Saturday 12 November 2022

किसान विचारक - कुशराज झाँसी की बदलाओकारी किसान - स्त्री कहानी -: रीना

कुशराज झाँसी की किसान विमर्श की एक अनोखी कहानी...

                     

                   कहानी  - रीना


रीना भोर अपने आँगन में झाडू लगा रही थी। नाटे और गोरे बदन पर फटी - पुरानी साड़ी पहने, कड़ाके की ठण्ड से रोम - रोम खड़े हो रहे थे और वह मैला - कुचैला हल्का साल ओढ़े रोजाना का काम निपटा रही थी। उसने भुनसारें चार बजे डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित कुएँ से पीने और खर्च के लिए पानी भर लिया था क्योंकि घर के पास वाला हैण्डपम्प खराब पड़ा था।

                      पानी भरने के साथ ही गोबर इकट्ठा कर लिया था। जिससे झाडू से निपटने पर ईंधन हेतु कण्डे पाथे और डलिया लेकर तरकारी बेचने गाँव में निकल गयी। बड़ी मधुर आवाज दे रही थी - " बाई हरौ, भज्जा - बिन्नू  ले लो भटा; ताजे - ताजे हाले भटा। बीस रूपए में डेढ़ किलो, नाज  के बराबर।" माते भज्जा ने तीन किलो भटा खरीदे और मन्नू काकी ने नाज के बराबर। आज सवा सौ रूपए और चार किलो नाज की आमदनी हुई। हाथ - मुँह धोया और खाना पकाने बैठ गई। चना की दाल बनाई और जब रोटी सेंक रही थी तो लकड़ियों और भटन के डूठों का धुआँ आँखों में हद से बेजां लग रहा था। आँखे मडीलते - मडीलते लाल हो गईं, बड़ी मश्किल से रोटी सेंक पाईं। 

                       इतने में पतिदेव शिम्मू हार से पिसी में पानी देकर लौट आए। ढाई बीघा के आधे खेत में पिसी लगी थी और आधे में तरकारियाँ और मटर। माघ की अँधेरी रात में शिम्मू गायों से खेत की रखवाली करते, उसी सस्ते और रद्दी कम्बल को ओढ़कर जो पिंटू नेताजी ने पिछले चुनाव में बाँटा था। हल्की सी टपरिया डाले, मूँगफली के टटर्रे से तापते - तापते रात गुजारते। दिन में कलेवा करके खेत में लग जाते, कभी रीना के साथ तरकारियाँ तोड़वाते तो कभी पिसी में खाद देते।

                       रीना डाँग में बकरियाँ चराने निकल जाती। दोपहर का भोजन न करके कन्दमूल फलों से गुजारा करती। देर रात तक बड़े बेटे करन के साथ जागती रही थी क्योंकि वह डाकिया की परीक्षा देने झाँसी जा रहा था। इसलिए उसको नींद आ गयी और तीन पागल कुत्तों ने उसकी एक बकरी को तोड़ दिया। बिलखती हुई आज जल्दी घर आ गई। शाम को पतिदेव ने उसे बहुत डाँटा और अगले सुबह तीनों बकरियाँ खटीक को बेच दी गईं। अब बाल - बच्चे दूध से भी बंचित हो गए। ये बकरियाँ ही उनकी गायें थीं।

                    छोटा बेटा वरुन बगल के गाँव में एक हॉटल में बर्तन धोने का काम बड़ी जिम्मेदारी से करता। वह सिर्फ कक्षा छह तक पढ़ा है। वह हमेशा कहता - " अम्मा! बड़े भज्जा पढ़ जाएँ, हम तो ऐसे ही ठीक हैं।" करन वरुन से बहुत प्यार करता। वह किसी भी परिस्थिति में उसे दुःखी नहीँ होने देता। करन ने बीस किलोमीटर साईकिल भांजकर इण्टर तक पढाई पूरी की और डाकिया बन गया। वरुन बेचारा अब भी जूठी प्लेटें धोता और अम्मा - पापा खेत में दिनरात लगे रहते हैं।

                  रीना दूसरों के खेतों में मजूरी करती और कभी बेलदारी करके अपनी लाड़ली पिंकी के विवाह हेतु धन इकट्ठा करती। हफ्ते में एक बार जंगल में लकड़ियाँ काटने जाती। शाम को चिलमी जलाकर अपने कच्चे - खपरैल घर में उजाला करके रात का खाना पकाती। एकसाथ सब प्रेम से खाना खाते और शिम्मू रोजाना की भाँति खेत की रखवाली हेतु हार को निकल जाते। लाड़ली का वैशाख में विवाह आ गया। लड़के वालों ने डेढ़ लाख का दहेज माँगा है। करन की नौकरी को अभी चार महीने ही हुए हैं। घर में जैसे - तैसे एक लाख रूपए का बंदोबस्त हुआ और पचास हजार तीन प्रतिशत प्रति सैकड़ा की मासिक दर से नमेश सेठ से कर्जा लेकर लाड़ली का विवाह किया।

                  पिंकी की सास सुबह - शाम ताने मारती और छोटी - छोटी बातों पर झगड़ती रहती। बार - बार कहती - " तेरे बाप ने फ्रिज नहीँ दिया, वॉशिंग मशीन नहीँ दी।" खाने में भी कानून करती - " तरकारी में तेल ज्यादा डाल दिया, नमक का तो स्वाद ही नहीँ है।"  पिंकी को भरपेट खाना भी नहीँ खाने देती। वह चिंता में रात को बिना खाए ही सो जाती। एक साल के अंदर पिंकी का पति भी उसकी मारपीट करने लगा। वह अपनी पड़ोस की युवती ऋतु के प्रेमजाल में फँसा था। उसे पिंकी की बिल्कुल भी परवाह नहीँ थी, वह उसे घर की नौकरानी से बदत्तर समझता था। डेढ़ साल के अंदर पिंकी ने दुष्ट पति और कपटी सास से तंग आकर पंखे से लटककर अपनी इहलीला समाप्त कर ली।

                 करन की भी नौकरी छूट गई क्योंकि ग्रामप्रधान ने रिश्वत देकर उसकी जगह अपने बेटे की नौकरी लगवा दी। रीना के घर पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। शिम्मू बेचारा, सीधा - साधा बुंदेली किसान पिंकी के ससुराल वालों का कुछ न बिगाड़ सका। पिंकी के मरने के चार साल बाद करन का गरीब लड़की से संबंध तय हुआ। विवाह में दहेज की तो दूर की बात, बहु के रिश्तेदारों के स्वागत - सत्कार की व्यवस्था शिम्मू ने ही की। शिम्मू तीन - चार लाख के कर्ज में डूब गया। पिछले दो साल से भयंकर सूखा पड़ रही थी। सारा परिवार दाने - दाने के लिए मुहताज हो गया। कुछ गाँववासी मजूरी करने दिल्ली निकल गए तो कुछ अपने दूर के रिश्तेदारों के यहाँ रोजगार करने लगे। नमेश सेठ बार - बार शिम्मू से कर्ज चुकाने  के लिए गालीगलौच करता। शिम्मू डर जाता और मंगलवार को टेंशन में आकर इमली से लटककर फाँसी लगा लेता और कर्ज में ही अपने और किसान भाईयों की भाँति वही कहानी दुहराता।


      ©️ कुशराज झाँसी 

_ 18/दिसम्बर/2018_01:02दिन_जरबौगाँव




बदलाओकारी विचारधारा (कुशराजवाद) - कुशराज झाँसी

 बदलाओकारी विचारधारा (कुशराजवाद) *


हर युग की परिस्थितियां, समस्याएँ और विचारधाराएँ अलग - अलग होती हैं। विचारधाराओं के बल पर ही ये दुनिया चल रही है। हर व्यक्ति और वस्तु की अपनी अनोखी पहचान और अद्वितीय अस्तित्व होता है लेकिन हर व्यक्ति सामूहिक रूप से एक विचारधारा का अनुसरण करके जीवन में आगे बढ़ता है। किसी न किसी विचारधारा का समर्थन करना और उससे जुड़कर काम करना मानव का जन्मजात लक्षण है इसलिए हम भी इस दुनिया को अपनी एक विचारधारा उपहारस्वरूप दे रहे हैं। उम्मीद है हमारी विचारधारा पर भी विचार किया जाएगा और जिन्हें विचारधारा पसंद आएगी वो इस विचारधारा को आगे बढ़ाने का काम भी करेंगें।


अरे दुनियावालों! लीजिए अपना उपहार - हमारी अपनी विचारधारा "बदलाओकारी विचारधारा"।


दरअसल बात 31 दिसम्बर सन 2018 की है, जब हम अपनी जन्मभूमि जरबौगॉंव, जिला झाँसी में थे।

क्योंकि दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक डिग्री की सेमेस्टर परीक्षाएँ देकर छुट्टीयों में घर लौटे थे। तभी हमारे मन में विचार आया कि इस दुनिया ने हमें बहुत सारे संसाधन उपहार में दिए। क्यों न आज हम इस दुनिया को एक उपहार दे दें और वो उपहार हमारी अपनी नई विचारधारा 'बदलाओकारी विचारधारा' का है। 



जब हमारे मन में इस विचारधारा की उत्पत्ति हुई तब हम इसे 'परिवर्तनवाद' नाम से सम्बोधित किए। और फिर आगे इस विचारधारा पर काम करने पर प्रवर्त्तक होने के नाते इसे 'कुशराजवाद' भी कहा जाने लगा। इसी परिवर्तनवाद को आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली में हमने अपने हंसराज कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी में रहकर 'परिवर्तन लेखक समिति' का गठन किया और नए - नए लेखक - लेखिकाओं के विचारों को परिवर्तन लेखक समिति द्वारा प्रकाशित 'बहुभाषी स्वतंत्र युवा लेखक पत्रिका : परिवर्तन' में विविध भारतीय और वैश्विक भाषाओं में प्रसारित किया। कुछ सामाजिक - राजनैतिक अड़चनों की बजह से परिवर्तन समिति और पत्रिका पर काम करना बंद करना पड़ा। खैर जो हुआ ठीक ही हुआ। 


नई शुरुआत करने में समय तो लगता ही है इसलिए हमनें विचारधारा को भरपूर समय दिया और आज मेहनत रंग लाई और इस विचारधारा को एक और शाश्वत नाम मिला 'बदलाओकारी विचारधारा'।


चूँकि हम अपनी इस विचारधारा को बदलाओकारी विचारधारा कहना इसलिए ज्यादा पंसद करते हैं क्योंकि हम पर अपनी मातृभूमि बुंदेलखंड का कर्ज है, जिस कर्ज को हम मातृभूमि के लिए कुछ नया और अनोखा काम करके उतारना चाहते हैं और मातृभूमि की बुंदेलखंडी संस्कृति, भाषा, समाज और साहित्य को संरक्षित कर; उसका सारी दुनिया में प्रचार - प्रसार करना चाहते हैं। इसलिए हम बुंदेलखंड की तस्वीर और तकदीर बदलने के लिए बुंदेलखंड को अपनी जन्मभूमि के साथ - साथ कर्मभूमि बनाकर और बुंदेलखंडी विचारकों और समाज का साथ लेकर कदम से कदम मिलाकर लक्ष्य को पाने के लिए संकल्पित हैं। 'परिवर्तन' को बुंदेलखंडी में 'बदलाओ' कहते हैं इसलिए हम बुंदेलखंडी भाषा की अस्मिता को बनाए रखने के लिए अपनी विचारधारा को 'बदलाओकारी विचारधारा' नाम दिए हैं।


'बदलाओकारी विचारधारा' नाम का समर्थन और विचारधारा को पल्लवित - पोषित करने के लिए हमारी साथी जिला जालौन; बुंदेलखंड की नवोदित लेखिका और बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की शिक्षा स्नातक की छात्रा 'समीक्षा गौतम' आज तारीख 26 मार्च 2022 को साथ आयीं हैं और बदलाओ विचारधारा पर अपने विचार भी प्रस्तुत की हैं। समीक्षा गौतम के अलावा एक और हमारे साथी जिला ललितपुर; बुंदेलखंड के नवोदित लेखक और बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कृषि स्नातक के छात्र 'अभिषेक बबेले' भी साथ आए हैं। 


आज से बदलाओकारी विचारधारा के तीन मुख्य विचारक हो गए हैं - कुशराज झाँसी, समीक्षा गौतम और अभिषेक बबेले।


हम तीनों ने मिलकर निश्चित किया है कि अपनी इस बदलाओकारी विचारधारा को विकसित करने के लिए बुंदेलखंड के युवा लेखक - लेखिकाओं, कवि - कवयित्रियों, साहित्य और बुंदेली भाषा को बाजिब मुकाम पर पहुँचाने के लिए 'बुंदेलखंडी युवा लेखक - लेखिका महापंचायत' नामक संगठन की स्थापना करते हैं। यह संगठन अनोखी पहचान के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत है।


अब हम बदलाओकारी विचारधारा को विस्तार से समझते हैं। हमारे विचार ही बदलाओकारी विचारधारा का आधार हैं। बदलाओकारी विचारधारा यानी कुशराजवाद एक दार्शनिक, राजनैतिक , साहित्यिक और सामाजिक सिद्धांत है। इस विचारधारा को साहित्य के क्षेत्र में 'बदलाओकारी साहित्यधारा' के नाम से जाना जाए और इसे सामाजिक - मानविकी के क्षेत्र में 'प्रेरणावाद' के नाम से जाना जाए।


हमारा मूल मन्त्र है कि "क्रान्ति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं।" हम दुनिया के हर क्षेत्र में आन्दोलन और क्रान्तियाँ करके, सार्थक परिवर्तन लाना चाहता है और विकास की गंगा बहाना चाहते हैं। 


हमारे विचारों से प्रभावित लोग और अनुयायी बदलाओकारी, कुशराजवादी, कुशराजे, परिवर्तनकारी, परिवर्तनवादी आदि नामों से अपने आपको सम्बोधित कर सकते हैं यदि उनकी आत्मा कहे तो। हम जैसे विचारकों के विचारों को भी बदलाओकारी विचारधारा की संज्ञा दी जाए क्योंकि यह दौर परिवर्तन और विकास का है।


परिवर्तन प्रकृति का नियम है। लेकिन हम कहते हैं कि क्रांति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं। क्रांति यानि आन्दोलन होने से परिवर्तन होते हैं। परिवर्तन होते हैं तो विकास जरूर होता है। किसी व्यवस्था, सिस्टम,अधिकार, सत्ता और संगठित तंत्र में कम समय में आधारभूत परिवर्तन होना ही ‘क्रान्ति’ कहलाती है। मानव इतिहास में अनेकों क्रांतियाँ होती आयी हैं और आज भी हो रही हैं। भविष्य में भी क्रान्तियाँ होती रहेंगी, जिनका होना दुनिया के लिए बहुत जरूरी है। हर क्रान्ति पद्धति, अवधि और प्रेरक वैचारिक सिद्धांत के मामले में बहुत अलग होती  है। अलग होना भी चाहिए क्योंकि विभिन्नताएँ बहुत जरूरी हैं, जो सबको पहचान दिलाती हैं। क्रान्तियों के परिणामों के बावजूद सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक संस्थानों में बहुत परिवर्तन होते हैं। क्रांति पर विद्वत्तापूर्ण विचारों की कई पीढ़ियों ने अनेकों प्रतिस्पर्धात्मक सिद्धांतों को जन्म दिया है और इस जटिल तथ्य के प्रति वर्तमान समझ को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।


हमारा विचार है कि वैचारिक क्रान्ति ही परिवर्तन ला सकती है। ऐसी प्रक्रिया जो क्रांति होने के साथ किसी व्यवस्था, सरंचना या कार्यपद्धति में सुधार करके एक नए रूप को जन्म देती है और जो कभी न रुकती है ‘परिवर्तन’ कहलाती है। समकालीन विश्व में हर क्षेत्र जैसे – समाज, शिक्षा, विज्ञान, साहित्य, सिनेमा, कृषि, राजनीति और धर्म इत्यादि में अनेकों परिवर्तन होने से विकास हो रहा है। विकास होना भी चाहिए क्योंकि यही तो बदलाओकारी विचारधारा का लक्ष्य है। इन परिवर्तनों की गति कभी तेज रही है तो कभी धीमी। कभी – कभी ये परिवर्तन अति महत्त्वपूर्ण रहे हैं तो कभी बिल्कुल महत्त्वहीन। कुछ परिवर्तन आकस्मिक होते हैं, हमारी कल्पना से परे और कुछ ऐसे होते हैं जिसकी भविष्यवाणी सम्भव है। कुछ से तालमेल बिठाना सरल है जबकि कुछ को सहज ही स्वीकारना कठिन है। कई बार हम परिवर्तनों के मूक साक्षी भी बने हैं। लेकिन अब बदलाओकारियों या परिवर्तनकारियों को मूक साक्षी बनने की जरूरत नहीं है। इन्हें सार्थक परिवर्तनों को अंजाम देना है।


व्यवस्था के प्रति लगाव के कारण मानव – मन इन परिवर्तनों के प्रति प्रारंभ में शंकालु रहता है परंतु बाद में उन्हें स्वीकार कर ही लेता है। अब समय है – परिवर्तनों को सहज स्वीकरने का। परिवर्तनकारियों के विचारों, नीतियों के साथ ऐसा ही है कि इनसे लोग भले ही देर से प्रभावित हों लेकिन प्रभावित होँगे जरूर। अब युग शुरू हो चुका है – परिवर्तन और विकास का। क्रांति और परिवर्तन के परिणामस्वरूप जिसकी उत्पत्ति होती है, उसे ही ‘विकास’ कहते हैं। विकास शाश्वत परिवर्तनों के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। परिवर्तन एक ऐसी प्रकिया है जो कभी नहीँ रुकती है। मनुष्य की अभिवृद्धि एवं विकास माँ के गर्भ से प्रारंभ होकर जन्म के बाद जीवनभर निरन्तर चलता रहता है। विकास कई अवस्थाओं से होकर गुजरता है क्योंकि इसके लिए बड़े संघर्ष करने पड़ते हैं। किसी अवस्था में विकास तीव्र होता है तो किसी में मंद तो किसी में सामान्य। यहाँ व्यक्तिगत भिन्नता भी देखने को मिलती है। मानव अभिवृद्धि से तात्पर्य उसके शरीर के बाह्य एवं आंतरिक अंगों में होने वाली वृद्धि होती है, जबकि मानव विकास से तात्पर्य उसकी अभिवृद्धि के साथ – साथ उसके शारीरिक एवं मानसिक व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों से होता है। विकास की प्रक्रिया एक अविरल, क्रमिक एवं सतत् प्रक्रिया है।


वैचारिक क्रांति ही परिवर्तन ला सकती है क्योंकि इस दुनिया में अनंत शक्ति विचारों में ही निहित है। विचार सर्वशक्तिमान हैं। विचार हमारी सोच पर निर्भर करते हैं। विचार और सोच का घनिष्ठ संबंध है। दार्शनिक और लेखक के विचारों से ही क्रांति होती है। लेखक समाज का सच्चा सृष्टा और दृष्टा होता है। कलम चलाना अंगारों पर चलने जैसा है। हम सबको अपनी प्रतिभा, हुनर और कौशल को पहचानना है। कलम की ताकत को मानना है क्योंकि हम सबके लिए कलम का बड़ा महत्त्व है। इसलिए हम कहते हैं कि “कलम ही मेरी ताकत है।”


हम बदलाओकारियों का विचार है कि –

“कलम चलायी है तो हर मुद्दे पर चलेगी।

वो भी निष्पक्ष भाव से चलेगी।

चाहे कुछ भी हो,

कलम नहीँ रुकेगी।

मरते दम तक भी नहीँ रुकेगी।।”


आप सबको हमारा एक ही सन्देश है –

"लिख तूँ लिख,

  सबकी सच्चाई लिख।

  सच लिखने में डरना मत,

  असली बकने में झिझकना मत।

  बेईमान तोय दबाएँगे,

  तूँ हरहाल में दबना मत।

  मौत से कभी डरना मत,

  काय मौत के बाद,

  फिर से जनम मिलत है।

  ईसें यी जनम तूँ डर गया,

  तो खुदको भी माफ नहीँ कर सकेगा।

  लिख तूँ लिख,

  सबकी सच्चाई लिख………….”


।। परिवर्तन लाओ – विश्वकल्याण पाओ।।

।। जै जै बदलाओकारी - जै जै बुन्देलखंड।।


हम अपनी इस बदलाओकारी विचारधारा को परिभाषित करते हुए सिर्फ इतना ही कहेंगें कि - "बदलाओकारी विचारधारा/कुशराजवाद एक ऐसी दार्शनिक अवधारणा है जिसके द्वारा क्रान्ति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं, को असलियत में लागू करना है। बदलाओकारी विचारधारा विश्वकल्याण की बात कर रही है। इसके द्वारा गाँवों का विकास, हर जगह समानता, अभिव्यक्ति की पूरी आजादी, सख्त कानून व्यवस्था, शिक्षा पर जोर, किसान-मजदूरों की दशा में सुधार करके सत्ता की बागड़ोर सारी दुनिया की भूँख मिटाने वाले धरतीपुत्र किसानों और घोर परिश्रमी मजदूरों को सौंपना है। इससे घिसी-पिटी मान्यताओं को मिटाकर भाषा, साहित्य, समाज, सिनेमा, संस्कृति और राजनीति में नवीनता  लाकर विकास करना है और आस्तिक बने रहना है।"


बदलाओकारी विचारधारा के प्रमुख लक्ष्यों में से सबसे पहला लक्ष्य 'आन्दोलन द्वारा अपने अधिकारों की प्राप्ति  है।' जैसा कि हम मानते हैं कि क्रान्ति, परिवर्तन और विकास प्रकृति से शाश्वत नियम हैं। क्रान्ति के ही रूप आन्दोलन और विद्रोह भी हैं। बदलाओकारी विचारधारा बच्चे से लेकर बूढ़े तक को आन्दोलन करके अपने अधिकारों और माँगों को पाने की पूरी छूट देती है। आन्दोलन भले ही अपने सगे – सम्बन्धियों के खिलाफ ही क्यों न करने पड़ें लेकिन आन्दोलन जरूर करने चाहिए। तभी सभी की सारी मूलभूत जरूरतें पूरी होंगीं और किसी का भी शोषण नहीं होगा। जो अब समय चल रहा है उसमें कोई भी चीज आसानी से मिलने वाली नहीं है। इसमें हर चीज को पाने के लिए बड़ा संघर्ष करने की जरूरत हो गयी है। ‘वीर भोग्यम् वसुंधरा’ अर्थात् ‘इस पृथ्वी का भोग वीर ही कर सकते हैं।’ नामक उक्ति सार्थक हो रही है। आन्दोलन भले ही अकेले करना पड़े या संगठित होकर लेकिन किसी को भी किसी भी हाल में पीछे नहीं हटना है क्योंकि हम सभी वीर हैं। आन्दोलन के परिणामस्वरूप हुए परिवर्तनों द्वारा ही सबके जीवन में सुख – समृद्धि आएगी। आन्दोलन सच्चा न्याय पाने के लिए करना पड़े या शोषण – अत्याचार के विरुद्ध। हर परिस्थिति में हमें साहस से कलम की दम पर तनकर खड़े रहना है क्योंकि कुछेक आन्दोलनकारियों को ही हार का सामना करना पड़ता है ज्यादातर आन्दोलनकारियों की जीत ही होती है। बदलाओकारियों को क्रान्ति करना जीवन का परम कर्त्तव्य मानना चाहिए और उसका दृढ़ निश्चय के साथ पालन करना चाहिए।


अपनी इस विचारधारा का दूसरा लक्ष्य 'गाँवों का सर्वांगीण विकास करना है।' हम गाँवों के विकास पर इसलिए जोर देना चाह रहे हैं क्योंकि शहरों और महानगरों का खूब विकास हो चुका है। आज 21 वीं सदी में भी भारत और दुनिया के कई गाँवों और पिछड़े इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन सेवाएँ, इंटरनेट सेवाएँ और कहीं - कहीं तो समुचित बिजली तक नहीं पहुँची है। इण्टरनेट और सोशल मीडिया के इस दौर में इन गाँवो का विकास नहीं होगा तो आखिर कब होगा? गाँवों के विकास में ही देश का हित है क्योंकि भारत जैसे कई कृषिप्रधान देशों की अधिकतर आबादी गाँवों में ही निवास कर रही है। भारत की आत्मा तो गाँवों में ही बसती है। इन गाँवों में सबसे पहले गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की समुचित व्यवस्था होने की जरूरत है क्योंकि शिक्षा जीवन की आधारभूत जरूरत है। शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य दुनिया की हर चीज पा सकता है। जब गाँववासी शिक्षित होंगे तभी उनसे घिसी – पिटी रूढ़िवादी मान्यताओं को त्यागने के लिए आह्वान किया जा सकता है। आज भी गाँवों में पर्दा प्रथा, घूँघट प्रथा, दहेज प्रथा, छुआछूत, स्त्रियों के धर्मस्थलों जैसे- मंदिर, मस्जिद में प्रवेश पर रोक और यहाँ तक की बाल-विवाह प्रथा पूरी तरह विद्यमान हैं। अब समय आ गया है इन कुप्रथाओं और सामाजिक बुराइयों को खत्म करके गाँवों को विकसित करने का और गाँववासियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का। गाँवों में घिसी-पिटी धार्मिक – सामाजिक मान्यताओं के कारण उत्पन्न हुईं इन सामाजिक बुराइयों और कुरीतियों को खत्म करने के लिए भले ही बदलाओकारियों को आन्दोलन ही क्यों न करने पड़ें। वो हर प्रकार से आंदोलन करने को संकल्पित हैं लेकिन अब गाँवों का चहुँमुखी विकास होकर रहेगा। गाँवों में ही पर्याप्त रोजगार की संभावना हो, ऐसी कोशिश जारी रहेगी।


हमारा तीसरा लक्ष्य 'किसानों की दशा में सुधार करना है।' हम अन्नदाता किसान की संतान हैं इसलिए जन्मजात किसानवादी भी हैं। हम सारी दुनिया की भूँख मिटाने वाले, धरतीपुत्र किसानों के प्रति पूरा समर्पित हैं। हम इन किसानों को ‘दूसरा जीवनदाता’ कहते हैं। 21वीं सदी के आरम्भ से लेकर आजतक भारत के कई क्षेत्रों में किसानों को अपनी दुर्दशा से  आहत होकर आत्महत्याएँ करनी पड़ रही हैं। उन्हें ठीक से दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है क्योंकि ये बाजारवाद और महँगाई का दौर चल रहा है। अभी तक किसानों का सरकार, जमीदारों, अमीरों और साहूकारों द्वारा शोषण होते आया है लेकिन अब से ऐसा कदापि नहीं होगा क्योंकि अब किसान जागरूक हो गए हैं और सबसे बड़ी बात तो ये है कि उनके प्रबल पक्षधर बदलाओकारी उनके साथ हर वक्त खड़े हैं। भारत के कई क्षेत्रों में सिंचाई के साधनों की उचित व्यवस्था नहीं है और तो और ऊपर से प्रकृति की मार किसानों को तबाह कर रही है। कभी भयंकर अकाल, सूखा पड़ जाता है तो कभी ऐसी बाढ़ आती है कि किसानों के खेत-खलिहानों के साथ ही साथ उनके घर – मड़ईयाँ भी साफ हो जाते हैं। महँगाई के इस दौर में और इन किसान – विरोधी सरकारों में किसानों की दशा और बुरी हो गयी है। किसानों की दशा में सुधार की सख्त जरूरत है क्योंकि किसानों के बिना दुनिया की कल्पना करना असंभव है।


बाजारवाद और वैश्वीकरण के इस दौर में किसानों की दशा में सुधार होने की पूरी संभावना है। किसानों की फसलों के दाम तीन -चार गुने होने चाहिए। जैसे – अभी गेहूँ के दाम लगभग 15₹ प्रति किग्रा० हैं तो आगे गेहूँ का समर्थन मूल्य ही 45 – 60₹ प्रति किग्रा० होना चाहिए। जब किसानों को फसलों के भरपूर दाम मिलेंगे तब न ही सरकार को किसान का कर्ज माफ करने की जरूरत है और न ही खैरात में किसानों को किसान – निधि के तहत 6000₹ सालाना बाँटने की। किसानों के लिए प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था अवश्य की जाए तभी विश्वकल्याण की कल्पना की जा सकती है। जब किसान शिक्षित होंगे तो इनका कोई भी शोषण नहीं कर सकेगा। लेकिन अभी जरूरत है किसानों को एक ऐसा आन्दोलन करने की। जिससे वो अपनी फसलों का उचित समर्थन मूल्य पाने में और एक बार अपना पूरा कर्ज माफ कराने में सफल हो सकें। साथ ही साथ वैज्ञानिक कृषि करने के गुण सीखने में भी कामयाब हो सकें।


हमारी विचारधारा का चौथा लक्ष्य 'मजदूरों की दशा में सुधार करके उनकी जिंदगी में खुशहाली लाना है।' जैसा कि हम जानते हैं कि मजदूरों के बलबूते पर ही सारा उद्योग – जगत खड़ा है। कारखानों में मजदूरों की दशा बहुत बुरी है। न ही उन्हें भरपेट भोजन मिल रहा है और न ही उनको स्वास्थ्य/मेडिकल सेवाऐं मुहैया करायी जा रही हैं। देश के मजदूरों को गरीबी, लाचारी में जीवन गुजरना पड़ रहा है। कोयले और खनिज की खानों में कई मजदूरों की मौत हो जाती है। जिनके परिजनों को बहुत कम सहयोग दिया जाता है। बहुत से मजदूरों की मौत का पता तक नहीं लग पाता। बेलदारी/भवन -निर्माण में मजदूरों को आठ-दस घण्टे कोल्हू के बैल की तरह जोता जाता है। लेकिन आज इनकी मजदूरी सिर्फ 300-400₹ प्रति दिन है। जिससे सिर्फ इनके परिवार का ठीक से भरण-पोषण तक ही नहीं हो पाता है। शिक्षा का बाजारीकरण होने से इनके बच्चे अच्छी शिक्षा पाने में नाकामयाब हो रहे हैं क्योंकि शिक्षा बहुत महँगी हो गई है। अब जरूरत है – मजदूरों की मजदूरी तीन – चार गुना करने की। हर मजदूर की रोजाना की मजदूरी लगभग 900 – 1200₹ होना चाहिए तभी इस देश और दुनिया में बाल मजदूरी पर लगाम लगाया जा सकता है क्योंकि जब मजदूर को ही रोजाना की मजदूरी 900 – 1200₹ मिलेगी तब मजदूर के बच्चे को बाल-मजदूरी करने की जरूरत ही नहीं है। जो बच्चे अनाथ हैं और वो बाल – मजदूरी करने को मजबूर हैं तब इन अनाथों के लिए सरकार को ज्यादा से ज्यादा अनाथालय खोलने चाहिए और वहीँ पर उनकी शिक्षा – दीक्षा की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। इन मजदूरों और बाल – मजदूरों को अपनी दशा में सुधार लाने के लिए आन्दोलन करने चाहिए जिससे इनको अपने अधिकार मिल सकें और ये समाज की मुख्यधारा से जुड़कर विकास की राह पकड़ सकें।


हमारा पाँचवा महत्त्वपूर्ण लक्ष्य 'किसान – मजदूरों का शासन स्थापित करना है।' हमें पता है कि इस दुनिया में किसानों – मजदूरों की आबादी इतनी ज्यादा है, जितनी और किसी की भी नहीं है। सिर्फ जरूरत है इन किसान – मजदूरों को संगठित होकर लोकतंत्र में सत्ता की बागड़ोर हथियाने की। लोकतंत्र में चुनाव वही जीतता है और सत्ता उसी की होती है, जिसका जनाधार बड़ा होता है। इसलिए हम बदलाओकारी बिना किसी का विरोध किए किसानों – मजदूरों को एक मंच पर आने का निवेदन करते हैं और इनके शासन करने के मौके को किसी भी हाल में चूकने नहीं देना चाहते हैं। जब शासन किसान – मजदूरों के हाथ में होगा तभी देश – दुनिया का चहुँमुखी विकास हो सकेगा क्योंकि किसी के दुःख – दर्द को कोई और उतनी भली – भाँति नहीं समझ सकता जितना उसका सगा – सम्बन्धी।


हमारा छठा लक्ष्य 'पर्यावरण संरक्षण करना और प्रदूषण को खत्म करना है।' हम बदलाओकारी पर्यावरण संरक्षण पर बहुत जोर दे रहे हैं क्योंकि पर्यावरण के घटक – जल, जंगल, जमीन और हवा के बगैर दुनिया के जीवधारियों का जीवन ठीक से नहीं चल सकता। क्योंकि हम मनुष्य हवा से ऑक्सीजन लेकर साँस लेते और हमारे द्वारा छोड़ी गयी कार्बनडाई ऑक्साइड से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में जंगल के सारे पेड़ – पौधे और किसान की फसलें अपना भोजन बनाती हैं। जिसने प्राप्त उत्पादों फलों, सब्जियों, अनाजों को हम अपने भोजन के रूप में उपयोग करके जीवित रहते हैं। आज पर्यावरण प्रदूषण बहुत बढ़ गया है। इस प्रदूषण से मुक्ति पाने का एकमात्र उपाय है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाएँ और जंगलों को संरक्षित किया जाए। क्योंकि पेड़ ही बारिश कराने के लिए जिम्मेदार हैं और जल ही जीवन है। जल के बिना हमारे दैनिक क्रियाकलाप सम्पन्न हो सकते हैं और न ही फसलों की सिंचाई। आज औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के दौर में खेती की जमीन  का भी उद्योग – निर्माण और भवन – निर्माण में किया जा रहा है। इस पर अंकुश लगाने की जरूरत है। खेती योग्य जमीन को बचाना बहुत जरूरी है बरना हमें भूखों मरना पड़ेगा इसलिए हम बदलाओकारी अभी से ‘पर्यावरण बचाओ – जीवन बचाओ आन्दोलन’ शुरू करते हैं


©️ कुशराज झाँसी

__25/03/2022_11:30रात__झाँसी





Thursday 3 November 2022

कविता : किताबें - कुशराज झाँसी


कविता - " किताबें "


दोस्ती और प्रेम में

सिर्फ किताबें ही देता हूँ

औरों की तरह 

नहीं देता फूल

फूल भी देने चाहिए

लेकिन नौकरी लग जाने 

या सेटल हो जाने के बाद

स्कूल - कॉलेज लाइफ 

और बेरोजगारी में नहीं

फूल देना उतना जरूरी नहीं

जितना जरूरी है किताबें लेना - देना

किताबें औरों को भी देनी चाहिए

क्योंकि किताबों से ही होगी नई क्रांति

जिससे बदलेगा समाज

आएगी बराबरी

देहाती और शहरी में

किसान और व्यापारी में

गरीब और अमीर में

सबसे ज्यादा महिलाओं में

महिलाओं को बराबरी मिलनी ही चाहिए

शैक्षिक, आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक

इसलिए हम दोस्ती और प्रेम में

हमेशा देंगे किताबें

फूल कभी नहीं

सेटल होने के बाद भी नहीं

किताबें ही फूल हैं

हमारे लिए।


-  कुशराज झाँसी

2/11/22_10:04 रात_झाँसी




हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी खों अथाई की बातें तिमाई बुंदेली पत्तिका भेंट.....

  हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी में मुखिया आचार्य संजै सक्सेना जू, आचार्य नबेन्द कुमार सिंघ जू, डा० स्याममोहन पटेल जू उर अनिरुद्ध गोयल...