Saturday 31 December 2022

साल २०२२ में कुसराज झाँसी

         साल २०२२ में कुसराज झाँसी

         वर्ष 2022 में कुशराज झाँसी

         Kushraaz Jhansi in 2022



यी साल २०२२ के आखिरी दिनाँ हम अपने समाजी, संसकिरतियाई, लिखनाई, बकीली, सिक्छाई और नेतागिरी में करे गए कामन कौ ब्यौरा दे रए। 


साल २०२२ हमाए जीबन को अनोखो साल रओ कायकी यी साले चैत / मार्च में हमाई पैली किताब - 'पंचायत' (हिन्दी कहानी और कविता संग्रह); बुंदेलखंड में पुनर्जागरन के बाप, झाँसी के कमिसनर रए पूज्जनीय डॉ० अजै संकर पांडे जू के निर्देसन और बिख्यात लेखक, हिन्दी बिभाग बुंदेलखंड दुनियाईग्यानपीठ झाँसी के आचार्य पूज्जनीय डॉ० पुनीत बिसारिया जू की अध्यक्छता में गठित और उत्तर सरकार से अनुदानित समिति - बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति, झाँसी की ऐतहासिक पहिल 'गुमनाम से नाम की ओर' के तहत अनामिका पिरकासन, पिरयागराज सें पिरकासित भई। जीमें शुभानुशंसा डॉ० अजै संकर पांडे जू नें और अभिमत डॉ० पुनीत बिसारिया जू नें लिखो। पुनीत सर नें हमें बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति, झाँसी कौ सदस्य बनाओ, लेखन की दुनिया में हमाई नई गैल बनाई।



यी साल हमनें बुंदेली / बुंदेलखंडी भासा की कछियाई बोली में डायरी - 'बुंदेलखंडी युबा की डायरी' लिखी। और ऊको एक हिस्सा अपने बिलॉग - 'कुशराज की आवाज' और सोशल मीडिया पे पिरकासित करौ। हमने किसान विमर्श की कछियाई कहानी - 'रीना' १५ दिसंबर खों लिखी और बा १७ दिसम्बर खों बनारस से 'मानस पत्रांक' में पिरकासित भई। हमनें बुंदेली लघुकथा - 'पिरकिती' १३ दिसंबर खों लिखी और बा १४ दिसंबर खों 'बुन्देली झलक' पे पिरकासित भई और १४ दिसंबर खों 'मानस पत्रांक' में पिरकासित भई। बुंदेलखंड की संस्कृति और पर्यटन सम्बंधित दो लेख लिखे - १. 'बुंदेलखंड की पंगत : अनोखी भोजन - व्यवस्था', २. 'बरुआसागर - बुंदेलखंड का ऐतिहासिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र', जे दोई लेख 'बुन्देली झलक' पे पिरकासित भए। 'बुन्देली झलक' के संस्थापक पूज्जनीय गौरीसंकर रंजन उर्फ जी० एस० रंजन चाचाजी नें २५ दिसंबर खों 'बुन्देली झलक' पे बुंदेलखंड के साहित्यकार कैटिगरी में हमाओ जीबन पिरचय - 'गिरजाशंकर कुशवाहा कुशराज' पिरकासित करौ।




बिख्यात साहित्यकार और लोकसंस्कृतिकर्मी पूज्जनीय डॉ० रामसंकर भारती गुरूजी नें हमें कला और साहित्य साधकों खों समपरत रास्ट्रीय संस्था - 'कलार्पन' सें जोड़ो और हम संगठन में झाँसी जिला के जिलामंतरी बने और 18 दिसम्बर खों बरूआसागर में सम्पन्न भई प्रांतीय बैठक में सामिल होकें साहित्य और संसकिरती के बिकास में हाँत बटाबे कौ मौका मिलो। गुरूजी के संगे मई मईना में बिख्यात हीरो और नेता राजा बुंदेला के संयोजन में ओरछा में आयोजित 'राम महोत्सओ - २०२२' में सामिल होबे कौ सौभाग्य मिलो।



बकालत के साथी भज्जा ग्यानेस कुसबाहा ने अपनी जाति - समाज के रास्ट्रीय संगठन - अखिल भारतीय कुशवाहा महासभा में जोड़ो और संगठन में जिला झाँसी कौ जिला संगठन मंत्री कौ पद दिबाओ। संगठन में सक्रिय रैबे पे समाज के बिकास के लानें केऊ कारीकिरमन खों देखो और भगबान श्रीराम और सीता मैया के बेटे कुश के वंशज - कुशवाहा / काछियों की मात्तभासा कछियाई बोली खों दुनिया में पैचान दिलाबे के लानें हमें बढ़ाबो मिलो।


जुलाई में अपने हल्के भज्जा, कबड्डी खिलाड़ी पिरसांत कुसबाहा 'पिरसू' कौ सैफई जिला इटावा के मेजर ध्यानचंद स्पोर्ट्स कॉलेज में एडमीसन कराओ। पिरसू के संगे  एडमीसन ट्राईयल के लानें लखनऊ और सैफई जाबे कौ मौका मिलो और खेल की दुनिया खों नेंगर सें देखो।




२६-२९ अगस्त में दिल्ली गए और बिख्यात लेखिका, सिनेमा - मीडिया की विशेषज्ञ और हंसराज कॉलेज की यशस्वी पिरिनसिपल पूज्जनीय प्रो० रमा शर्मा मैम के हांतों हंसराज कॉलेज, दिल्ली यूनीबर्सिटी में अपनी स्नातक - बी०ए० हिन्दी ऑनर्स की डिग्री लई और मैम सें आसीरबाद लओ। अपने कॉलेज टैम के पिरोफेसरों, संगी - साथी, दोस्तों, जूनियरों सें मिलकें कॉलेज टैम की यादें ताजा कीं। दोस्त पिरेनना मिसरा कौ २५ अगस्त खों जनमदिन हतो तो उए गिफ्ट में किताब - 'औरत के हक में - तस्लीमा नसरीन' दई और ऊनें डोमिनोज में पिज्जा पार्टी दई।







श्रीपीताम्बरा पीठ संस्कृत महाबिद्यालय, दतिया की सहायक आचार्या, संस्कृत संस्कृति विकास संस्थान मध्यप्रदेश की सचिब एवं बुन्देली भाषा विशेषज्ञ पूज्जनीय  डॉ० रमा शर्मा 'आर्य'  मैम नें हमें संस्कृत संस्कृति विकास संस्थान सें जोड़ो और जिला संगठन विस्तार प्रमुख - जिला झाँसी बुंदेलखंड कौ दायित्त्व सौंपो। मैम के बुलाऊआ पे २५ दिसंबर खों पीताम्बरा माई के दरस करबे, गीता पाठ और तुलसी पूजन के कारीकिरम में सामिल होबे कौ सौभाग्य मिलो। 



दुनिया के सबसे बड़े छात्त संगठन - अखिल भारतीय बिद्यार्थी परिसद में सक्रिय रैबे पे केऊ सिक्छाई, समाजी और राजनीतिक कारीकिरमों में सामिल होकें जीबन के अनोखे अनुभओ पाए। 


जिला जज्जी / कचेरी झाँसी में १३ जनबरी लौक सीनियर बकील मोहम्मद सिद्दीक खान साब और १६ मई सें १२ अक्टूबर लौक सीनियर बकील घनस्यामदास कुसबाहा जू की निगरानी में इंटरनसिप करकें बकीली सीकी।



सब जनन खों नई साल - २०२३ की राम - राम 🙏🙏🙏


©️ गिरजासंकर कुसबाहा 'कुसराज झाँसी'

३१ दिसंबर २०२२, झाँसी, बुंदेलखंड 







Friday 23 December 2022

खबर लहरिया बुन्देली अखबार : भारतीय महिला पत्रकारिता की अनोखी मिसाल -: कुशराज झाँसी

 खबर लहरिया बुन्देली अखबार : भारतीय महिला पत्रकारिता की अनोखी मिसाल -: कुशराज झाँसी 

Khabar Lahariya Bundeli Newspaper : Unique Example of Indian Women Journalism -: Kushraaz Jhansi



दुनिया में शौर्य, खेल, भाषा, साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में अपनी अनोखी पहचान रखने वाले अखंड बुंदेलखंड ने अपनी अनोखी पत्रकारिता के कारण भी नई पहचान कायम की है। बुंदेलखंड की यह अनोखी पत्रकारिता दुनिया के सामने 'खबर लहरिया' के नाम से जानी - पहचानी जाती है।




                         फोटो साभार : गूगल


'खबर लहरिया' सन 2002 से लगातार बुंदेलखंड के चित्रकूट से ठेठ बुन्देली यानि बुंदेलखंडी भाषा में प्रकाशित होने वाला देश - दुनिया का ऐसा आंचलिक अखबार है, जो ग्रामीण महिलाओं के द्वारा निकाला जाता है। 

21वीं सदी का ये भारत में प्रकाशित होने वाला बुंदेली भाषा का एकमात्र अखबार भी है। 

ये अखबार बुंदेलखंड इलाके की ग्रामीण गरीब, दलित, पिछड़ी, किसान, आदिवासी और कम पढ़ी - लिखी महिलाओं के द्वारा गैर सरकारी संगठन - निरंतर की मदद से प्रकाशित किया जाता है।



अखबार की अद्वितीय कामयाबी के मद्देनजर इसे सन 2009 में यूनेस्को साक्षरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस साल 2022 में खबर लहरिया ने अपने गौरवशाली प्रकाशन के 20 साल पूरे किए हैं।


वैश्विक पहचान का बुन्देली अखबार खबर लहरिया एक बार फिर से फरवरी 2022 में दुनिया की चर्चा में आ गया है क्योंकि इस पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म राइटिंग विद फायर (Writing With Fire) को ऑस्कर पुरस्कारों के लिए मनोनीत किया गया है। राइटिंग विद फायर नाम की इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म को रिंटू थॉमस और सुष्मित घोष ने बनाया है। इसे सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री फीचर के ऑस्कर अवॉर्ड के लिए मनोनीत किया गया है। राइटिंग विद फायर की कहानी खबर लहरिया नामक अखबार के प्रिंट से डिजिटल तक के सफर, इस सफर में आने वाली परेशानी, प्रतिरोध, समाज और मीडिया के रिश्ते के इर्द-गिर्द घूमती है। इसके केंद्र में मीरा, सुनीता और श्यामकली हैं, जो खबर लहरिया से जुड़ी पत्रकार हैं। यह ऑस्कर के लिए मनोनीत होने वाली पहली भारतीय फीचर डॉक्यूमेंट्री भी है। 




राइटिंग विद फायर फिल्म पर खबर लहरिया की टीम ने अपना बयान दिया कि ऑस्कर जाने वाली कहानी से ज्यादा जटिल हमारी कहानी है।


28 मार्च 2022 को ऑस्कर से पहले एक लंबे ब्लॉग पोस्ट में खबर लहरिया ने कहा कि "डॉक्यूमेंट्री, जिसे टीम ने हाल ही में देखा। उनकी कहानी का सिर्फ एक हिस्सा है और आंशिक कहानियों में कभी-कभी पूरी तरह से विकृत करने का एक तरीका होता है। " उन्होंने यह भी कहा कि

"फिल्म काफी गतिशील और शक्तिशाली है। लेकिन इसमें खबर लहरिया का एक संगठन के रूप में रिपोर्टिंग पर फोकस करना गलत दिखाया गया है।"


टीम ने आगे कहा कि डॉक्यूमेंट्री में उनके पत्रकारिता मूल्यों को प्रदर्शित नहीं किया गया है, जिसने अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में धूम मचा दी है। उन्होंने अपने पोस्ट में आगे लिखा कि दलितों के नेतृत्व वाली उनकी टीम में मुस्लिम, ओबीसी और उच्च जाति की महिलाएं भी शामिल हैं, जो निष्पक्ष पत्रकारिता करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह सिर्फ "दिल को छू लेने वाली" सफलता की कहानी नहीं है।




फोटो साभार : गूगल



अपने इस लंबे से पोस्ट में खबर लहरिया ने यह निष्कर्ष निकाला कि टीम ने "अप्रत्याशित रूप से" फिल्म के जरिए पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। ऐसे में हम उम्मीद करते है कि फिल्म में इस बात पर जोर दिया जाए कि ऐसा क्या है जिसने "महिलाओं के नेतृत्व वाले, इस स्वतंत्र ग्रामीण मीडिया समूह को संभव बनाया है। यह ऑस्कर जाने वाली कहानी से ज्यादा जटिल कहानी होगी। गौरतलब है कि फिल्म ने डॉक्यूमेंट्री (फीचर) श्रेणी में अकादमी पुरस्कारों के 94 वें संस्करण में अंतिम नामांकन सूची में स्थान हासिल किया।



पुरस्कृत फिल्मकार को राइटिंग विद फायर डॉक्यूमेंट्री को बनाने में पाँच साल लगे और इसे पहली बार सन 2021 में अमेरिका के प्रतिष्ठित सनडांस फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया था। यह सुष्मित घोष की पहली डॉक्यूमेंट्री फीचर फिल्म भी है।



खबर लहरिया में संपादन और समाचार संकलन का पूरा काम महिलाएँ करती हैं। अखबार बाँटने के काम में पुरुष हॉकर मदद करते हैं। ग्रामीण महिलाओं के इस अखबार में काम करने के लिए कम से कम आठवीं कक्षा पास होना जरूरी है 

लेकिन नवसाक्षर भी जुड़ सकते हैं।


खबर लहरिया अखबार में सभी तरह की खबरें होती हैं लेकिन पंचायत, महिला सशक्तीकरण, ग्रामीण विकास की खबरों को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। समाचार स्थानीय बुंदेली भाषा में और बड़े अक्षरों में छापे जाते हैं ताकि नवसाक्षर महिलाएँ और ग्रामीण लोग आसानी से पढ़ सकें। राजनीतिशास्त्र से मास्टर डिग्री ले चुकीं मीरा ने कहती हैं कि संवाददाता के रूप में गरीब महिलाओं के जुड़ने का उनके परिवार और समाज के लोग ही विरोध करते हैं। लेकिन अब यह कम हो गया है।


खबर लहरिया अखबार सन 2002 से चित्रकूट से और सन 2006 से बाँदा से स्वयंसेवी संस्था निरन्तर के द्वारा प्रकाशित हो रहा है। जिसकी लगभग 6 हजार प्रतियाँ छपती हैं और जिसे लगभग 30 हजार लोग पढ़ते हैं। इसका मूल्य दो रूपए प्रति अखबार है।



खबर लहरिया भारत का एकमात्र महिला - संचालित नैतिक और स्वतंत्र ग्रामीण समाचारों का ब्रांड है। आज यह कई डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए हर महीने 50 लाख लोगों तक पहुँचता है। इसका अखंड बुंदेलखंड यानी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 16 जिलों में 25 महिला पत्रकारों का नेटवर्क है, जो एक हाइपरलोकल, वीडियो - फर्स्ट न्यूज चैनल चलाती हैं, मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के दूरदराज के इलाकों में दर्शकों के लिए समाचार प्रसारित करती हैं, जिन्हें 150 मिलियन से अधिक बार देखा गया है और 540,000 + YouTube ग्राहक हैं।


यह 2002 में ग्रामीण महिलाओं के लिए एक वयस्क साक्षरता कार्यक्रम के अंत में शुरू किया गया था और मीरा जाटव, शालिनी जोशी और कविता बुंदेलखंडी द्वारा सह-स्थापना की गई थी। कविता खबर लहरिया की वर्तमान प्रधान संपादक हैं। प्रारंभ में, यह सात महिलाओं के एक कर्मचारी के साथ शुरू हुआ, जिन्होंने बुंदेली और हिंदी भाषाओं में एक पाक्षिक समाचार पत्र लिखा और प्रकाशित किया। प्रकाशन में स्थानीय से लेकर वैश्विक समाचारों तक सब कुछ शामिल था, सभी को नारीवादी दृष्टिकोण से रिपोर्ट किया गया था।


बुंदेलखंड में अपनी जड़ों के साथ, अब हम खबर लहरिया ब्रांड का विस्तार करने के लिए काम कर रहे हैं, जो 20 वर्षों से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के विभिन्न जिलों में महिलाओं को मीडिया में लाने के लिए काम कर रहा है।


खबर लहरिया 2015 में पूरी तरह से डिजिटल हो गया, जिसे दिशा मलिक और शालिनी जोशी द्वारा स्थापित एक डिजिटल मीडिया सामाजिक उद्यम  चंबल मीडिया द्वारा स्थापित किया गया था।



जैसा कि खबर लहरिया अपनी वेबसाइट पर अपना परिचय देता हुआ कहता है - " खबर लहरिया देश का एकमात्र डिजिटल ग्रामीण मीडिया नेटवर्क है। खबर लहरिया एक शक्तिशाली स्थानीय प्रहरी और जमीनी जवाबदेही तय करने का मजबूत तंत्र बना है। इसकी पत्रकारिता उन मुद्दों पर है जो राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया की चर्चा और ध्यान से बहुत दूर हैं। खबर लहरिया खासतौर पर सरकार की ग्रामीण विकास और सशक्तीकरण के लिए बनाई गई योजनाओं के दावों और उनकी हकीकत के बीच के अंतर को उजागर करता है। हमारी खबर, हमारी भाषा में – ये है खबर लहरिया की खासियत। "

 


हम कुशराज झाँसी - " बुन्देली अखबार खबर लहरिया को भारतीय महिला पत्रकारिता की अनोखी मिसाल मानते है। क्योंकि खबर लहरिया में ग्रामीण महिलाओं द्वारा अपनी भाषा में देश - दुनिया के उन मुद्दों और समस्याओं पर खबरें बनाई जाती हैं, जिनकी ओर मुख्यधारा की मीडिया कई कारणों से अपना रूख नहीं करती है। खबर लहरिया इस मायने में भी मिसाल है कि इसने बुन्देली जनता के द्वारा बुन्देली जनता की मातृभाषा बुन्देली में बुन्देली जनता के मुद्दों को देश - दुनिया तक पहुँचाया और नारी सशक्तिकरण का जीवंत उदाहरण पेश किया। "





                फोटो साभार : फेसबुक द्वारा खबर लहरिया


बीबीसी हिन्दी की खबर के अनुसार खबर लहरिया ये है - " गैर सरकारी संगठन निरंतर को यूनेस्को किंग सेजोंग लिट्रेसी सम्मान 2009 से सम्मानित किया गया है। ये सम्मान इसे अखबार खबर लहरिया के लिए मिला है। अखबार की खास बात ये है कि इसमें काम करने वाली सभी महिलाएँ हैं और वे दलित, आदिवासी और मुस्लिम वर्ग से आती हैं।"


" वर्ष 2002 में चित्रकूट में शुरू हुए आठ पन्ने के अखबार खबर लहरिया में महिला रिपोर्टर कहानी सुनाती हैं बदलते समाज की, समाज में फैले भ्रष्टाचार की, पूरे नहीं हुए सरकारी वादों की, गरीबों की और महिलाओं की। " 


" 30 वर्षीय कविता चित्रकूट के कुंजनपुर्वा गाँव के एक मध्यमवर्गीय दलित परिवार से आती हैं। बचपन में उनकी पढ़ाई नहीं हुई। 12 वर्ष में उनकी शादी हो गई और चार वर्ष बाद उन्होंने एक गैर सरकारी संगठन की मदद से पढ़ाई शुरू की। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो ‍जिंदगी में कभी पत्रकार बनेंगी। वर्ष 2002 में उन्होंने गैर सरकारी संगठन (NGO) - ' निरंतर ' की ओर से चित्रकूट शहर से शुरू किए गए बुंदेली अखबार 'खबर लहरिया' में पत्रकार के रूप में काम शुरू किया।" 


" जहाँ चाह वहाँ राह : वर्ष 2006 में अखबार बाँदा से भी छपना शुरू हो गया। कविता आज खबर लहरिया की बाँदा संपादक हैं। वे कहती हैं कि इस अखबार ने मेरी जिंदगी बदल दी है। मेरे पिताजी ने बचपन से मुझे पढ़ाया नहीं और कहा कि तुम पढ़कर क्या करोगी, तुम्हे कलेक्टर नहीं बनना है। मैनें छुप - छुप कर पढ़ाई की। "


" पहले था कि मैं किसी की बेटी हूँ या फिर किसी की पत्नी हूँ... आज मेरी खुद की पहचान है और लोग मुझे संपादक के तौर पर जानते हैं। यहाँ ये बताते चलें कि कविता ने पिछले वर्ष ही स्नातक की परीक्षा पास की यानी जहाँ चाह, वहाँ राह। "


" चित्रकूट से खबर लहरिया की करीब ढाई हजार प्रतियाँ छपती हैं और बाँदा से करीब दो हजार। आँकड़ों के मुताबिक गाँवों में रहने वाले 20000 से ज्यादा लोग इस अखबार को पढ़ते हैं। " 


" चित्रकूट और बाँदा डकैतों के दबदबे वाले क्षेत्र हैं और कविता कहती हैं कि ऐसे इलाकों में दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं के लिए एक पुरुष प्रधान व्यवसाय में काम करना आसान नहीं है। " 


" वे कहती हैं कि हम पर लोगों का काफी दबाव था कि महिलाएँ होकर हमारे खिलाफ छापती हैं। ज्यादातर लोग जो उच्च जाति के लोग थे, वो कहते थे कि आपके अखबार को बंद करवा देंगे। वो कहते थे कि बड़े अखबारों ने हमारे खिलाफ कुछ नहीं निकाला तो फिर आपकी हिम्मत कैसे हुई। शायद इन्हीं दबावों का नतीजा है कि अखबार में बायलाइन नहीं दी जाती। इससे ये पता नहीं चलता कि किसी खबर को किसने लिखा है। " 


" हिम्मत नहीं हारी : परेशानियों के बावजूद ये महिलाएँ डटकर खबर लिखती हैं - चाहे वो दलितों के साथ दुर्व्यवहार का मामला हो, खराब मूलभूत सुविधाएँ हों, नरेगा की जाँच पड़ताल हो, पंचायतों के काम करने के तरीके पर टिप्पणी हो, या फिर सूखे की मार से परेशान किसानों और आम आदमी की समस्या हो, सूखे की वजह से लोगों की पलायन की कहानी हो, या फिर बीमारी से परेशान लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी। "


" ये महिला पत्रकार हर मुश्किल का सामना कर दूर दराज के क्षेत्रों में जाती हैं, जहाँ बड़े-बड़े अखबारों के संवाददाता नहीं पहुँच पाते। उनके खबर लिखने का अंदाज भी काफी अलग होता है। साथ ही इनका कहना है कि वो अपने अखबार में नकारात्मक खबर ही नहीं, सकारात्मक खबरें भी छापती हैं। "


" गैर सरकारी संगठन निरंतर की शालिनी जोशी, जो अखबार की प्रकाशक भी हैं, कहती हैं कि जिस तरह ये महिलाएँ खबरें लाती हैं वो कई लोगों को अचंभे में डाल देती हैं। "


" उनका कहना है कि इन इलाकों में जाति आधारित हिंसा और महिलाओं पर होने वाली हिंसा बहुत है। ऐसी स्थिति में दूरदराज के गाँवों तक जाना, खबरें लेकर आना और अन्य पक्षों से बात करना और फिर उसे लिखना और उस पर टिप्पणी देना, ये इस टीम की खासियत है। अखबार के चित्रकूट संस्करण की संपादक मीरा बताती हैं कि शुरुआत में पुरुष पत्रकारों ने उन्हें पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया था। "


" वे कहती हैं कि पुरुष पत्रकार कहते थे कि आप कैसे खबर ला सकती हैं या फिर लिख सकती हैं, लेकिन हम अपने काम में लगे रहे। आज वही पत्रकार खबर लहरिया से खबरें लेकर अपने अखबारों में डालते हैं। और वो मानते भी हैं कि खबर लहरिया ही ऐसा अखबार है जहाँ गाँव स्तर तक महिलाएँ जाती हैं और खबरें लाती हैं और उनकी खबरें ठोस होती हैं। "


" चित्रकूट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि अखबार की पहुँच पूरे जिले में तो नहीं, हाँ कुछ पिछड़े इलाकों के गावों तक है और वहाँ तक अखबार अपनी बातों को पहुँचाने में सफ़ल रहता है। "


" बाँदा संपादक कविता अखबार की कुछ बड़ी कहनियों के बारे में बताती हैं। वो बताती हैं कि किस तरह चित्रकूट में एक कंपनी जब पहाड़ों पर खुदाई करने पहुँची तो उसकी मिट्टी किसानों के खेतों में जा रही थी और उससे किसान परेशान थे और हमने उस खबर को पहले पन्ने पर छापा। खबर छापने से वहाँ की खुदाई रुकी थी। "


" कविता कहती हैं कि वो इस अखबार के माध्यम से समाज में बदलाव लाना चाहती हैं। वहीं शालिनी जोशी बताती हैं कि खबर लहरिया अब बिहार में तीन जगहों सीतामढ़ी, गया और शिवहर से जल्दी ही अपनी शुरुआत करने वाला है। " 


लेखक राजेन्द्र अग्निहोत्री जी अपने लेख - बुन्देलखण्ड की पत्रकारिता की एक झलक में खबर लहरिया पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं - 

" ठेठ बुन्देली में छपने वाले खबर लहरिया अखबार का महत्त्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि यह खांटी ग्रामीण और जुझारू औरतों का सामूहिक प्रयास है बल्कि मूक रूप से चल रहे इस आंदोलन को यूनेस्को ने पुरस्कृत कर दुनिया भर के सामने मिशाल पेश की है। सुदूर गाँवों की साक्षर, कम पढ़ी - लिखी और सूचना क्रांति की धमक को अब तक न महसूस कर पाने वाले ग्रामीण महिलाओं की यह पहल का उदाहरण भी है। संसद से लेकर सड़क तक इन दिनों बुन्देलखण्ड के विकास को लेकर चर्चा है। बुन्देलखण्ड के बुलन्द हौसले की उड़ान की सच्ची कहानी है खबर लहरिया। दलित, कोल और मुस्लिम महिलाओं की टीम द्वारा निकाले जा रहे स्थानीय बुन्देली भाषा के अखबार खबर लहरिया को यूनेस्को का किंग सेजोंग लिट्रेसी पुरूस्कार 2009 देने की घोषणा की गयी। इसके पहले चमेली देवी जैन अवार्ड इस अखबार की टीम को मिल चुका है। "




                            फोटो साभार : गूगल


– 23/12/2022 _ 10:50रात _ झाँसी



      शोध - आलेख -:


       कुशराज झाँसी


(बुंदेलखंडी युवा लेखक, सदस्य : बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, सामाजिक कार्यकर्त्ता)


मातृभाषा :- कछियाई - किसानी - बुंदेली (बुंदेलखंडी)

लेखन :- हिन्दी और बुन्देली में शोध, लेख, कविता, कहानी, डायरी इत्यादि।

शिक्षा :- दिल्ली विश्वविद्यालय से बी०ए० हिन्दी ऑनर्स, बुंदेलखंड कॉलेज झाँसी से कानून स्नातक एवं एम० ए० हिन्दी।

प्रकाशित पुस्तक :- पंचायत (हिन्दी कहानी एवं कविता संग्रह) 2022

ईमेल :- kushraazjhansi@gmail.com

सम्पर्क :- 8800171019, 9569911051

पता - नन्नाघर, जरबौ गॉंव, बरूआसागर, झाँसी (बुंदेलखंड) – 284201




                         कुशराज झाँसी की फोटो 



सन्दर्भ : 

1. खबर लहरिया 

https://khabarlahariya.org/


2. बीबीसी हिन्दी

https://m-hindi.webdunia.com/article/bbc-hindi-news/%E0%A4%96%E0%A4%AC%E0%A4%B0-%E0%A4%B2%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8-109080700155_1.htm?amp=1


3. यूनेस्को

https://uil-unesco-org.translate.goog/case-study/effective-practices-database-litbase-0/khabar-lahariya-news-waves-india?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc,sc


4. हिंदुस्तान हिंदी अखबार

https://www.livehindustan.com/national/story-documentary-film-on-39-khabar-lahariya-39-nominated-for-oscar-5774578.html


5. अमर उजाला हिंदी अखबार

https://www.amarujala.com/photo-gallery/entertainment/bollywood/writing-with-fire-the-team-of-khabar-lahariya-reacts-on-the-film-writing-with-fire-said-our-story-is-more-complicated-than-the-story-going-to-the-oscars


6. राइटिंग विद फायर

https://youtu.be/uv51mXOvjJw


7. शतरंग टाइम्स ब्लॉग

https://www.shatrangtimes.page/2019/12/bundelakhand-kee-patrakaarita-VKSY8O.html?m=1



 


 



Wednesday 21 December 2022

बरुआसागर : बुंदेलखंड का कश्मीर Barwasagar : Kashmir of Bundelkhand

 बरुआसागर : बुंदेलखंड का कश्मीर

Barwasagar : Kashmir of Bundelkhand


         
        बरूआसागर का किला - कुशराज झाँसी


विश्व में अग्रणी भारतीय संस्कृति का उल्लेखनीय विकास जिन क्षेत्रों में हुआ, उनमें 'मध्यदेश' यानि 'बुंदेलखंड' का विशेष महत्त्व है। इसी बुंदेलखंड के अंतर्गत झाँसी जिले का बरूआसागर (Barwasagar or Baruasagar) भी है। यहाँ युग -  युगों से संस्कृति के विभिन्न अंग पोषित होते रहे हैं। प्राकृतिक सुषमा की दृष्टि से यह अत्यंत मनोहर है।

यह स्थान झाँसी से 21 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में झांसी -  मऊरानीपुर मार्ग पर स्थित है। मध्यरेल झाँसी - मानिकपुर शाखा पर बरूआसागर रेलवे स्टेशन है। 

यहाँ से गुजरने वाले 'बरूआ' नामक नाले पर तटबन्ध बनाकर एक विशाल सरोवर यहाँ के महाराजा उदितसिंह ने लगभग 300 वर्ष पूर्व बनवाया था। यह 'सागर' कहलाता है। इस प्रकार ' बरूआ' तथा 'सागर" इन दो शब्दों के योग से " बरूआसागर" नाम पड़ा।



बरूआसागर ताल - कुशराज झाँसी


नगर के दक्षिणी कोने पर कैलाशपर्वत नामक पहाड़ी पर प्राचीन शिवमन्दिर है इसी के निकट भव्य प्राचीन दुर्ग है - बरूआसागर का किला, जो झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई का ग्रीष्मकालीन महल रहा है। इस दुर्ग में रहकर गर्मियों के मौसम में रानी लक्ष्मीबाई प्रकृति का आनंद लेती थीं। रानी के बाद यह दुर्ग ब्रिटिशकाल में अधिकारियों का विश्रामगृह भी रहा है। यहाँ से विशाल सरोवर बरूआसागर ताल, झील और स्वर्गाश्रम झरना पक्की कलात्मक सीढ़ियोंदार घाटों तथा हरे - भरे बागों से समृद्ध दृश्य अत्यन्त सुहावना लगता है।



बरूआसागर का कम्पनी बाग - कुशराज झाँसी


बरूआसागर वैष्णव, शैव तथा शाक्त साधना का प्रमुख स्थल होने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के प्रचार - प्रसार का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। इसकी दो कोस परिधि में ऐसे अनेक स्थल जो इसके सांस्कृतिक वैभव के साक्षी हैं। प्राचीन इतिहास में वर्णित तुंगारण्य तथा बेत्रवंती यानी बेतवा नदी यहाँ से छह किलोमीटर दूर है।

प्राचीनकाल में संस्कृति प्रचार - प्रसार हेतु मठों की स्थापना की जाती थी । यह मठ धर्म, संस्कृति, कला, साहित्य, वाणिज्य तथा सामाजिक समृद्धि हेतु नियोजित कार्य करते थे। इसके अन्तर्गत विभिन्न मतावलम्बियों के साधनास्थल तथा मंदिर बनाये जाते थे। इस दृष्टि से बरुआसागर का सांस्कृतिक अनुशीलन स्वतन्त्र शोध का विषय है। यह तथ्य विशेष महत्त्वपूर्ण हैं कि बरूआसागर के पूर्व में 'घुघुवामठ' तथा पश्चिम में 'जराय का मठ' नामक दो चन्देलकालीन मठों का उल्लेख मिलता है। इनके पुरातत्वीय अवशेष अभी भी विद्यमान हैं।

घुघुवा - मठ का नामकरण बरुआसागर के पूर्व में स्थित ग्राम घुघुवा गॉंव पर हुआ। सम्भवतः इसका विस्तार घुघुवा ग्राम से वर्तमान स्वर्गाश्रम झरना तथा सरोवर के ऊपरी टीले पर स्थित लक्ष्मणशाला मन्दिर तक था। घुघुवा ग्राम से लक्ष्मणशाला तक अनेक स्थानों पर अलंकृत शिलाखण्ड पड़े हैं। वे यहाँ विशाल मठ की मूक गाथा कहते हैं। यहाँ ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित दो विशाल मन्दिर थे। इनका निर्माण चन्देल काल में हुआ था। इनमें गणेश तथा दुर्गा जी की मूर्तियां प्रतिष्ठित थीं। अब वहाँ कोई मूर्ति नहीं है। अधिकांश ग्रामवासी मठ की प्राचीनता अथवा उसके विस्तृत विवरण से अनभिज्ञ हैं।


इस मठ के अलंकृत स्तम्भों तथा प्रस्तरखण्डों का उपयोग सरोवर की कलात्मकसीढ़ियों तथा लक्ष्मणशाला की प्राचीर में यत्र - तत्र किया गया है। इस पुरातत्वीय स्थल पर लोक निर्माण विभाग ने एक सुन्दर निरीक्षण भवन बना दिया है।

बरुआसागर से पांच किलोमीटर पश्चिम में, सड़क किनारे एक टीले पर शिखर शैली का मन्दिर बना है। इसे 'जराय का मठ' कहते हैं। 'जराय' शब्द जड़ाऊ अथवा पच्चीकारी के लिये प्रयुक्त होता है। इसके अलंकृत होने के कारण सम्भवतः इसका नामकरण 'जरायमठ' किया गया होगा। निकटवर्ती ग्रामवासी इसे जरायमाता की मठिया भी कहते हैं। किन्तु इस मन्दिर में कोई विग्रह नहीं है। उसके आस-पास भी अलंकृत शिलाखण्ड मिलने से इसके विस्तृत होने का अनुमान है।

पुरातत्व वेत्ता प्रो० कृष्णदत्त बाजपेयी इसे शिव-पार्वती का चन्देलकालीन मन्दिर मानते हैं जबकि झांसी संग्रहालय के पूर्व निदेशक डॉ० एस० डी० त्रिवेदी के अनुसार यह देवी मन्दिर था। वे इसे प्रतिहारकालीन मूर्तिकला का उत्कृष्ट मन्दिर मानते हैं। प्रतिहारकाल के तुरन्त पश्चात् चन्देलकाल आता है, अतः काल दृष्टि से विशेष अन्तर नहीं है । किन्तु देव दृष्टि से अनेक मत हैं। अनेक ग्रामवासी प्राचीन परम्परा से इसे सूर्य मन्दिर मानते हैं। कुछ दिनों पूर्व तक सरोवर के निकट एक सूर्य प्रतिमा थी। सम्भव है वह यहाँ से ले जाई गई होगी। 


बुन्देलखण्ड में सूर्य पूजा काफी प्रचलित रही है। यहाँ उनाव बालाजी, कालप्रियनाथ कालपी, मड़खेरा तथा महोबा में प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर रहे हैं, अतः यहाँ भी सूर्य मन्दिर की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

जराय का मठ पंचायतन शैली पर बनाया गया है। इस शैली के अन्तर्गत केन्द्रीय मन्दिर के बाहर चारों कोनों पर चार मन्दिर बनाये जाते हैं। यहाँ दक्षिण की ओर दो कोनों पर उपमन्दिर अभी शेष हैं। किन्तु शेष दो नष्ट हो गये हैं। मुख्य मन्दिर पूर्वाभिमुखी है। इसके गर्भगृह के आगे खुला मन्दिर था। यह नष्ट हो गया है। गर्भगृह के ऊपर शिखर शैली की क्षिप्त-वितान का सुन्दर संयोजन है। मन्दिर की बाहरी दीवारों का अलंकरण मूर्तियां उकेरकर किया गया है। यह ऊपर से जटिल प्रतीत होते हैं। पूर्व की ओर बना द्वार पूर्णरुपेण अलंकृत है। नीचे की पंक्ति में अष्ट दिक्पाल उत्कीर्ण है। द्वार पर दोनों ओर मच्छप तथा कच्छप पर आरूढ़ गंगा और यमुना की मूर्तियां हैं। मन्दिर के ऊपरी भाग में पद्म नीचे की ओर कलश तथा पार्श्व में मिथुन मूर्तियां अंकित हैं। अधिकांश मूर्तियां खण्डित हैं।

इस मन्दिर से लगभग तीन किलोमीटर दूर बनगुवां में चन्देलकालीन मन्दिरों के अवशेष, अलंकृत शिलाखण्ड तथा शिवलिंग मिलते हैं। यहाँ प्राचीन वापी भी है।

बरूआसागर रेलवे स्टेशन के समीप सिसोनिया गाँव के अन्तर्गत ऊंची पहाड़ी पर 'तारामाई' का प्राचीन मन्दिर है। इस तक पहुंचने के लिये छह सौ सीढ़ियां है। मान्यता है कि यह देवी पुराण में वर्णित तारादेवी की सिद्धपीठ है। किवदंतियों के अनुसार देवी के सती होने पर उनके अंग जिन-जिन स्थानों पर गिरे, वहाँ सिद्धपीठों की स्थापना हुई। यह भी उनमें से एक है।


बरूआसागर से 9 किलोमीटर दूरी पर घुघुआ - टहरौली मार्ग पर स्थित जर्बो / जरबौ गाँव में प्राचीन गुप्तकालीन किले के खंडहर हैं। जहाँ पर अनेक गुप्तकालीन मंदिर के अवशेष के रूप में खंडित मूर्तियाँ आज भी उपलब्ध हैं। इस जगह को गाँववाले मढ़िया नाम से पुकारते हैं। इसी गॉंव में नृसिंह भगवान का मंदिर स्थित है जो बुंदेलखंड का एकमात्र नृसिंह मंदिर है।





जरबौ गॉंव में प्राचीन मंदिर के अवशेष - कुशराज झाँसी



इस विवेचन से यह स्पष्ट है कि चन्देलकाल तक इस अंचल में स्थापत्य तथा मूर्तिशिल्प का पर्याप्त विकास हो चुका था। 

यह क्षेत्र कला एवं संस्कृति के साधकों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा है। लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व महाराजा उदित सिंह द्वारा बनवाये गये अनेक मन्दिर यहां वैष्णव संस्कृति के समुचित संरक्षण का संकेत देते हैं। इस काल के मंदिरों में किले के निकट लक्ष्मी मन्दिर, बाजार में चतुर्भुज जी का मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर तथा भाऊ मन्दिर उल्लेखनीय है। इन सबकी निर्माण शैली लगभग समान है। इन सभी मंदिरों में काली कसौटी के विग्रह प्रतिष्ठित हैं।


वर्तमान में बरूआसागर का सर्वाधिक रमणीय एवं सांस्कृतिक स्थल स्वर्गाश्रम है। झांसी- मऊरानीपुर मुख्य मार्ग पर नगर से लगभग तीन किलोमीटर दूर सरोवर के नीचे की ओर इसका विशाल कलात्मक एवं आकर्षक प्रवेश द्वार दर्शकों को बांध लेता है। आश्रम की प्राचीर सा दिखता सरोवर का विशाल तटबन्ध, बड़े बड़े सीढ़ीदार पक्के घाट, हरे भरे दृश्यों की छांव, लता वल्लरियां, प्राचीन वटवृक्ष तथा शिवमंदिर के बीच प्रवाहित होने वाला गुप्तेश्वर-प्रपात उसके दांयी ओर कलरव करता एक और प्रपात, जलकुण्डों का सौन्दर्य और कहीं ऊबड़ खाबड़ पड़े शिलाखण्डों में झांकता नैसर्गिक वैभव दर्शकों का मन मोह लेते हैं। विभिन्न प्रकार के पुष्पों से वातावरण सुरभित है।

सन् 1950 ई0 मे दण्डी स्वामी शरणानन्द सरस्वती ने इसे अपना साधना केन्द्र बनाकर इसे विकसित किया था। उनकी प्रेरणा से श्रृंगीऋषि समाज ने श्रृंगीऋषि मन्दिर तथा अन्य श्रद्धालु भक्तों ने दुर्गा मन्दिर, वेद मन्दिर, शिवमन्दिर, यज्ञशाला, गौशाला, प्रवचन भवन, संस्कृत विद्यालय भवन, प्राकृतिक आयुर्वेद चिकित्सा भवन तथा संत विश्राम कक्षों का निर्माण कराया था। यज्ञ तथा प्रवचन यहाँ की परम्परा बन गये हैं। तब इस आश्रय परिसर में वेदों की ऋचायें, सामवेद के गान और संतों के प्रवचनों की ओजमय वाणी गूंजती थी। सन् 1982 में स्वामी जी के देहावसान के पश्चात् अनेक वर्षों तक यहां आध्यात्मिक चेतना तिरोहित हो गई थी। नगरवासियों ने पुनः स्वामी जगद्गुरु को यहाँ लाकर उनके द्वारा आश्रम का निर्देशन कराने तथा इसके पूर्व वैभव को प्रतिष्ठित करके यहां की प्राकृतिक सुषमा, आध्यात्मिक चेतना तथा मानव सेवा की त्रिवेणी प्रवाहमान बनाये रखने का सराहनीय कार्य किया है और स्वामी जी के समाधि स्थल पर विशाल मंदिर का निर्माण किया है, जिसके गर्भगृह में स्वामी शरणानंद सरस्वती जी की प्रतिमा स्थापित की है। स्वर्गाश्रम झरना पर प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर्व के अवसर विशाल मेला लगता है। मकर संक्रांति को बुंदेलखंडी 'बुड़की' कहते हैं। बरूआसागर के आसपास 30-40 किलोमीटर में स्थित गॉंवों के लोग मकर संक्रांति पर स्वर्गाश्रम झरने और बरूआसागर ताल में बुड़की लेते हैं।


स्वर्गाश्रम की भाँति वर्तमान में बरूआसागर में आस्था का क्रेंद्र सिद्धपीठ मंसिल माता मन्दिर है। मंसिल माता समस्त क्षेत्रवासियों की हर मनोकामना पूर्ण करतीं हैं। इसलिए श्रद्धालु प्रसन्न होकर देवी जी को बकरी की बलि चढ़ाते हैं और श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ या श्री रामकथा ज्ञान यज्ञ का हर साल आयोजन भी कराते हैं। जिसमें विश्वविख्यात कथा वाचक जैसे - जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी, गौरव कृष्ण शास्त्री जी इत्यादि कथा का वाचन कर चुके हैं। मंसिल माता की सेवा में सन 1997 के कार्यरत मुख्य पंडा, पुजारी सुरेश कुशवाहा दाऊ हैं, जिनकी सुपुत्री राधास्वरूपा महक देवी कथावाचक हैं। जिनकी उम्र 7 साल हैं। जिन्हें बुंदेलखंड की सबके कम उम्र की कथावाचक होने का गौरव प्राप्त है।

 


मंसिल माता मंदिर - कुशराज झाँसी



बरूआसागर में किले की तलहटी में तालाब के बांध पर कई सालों के नगरपालिका परिषद द्वारा रक्षाबंधन पर्व के पावन अवसर पर हर साल विशाल दंगल और निशानेबाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है।


बरूआसागर को 'बुन्देलखण्ड का कश्मीर' मानने का कारण यह है कि यहाँ लगभग दस वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत सरोवर तथा दर्जनों बागों की मनभावन हरीतिमा है। इनमें अमराई बाग, कम्पनी बाग, गोमटा बाग, राजबाग तथा गणेश बाग प्रमुख हैं। सरोवर से निकाली गई नहरें तथा कल - कल करती पक्की नालियों से प्रवाहित जलधारा से सिंचाई आश्वस्त है। इससे इस नगर में शाक भाजी, फल एवं फूलों के प्रमुख उत्पादन केन्द्रों में गिना जाता है। यहाँ की सब्जीमंडी एशिया की सबसे बड़ी अदरक मंडी के रूप में विख्यात है। यहाँ से इन उत्पादों का लगभग पचास ट्रक प्रतिदिन का लदान है।


अतः इस प्रकार बरूआसागर सांस्कृतिक चेतना एवं हरितक्रान्ति का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है।


_19/12/2022_9:00भोर_झाँसी


शोध एवं आलेख -: 

©️ कुशराज झाँसी

(सदस्य : बुन्देलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, बुंदेलखंडी युवा लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता)


  

                       लेखक - कुशराज झाँसी


नोट :- 

बुन्देली झलक पर "बरुआसागर - बुंदेलखंड का ऐतिहासिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र" नामक शीर्षक से यह शोध - आलेख 20/12/2022 को प्रकाशित। 

https://bundeliijhalak.com/baruasagar/?amp=1





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