Wednesday 8 March 2023

फाग / होली की भौत - भौत बधाई - कुशराज झाँसी

 रंगो के त्यौहार फाग / होली की भौत - भौत बधाई 💐💐💐♥️💛💚


बुरा न मानो होरी है... सारे बैर भाव को भूलकर आकर प्रेम से लगे मिलो और होली पे रंगों, गुलाल, अबीर में सराबोर होकर जिंदगी में खुशियां लाओ। - कुशराज झाँसी



दैनिक भास्कर से साभार - : जिस होली के त्यौहार  को सारी दुनिया बड़ी धूमधाम से  मनाया जाता है, उसकी शुरुआत रानी लक्ष्मीबाई के शहर झाँसी - बुंदेलखंड से हुई थी। सबसे पहली बार होलिका दहन झाँसीसी के प्राचीन नगर एरच में ही हुआ था। एरच में एक ऊंचे पहाड़ पर वह जगह आज भी मौजूद है, जहां होलिका दहन हुआ था। इस नगर को भक्त प्रह्लाद की नगरी के नाम से जाना जाता है। झाँसी से एरच करीब 70 किलोमीटर दूर है।


भक्‍त प्रहलाद से जुड़ी है घटना -: 

- पुराणों के आधार पर होली मनाए जाने के पीछे की घटना भक्त प्रहलाद से जुड़ी हुई है।

- सतयुग में हिरण्यकश्यप राक्षस का राज था। हिरण्यकश्यप का भारत में एक छत्र राज था।

- झांसी के एरच को हिरण्यकश्यप ने अपनी राजधानी बनाया। घोर तपस्या के बाद उसे ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मिल गया। इससे वह अभिमानी हो गया।

- वह खुद को देवता मानने लगा और उसने प्रजा को अपनी पूजा कराने से मजबूर कर दिया, लेकिन हिरण्यकश्यप की यह बात उसके ही पुत्र भक्त प्रहलाद ने नहीं - मानी और उसकी पूजा करने से इनकार कर दिया।

- वह भगवान विष्‍णु की पूजा-अर्चना करने लगा। इससे हिरण्यकश्यप क्षुब्ध हो गया। उसने प्रहलाद को मारने का मारने का षड़यंत्र रचना शुरू कर दिया।

हाथी से कुचलवाया

- हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को मारने की कोशिश की। उसने प्रहलाद को हाथी से कुचलवाया।

- उंचे पहाड़ से बेतवा नदी में धक्का दिया, लेकिन प्रहलाद बच गए। जहां प्रहलाद नदी में गिरे, वह जगह भी मौजूद है।

- कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को जिस जगह बेतवा नदी में फेंका था, उस जगह पाताल जैसी गहराई है।

- आज तक उस जगह की गहराई की कोई थाह नहीं ले पाया है।

- यहां पहाड़ पर स्थित नर सिंह भगवान की गुफा में तपस्या करने वाले जागेश्वर महाराज बताते हैं कि कई प्रयास विफल होने के बाद हिरण्यकश्यप ने होलिका के साथ षड़यंत्र रचा।

- होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी। उसे वरदान था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती। यह भी था कि जब होलिका अकेली अग्नि में प्रवेश करेगी, तभी अग्नि उसे नुकसान नहीं पहुंचायेगी।

- वहीं, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से भक्त प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश करने को कहा। वह अपने वरदान के बारे में भूल गई कि यदि किसी और के साथ जाएगी तो खुद ही जल जाएगी और हिरण्यकश्यप की बातों में आ गई।


प्रहलाद के बचने की खुशी में लगाया गया रंग -: 


- एरच के ग्राम ढिकौली से बने उंचे पहाड़ पर अग्नि जलाई गई। होलिका भक्त प्रहलाद को लेकर इसी अग्नि में प्रवेश कर गई।

- चूंकि, होलिका को वरदान था कि वह अकेली जाएगी, तभी बचेगी। फिर भी वह भक्त प्रहलाद को लेकर आग में कूद गई।

- इससे वह उस आग में जलकर खाक हो गई, जबकि भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद को अग्नि से बचा लिया। आसपास क्षेत्र में भीषण आग फैल गई।

- इससे बौखलाए हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र भक्त प्रहलाद को झांसी के एरच में स्थित इसी पहाड़ जहां उसकी बहन होलिका जली, पर एक अग्नि से तपे हुए खम्भे से बांध कर मारना चाहा।

- खडग से उस पर प्रहार किया। तभी भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर डाला।

- हिरण्यकश्यप के मरने से पहले ही होलिका के रूप में बुराई जल गई और अच्छाई के रूप में भक्त प्रहलाद बच गए।

- उसी दिन से होली को जलाने और भक्त प्रहलाद के बचने की खुशी में अगले दिन रंग गुलाल लगाए जाने की शुरुआत हो गई।


यह कहते हैं जानकार -:


- इतिहास के जानकार हरिओम दुबे बताते हैं कि एरच को भक्त प्रहलाद की नगरी के रूप में ही जाना जाता है।

- उनके पास सिक्कों के संग्रह में से एक दुर्लभ सिक्का भी है, जिसमें एरच का नाम ब्रहम लिपि में एरिकच्छ लिखा है और नृत्य करती हुई मोर बनी हुई है।

- दतिया जिले में प्राप्‍त अशोक के शिलालेख में लिखी लिपि का तरीका एक जैसा है। इससे प्रतीत होता है कि भक्त प्रहलाद की नगरी में यह सिक्का में लगभग 2300 साल पहले चलता था।


बदहाल हालत में यह स्थान - :


- धार्मिक महत्व होने के बाद भी यह स्थान बदहाल हालत में है।

- राज्य सरकार ने इस स्थान को विकसित करने और धार्मिक महत्व के स्थानों को विकसित करने के लिये पैकेज दिया है।

- पुरातत्व विभाग के पुरातत्व अधिकारी एसके दुबे का कहना है कि मान्यता है कि होली की शुरुआत यहीं से हुई थी। इस लिहाज से यह स्थान बेहद महत्वपूर्ण है।


बुंदेलखंड के विश्वविख्यात लोक साहित्यकार महाकवि ईसुरी की होली पर फागें...


           १.


मोहन भर पिचकारी खींचें! 

मारें जाँग दुबीचें! 

लगतन धार लौट गई सारी गई तिन्नी के नीचे॥ 

हात लगाय भुअन के भीतर, चली गई दृग मीचें॥ 

तेइ पै स्याम पर गए पीछें, रंग गुलाल उलीचें॥ 

विन्द्रावन में भई ‘ईसुर’, रंग केसर की कीचें॥


              २.


ऐसी पिचकारी की घालन! 

कहाँ सीक लइ लालन! 

कपड़ा भींज गए बड़ बड़ कें, जड़े हते जर तारन॥ 

अपुन फिरत भींजे सो भींजे, भिंजै फिरे ब्रजबालन॥ 

तिन्नी तरें छुअत छाती हौ, पीक लाग गई गालन॥ 

‘ईसुर’ आज मदन मोहन ने, कर डारी बेहालन॥


©️ गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी' / 'सतेंद सिंघ किसान'

(युवा बुंदेलखंडी लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता, वकील)

Monday 6 March 2023

रामान समागम २०२३ - रामायण कॉन्क्लेव 2023 झाँसी

रामान समागम २०२३ ( कछियाई - बुंदेली)



उत्तर परदेस सिरकार के पर्रटन बिभाग, संसकिरती बिभाग, लोक और आदिबासी कला और संसकिरती संस्तान, अजुध्या सोद संस्तान और जिला पिरसासन झाँसी द्वाराँ सिरकारी संग्रालओ झाँसी में २- ३ मार्च २०२३ खों आयोजित दो दिनाँई रामान समागम झाँसी में २ मार्च खों दूसरे सत्त में हमें सामिल होबे कौ सौभाग्य मिलौ। 




बुंदेली गाबो - बजाबो, बुंदेली राई नाच, सिरीराम पे आधारित कत्थक नाच - नाटिका और चिरगांओं की रामलीला (धनुस जग्ग) कौ अनोखो पिरदरसन देखो। सबसें उमदा हमें बुंदेली राई के जुगमानुस पदमसिरी रामसहाय पांडे 'नन्ना' जू की अगुआई में ऊकी टीम द्वारा करौ गओ राई नाच लगो। ९३ साल की उमर में रामसहाय जू कौ बुंदेली राई और बुंदेली संसकिरती के लानें समरपन सें हम भौत पिरभाबित भए। बिनकी टीम में महाराजा छत्तसाल बुंदेलखंड दुनियाईग्यानपीठ, छतरपुर की छात्तरान नें भागीदारी करी। जो अनोखो  राई नाच देखकें हमें लगो के आज के युबा - युबतियाँ भी अपनी बुंदेली संसकिरती की पताका पूरी दुनिया में फैराबे में लगे हैंगे। जा बड़े गरब की बात हैगी।



यी कारीकिरम में पदमसिरी रामसहाय पांडे जू; बुंदेली लोक - संसकिरती और बुंदेली भासा - साहित्य के पुरोधा, 'बुंदेली बसंत' पत्तिका के संपादक, महाराजा छत्तसाल बुंदेलखंड दुनियाईग्यानपीठ, छतरपुर के परीक्छा नियंता और हिंदी बिभाग में आसीन आचार्य बहादुर सिंघ परमार जू सें मिलबे और अपनी लिखाई, बुंदेली भासा के बिकास आदि पे बतकाओ करबे कौ और चिरगांओं निबासी इतिहासकार बुंदेली संसकिरती के पुरोधा सिरी रामपिरकास गुप्ता कक्काजू सें बुंदेलखंड के इतिहास पे चर्चा करबे और बुंदेली कला और संगीत के पुरोधा दतिया निबासी बिनोद मिसर सुरमनी जू सें बुंदेली चित्तकला पे बतकाओ करबे और बुंदेलखंड के इनसाक्लोपीडिया, बुंदेली साहित्य - संसकिरती और इतिहास के पुरोधा, उत्तर परदेस सिरकार के दर्जा बाय राज्जमंत्तरी, दुनियाई बौद्ध सोद संस्तान के उपाध्यक्छ बमनुआँ झाँसी निबासी सिरी हरगोबिंद कुसबाहा जू सरीखे बिद्वानन सें मुखातिब होबे कौ सौभाग्य मिलौ। हमाए संगी - साथी रफत हुसैन कालपी, बिशाल यादब मऊरानीपुर और अंसू पाल मोंठ भी संगे रए।




यी ऐतिहासिक आयोजन के लानें हम उत्तर परदेस सिरकार, कलाकारन, बिद्वानन और जनमानस कौ भौत - भौत आभार जताऊतई।


©️ गिरजासंकर कुसबाहा 'कुसराज झाँसी'

(बुंदेलखंडी युबा लिखनारो, सदस्य - बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, संस्तापक - बुंदेली बुंदेलखंड आंदोलन)


 रामायण कॉन्क्लेव 2023 झाँसी (हिन्दी)


उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग, संस्कृति विभाग, लोक एवं जनजाति कला एवं संस्कृति संस्थान, अयोध्या शोध संस्थान एवं जिला प्रशासन झाँसी द्वारा राजकीय संग्रहालय झाँसी में 2 - 3 मार्च 2023 को आयोजित दो दिवसीय रामायण कॉन्क्लेव झाँसी में 2 मार्च को द्वितीय सत्र में हमें सहभागिता करने का सौभाग्य मिला। 


बुन्देली गायन, बुन्देली राई नृत्य, श्रीराम पर आधारित कथक नृत्य नाटिका और चिरगांव की रामलीला (धनुष यज्ञ) का अद्भुत प्रदर्शन देखा। सबसे अच्छा हमें बुन्देली राई के युगपुरुष पद्मश्री रामसहाय पांडेय 'नन्ना' के नेतृत्व में उनकी टीम द्वारा किया गया राई नाच लगा। 93 साल की उमर में रामसहाय जी का बुन्देली राई और बुन्देली संस्कृति के प्रति समर्पण से हम काफी प्रभावित हुए। उनकी टीम में महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी, छतरपुर की छात्राओं ने सहभागिता की। ये अद्भुत राई नाच देखकर हमें लगा कि आज के युवा - युवतियाँ भी अपनी बुन्देली संस्कृति का परचम विश्व पटल लहराने के लिए लगे हुए हैं जो बड़े गर्व की बात है। 


इस कार्यक्रम में पद्मश्री रामसहाय पांडे जी; बुन्देली लोक - संस्कृति और बुन्देली भाषा - साहित्य के विशेषज्ञ, 'बुन्देली बसंत' पत्रिका के संपादक, महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर के परीक्षा नियंत्रक एवं हिन्दी विभाग में पदस्थ प्रोफेसर बहादुर सिंह परमार जी से मिलने और अपने लेखन, बुन्देली भाषा के उत्थान आदि पर विचार - विमर्श करने का साथ ही चिरगांव निवासी इतिहासकार और बुन्देली संस्कृति के विशेषज्ञ श्री रामप्रकाश गुप्ता चाचाजी से बुंदेलखंड के इतिहास पर चर्चा करने और बुन्देली कला और संगीत के विशेषज्ञ दतिया निवासी विनोद मिश्र सुरमणि जी से बुन्देली चित्रकला पर विचार - विमर्श करने और बुंदेलखंड के इनसाक्लोपीडिया , बुन्देली साहित्य - संस्कृति और इतिहास के पुरोधा, उत्तर प्रदेश के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री, अंतराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के उपाध्यक्ष वमनुवां झाँसी निवासी श्री हरगोविंद कुशवाहा जी सरीखे विद्वानों से मुखातिब होने सौभाग्य मिला। हमारे साथी रफत हुसैन कालपी, विशाल यादव मऊरानीपुर और अंशु पाल मोंठ भी साथ में रहे।


इस इतिहास आयोजन के लिए हम उत्तर प्रदेश सरकार, कलाकारों, विद्वानों और उपस्थित जनमानस का भौत - भौत आभार जताते हैं।


©️ गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'

(बुंदेलखंडी युवा लेखक, सदस्य - बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, संस्थापक - बुन्देली बुंदेलखंड आंदोलन)


५/३/२०२३ _ झाँसी


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हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी खों अथाई की बातें तिमाई बुंदेली पत्तिका भेंट.....

  हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी में मुखिया आचार्य संजै सक्सेना जू, आचार्य नबेन्द कुमार सिंघ जू, डा० स्याममोहन पटेल जू उर अनिरुद्ध गोयल...