जाबे पे

इसकूल और कालेज के टैम 

उर बेरुजगारी में नईं


फूला देबो उतेक जरूरी नईंयां

जितेक जरूरी हैगो किताबें लेबो - देबो

कायकी किताबन सेंईं हुज्जे नई किरानती

जीसें बदले हमाओ समाज


आए बिरोबरी

देहाती उर सैहरी में

किसान उर बेपारी में

गरीब उर अमीर में

सबसें जादाँ जनीमान्सन में


जनीमान्सन खों बिरोबरी मिलेंईं चज्जे

समाजिक, सिक्छाई, धनाई और नेताई

ऐईसें हम दोस्ती और पियार में

हमेसां देहैं किताबें

फूला कभऊँ नईं

काम - धंदे में लग जाबे पे भी नईं

किताबेंईं फूला हैंगीं

हमाए लानें।



२. " डाँग बचाओ "

 Dang Bachao - जंगल बचाओ - Save forest



डाँग बचाओ, डाँग बचाओ।

रूख लगाओ, रूख लगाओ।।


डाँग हुज्जे तबईं बरसा होए,

बरसा होए तबईं पानूँ होए।


पानूँ हुज्जे तबईं खेती होए,

खेती होए तबईं नाज होए।


नाज हुज्जे तबईं रोटी बनपे,

रोटी बनपे तबईं हमाई भूँक मिटपे।

     

भूँक मिटपे तबईं जीव बचपें,

जीव बचपें तोई जीबन बचपे।


जीबन बचपे तोई हम सब बचपें,

डाँग नईं बचपे तौ हम नईं बचपें।


ऐईसें...


डाँग बचाओ, डाँग बचाओ।

रूख लगाओ, रूख लगाओ।।



३. " पैचान "

  Paichan - पहचान -  Identity



तुम सब कछू देखतई,

बिन ढकें अंखियन खों।


फिर काय रोकत हमें?

दुनिया की असलियत देखबे खों।


काय हमें परदा - घूंगट करबे खों दबाव डारतई?

धरम के कानूनन की जंजीरन में जकड़तई।


काय कुरीत - परम्परा चलाऊतई?

उर हमें नीचो दिखाऊतई।


आखिर काय?

चारदीबार में कैद रखतई।


तुम ऐसो काय करतई?

जुवाब देओ हमें।


अब हम जग गए हैंगे,

अपनी गरिमा पैचान गए हैंगे।


तुमाई कौनऊँ कुरीत - परंपरा नईं मानहैंगे,

अब हम भी दुनिया देखहैंगे।


चेरा नोंईं ढाकें अब हम अपनी पैचान दिखाहैंगे,

बहुद्दरी उर गरिमा सें नओ इतिहास बनाहैंगे।


कौनऊँ मौ कन्यादान ना करबे,

मोए लानें कौऊ दहेज ना देबे,

कौनऊँ मोई पेट में हत्या ना करबे,

उर ना कौऊ मौ बलात्कार करबे।


जा चेतावनी हैगी सारे जहाँ खों,

सुदर जाओ, संभल जाओ।


अगर हम नईं रै पैहैं यी दुनिया में,

तो मोए बिन तुमाओ कौनऊँ अस्तित्त्व नईंयां।


कायकी हमईं तुमें जनम देऊतई,

तुमाओ लालन - पालन करतई,

सिक्छा - संस्कार भी तो देऊतई,

फिर भी तुम हमेंईं धिक्कारतई।


समझ जाओ, संभल जाओ।

हम तुमसें कभऊँ ना कम हते, 

ना हैं उर ना होएं।


हर मोड़ पे तुमाओ सामनो करहैं,

कायकी हम साहसी हैं,

बीरांगना हैं और जगत जननी भी।।



 ©️  सतेन्द सिंघ किसान


(बुंदेलखंडी युबा लिखनारो, सदस्य : बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, समाजिक कारीकरता)


रचनाटैम :- ११ जनबरी २०२३, झाँसी

बिधा :- कबिता (काब्य)

मातभासा :- कछियाई - किसानी - बुंदेली (बुंदेलखंडी)

लेखन :- हिन्दी और बुन्देली में शोध, लेख, कविता, कहानी, डायरी इत्यादि।

शिक्षा :- दिल्ली विश्वविद्यालय से बी०ए० हिन्दी ऑनर्स, बुंदेलखंड कॉलेज झाँसी से कानून स्नातक एवं एम० ए० हिन्दी।

प्रकाशित किताब :- पंचायत (हिन्दी कहानी एवं कविता संग्रह) २०२२

ईमेल :- kushraazjhansi@gmail.com

सम्पर्क :- 8800171019, 9569911051

पतो :- नन्नाघर, जरबौ गॉंव, बरूआसागर, झाँसी (बुंदेलखंड) – २८४२०१








 





हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी खों अथाई की बातें तिमाई बुंदेली पत्तिका भेंट.....

  हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी में मुखिया आचार्य संजै सक्सेना जू, आचार्य नबेन्द कुमार सिंघ जू, डा० स्याममोहन पटेल जू उर अनिरुद्ध गोयल...