Thursday 28 March 2019

रिपोर्ट - युवा कहानीपाठ और परिचर्चा, हंसराज-संवाद, हंसराज कॉलेज।



आज, 28 मार्च 2019 को हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित 'हंसराज - संवाद', कहानी पाठ और परिचर्चा में सात युवा कहानीकारों ने एक से बढ़कर एक कहानियाँ प्रस्तुत कीं।जिसमें अध्यक्षता डॉ. अजय नावरिया (सुप्रसिद्ध कथाकर एवं एसोसिएट प्रोफेसर,हिन्दी विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय) ने की और विशिष्ट अतिथि श्री राकेश रेणु (उप- निदेशक एवं प्रधान संपादक, 'आजकल' पत्रिका, प्रकाशन विभाग, भारत सरकार) रहे। जिसमें मैं भी शामिल हुआ, मैंने "पंचायत" कहानी प्रस्तुत की। मंच पर कहानी प्रस्तुति का ये मेरा पहला अनुभव रहा। जिस पर डॉ. अजय नावरिया जी ने टिप्पणी कहते हुए कहा -:  "गिरजाशंकर कुशराज ने कहानी ऐसे पढ़ी है जैसे पंडित जी सत्यनारायण की कथा वाचते हैं। लेकिन कहानी का कथानक ठीक है, जातिवाद को खत्म करने की बात की है इन्होंने। पितृसत्ता पर भी कुठाराघात किया है। नारीवादी , परिवर्तनकारी कहानी है। सिर्फ कहानी सुनाने का ढंग ठीक नहीं रहा इनका। सत्यनारायण की कथा जैसे वाच दी इन्होंने , बहुत जल्दी - जल्दी कह दी कहानी.............।"
नावरिया सर जी की बात से में सहमत हूँ और आगे से अपने कहानी कहने के ढंग में सुधार करूँगा। और अच्छी से अच्छी परिपक्व, समसामयिक मुद्दों पर, नारीवाद पर, समाज पर परिवर्तनकारी कहानियाँ लिखने का सफल प्रयास करूँगा।
नावरिया सर जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि आलोचना से व्यक्ति या लेखक आगे बढ़ता है............। इसलिए मैं अपने आलोचकों को सबसे सच्चा साथी मानता हूँ और पाठकों को भी। आलोचना से हमें अपनी जमीनी हकीकत पता चलती है। अतः सबकी आलोचना होनी चाहिए..............। 
डॉ. अजय नावरिया सर, श्री राकेश रेणु सर जी का बहुत - बहुत धन्यवाद्! जिन्होंने कहानी के कई संदर्भों पर चर्चा करके हम युवा कहानीकारों को मार्गदर्शित किया। कॉलेज की प्राचार्या डॉ. रमा मैम का बहुत - बहुत धन्यवाद् जिनके सान्निध्य में कार्यक्रम हुआ। आयोजक डॉ. जाहिदुल दीवान सर जी का बहुत - बहुत धन्यवाद्  जिन्होंने हमें ये सुअवसर प्रदान किया। आयोजक समिति सहयोगी  साथी और सहपाठी आशुतोष चौबे, प्रखर यादव, विभव यादव, गौरव कुमार, शैलेन्द्र गुप्ता और यशदीप तोमर का भी बहुत - बहुत धन्यवाद्  जिन्होंने बड़ी लगन और मेहनत से कार्यक्रम का सफल आयोजन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। साथ ही साथ महेंद्र प्रजापति सर, डॉ. विनय गुप्ता सर, डॉ. गरिमा त्रिपाठी मैम, डॉ. अंकिता चौहान मैम, स्वीडन से पधारे डेविड सर और मेरे कॉलेज और अन्य कॉलेजों - विश्वविद्यालयों से पधारे प्रोफेसरों, छात्र - छात्राओं का भी बहुत - बहुत धन्यवाद्  जिन्होंने हम युवा कहानीकारों को धैर्यपूर्वक सुना और प्रोत्साहित किया...........।

✍ गिरजाशंकर 'कुशराज'
   (युवा कहानीकार)
_28/3/19_11:04pm

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Sunday 24 March 2019

तुम नहीं रोक सकते - कुशराज झाँसी

कविता - " तुम नहीं रोक सकते "


तुम सब कुछ देखते हो,
बिना रोक - टोक के।
फिर हम क्यों न देखें?
ये दुनिया।

हम भी देखेंगे असलीपन,
इस समाज का।
परम्पराएँ तोड़ेंगे।
पर्दा नहीँ करेंगे।
घूँघट नहीँ करेंगे।
न ही चेहरा ढ़केंगे।

तुम नहीँ रोक सकते।
नहीँ रोक सकते हमें।
किसी भी हाल में.......।

✍ कुशराज झाँसी
(झाँसी बुन्देलखण्ड) 

__6/2/2019 _11:00 दिन _ दिल्ली


                            
                           कुशराज झाँसी

संस्मरण - कांग्रेसी राहुल गाँधी की सभा में युवा छात्र - छात्रायें और मैं।



संस्मरण - " कांग्रेसी राहुल गाँधी की सभा में युवा छात्र - छात्रायें और मैं "


आज से तीन - चार दिन पहले हमारे हंसराज कॉलेज की 'प्रस्ताव' हिंदी वाद-विवाद समिति के व्हाट्सएप ग्रुप में एक मैसेज आया। जिसमें लिखा था - कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी, इसी शनिवार 23 फरवरी 2019 को छात्र-छात्राओं से संवाद स्थापित करने के लिए जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, दिल्ली में सभा आयोजित कर रहे हैं। आप में से चार - पाँच छात्र-छात्रायें जो सभा अटेण्ड करने के इच्छुक हों। अपना नाम, पता, कोर्स, कॉलेज, कॉन्टैक्ट और ईमेल फॉरवर्ड कर दें। यही मैसेज नीतेश भैया ने मुझे पर्सनल भेजा। मैंने दृढ़ इच्छाशक्ति से सभा अटेण्ड करने के लिए हाँ बोल दिया और माँगी गई जानकारी फॉरवर्ड कर दी। कल शाम छह बजे ऑल इण्डिया कांग्रेस कमेटी की ओर से कॉल आया जिसमें मुझसे कहा गया कि आपका सीरियल नम्बर 4810 है और आप कल सुबह दस बजे तक सभा में पहुँच जाइयेगा। मैंने कहा - जी सर! अवश्य। फिर इसके बाद मैसेज भी आया। रात में साथी अक्षत जैन से फोन पर बातचीत हुई। उसने कहा - भैया! हम, आप औए हमारे तीन दोस्त कल के प्रोग्राम में जा रहे हैं। सुबह साढ़े आठ बजे तक मल्कागंज चौक से मेट्रो पकड़कर चल लेंगे। मैंने कहा - ठीक है।
आज सुबह साढ़े छह बजे जागा और आठ बजे तक स्नान - ध्यान और स्वल्पाहार करके सभा में जाने के लिए तैयार हो गया। मैंने चौक पहुँचकर जैसे ही अक्षत को फोन मिलाया तो आठ बजकर चालीस मिनट तक अक्षत और उसके दोस्त भी मल्कागंज आ गए तो हम पाँचों ई-रिक्शा में सवार होकर विश्वविद्यालय मेट्रो पहुँचे। वहाँ से केंद्रीय सचिवालय और फिर जेएलएन स्टेडियम। स्टेडियम के गेट नं. 19 से जवाहरलाल नेहरू इंडोर ऑडिटोरियम के लिए प्रवेश करना था। जहाँ सभा होनी थी। गेट के बाहर एंट्री पास बनाने बैठे कार्यकर्त्ताओं से पाँचों साथियों ने अपना - अपना पास बनवाया। काफी भीड़ - भाड़ थी, लगभग चार - पाँच हजार छात्र-छात्राओं और कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं की संख्या मिलाजुलाकर होगी। पूरे दिल्ली विश्वविद्यालय और दिल्ली के अन्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से छात्र-छात्रायें जुटे थे इस सभा में। बड़ी तगड़ी सिक्यॉरिटी थी। एंट्री गेट से लेकर ऑडिटोरियम के अंदर तक चार - चार बार चैकिंग हुई। न ही बैग को अंदर ले जाने दिया और न ही ईयरफोन को। फिर भी सभा से सौ - सवा सौ स्मार्टफोन चोरी हुए। इसका जिम्मेदार कौन है? राहुल गाँधी या सभा आयोजन समिति या कोई और। जबाव दो हमें।
एंट्री पास मिलने पर ही पता चला की आज की सभा 'शिक्षा - दशा और दिशा' पर केंद्रित है। जैसे ही हम लोगों ने ऑडिटोरियम में तगड़ी सिक्यॉरिटी का सामना करके प्रवेश किया तो पाया कि आगे की सभी सीटें भर गईं हैं तो फिर पीछे की सीटों पर ही बैठना पड़ा। ऑडिटोरियम खचाखच भर गया। इसमें 'राहुल गाँधी जी', जिन्हें लोग प्यार से 'पप्पू' कहते हैं, को युवा छात्र-छात्राओं के साथ संवाद स्थापित करना था। राहुल जी के आने से पहले संचालक महोदया ने छात्र-छात्राओं से कुछ सवाल किए और फिर कलाकारों ने नृत्य और संगीत की धुनों से मन बहलाया। जैसा कि सर्वविदित है कि आज सभा में राहुल जी को युवा छात्र-छात्राओं के साथ 'शिक्षा - दशा और दिशा' विषय पर संवाद करना था लेकिन ऐसा बिल्कुल हुआ ही नहीं। सभा में बैठे बहुसंख्यक छात्र-छात्राओं के सवालों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीँ दिया गया। हम जैसे कई युवा अपने सवाल पूँछने के लिए कई बार हाथ खड़े किए रहे लेकिन किसी ने एक बार भी न सुनी। जिससे हम सबको अपमानित होना पड़ा। मुझे जो सवाल राहुल गाँधी से पूँछने थे। वो इस प्रकार हैं -
(1) आखिर कब तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में अधिकतर स्टूडेंटों के लिए हॉस्टल सुविधा होगी और कैसे होगी। आप इसके लिए क्या करेंगें?
(2) लगातार दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेजों की फीस बढ़ती जा रही है और शिक्षा का स्तर भी ठीक ठाक है। फीस कम से कम होनी चाहिए और शिक्षा - व्यवस्था भी सुधरनी चाहिए। हर रोज डूटा - टीचर्स स्ट्राइक होती है। इसे आप कैसे ठीक करेंगे?
(3) दिल्ली विश्वविद्यालय के हर कोर्स के अध्ययन - अध्यापन का माध्यम हिन्दी भी होना चाहिए। जिससे हमारी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा को असली सम्मान मिल सके और देश के ग्रामीण परिवेश, हिंदी पट्टी वाले और हिंदीभाषा - कट्टरवादी भी अपनी मातृभाषा में बिना किसी समस्या के उच्च शिक्षा प्राप्त करके देश - दुनिया का कल्याण करने में अपना हाथ बटा सकें। इसके लिए आप क्या कदम उठायेंगे?
(4) आखिर कब तक कांग्रेस से वंशवाद - परिवारवाद की राजनीति खतम होगी। क्यों गाँधी परिवार से ही अधिकतर कांगेस का प्रधानमंत्री उम्मीदवार होता है? क्यों वही गाँधी परिवार वाले ही प्रधानमंत्री बनते है? क्या कांग्रेस में इनके अलावा प्रधानमंत्री बनने लायक कोई नेता नहीँ है या आप किसी को बनाना नहीँ चाहते? इस 2019 के आम चुनाव का प्रधानमंत्री उम्मीदवार आपके अलावा कोई और कांग्रेसी उम्मीदवार बनना चाहिए या नहीँ। जबाव दो हमें।
(5) आखिर देश की जनता आपको पप्पू कहती है, जिसे मीडिया बार - बार उछलती है। ऐसा क्यों होता है आपके साथ? जबाव दो हमें।
सभा में मेरे जैसे कई युवाओं ने राहुल गाँधी से अपने - अपने सवाल पूँछना चाहे लेकिन हम लोगों को कोई तबज्जो नहीँ मिला। जिससे समस्त युवा छात्र - शक्ति नाराज हो गयी। सभा में तथाकथित युवाओं के सवालों को ही लिया गया। राहुल जी के जबावों से ऐसा लग रहा था कि ये पहले से ही इन सवालों के जबाव रटकर आए हैं। विषय से हटकर राहुल जी राफेल और भ्रष्टाचार पर बात कर रहे थे। शिक्षा - दशा और दिशा पर तो नाममात्र की चर्चा हुई। राहुल जी कह रहे थे - मुझसे बात करनी है तो राफेल पर करो, भ्रष्टाचार पर करो...............। स्वयं राहुल के नेतृत्त्व वाली कांग्रेस ने कई घोटाले किए हैं, भ्रष्टाचार किया है और यही भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार पर बात करने को कहते हैं। ये कहाँ का न्याय है? उन्होंने यह कहा - यदि आप देश के शीर्ष उद्योगपतियों में से हो या अमीर हो तो आपको आईआईटी, आईआईएम जैसे टैग चुटकियों में मिल जायेंगे। इनके इस कथन से साबित होता है कि राहुल जी ने स्वयं और इनके सगे - संबंधी रॉबर्ट बाड्रा ने भी पैसों के बलबूते पर ही कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में एडमीशन लिया होगा और शिक्षा - व्यवस्था को दूषित किया होगा।
राहुल जी जो किसानों की भूमि की खरीद - फरोस्त की बात कर रहे थे और कह रहे थे कि देश में कृषि योग्य भूमि को कम दामों पर उद्योगपति खरीदते हैं और उद्योग लगाकर मनमानी कमाई करते हैं। किसानों के साथ अहित करते हैं। जैसा उनके बहनोई श्री रॉबर्ट बाड्रा जी ने किया है। संवाद में राहुल जी ने विदेशी वस्तुओं का जिक्र किया कि हमारे देश के लोग विदेशी ब्राण्ड पहनते हैं। विदेशी वस्तुओं का ज्यादा प्रयोग करते हैं। हमें स्वदेशी को बढ़ावा देना चाहिए लेकिन खुद राहुल जी विदेशी ब्राण्डेड टी-शर्ट, जैकेट और जीन्स पहने थे और स्वदेशी का उपदेश सुना रहे थे। सबसे पहले इन नेताओं को खुद सुधरना चाहिए फिर जनता को उपदेश देना चाहिए तभी देश - कल्याण हो सकेगा। यह तभी संभव है, जब हम जैसे युवा नेता देश का नेतृत्त्व करेंगे। समय-समय पर क्रांति करके परिवर्तन लाएँगे और विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
।। युवा शक्ति - राष्ट्र शक्ति ।।

✍ कुशराज झाँसी
(झाँसी बुन्देलखण्ड) 

__23/2/2019_ 06:40 शाम _ दिल्ली

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Saturday 23 March 2019

कहानी : तीन लौण्डे - कुशराज झाँसी


कहानी - " तीन लौण्डे "


                   मेहू आज कूड़ा फेंक दिया। नहीं भैया, आज भी आंटी ननहीं आयी। चलो ठीक है। कल ध्यान से ये सब कूड़ा और वियर की बोतल भी फेंक देना। वैसे एक हफ्ता से पड़ा है, भौत बदबू मार रहा है। खाने वाली आंटी भी बोल रही थी शाम को। जब तुम मल्कागंज तरफ गए थे अपने दोस्तों से मिलने। मैंने कह दिया -

"आंटी कल जरूर फिकवा देंगे। मेरा मेहू ही कूड़ा फेंकता है, फ्लैट में ऊकी जा ड्यूटी है। हम दोनों तो आठ बजे तक सूते रहते हैं। वो ही सवेरे पाँच बजे जग जाता है। ये ऊकी आदत है कायकी वो हर काम बड़ी लगन से करता है। यूपीएससी में लगन बड़ी जरूरी है। हमें लगता है कि दो साल में ही मेहू आईएएस ऑफिसर बन जाएगा।"

"हाँ भैया! आप लूगन को भी नाम ऊँचो होईगो।
हम भी धन्य हो जाऊँगी। ऑफिसर बनके कभी मिलेगा तो हम भी काम पड़ने पे ऊसे अपना काम करा लेबी।"

"हओ आंटी।"

बड़ा नेक दिल है मेहू। टाइम पे पैसा देता है, ऊमें कॉलेज के लौण्डों जैसे कोई एमाल भी नहीँ हैं। न ही सिगरेट फूँकता है और न ही गुटका खाता। कभी कभार हम लोगों के साथ बैठ जाता है, जब वियर चल रही होती है। वियर का तो पैग नहीँ लगाता। सिर्फ थोड़ा भौत चिखना खा लेता है और घण्टों बैठकर बतियाता रहता है।

"अरे रॉनी भैया! ये बताओ आज खाने में क्या बनाना है?"

"आंटी, अभी आलू के परांठे बना दो। शाम को मटर पनीर और रोटी बना देना।"

"ओके। "

"निहाल भैया तो तीन - चार दिन से बिल्कुल नहीँ दिख रहे हैं। कितै गए हैं वो?"

"आंटी! वो अभी गाँव गए हैं। उनके बड़े भाई की शादी है इसी 21 को।"

"अच्छा!!!"

"उनकी साली बड़ी सेक्सी है। झक्कास माल है, एक नम्बर। निहाल फोन में फोटो दिखा रहा था। एक बार वीडियो कॉलिंग भी कर रहा था। जब मैं भी ऊके बगल में ही बैठा था, तब ऊने हमाई भी वीडियो कॉलिंग कराई ती। कह रहा था - यार रॉनी! रेखा बड़ी अच्छी लगती है, मुझे प्यार हो गया है उससे। भैया की शादी निपट जाए फिर हम भी भाभी से बात करते हैं अपने और रेखा की शादी के बारे में।"

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा.............. फोन की रिंगटून बजती है। निहाल का फोन आया था...........

"हैलो निहाल!"

"हाँ भाई"

"क्या कर रहा है। तूँने तो फोन ही नहीँ किया जब से तूँ गया। आज पाँच दिन हो गए बिना  बतियाए...................।"

"कुछ नहीं भाई। परसों भैया की शादी है, उसी की तैयारी में बिजी हूँ। कल बुआ यहाँ बाँदा गया था। बुआ को लिबाने के लिए। अभी सवा घण्टे पहले ही लौटा हूँ। बहुत थक चुका हूँ। जब से दिल्ली से आया हूँ, तभी से इधर - उधर के चक्कर काट रहा हूँ। चैन से बैठ ही नहीँ पा रहा......................।"

"कोई न भाई। शादी के बाद चैन से बैठना ही है। और ये बता, रेखा भी आएगी न।"

"हाँ भाई।"

"और तूँ नहीँ आ रहा।"

"नहीँ भाई। सॉरी!!!"

"काय?"

"23 को एनिमल डायवर्सिटी का इंटरनल है। अभी पता चला है। चौक पर गया था तो चाय वाले पर हिस्ट्री वाला पवन मिला था। तो बोल रहा था। भई तूँ तो आठ दिन से क्लास ही नहीँ जा रहा है। तुझे पता नरसों दीपिका मैम दो यूनिट्स का टेस्ट ले रही हैं। बोल रहीं थीं। जो इस बार और नहीँ आया तो मैं उसका फिर से टेस्ट नहीँ लूँगी। ये दूसरी बार टेस्ट हो रहा है। समझे बच्चो। यस मैम।"

"अरे बेंचो! भई तूने नोट्स तो बनाए होंगे न। मुझे भी दे दे यार कुछ मेरा भी भला हो जाए। अभी तक कुछ भी नहीँ पढ़ा हूँ। तेरे पीजी तक चलता हूँ। इन दो - तीन दिनों में तेरे नोट्सोँ से भौत कुछ पढ़ लूँगा। पास होने लायक तो हो ही जाएगा।"

"कोई न भाई। अच्छे से इंटरनल देना।"

"ओके भाई।"

" और भाई तूँ, भैया - भाभी को मेरी तरफ से शादी की बधाई दे देना और अंकल - आंटी को सादर नमस्कार बोल देना।"

"ठीक है भाई।"

"ओके बाय! टेक केयर।"

शाम को मेहू ने रॉनी से पूँछा -

"भैया खाना लगा लें।"

"अभी नहीँ। तुम खा लो, मैं बाद में खा लूँगा।"

"ओके भैया।"

"यार ध्यान से मुझे सुबह छह बजे जगा देना। इंटरनल है अभी तीन चैप्टर ही पढ़ पाए हैं। पाँच चैप्टर बाकी हैं। इसलिए तुम ध्यान से सुबह जगा दिया करना...................।"

"ओके भैया।"

खाना खाकर मेहू नीलोत्पल मृणाल जी की डार्क हॉर्स उपन्यास पढ़ने लगा। इसके बारे में दोस्तों से बहुत सुना था। आज ही वो पटेल चेस्ट से इसे खरीद लाया था। उसके पास पैसे न होने के बावजूद अपनी दोस्त रश्मि से पाँच रूपये उधार लिए। एक सौ बीस की तो डार्क हॉर्स खरीदी और बाकी के तीन दिन के खर्चे के लिए बचा लिए। क्योंकि तीन दिन में ही दादाजी पैसे भेजने वाले थे। नौ बजे से उपन्यास पढ़ते - पढ़ते रात के दो बज गए और वो हाथ में किताब पकड़े ही सो गया क्योंकि आज पाँच बजे कॉलेज से आने के बाद वो सो भी नहीँ पाया था इसलिए ज्यादा थकान महसूस कर रहा था। सत्तर परसेन्ट किताब पढ़ चुकी थी। जो थोड़ी बहुत बची थी, वो अगले दिन लाइब्रेरी में ही पढ़ डाली।

सुबह साढ़े पाँच बजे मेहू जाग गया। फ्रेश होकर फिर से पढ़ने वाला ही था। पहली क्लास जीई - इंग्लिश वूमन एण्ड एम्पावरमेंट इन कंटेम्पोररी इण्डिया की थी। जिसमें मैम को बेगम रोकेया की कहानी - सुल्ताना का सपना पढ़ानी थी। क्लास के व्हाट्सएप ग्रुप में रात को मैम ने कहानी की लिंक भी भेजी थी और मैसेज किया था कि सभी स्टूडेंट्स इसे जरूर रीड करके आना।

जैसे ही मेहू स्टडी टेबल पर पढ़ने बैठा तो उसे ध्यान आया कि रात में रॉनी भैया ने जगाने को कहा था। तो वह उठकर रॉनी भैया के रूम की ओर जाता है। गेट को नॉक करता है और कुंदी भी बजाता है। सात - आठ बार कॉल भी कर चुका होता है। फिर भी रॉनी को कुछ असर नहीँ पड़ता है। सात बजे फिर से रॉनी को जगाता है तो वह उसके दो बार आवाज लगाने पर ही जाग जाता है।
"जागो भैया जागो। साथ बज गए हैं। आप तो बोल रहे थे, छह बजे जगा देना। आप तो अब ऐसे सो रहे हैं जैसे कुम्भकर्ण हों। उठ जाओ अब बहुत हो गया आलस - मालस। जागो और पढ़ो। इंटरनल है आपका........................।"

"चलो ठीक है। जाग गया हूँ। भाई ऐसे ही रोज जगा दिया करना।"

आज शाम छः बजे मेहू कॉलेज से लौटकर आया तो रॉनी से बोला -

"भैया! क्या आप आज भी कॉलेज नहीँ गए थे?"

"नहीँ।"

'क्यों?"

"तुम्हें पता नहीँ। आज तुम्हारी भाभी आयी थी। जैसे ही मैं कॉलेज के लिए निकलने ही वाला था, तभी उसका कॉल आ गया। वो बोली -

"यार जानू! मैं आ रही हूँ।"

"कहाँ?"

"तुम्हारे फ्लैट पर।"

"आओ जानू। मैं भी कॉलेज नहीँ जा रहा हूँ। बहुत दिनों के बाद मिल रही हो...................।"

"भैया कौन - सी?"

"वही, लाइफ साइंस वाली, महक।"

"अच्छा!"

"वोई वाली, जो दो महीने पहले विश्वविद्यालय मेट्रो पर मिली थी।"

"हाँ मेहू।"

"भैया! भाभी तो बड़ी मस्त लग रही थी उस दिन ब्लैक हॉट जीन्स और ऑरेंज टॉप में...............।"

"अगली बार आए तो मिल बाईएगा जरूर।"

"ओके भाई।"

"भैया! और ये बताओ कि भाभी कितनी देर पहले इतै से चली गई।"

"अभी बीस मिनिट पहले ही उसे उसके पीजी कमलानगर तक छोड़कर आया हूँ।"

"खाना क्या बना है आज?"

"हमें नहीँ पता यार! तुम जाकर देख लो।"

"क्या आपने नहीँ खाया?"

"नहीँ भाई। रोमांस करते - करते ही एक बज गया थाऔर अम्बा सिनेमा में मूवी भी देखने गए।"

"कौन से मूवी लगी थी?"

"धड़क"

"अच्छा!'

"बहुत मजा आया आज। सारा खर्चा महक ने ही किया।"

"अरे वाह! आप इसलिए तो ज्यादा खुश हैं। अब पता चली असली बात................।"

"और कल के इंटरनल की क्या तैयारी है?"

"हो गयी तैयारी ठीक ठाक। बड़े दिनों में हो महक मिली थी। इंटरनल तो फिर दे देंगे.................।"

"ठीक है भैया। आप जानें और आपका काम.....................।"

"मैं तो चला खाना खाने। लगातार क्लासेज होने से लंच तक नहीँ कर पाया। अभी क्लासमेटों के साथ सुदामा पर चाय पी कर आ रहा हूँ। बहुत जोर से भूख लगी है।"

"चलो तुम खाना खा लो। मैं तो सोने जा रहा हूँ।"

खाने में आलू गोभी, रोटी और रायता बना हुआ था। आस्ते से खाना खाने के बाद मेहू भी सो गया। रात में फिर दस बजे जागा और उपन्यास लिखने लगा। चार बजे तक लिखता रहा और फिर सो गया। सुबह साढ़े आठ बजे जगा इसलिए पहली क्लास छोड़नी पड़ी। रॉनी इंटरनल देने कॉलेज जा चुका था। ये भी कॉलेज पहुँचा। लंच में कैण्टीन में मेहू रॉनी से मिलता है और हाय - हैलो करता फिर बोलता -

"भैया! कैसा हुआ इंटरनल?"

"अच्छा हुआ। ठीक ठाक।"

"क्या खाओगे तुम?"

"मैं मसाला डोसा और फ्रूटी।"

"ओके।"

दो दिन बाद निहाल भी लौट आता है। अभी सुबह पाँच बजे ही ट्रेन से नई दिल्ली पर उतरा था। फिन करके बोला था -

"हैलो रॉनी! अगर फ्री हो तो स्टेशन आ जाओ, सामान बहुत है।"

"ओके आता हूँ।"

फटाक से ओला किया और जा पहुँचा और फिर दोनों साढ़े छह बजे फ्लैट आ गए। 
फ्लैट पर ही आज शाम को अपने भाई की शादी की खुशी में  निहाल ने दोस्तों के लिए पार्टी रखी थी। पार्टी में सात - आठ दोस्तों ने खूब वियर पी। सिगरेट की पन्द्रा - सोलह डिब्बियाँ फूँकी और दो ने तो दारू भी गटकी। चिकन का मजा चखा। धीरज ने तो इतनी पी ली थी कि रात को बॉमटिंग करता फिरा और सबको डिस्टर्ब करता रहा। बेफिजूल गरियाता रहा - हट भोसड़ी के। बेन्चो। झाँट तुम औरें कुछ नहीँ कर पाओगे। साले लौण्डों! तुम सब हरामी हो...............।"

रात में एक बजे दो रण्डियाँ बुलाईं। सातों - आठों ने बारी - बारी से रण्डियों के साथ मजे किए सिर्फ मेहू अपने रूम में जाकर सो गया था। रात भर बकचोदी चलती रही। आज दस - ग्यारह हजार खर्च हुए। छः हजार रण्डियों में और बाकी वियर - चिकन में। सारे जागते रहे। जागते - जागते ही सुबह हो गयी। इस दिन कोई भी कॉलेज नहीँ गया। ये तीन लौण्डे - मेहू, रॉनी और निहाल भी.............।

✍ कुशराज झाँसी
(झाँसी बुन्देलखण्ड)

__ 27/01/2019_09:00 रात _ दिल्ली








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