Thursday 27 December 2018

कहानी : भूत - कुशराज झाँसी


                कहानी - " भूत "


               गावँ का पुराना किला डरावनी जगह बन गयी है। 'हू - हू' की अजीब तरह की आवाजें आती हैं। किले के सारे कक्ष एक ही डिजाइन के दिखते हैं। सारे दरवाजे एक जैसे लगते हैं। पता ही नहीँ चलता किससे भीतर घुसे हैं और किससे बाहर निकलें। नीचे कई तलघर हैं, जिनमें से कईयों में ताला पड़ा है। दो - चार ही खुले रहते हैं। उनमें भी कई दिनों से सफाई नहीँ हुई है। अजीब तरह की स्मैल आती है। दीवारों पर उस समय की कलाकृतियाँ बनी हुई हैं। जिनमें कुछ देवी - देवताओं की हैं और कुछ रमणियों कीं। कुछ ऐसी भी कलाकृतियाँ हैं। जिनमें राजा कई नर्तकियों के साथ रागरंग में मस्त दिखते हैं। कुछ में तो नग्न स्त्रियों का भी चित्रण है। 

किले के आसपास का इलाका वीरान है। बड़े - बड़े खेत हैं। ऊँची - नीची पहाड़ियाँ हैं। घना जंगल हैं जो डाकुओं से भरा पड़ा हैं। ये दिनरात लूट - मार मचाए रहते हैं। कभी किसी की बाईक पकड़ लेते और स्त्रियों के जेवर और आदमियों के पैसे, फोन समेत छीन लेते। जंगल के बीच से सिया नदी की कलकल धारा भी बहती है। किले से बस्ती चार - पाँच सौ मीटर दूर है। दोपहर में निराट सुनसान माहौल रहता है। सिर्फ और सिर्फ गिद्ध, उल्लू, चमगादड़ और मधुमक्खियों के छत्ते ही नजर आते हैं। कभी - कभार पर्यटक चले आते हैं और कभी - कभार प्रेमी युगल। प्रेमी युगल रोमांस करके घूम - घामकर चले जाते हैं और पर्यटक इसकी ऐतिहासिकता और शिल्पशैली पर नाज करते हैं।

सर्दियों की दोपहर को कपिल किला घूमने जाता है। जिसका घर बगल की बस्ती में ही है। बारह - तेरह साल का शर्मिला, गेहुँआ रंग का सुंदर मोड़ा है। घरवालों का बहुत लाड़ला है और सरकारी पाठशाला में कक्षा छः में पढ़ता है। वो किले में दो - तीन घण्टे तक घूमता रहा। अकेला पाकर नेमू कक्का की भटकी आत्मा उस पर सवार हो गयी। नेमू कक्का किले का पहरेदार था। जिसे कुछ सालों पहले डाकुओं ने मार गिराया था। वो चालीस - ब्यालीस साल का हट्टा - कट्ठा जवान था। उसकी उम्र पूरी नहीँ हुई थी इसलिए उसकी आत्मा अभी तक भटक रही है। वो कई मासूमों को अपने आगोश में ले चुका है। उन्हें बुरी तरह से परेशान कर चुका है। कभी बेवजह जोर - जोर से रुलाता है तो कभी नींबू माँगता है और कभी अण्डे। 

कपिल जैसे ही घर आया तो अम्मा ने कहा -
"बेटा! तोई आँखें चढ़ी - चढ़ी लग रही हैं। तू हर रोज से परेशान क्यूँ दिख रहा है।"
"कुछ नहीँ अम्मा। अभी - अभी किला घूमकर आया हूँ सो ऐसा लग रहा है। और कुछ नहीँ। मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"

रात को कपिल अम्मा के साथ सो रहा था। पापा खेत पर फसल में पानी लगाने गए थे और दद्दा - बाई, भज्जा - बिन्नू लखनऊ एक शादी समारोह में गए थे। घर पर कोई नहीँ था कपिल और अम्मा के सिवाय। जैसे ही ग्यारह बजे तो कपिल जोर - जोर से रोने लगा। नींबू और अण्डा माँगने लगा। किवार खोलकर बाहर की ओर भागने लगा। तनक देर में वह बिल्कुल शांत हो गया। अम्मा बहुत डर गई। कपिल को साथ लेकर और घर में ताला लगाकर पड़ोस में पाँच - छः घरों की कुंदी बजायी जिनमें से एक ने किवार खोले। उन्हें पूरी बात बताई कि ये कपिल ऐसीं - ऐसीं हरकतें कर रहा है। जैसी मैंने आज तक नहीँ देखीं।

शीला काकी और रामलाल कक्का अम्मा के साथ उसके घर आ गए। कक्का ने कहा - 
"लक्ष्मी बिटिया! कपिल बेटा को भूत लग गया है। रमशु कक्का को बुला लाओ। वे क्षेत्र के जानेमाने गुनियाँ हैं। भूत - भूतनियाँ भगाना अच्छी तरह से जानते हैं।"
"हओ कक्का। अबेहाल जा रए।"
"ओ रमशु कक्का! खोलो किवार। हमाए कपिल खों जाने का हो गओ। देखलो तनक जाकैं।"
"हओ लक्ष्मी बिटिया। अबेहाल चल रए।"

रमशु कक्का ने आते ही कपिल के मुँह पर पानी का किंछा मारा और हाथ देखा। पाँच मिनिट में ही भूत बक्कर गया। भूतसवार कपिल से गुनियाँ ने पूँछा -
"कौन है तूँ?"
"कहाँ से आया है?"
"क्यूँ आया है?"

भूत ने जोर से चिल्लाकर कहा -
"भूत हूँ मैं। भूत..........। नेमू कक्का नाम है मेरा।"
"पूजा लेना और मासूमों को परेशान करना काम है मेरा।"
"मैं इसे अपना साथी बनाने आया हूँ।"

इतना सुनकर रमशु कक्का ने अघोरी बब्बा के नाम पर अगरबत्ती लगाईं और तंत्र - मंत्र फूँके। जिससे कपिल ठीक हो गया और भूत भाग गया। भोर हँसते - कूँदते पाठशाला गया। जब पतिदेव महेश खेत से लौटे तब रात का सारा किस्सा सुनाया, जिससे वो भी भयभीत हो। सारे घर वाले बहुत परेशान और चिंतित रहने लगे।

तीन महीने बाद लक्ष्मी और महेश के साथ रोजाना की भाँति कपिल सो रहा था। रात के डेढ़ बजे अचानक जोर - जोर से रोने लगा। नींबू, अण्डा, दारू और मिठाई माँगने लगा। फिर से रमशु कक्का आए। इस बार भूत को बहुत बड़ी पूजा लगायी गयी। पूजा में पान, सुपारी, नींबू, अण्डा, दारू, मुर्गा और पचबन्नी मिठाई दी गयी और अंत में इसे नारियल में बाँधकर रमशु कक्का ने अपनी तंत्रविद्या से सदा के लिए भस्म कर दिया। जिससे कपिल और सारे गाँववासी सदा से लिए इसके कृत्यों से मुक्त हो गए।

दो साल बाद ननिहाल में पढ़ने वाली राण्या जब सहेलियों के साथ अपने गाँव के मातेघाट कुँए से पानी भरने गयी थी तो शाम को वो आँगन में बेहोश होकर गिर पड़ी। हाथ में थोड़ी चोट आ गई। फटाफट डॉक्टर के पास ले गए। इलाज हुआ और सप्ताह भर में बिल्कुल टकाटक हो गई। फिर दस दिन बाद तेज बुखार और सिरदर्द से पीड़ित हो गई। डॉक्टर के पास एक - डेढ़ महीना इलाज हुआ। फिर भी उसकी तबीयत में तनक भी बदलाव नहीँ आया। शरीर दिन - प्रतिदिन सूखकर लकड़ी जैसा होता जा रहा है। न ही ठीक से खाना खाती है और न ही सोती है। सिर्फ अभी तीन - चार दिन से रात में बारह बजे से तीन बजे तक रोती रहती है और फिर शांत हो जाती है। घरवाले बहुत परेशान हैं। न कोई काम ढंग से कर पा रहें हैं और  न टेम से खा - पी रहे हैं। सिर्फ लाड़ली की चिंता में डूबे जा रहे हैं। 

घर में वह अकेली ही बची है। एक भाई था जो हैजा के कारण तीन साल पहले मर गया था। राण्या के पापा नंदू से धर्मपत्नी शीला ने कहा -
"ये जी। लाड़ली को डॉक्टर के पास बहुत दिखा लिया है। जिससे कुछ लाभ न हुआ। अब इसे गुनियाँ रमशु कक्का के पास और दिखा लेते हैं। शायद राम की कृपा से लाड़ली बच जाए।"
"हाँ ठीक है। मैं अभी रमशु कक्का को बुलाकर लाता हूँ।"

रमशु कक्का अभी घर पर नहीँ थे। उनकी पत्नी ने बताया कि वो अपनी ससुराल गए हैं। शाम तक लौट आएँगे। जैसे ही आएँगे तो मैं बता दूँगी कि दोपहर में नंदू भज्जा आए थे। बहुत रो रहे थे और कह रहे थे -
"भौजी! हमारी राण्या डेढ़ - दो महीना से बीमार है। कई बार डॉक्टर को दिखाया फिर भी कुछ फर्क नहीँ पड़ा। वो दिन - प्रतिदिन सूखती ही जा रही है। उसके साथ मैं, उसकी अम्मा और सारे घरवाले चिंता में मरे जा रहे हैं। भज्जा को जल्दी भेज देना।"
"हओ लला।"

शाम को रमशु कक्का नंदू भज्जा के यहाँ आ गए। लाड़ली राण्या खाट पर लेटी हुयी थी। बहुत कमजोर और चिंतित थी। उसकी पढाई छूट रही थी। इस बार उसे हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा देनी है। फूट - फूटकर रोती हुए बोली -
"कक्का! क्या होगा मेरा? न जाने क्या हो गया है? ऐसा लगता है जैसे मेरे अंदर कोई हो जो मेरी भूख मार रहा है।"
"चिन्ता मत करो लाडली। मैं आ गया हूँ। अभी हाल सब ठीक हो जाएगा।"

रमशु कक्का ने अगरबत्ती लगायीं और तंत्र - मंत्र फूँके। उसके मुँह पर पानी का किंछा मारा और नीम के झोंके से झाड़ा - फूँका। जिससे उसकी झक्की खुल गई। फिर उसकी चोटी में गाँठ लगाई जिससे भूतनी बक्कर आयी। कक्का ने जोर देकर पूँछा -
"कौन है तूँ?"
"कहाँ से आयी है?"
"किसलिए आयी है?"
"भूतनी हूँ मैं। निर्मला मेरा नाम है।"
"नेमू कक्का की बेटी हूँ। मातेघाट कुँआ में रहती हूँ।"
"और राण्या को अपनी संगिनी बनाने आयी हूँ।"

"अच्छा! तूँ वही निर्मला है न। जो अपने प्रेमी अतुल के साथ घर से भाग गई थी। चार महीने में वापिस लौटकर घर आयी थी। अम्मा ने डाँटा था। पापा ने थप्पड़ मारा था और भाई ने भी पीटा था। सबने प्रेमी से सम्बन्ध तोड़ने को बोला था। तूँ सम्बन्ध तोड़ने को तैयार न थी इसलिए तूँने व्यथित होकर मातेघाट कुँए में कूँदकर अपनी जान   दी थी।"
"हाँ! मैं वही निर्मला हूँ। अब मैं राण्या को भी अपनी संगिनी बनाकर रहूँगी।"
"मूर्ख पुत्री! ये नामुमकिन है। हम ऐसा कभी नहीँ होने देंगे।"

इतना सब होने पर रमशु कक्का ने पूजा का सामान लगवाया और घर से दूर पहाड़ किनारे पूजा लगायी गयी। जिसमें सुहागिन के सिंगार का पूरा सामान, नीबू, अण्डे और मिठाई थी। अंत में भूतनी निर्मला को नींबू में कैद करके भस्म कर दिया गया और सदा के लिए राण्या और गाँववासी इसके भय को छोड़कर चैन की साँस लेने लगे।

                    

✍  कुशराज झाँसी

_25/12/2018_12:12 रात _ जरबौगॉंव

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Sunday 23 December 2018

इंसानियत लाना है - कुशराज झाँसी




कविता - " इंसानियत लाना है " 

ऐसे देश पर लानत है। 
ऐसे संविधान पर लानत है।
जहाँ दिन प्रतिदिन बहिन - बेटी सताई जाती है।
कभी हवस का शिकार होती है।
तो कभी जिन्दा ही जला दी जाती है।
सरकारें सोई रहती हैं
केवल मंदिर - मस्जिद के मुद्दे पर लड़ती हैं।
माँ-बहिन और बेटी के अत्याचारों पर चुप्पी साध लेतीं हैं।
कभी - कभी दोषियों का साथ भी देतीं हैं।
पर्दे के बाहर कुछ और पर्दे के भीतर कुछ करती हैं।
यहाँ फाँसी होती है सिर्फ नाबालिग कन्या से रेप करने पर।
बाकी स्त्रियों पर अत्याचार करने पर होती छोटी-मोटी सजा,
रिश्व्त देने पर सजा माफ़ भी कर दी जाती है।
उल्टा बहिन-बेटी पर ही बदचलन होने के इल्जाम लगाए जाते हैं।
यहाँ कानून भी बिक जाता है।
कयोंकि यह बहुत लचीला है, हल्का है, नरम है।
शायद सख्त होता तो न बिकता।
दोषियों को रेप जैसे मामलों में कड़ी से कड़ी सजा सुनाता।
सिर्फ एक ही सजा - सजा-ए-मौत - फाँसी।
तब कानून खुद स्वाभिमान बचाता और देश की लाज।
बहिन-बेटी सुरक्षित होती तो हमारी इज्जत भी सुरक्षित होती।
आज बहिन-बेटी हैवानियत की शिकार है।
इसके दोषी हम खुद हैं।
क्यों?
क्योंकि हम ठोस कदम नहीं उठाते।
अत्याचारियों से मुकाबला नहीं करते।
हम सब जानते हैं।
हमारा कानून सच्चा न्याय नहीं सुना रहा है।
एक केस को सुलझाने में सालों लगा रहा है।
अब हमें खुद दोषियों को सजा देनी है।
नारीवादी आंदोलन को भड़काना है।
नए सख्त कानूनों को लाना है।
बहिन-बेटी तुम्हें किसी से नहीं डरना है।
पापियों को मौत के घाट उतारना है।
हमसब को मिलकर हैवानियत का नामोनिशान मिटाना है।
सिर्फ इंसानियत लाना है, इंसानियत लाना है। इंसानियत लाना है।

✒ कुशराज झाँसी

_23/12/2018_1:57 रात _ जरबौगॉंव

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Saturday 22 December 2018

कहानी : हवसी! तुझे नहीं छोडूँगी - कुशराज झाँसी



                       

कहानी - " हवसी! तुझे नहीँ छोडूँगी " उर्फ " सोनम एक बहादुर लड़की"


अजय कम्बल में दबे - दबे व्हाट्सएप पर सपना से चैट कर रहा है। बगल में गर्लफ्रैंड सीमा लेटी हुई है। रात में ज्यादा थक जाने से वह गहरी नींद में सो रही है और अजय दूसरी का शिकार करने में लगा हुआ है। कड़ाके की ठण्ड में सीमा सुबह नौ बजे तक सोती रही और वह सुबह पाँच से आठ बजे तक सपना को अपने प्रेमजाल में फँसाने में लगा रहा। सपना को वह करीब ढाई महीने से फँसाने की कोशिश कर रहा था और आज वह शाम को फ्लैट पर आने को तैयार हो गई। सीमा को वह चौक तक छोड़ आया। वो अपने पीजी में आंटी से यह बोलकर आयी थी - "मैं अपनी फ्रेंड सपना की बर्थडे पार्टी में जा रही हूँ।"

सीमा आज बड़ी चिंचित है। न ही अजय का मैसेज आया और न ही फ्रेंड सपना से बात हुई। वह फाइनेंशियल अकाउंट का सिलेबस पढ़ने में लगी रही। नोट्स बनाते - बनाते और इंग्लिश का होमवर्क करते - करते रात के आठ बज गए। डिनर का समय हो गया। पीजी की सभी लड़कियाँ मेस में आ गईं और सीमा अभी तक अपने रूम में बैठी हुई है। वह एक घण्टे देर से डिनर करने आयी। आज डिनर में मटर - पनीर, राजमा, रोटी, पालक पूरी और खीर बनी हुई है। मेस वाली आंटी ने उससे पूछा - 
"बिट्टी! देर से क्यूँ आयी हो? क्या तबीयत ठीक नहीं है?"
"कुछ नहीं आंटी, थोड़ा सरदर्द कर रहा था और सब ठीक है।"
"बिट्टी थोड़ा खीर खा लो और ये दवा खाकर सो जाओ।"
"ओके आंटी"

सुबह जब सीमा जागी तब भी अजय और सपना का न कोई मैसेज आया था और न ही कॉल। वह जल्दी से तैयार होकर साढ़े आठ बजे कॉलेज पहुँच गई। सारी क्लासेज अटेण्ड करने के बाद जब शाम पाँच बजे व्हाट्सएप खोला तो सपना का मैसेज देखा। उसने लिखा था -
"हाय! स्वीटहर्ट, शाम आठ बजे सुदामा टी स्टॉल पर मिलते हैं।"

सपना शाम पाँच बजे कैम्प से चौक आ गई। अजय वहीं खड़ा डेढ़ घण्टे से उसका इंतजार कर रहा था। जैसे ही रिक्शे में सपना को देखा तो उसने रिक्शे का किराया दिया और गले मिला। जूस कॉर्नर पर बनाना शेक पीकर फ्लैट को चल दिए। रास्ते में उसने सपना से हालचाल पूँछा और
"जब से हम दोनों एक - दूसरे को जानते हैं तब से अब तक का समय कैसा कटा।" ये भी पूँछा। सपना को उसने पहली बार सीमा के साथ कॉलेज गेट पर देखा था। फ्लैट के बाहर गली में बड़ी गन्दगी पड़ी थी। नाली का पानी सड़क पर आ गया था, कीचड़ ही कीचड़ हो गया था। चौथे फ्लोर पर सीढ़ी चढ़कर फ्लैट पहुँचे। दो रूम के फ्लैट में तीन साथ रहते थे। एक रूम अजय का सैपरेट था। आज रूम में गजब की खुशबू आ रही थी। सारे रूम में रूम फ्रेशनर छिड़का हुआ था। कूड़े का तो नामोनिशान नहीं था। अजय ने खुद तीन बार झाडू - पौंछा किया था। बेड पर नई चमचमाती बेडशीट बिछी थी। सपना वॉशरूम से हाथ - मुँह धोकर बेड पर बैठ गई और दोनों साथ में मैगी खाने लगे। मैगी बड़ी टेस्टी बनी थी। अजय ने इसे बड़ी मेहनत से बनाया था।

अजय ने रूम लॉक किया और रात में नौ बजे उठकर कैब से राजौरी गार्डन के वेब सिनेमा पहुँच गए। हॉल में पॉपकॉर्न और कोल्डड्रिंक का मजा लेते हुए केदारनाथ - बॉलीवुड मूवी देखकर रात एक बजे फ्लैट वापस आ गए। हिना आंटी ने आज मिक्स वेज, रोटी और रायता बनाया था। अजय खाना परोस लाया। बतियाते - बतियाते डेढ़ घण्टे में खाना खा पाया। रात में फिर रोमांस किया। सुबह नौ बजे सपना जगी तो फौरन फोन में टाइम देखा और अजय से बोली -
"यार! मैं पीजी निकल रही हूँ। मुझे टेस्ट की तैयारी करनी है। कल इंटरनल है।"
अजय उठकर बिना कुल्ला किए उसे छोड़ने चौक तक आया। जूस कॉर्नर से अनार का जूस पिलाकर उसे रिक्शे में बिठा दिया। सपना ने दोपहर एक बजे लंच किया और फिर से टेस्ट की तैयारी करने बैठ गई। शाम सात बजे फ्रेंड सीमा के पीजी आयी और उसे लेकर सुदामा पर निकल गयी। चाय पर सीमा ने सपना से कहा -
"यार तूने कल न ही मैसेज किया और न ही कॉल।"
"यार मैं टेस्ट की तैयारी कर रही थी। ईको बड़ी टफ लग रही है और कल उसी का इंटरनल है। अभी थोड़ी फ्री थी इसलिए मिलने चली आयी।"

तीसरे दिन रविवार को अजय जीबी रोड के वेश्यालय जा पहुँचा। वह महीने में इक बार रविवार को ही वेश्यालय जाता है और बाकी के दिनों में कॉलेज जाता। वहाँ कैण्टीन में दोस्तों और लड़कियों के साथ खर्चा करता। मुँह उठाकर इधर - उधर घूमता रहता। क्लासेज तो महीने में पाँच - छः ही अटेण्ड करता है। शाम को उसका दोस्त कुश उससे मिलता तब कहता -
"यार तुम दिन भर कैण्टीन में बैठे रहते हो। इधर - उधर फालतू घूमते में समय बर्बाद करते रहते हो। क्लास में तो कभी - कभी दर्शन देते हो। क्या तुम्हारा यही काम है?"
अजय बड़े गर्व से कहता -
"भई! अपना तो एकई उसूल है। लॉण्डिया को बिस्तर तक लाना। सिगरेट फूँकना और फिर दूसरी पकड़ना। बाप के पास पैसा बहुत है। वे सिटी एसपी हैं। शहर के सारे गुण्डे उनके खौफ से दबे रहते हैं।"

अजय देश - दुनिया में विख्यात दिल्ली यूनिवर्सिटी से कॉलेज में ग्रेजुएशन कर रहा है। ग्रेजुएशन तो नाम के लिए वह तो यहाँ लड़कीबाजी, नशाखोरी और अईयासी में पैसे उड़ा रहा है। उधर आईपीएस ऑफिसर पिताश्री रामपुर में सिटी एसपी होने के नाते शहर से गुण्डागर्दी, जुआ और अत्याचार का नामोनिशान मिटाकर नाम ऊँचा कर रहे हैं और माँ अपने शहर के सेंट हियर कॉन्वेंट स्कूल में प्रिंसिपल हैं। अजय ने यहीं के डलहौजी कॉन्वेंट स्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी की है। स्कूल लाइफ में भी चार गर्लफ्रैंड रहीं हैं। जिनमें से नैनशी की शादी हो गयी है। उसकी एक छः माह की बेटी भी है।

सोमवार को अजय खाना बनाने वाली हिना आंटी को भी बिस्तर पर ले आया। वह उसे खाना बनाने के काम के डेढ़ हजार रुपए देने के अलावा तीन हजार रुपए और देता है जिससे आंटी अपनी शारीरिक सेवा भी देती है। आंटी सत्ताईस - अट्ठाईस साल की श्यामल और सुडौल बदन वाली तीन बच्चों की माँ है। रोजाना सुबह - शाम चार जगह खाना बनाने जाती और घर का पूरा कामकाज करके बच्चों को स्कूल भेजती। तीनों बच्चे सरकारी स्कूल में बड़ी लगन से पढ़ते हैं और बहुत होशियार हैं।

चार माह बाद उसने क्लासमेट सोनम को हवस का शिकार बनाया और मीठी - मीठी, प्यारी - प्यारी बातों में फँसाकर कॉलेज के ब्रेक टाइम में बिस्तर तक ले आया। सोनम जब रूम में आयी तब उसने पाया कि रूम बड़ा अच्छा महक रहा है। कूड़े का तो नामोनिशान नहीं है। फर्श तो ऐसा है बिल्कुल आईने जैसा, चेहरा देखने लायक। बेड पर नई चमचमाती बेडशीट बिछी है। अजय ने हर बार की भाँति रूम का डेकोरेशन किया था। वैसे तो ये सप्ताह में दो बार और कभी महीने में तीन बार ही नहाता है। सिर्फ परफ्यूम डालता रहता है। महीने में दो - तीन बार ही रूम की सफाई करता है। आज उसने दो बार खुद झाडू - पौंछा किया था और दो बार ही हिना आंटी से करवाया था। सोनम के साथ भी उसने वही सलूक किया जैसा और लड़कियों के साथ किया था। सोनम महीने में चार - पाँच बार फ्लैट पर आने लगी और इससे सच्चा प्यार करने लगी लेकिन अजय उससे झूठा प्यार करता है। वह तो सिर्फ उससे अपनी हवस की प्यास बुझा रहा था।

एक साल बाद वह सोनम से भी ब्रेकअप करने को तैयार हो गया। इससे पहले उसने सबनम, रोहिणी, फातिमा जैसी गर्ल्स कॉलेज की साथ मासूम लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाया था। ऋतु का तो स्कूल टाइम में शहर की बीच सड़क पर रेप किया था। तीन माह जेल की सजा काटकर दिल्ली आया था। इसके चार दोस्त अभी भी जेल की सजा काट रहे हैं, जिहोंने मिलकर बस में मिनी का गैंगरेप किया था। एक लड़की छोड़ना और दूसरी पकड़ना तो उसकी आदत है। भोग - विलास में लिप्त रहना, नशा करना और शट्टा खेलना ही उसका जीवन है। शाम को सोनम ने आँखों में आँसू भरकर अपनी पूरी बात फ्रेंड मेघा दीदी को बतायी -
"दीदी! अजय मुझसे ब्रेकअप करना चाह रहा है। बोल रहा है। तुमसे कभी भी शादी नहीं कर सकता। शादी तो मैं अपनी मम्मी - पापा की पसंद की लड़की से ही करूँगा। अब बहुत हो चुका प्यार - म्यार। तुम जाओ, अपनी जिन्दगी जिओ और हमें अपनी जिन्दगी जीने दो।"

सोनम की ये सब दुःखदायी बातें सुनकर मेघा का खून खौल उठा। उसी वक्त फटाक से अपने बेस्ट फ्रेंड कुश को फोन किया। इतना ही कहा -
"हैलो कुश! कैसे हो? कहाँ हो? जैसे भी हो। अभी बीस मिनिट के अंदर सुदामा पर मिलो। तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है। प्लीज जल्दी आना।"

पंद्रह मिनिट में ही कुश मेघा के पास उपस्थित हो गया। मेघा सोनम के आँसू पौंछकर चुप करा रही थी।
"मेघा! क्या बात है? ये सोनम क्यों रो रही है।"
"अरे कुश! तुम ये बताओ कि तुम्हारा दोस्त अजय कैसा है? उसका  करैक्टर कैसा है। उसके बारे में डिटेल में बताओ।"
"मेघा! अजय बड़ा दुष्ट किस्म का व्यक्ति है। आज का दानव है वह। बहुत बड़ा हवसी है। वह कहता है - भई! अपना तो एकई उसूल है। लॉण्डिया को बिस्तर तक लाना। सिगरेट फूँकना और फिर दूसरी पकड़ना............।"
"कुश! इस हवसी का हम जल्द ही अंत करेंगे। क्या तुम  साथ दोगे।"
"अवश्य मेघा। हम सदा तुम्हारे साथ हैं।"

मेघा और कुश प्रखर नारीवादी और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं। मेघा बहिन सोनम को समझाते हुए कहती है -
"ये भारत ऐसा देश है। जहाँ 12 वर्ष से कम उम्र तक की लड़की से रेप करने पर अत्याचारी को फाँसी की सजा सुनाई जाती है और बाकी स्त्रियों से दुष्कर्म करने पर पापी को छोटी - मोटी सजा सुनाकर छोड़ दिया जाता है। हम स्त्रियों को कभी भी सच्चा न्याय नहीं मिला। कानून - व्यवस्था पर लानत है। अब पापियों को कोर्ट नहीं, हम ही सजा सुनाएँगे और सजा है - सजा-ए-मौत।"

सोनम मेघा दीदी की बातों से अत्यंत प्रभावित हो जाती है। अपने स्वाभिमान और नारी सम्मान के लिए पूरे जोश और होश में आकर अगले ही दिन हवसी अजय के पास पहुँच जाती है। इस बार उससे रोमांस न करके, उसे उसके पापों की सजा देती है। धमकाते हुए कहती है -
" साले हवसी! आज तुझे नहीं छोडूँगी। तूने हम जैसी कई मासूमों को बिस्तर तक लाकर और उनका रस चूसकर छोड़ा है। हम नारियों को ठगा है। अब तू अभी इस दुनिया को छोड़ेगा।"

इतना सुनकर अजय हद से बेजां डर जाता है। सोनम के पैर पकड़कर सर रखकर माफी माँगने लगता है और जिन्दगी की भीख माँगता है। गिड़गिड़ाता है। आँसू बहाता है। उसका विवेक मर जाता है। वह हताश हो जाता है। सोनम पहले उसे लात - घूसों और थप्पड़ों से अधमरा कर देती है और फिर चाकू से आठ - दस बार कर उसके प्राण ले लेती है। वह रणचण्डी बन जाती है। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बन जाती है। सिंहसवारी दुर्गा बन जाती है। दुष्कर्मी अजय को कुत्ते की मौत मारती है। अपनी कई साथियों का बदला लेती है और पापियों के अंत का बीड़ा उठाती है। इस पापी को नरक में भी कोई जगह नहीं मिलती है।

इस हादसे के पाँच दिन पहले ही हवसी अजय ने सोनम के साथ बड़ा बुरा सलूक किया था। कोल्डड्रिंक में वियर के साथ - साथ शराब भी मिलाकर पिला दी थी और नींद की गोली भी खिला दी थी। चौबीस घण्टे बाद सोनम होश में आयी थी। तभी उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि जल्द ही मैं इस हवसी से बदला लूँगी। जय भवानी! जय माँ दुर्गे!..............।

हवसी अजय का अंत करने पर साहसी नारी सोनम को सारी दुनिया सलाम करती है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में सोनम की चर्चा कई दिनों तक चलती है। सोनम के नारी सम्मान हेतु साहसी और अभूतपूर्व कार्य के लिए उसे अगले ही वर्ष 'राष्ट्रीय नारी शक्ति सम्मान' से नवाजा जाता है। साथ ही साथ कई संस्थाएँ और देश सम्मानित करके अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं। वह प्रेस कॉन्फ्रेंस में दुनिया को संदेश देती है -
"मेरी प्यारी माताओं और बहिनों! अब हम जाग चुके हैं। पापियों को न्याय कोर्ट नहीं, हम ही देंगे। तभी स्वाभिमान और इज्जत की रक्षा कर सकेंगे। हमें खुद सँभलना है और अपने साथियों को भी सँभालना है। अब बहुत हो चुका, इन पापियों का अत्याचार। जब से धरती पर जीवन की उत्पत्ति हुई है तब से हमारा यौन - शोषण करते आ रहे हैं। हमें सिर्फ और सिर्फ भोग - विलास की वस्तु समझते आ रहे हैं। अब हम प्रण लेते हैं -: 'आज और अभी से हम नारियों का शोषण नहीं होगा। हम अत्याचार नहीं सहेंगे। जो दुष्कर्म करेगा वो अपनी जिंदगी से विदा लेगा। जय नारी शक्ति - जय भारत माता।।"

सोनम के इस संदेश से सारी दुनिया में नारीवादी आंदोलन जोर पकड़ लेता है। नारीवादी साहित्य की होड़ लग जाती है। पुरुष दहशत में रहने लगते हैं। सरकारें सतर्क हो जाती हैं। जो सरकारें नारियों और मानवता का साथ देती हैं, वही सत्ता में रह पाती हैं। बाकी सब सड़क पर आ जाती हैं। भारत में नारीवादी आंदोलन का नेतृत्त्व सोनम, मेघा और कुश तीनों मिलकर करते हैं। साथ ही साथ सोनम अंतर्राष्ट्रीय  नारीवादी आंदोलन का भी नेतृत्त्व करती है। दुनिया के हर स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय में नारीवाद 'फेमिनिज्म' विषय पाठ्यक्रम में अनिवार्य हो जाता है। जिससे आंदोलन और जोर पकड़ता है। दस साल के अंदर ही पितृसत्तात्मक - व्यवस्था को उखाड़कर फेंक दिया जाता है।

इसी बीच कुश के द्वारा नए धर्म "कौश धर्म" का शुभारम्भ किया जाता है। जिसमें नारी - पुरुष को एकसमान अधिकार दिए जाते हैं। लिंगभेद को समाप्त किया जाता है। एक विवाह की ही अनुमति दी जाती है। यदि पति अपनी पत्नी को छोड़ता है और दूसरी शादी करना चाहता है तो उसे धर्म के दण्डविधान के अनुसार मुत्युदण्ड दिया जाता है। यदि पत्नी भी ऐसा ही सलूक करती है तो यही नियम उसके लिए भी है। जबतक जीवन है, दोनों को साथ निभाने का प्रण लेना होता है। तलाक और छोड़छुट्टी की कोई व्यवस्था नहीं होती है। विधवा विवाह और विधुर विवाह की व्यवस्था अवश्य रखी जाती है। 'लड़का लड़की एकसमान - सबको शिक्षा सबका सम्मान।' का पालन किया जाता है। तीस प्रतिशत विश्व इसी धर्म का अनुयायी बन जाता है और जल्द ही यह दुनिया का सबसे बड़ा धर्म उभरकर सामने आता है।

इसी वर्ष सोनम, मेघा और कुश तीनों को संयुक्त रूप से 'नोबेल शांति पुरस्कार' से सम्मानित किया जाता है। साथ ही साथ इन्हें पृथक - पृथक रूप से देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया जाता है। ये तीनों अगले ही वर्ष से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण कर लेते हैं और सारी दुनिया से अत्याचार और समस्याओं का क्रम - क्रम से अंत करते जाते हैं। सारी दुनिया में मानवता और विश्वशांति का संदेश गूँज उठता है।


- कुशराज झाँसी

_ 19/12/2018_10:00 दिन _ दिल्ली

#Kushraaz

Thursday 20 December 2018

जय हिंदी

भाई अमन खरे! ये आप जैसों की सोच है कि हिंदी में सारा काम करना आसान नहीँ है और अंग्रेजी के बिना कोई काम नहीँ होता। असलियत में अब हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी के बिना कोई काम नहीँ हो रहा है। हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन गयी है। सारी दुनिया हिंदी को अपनाने के साथ - साथ हमारी भारतीय संस्कृति को अपना रही है। हम हिंदुस्तानी ही अपनी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा हिंदी को महत्त्व न देकर अंग्रेजी के मानसिक गुलाम बने हुए हैं। अत्याचारी अंग्रेजों ने सन 1947 में हमें राजनीतिक तौर पर तो आजाद कर दिया। लेकिन अभी तक हम अंग्रेजी के मानसिक गुलाम बने हुए हैं।

               "प्यारे हिन्दुस्तानियों! आज आप सब मेरे साथ शपथ लें कि आज के बाद हम अपना सारा कामकाज राष्ट्रभाषा हिंदी में करेंगे। अंग्रेजी क मानसिक गुलाम नहीँ रहेंगे। हिंदी का प्रचार - प्रचार करेंगें और अपने देश भारत को पुनः विश्वगुरु की पदवी पर आशीन करेंगे।   ।।जय हिंदी - जय हिन्दुस्तान।।

आपका अपना -: कुशराज 
(महासचिव - हिंदी साहित्य परिषद् हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय)"
#कुशराज_ 20/12/18_11:46am

Wednesday 19 December 2018

जागो हिन्दुस्तानी! जागो - कुशराज झाँसी




लेख : जागो हिन्दुस्तानी! जागो



डिजिटल समाज होना, मानवीय मूल्यों का खोना, रिश्तों की कोई अहमियत नहीँ होना आदि ये सब हम हिन्दुस्तानियों द्वारा पश्चिमी सभ्यता (यूरोपीय संस्कृति) को अपनाने का फल है। आज हम हिन्दुस्तानी उसी संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं, जिस संस्कृति में औद्योगिक क्रांति आने से सारा काम मशीनों से होने लगा। मशीनीकरण की दुनिया एकांत और सुनसान है। जहाँ अपनी पत्नी और बच्चों के सिवाय कोई अपना नहीँ है। यहाँ तक की मशीनें भी। जो मशीने हमारे ऑर्डर से सारा काम करती हैं, वही हमारी चूक से या वो अपनी मर्जी से हमारे प्राण भी ले लेतीं हैं, जिन्हें हम दुर्घटना का नाम देते हैं और इससे ज्यादा कुछ नहीँ। हमारी भारतीय संस्कृति (हिन्दू सभ्यता) में पहले भी ऋषि - मुनि विज्ञान के बल पर कई काम करते रहेेे हैं। जो हम आज यज्ञ करते हैं, वह हमारी अनादि काल से परंपरा रही है। जिससे वैज्ञानिक दृष्टि से पर्यावरण शुद्ध होता है और अनुकूल वातावरण का सृजन होता है। हमारे गाँवो में भी कहीं - कहीं संयुक्त परिवार मिल जाते हैं। जो मिशाल कायम कर रहे हैं। हम कितने भी आधुनिक हो जाएँ। लेकिन हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता, रीति - रिवाजों को नहीँ भूलना चाहिए। हमें मशीनी का प्रयोग तो करना चाहिए लेकिन एक सीमा के अन्दर ताकि हम कुछ काम अपने हाथों भी कर सकें और आलसी न बन पाएँ। हमें खुद बदलना होगा और आगे आना होगा अपने इस गुमराह समाज को भारतीय संस्कारों से सुसम्पन्न समाज बनाने के लिए। अपनी मातृभाषा हिंदी के विकास के लिए और अपनी संस्कृति और सभ्यता के विकास के लिए।


" हे हिन्दुस्तानी! पश्चिमी सभ्यता को इसी तरह अपनाओगे।    

 तो जल्द ही तुम अपना अस्तित्त्व नहीं बचा पाओगे।
इसी तरह विदेशी माल खरीदते जाओगे।
तो एक दिन अपना ही माल अपनों को ही नहीँ बेच पाओगे।
इसलिए सचेत हो जाओ।
यदि अपना अस्तित्त्व नहीँ खोना है।
तो भारतीय संस्कृति और मातृभाषा हिंदी का विकास करना है।
सबसे पहले तुम्हें खुद अपनी संस्कृति के अनुसार चलना है।
साथ ही साथ सारा कामकाज हिंदी में ही करना है।।"

  -  कुशराज झाँसी

_ 19/12/2018_6:45भोर _ जरबौगॉंव 

#कुशराज

#भारतीय_संस्कृति
#संयुक्त_परिवार
#मातृभाषा_हिंदी
#सभ्य_समाज
#जागो_हिन्दुस्तानी
#स्वदेशी_अपनाओ
#Kushraaz
#विदेशी_भगाओ

Tuesday 18 December 2018

कहानी - रीना

   कहानी - " रीना "


                    रीना भोर अपने आँगन में झाडू लगा रही थी। नाटे और गोरे बदन पर फटी - पुरानी साड़ी पहने, कड़ाके की ठण्ड से रोम - रोम खड़े हो रहे थे और वह मैला - कुचैला हल्का साल ओढ़े रोजाना का काम निपटा रही थी। उसने भुनसारें चार बजे डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित कुएँ से पीने और खर्च के लिए पानी भर लिया था क्योंकि घर के पास वाला हैण्डपम्प खराब पड़ा था।


                      पानी भरने के साथ ही गोबर इकट्ठा कर लिया था। जिससे झाडू से निपटने पर ईंधन हेतु कण्डे पाथे और डलिया लेकर तरकारी बेचने गाँव में निकल गयी। बड़ी मधुर आवाज दे रही थी - " बाई हरौ, भज्जा - बिन्नू  ले लो भटा; ताजे - ताजे हाले भटा। बीस रूपए में डेढ़ किलो, नाज  के बराबर।" माते भज्जा ने तीन किलो भटा खरीदे और मन्नू काकी ने नाज के बराबर। आज सवा सौ रूपए और चार किलो नाज की आमदनी हुई। हाथ - मुँह धोया और खाना पकाने बैठ गई। चना की दाल बनाई और जब रोटी सेंक रही थी तो लकड़ियों और भटन के डूठों का धुआँ आँखों में हद से बेजां लग रहा था। आँखे मडीलते - मडीलते लाल हो गईं, बड़ी मश्किल से रोटी सेंक पाईं। 


                       इतने में पतिदेव शिम्मू हार से पिसी में पानी देकर लौट आए। ढाई बीघा के आधे खेत में पिसी लगी थी और आधे में तरकारियाँ और मटर। माघ की अँधेरी रात में शिम्मू गायों से खेत की रखवाली करते, उसी सस्ते और रद्दी कम्बल को ओढ़कर जो पिंटू नेताजी ने पिछले चुनाव में बाँटा था। हल्की सी टपरिया डाले, मूँगफली के टटर्रे से तापते - तापते रात गुजारते। दिन में कलेवा करके खेत में लग जाते, कभी रीना के साथ तरकारियाँ तोड़वाते तो कभी पिसी में खाद देते।


                       रीना डाँग में बकरियाँ चराने निकल जाती। दोपहर का भोजन न करके कन्दमूल फलों से गुजारा करती। देर रात तक बड़े बेटे करन के साथ जागती रही थी क्योंकि वह डाकिया की परीक्षा देने झाँसी जा रहा था। इसलिए उसको नींद आ गयी और तीन पागल कुत्तों ने उसकी एक बकरी को तोड़ दिया। बिलखती हुई आज जल्दी घर आ गई। शाम को पतिदेव ने उसे बहुत डाँटा और अगले सुबह तीनों बकरियाँ खटीक को बेच दी गईं। अब बाल - बच्चे दूध से भी बंचित हो गए। ये बकरियाँ ही उनकी गायें थीं।


                    छोटा बेटा वरुन बगल के गाँव में एक हॉटल में बर्तन धोने का काम बड़ी जिम्मेदारी से करता। वह सिर्फ कक्षा छह तक पढ़ा है। वह हमेशा कहता - " अम्मा! बड़े भज्जा पढ़ जाएँ, हम तो ऐसे ही ठीक हैं।" करन वरुन से बहुत प्यार करता। वह किसी भी परिस्थिति में उसे दुःखी नहीँ होने देता। करन ने बीस किलोमीटर साईकिल भांजकर इण्टर तक पढाई पूरी की और डाकिया बन गया। वरुन बेचारा अब भी जूठी प्लेटें धोता और अम्मा - पापा खेत में दिनरात लगे रहते हैं।


                  रीना दूसरों के खेतों में मजूरी करती और कभी बेलदारी करके अपनी लाड़ली पिंकी के विवाह हेतु धन इकट्ठा करती। हफ्ते में एक बार जंगल में लकड़ियाँ काटने जाती। शाम को चिलमी जलाकर अपने कच्चे - खपरैल घर में उजाला करके रात का खाना पकाती। एकसाथ सब प्रेम से खाना खाते और शिम्मू रोजाना की भाँति खेत की रखवाली हेतु हार को निकल जाते। लाड़ली का वैशाख में विवाह आ गया। लड़के वालों ने डेढ़ लाख का दहेज माँगा है। करन की नौकरी को अभी चार महीने ही हुए हैं। घर में जैसे - तैसे एक लाख रूपए का बंदोबस्त हुआ और पचास हजार तीन प्रतिशत प्रति सैकड़ा की मासिक दर से नमेश सेठ से कर्जा लेकर लाड़ली का विवाह किया।


                  पिंकी की सास सुबह - शाम ताने मारती और छोटी - छोटी बातों पर झगड़ती रहती। बार - बार कहती - " तेरे बाप ने फ्रिज नहीँ दिया, वॉशिंग मशीन नहीँ दी।" खाने में भी कानून करती - " तरकारी में तेल ज्यादा डाल दिया, नमक का तो स्वाद ही नहीँ है।"  पिंकी को भरपेट खाना भी नहीँ खाने देती। वह चिंता में रात को बिना खाए ही सो जाती। एक साल के अंदर पिंकी का पति भी उसकी मारपीट करने लगा। वह अपनी पड़ोस की युवती ऋतु के प्रेमजाल में फँसा था। उसे पिंकी की बिल्कुल भी परवाह नहीँ थी, वह उसे घर की नौकरानी से बदत्तर समझता था। डेढ़ साल के अंदर पिंकी ने दुष्ट पति और कपटी सास से तंग आकर पंखे से लटककर अपनी इहलीला समाप्त कर ली।


                 करन की भी नौकरी छूट गई क्योंकि ग्रामप्रधान ने रिश्वत देकर उसकी जगह अपने बेटे की नौकरी लगवा दी। रीना के घर पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। शिम्मू बेचारा, सीधा - साधा बुंदेली किसान पिंकी के ससुराल वालों का कुछ न बिगाड़ सका। पिंकी के मरने के चार साल बाद करन का गरीब लड़की से संबंध तय हुआ। विवाह में दहेज की तो दूर की बात, बहु के रिश्तेदारों के स्वागत - सत्कार की व्यवस्था शिम्मू ने ही की। शिम्मू तीन - चार लाख के कर्ज में डूब गया। पिछले दो साल से भयंकर सूखा पड़ रही थी। सारा परिवार दाने - दाने के लिए मुहताज हो गया। कुछ गाँववासी मजूरी करने दिल्ली निकल गए तो कुछ अपने दूर के रिश्तेदारों के यहाँ रोजगार करने लगे। नमेश सेठ बार - बार शिम्मू से कर्ज चुकाने  के लिए गालीगलौच करता। शिम्मू डर जाता और मंगलवार को टेंशन में आकर इमली से लटककर फाँसी लगा लेता और कर्ज में ही अपने और किसान भाईयों की भाँति वही कहानी दुहराता।

(समस्यापरक उपन्यास -: 'भारत के द्वन्द्व'  की पहली कथा - गरीब किसान की समस्या का यथार्थ)

✍ कुशराज झाँसी

_ 18/12/2018_01:02 दिन _ जरबौगॉंव
                          



घर और खेत - कुशराज झाँसी

लेख : " घर और खेत "

तीसरे सेमेस्टर की परीक्षाएँ देकर सुबह - सुबह घर लौटा। घर पर दादा - बाई, मताई - बाप, कक्का - काकी और भज्जा - बिन्नू  बेसर्बी से  इन्तजार कर रहे थे। अनुज प्रशांत ने तो आठ - दस बार फोन कर लिया था दिल्ली से झाँसी के बीच ही। मैं झाँसी से बरुआसागर न उतरकर सीधा जरबौ गाँव पहुँच गया। माँ खाना पका रहीं थी, दादी झाडू लगा रहीं और दादाजी किसी काम से मऊ रानीपुर गए हुए। भाई - बहिन बरुआसागर थे क्योंकि वो सभी वहीँ से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। चाचा और पापा खेत से लौट रहे थे। खेत पर आलू , मटर  की फसल और थोड़ी बहुत तरकारियाँ लगी हुई हैं। चहुँओर हरियाली ही हरियाली है। चाचा - पापा इस पूस की अँधेरी रात की कड़कती ठण्ड में खेत की रखवाली करते हैं, फसल को सिंचित करते हैं। दिन में माँ और चाची भी खेती में पापा - चाचा का हाथ बटातीं हैं। सारा परिवार बड़ी लगन और निष्ठा से सालभर खेती में कड़ी मेहनत करता है फिर भी घर का खर्च और हम भाई - बहिनों की पढाई का खर्च बड़ी मुश्किल से चल पाता है। खेती से इतनी आमदनी नहीँ हो पाती कि कुछ धन बचाकर अच्छा पहन पाएँ और अच्छा खा पाएँ। आधुनिकीकरण के इस दौर में चाहे शिक्षा हो, पेट्रोल - डीजल हो, कपड़े हो या खानपान की वस्तुएँ, सब के सब मँहगाई के चरम पर हैं और किसानों की फसलों के दाम नाममात्र के लिए बढ़ते हैं। फसल से उसे इतनी आमदनी नहीँ होती जिससे वो अपनी जीविका भलीभाँति चला सके इसलिए वो साहूकारों और बैंक से कर्ज लेता है। उसका कर्ज में ही जीवन निकल जाता है। वो सारा जीवन खेत में कड़ी मेहनत करता है फिर भी गरीबी - बेकारी में दयनीय जीवन जीता है। किसानों की इस दयनीय स्थिति को सुधारने का यही उपाय है - "फसलों के दोगुने दाम और किसानों हेतु शिक्षा का उचित प्रबंध।"

- कुशराज झाँसी

_17/12/2018_7:42 सुबह _ जरबौ गॉंव


Sunday 2 December 2018

कामयाबी और सात्त्विक प्रेम

लेख : " कामयाबी और सात्त्विक प्रेम " 



                        विद्वानों ने ठीक ही कहा है कि हर सफल व्यक्ति के जीवन में स्त्री का हाथ होता है। स्त्री पुरुष के जीवन को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सफल बनाती है। एक प्रेमी स्त्री पर मोहित हो जाता है और उससे बहुत प्यार करने लगता है। प्रेमिका भी उसके प्रेम को स्वीकारती हुई कहती है -


"प्यार न करने की वजह नहीँ होती,

करने की वजह होती है,

तुम्हें प्यार हुआ लेकिन हमें नहीँ हुआ,

जरूरी तो नहीँ है न,

कि दोनों तरफ से हो, जो भी हो।"


                         प्रेमी को भी न जाने ऐसा क्यों लगता है कि प्रेमिका भी उससे प्यार करती है। उसे ऐसा इसलिए लगता है कि प्रेमिका उससे हमेशा मुस्कुराकर बात करती है और अपने भविष्य के बारे में, यहाँ तक शादी के विषय में भी बात करती है। कुछ समय बाद प्रेमिका, प्रेमी से कहती है कि हम तुमसे प्यार नहीँ करते और न ही कभी तुमसे प्यार होगा। इस गलतफहमी में जीना छोड़ दो कि हम भी तुमसे प्यार करते हैं। तब प्रेमी उससे सबाल - जबाव करते हुए कहता है - हमसे प्यार क्यों नहीँ करती? एक - न - एक दिन तुम्हें प्यार जरूर होगा। प्रेमिका चुनौती देते हुए कहती है - प्यार कभी नहीँ होगा। यदि तुम्हें अपने ऊपर इतना ही यकीन है तो कोशिश करके देख लो। प्रेमी को ये बात दिल पर लग जाती है। वह ठान लेता है कि जीवन में प्रेमिका को पाकर ही रहेगा। क्योंकि वह स्त्री की शक्ति को पहचानता है। वह आचार्य चाणक्य की स्त्री के बारे में कही गई इस नीति से बहुत प्रभावित है -:

"पुरुषों से स्त्रियों का आहार दुगुना,

 बुद्धि चार गुनी, साहस छः गुना 

और काम आठ गुना होता है।"

                       

                           इसलिए वह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से स्त्री का साथ चाहता है। वह प्रेमिका को पाने की भरसक कोशिश करने लगता है। कोशिश करते - करते उसे प्रेमिका तो नहीँ मिलती है। लेकिन उसे हंसराज कॉलेज के सामाजिक कार्यों और राजनीति के क्षेत्र में अभूतपूर्व कामयाबी मिलती है। साथ ही साथ साहित्य और मीडिया में भी उसकी लोकप्रियता दिन - प्रतिदिन बढ़ती जाती है। वह कॉलेज में दिव्यांगों की उत्कृष्ट सेवा हेतु समिति द्वारा 'वेस्ट वालंटियर' का खिताब हासिल करता है। वह कॉलेज में राजनीतिक पार्टी की स्थापना करता है और छात्रों के हितों में हमेशा काम करता रहता है। कभी 'स्टूडेन्ट ऑफ द ईयर अवॉर्ड' की शुरुआत कराता है तो कभी समस्त कोर्सों  के स्टूडेंट्स को घर के लिए लैपटॉप दिलाने की बात करता है। कभी ईसीए और सोसायटीज स्टूडेंट्स एवं स्पोर्ट्स स्टूडेंट्स को अटेंडेन्स दिलाने की बात करता है तो कभी आशिफा को न्याय दिलाने के लिए प्रोटेस्ट करता है। इसकी राजनीतिक - सामाजिक एक्टिविटी की चर्चा कॉलेज प्रिन्सिपल कार्यक्रमों में अपने भाषण में करती है। साहित्य में वह समसामयिक मुद्दों नारीवाद, किसान आदि पर रचनाएँ करता है। वह कविताओं के साथ - साथ  विचारों और नीतियों की भी रचना करता है। जिनकी आलोचना सहपाठीगण, प्रिन्सिपल और मित्र करते हैं। 


                          प्रेमी कहता भी है - "मेरे सफल जीवन में स्त्रियों का हाथ रहा है, पुरुषों से ज्यादा स्त्रियों का साथ रहा है।" वह प्रेमिका से कभी सामाजिक मुद्दों पर बात करता है और कभी राजनीतिक मुद्दों पर। कुछ दिनों बाद प्रेमिका उससे बिल्कुल खफा हो जाती है। जो प्रेमी को समझ नहीँ आता। न जाने समाज के भय से और न जाने अपने अटल निर्णय से वह यह कदम उठाती है। प्रेमी कभी - कभी प्रेमिका पर सोशल मीडिया पर कविताएँ और मुक्तक लिखकर उससे परोक्ष रूप से बात करता है। जिससे वो अपने को परेशान महसूस करने लगती है। प्रेमी उसकी परेशानी से बहुत दुःखी होता है और वह उसे हमेशा खुश रखने को प्रतिबद्ध हो जाता है। 


                           वह प्रेमिका को अपना आदर्श और प्रेरक मानता है। वह हमेशा उससे प्रेरणा लेकर कामयाबी के पथ पर आगे बढ़ता ही चला जाता है। इन प्रेमी - प्रेमिका को 'कुशराज - प्रिन्सेस' के नाम से जाना जाता है। इनका प्यार सात्त्विक प्रेम है। वह अपनी प्रेमिका से हाथ तक नहीँ मिलाता है और न ही उसकी इजाजत के बिना उससे बात करता है। ये दोनों एक - दूसरे का बहुत सम्मान करते हैं। प्रेमिका सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहती है और वह भी समाज में स्त्रियों को सम्मान और उनके अधिकार दिलाने के लिए कार्यरत है। प्रेमी उसे किसी भी तरह दुःखी नहीँ देखना चाहता है इसलिए वह भी प्रेमिका से बात करना बंद कर देता है क्योंकि प्रेमिका उससे बात करना पसंद नहीँ करती है। इस बात को प्रेमिका भी मानती है कि तुम हमेशा सकारात्मक रहते हो और जो समाज के लिए कर रहे हो, अच्छा कर रहे हो। वह प्रेमिका को पाने की कोशिश करना कभी नहीँ छोड़ता और जीवन में नई बुलन्दियों को छूता चला जाता है। वह दुनिया के समक्ष 'कामयाबी और सात्त्विक प्रेम' का अनोखा उदाहरण पेश करता है। वह प्रेम के बारे में कहता है कि प्यार का मतलब ये नहीँ कि कोई सामने ही मिले, उसी से करें। प्यार का मतलब होता है कि जिसको पाने के लिए कुछ त्याग करना पड़े, समर्पण करना पड़े, वही प्यार है।


- कुशराज झाँसी


_02/12/2018_09:29 दिन _ जरबौगाँव

Saturday 1 December 2018

जुनून (प्रेमिका 'प्रिन्सेस' को सादर समर्पित)

             1.
    " तेरा - मेरा प्यार "

प्रिन्सेस! कभी हम तुझे ख़्वाबों में देखते थे
तुझसे बात करने के लिए तरसते थे
मिलना चाहते थे पर मिल नहीँ पाते थे
आज रब ने तुझे ही मुझसे मिला दिया
मेरे ख़्वाबों को साकार करा दिया 
तू मुस्कुराकर मुझसे इशारों में बात कर रही है
मेरा मन मोह रही है
मैं मन ही मन खुश होकर
 तेरे प्यार को अनुभव कर रहा हूँ
और विश्वास जता रहा हूँ 
कि तू मेरी है मैं तेरा हूँ
तू जैसी है मैं भी वैसा हूँ
तेरा - मेरा प्यार दुनिया की मिसाल बनेगा
मेरा - तेरा रिश्ता युग - युगान्तर चलेगा
    ✍ कुशराज_23/4/18_9:45pm

              2.

प्रिन्सेस! तू बहाने बनाकर दूरियाँ बना रही है।
ये तुझे भी पता है;
कि मुझे जो करना है,
वो हम करके ही मानते हैं।।
         ✍ कुशराज_8/11/18_12:18am

             3.

      "प्रिन्सेस! तुमने"
तुमने किसी की कद्र करना सिखाया
तुमने इंसानियत दिखाना सिखाया
तुमने काबिलियत को पहचानना सिखाया
तुमने हमेशा खुश रहना सिखाया
तुमने मुस्कुराहट से मेरे मन को लुभाया
तुमने अन्याय के खिलाफ लड़ना सिखाया
तुमने एकता में रहना सिखाया
तुमने हुनर को दिखाना सिखाया
तुमने मुझे अंग्रेजी सीखने को मजबूर कराया
तुमने हर भाषा का महत्त्व करना सिखाया
तुमने हर काम में आगे रहना सिखाया
तुमने बाधाओं से लड़ना सिखाया
तुमने और बेहतर समाजसेवा करने का मन में विचार जगाया
तुमने समाजसेवा में साथ हाँथ बटाया
तुमने मुझसे प्यार जताया
तुमने मेरा बहुत साथ निभाया
तुमने और न जाने क्या - क्या सिखाया
यह सब सिखाने के लिए ,
मैं नि:शब्द हूँ तुम्हारा आभार जताने के लिए
फिर भी
'प्रिन्सेस' तुम्हारा सौ - सौ बार शुक्रिया
लख - लख बार शुक्रिया!

        ✍ कुशराज _11/5/2018 _10:05am

              4.

प्रिन्सेस! फ्रेशर्स-भीड़ में तुझे निहारता रहा
तेरी हरकतों को देखकर मन को बहलाता रहा
मेरे बगल से गुजरकर
तूने मुड़कर भी नहीँ देखा
मैंने तो देखा 
और शायद तेरी दोस्तों ने मुझे भी
तुझे सब पता लग ही गया होगा
           ✍ कुशराज_29/10/18_11:04pm

                5.

प्रिन्सेस! तेरे प्यार में और डूबता ही जा रहा हूँ,
अब तेरे विरह में नहीँ जी पा रहा हूँ।
एक दिन तू जरूर आएगी,
 ये मैं निश्चित कह रहा हूँ।।



प्रिन्सेस! कोई और नहीँ तेरे सिवाय

कोई और नहीँ तेरे प्यार के सिवाय
कोई और नहीँ तेरी - मेरी दोस्ती के सिवाय
कोई और नहीँ, तू ही मेरा प्यार
अरे कर दो प्यार का इजहार
क्या जीवनभर इन्तजार कराओगी
हाँ जीवनभर इन्तजार करूँगा
तेरे सिवाय किसी और से प्यार नहीँ करूँगा

              ✍ कुशराज झाँसी _19/9/18_6:32am

                    6.

मुझसे नफ़रत ही करनी है तो इरादे मजबूत रखना।
ज़रा सा चूके तो मोहब्बत हो जायेगी।। ~: प्रिन्सेस

इरादे मजबूत नहीँ, कमजोर रखेंगे।
 तुझसे नफरत नहीँ, मोहब्बत करेंगे।।
                ✍ कुशराज

                    7.

प्रिन्सेस! तुम पुष्प हो,
सदा महकती रहोगी।
मैं भौंरा हूँ,
तुम पर मँडराता रहूँगा।।
            ✍ कुशराज

                  8.

और कब तक इंतजार करायेगी।
क्या है परखने के लिए?
जो तू परखेगी।
इतना तो काफी जान लिया।
अब तो आ जाना।
ओ! मेरी प्रिन्सेस।।
         
  ✍ कुशराज

                9.

हे मेरी प्रिन्सेस!
तू मेरी जिन्दगी है
 हर बात में तेरा जिक्र करता हूँ
हर कविता में तेरा जिक्र करता हूँ
हर पल तेरी फिक्र करता हूँ
तेरी खातिर जीता - मरता हूँ

            ✍ कुशराज

                  10.

प्रिन्सेस! तू प्यार कर या न कर
मैं तो तुझसे करता हूँ
तेरा हरपल साथ दूँगा
ये भी वायदा करता हूँ

               ✍ कुशराज

                  11.

प्रिन्सेस! तू दूर जायगी तो फ़र्क पड़ेगा
पास आएगी तो भी फ़र्क पड़ेगा
तुझ पर - मुझ पर फ़र्क पड़ेगा
अपने रिश्ते पर भी फ़र्क पड़ेगा

                  ✍ कुशराज

                   12.

प्रिन्सेस! तू एक किताब है
तुझे कई बार पढता हूँ
फिर भी तुझसे मन नहीँ भरता
तुझे बार - बार पढ़ने का जी करता है
तू हर बार कुछ नया सिखा जाती है
तू हमेशा साथ देगी
ऐसा भी अनुभव करा जाती है
तुझे पढ़कर दिल को सुकून मिलता है
तेरे - मेरे प्यार को नया मुकाम मिलता है
तुझे पाकर मैं धन्य हो गया
तेरा मुझ पर जादू छा गया।

               ✍ कुशराज झाँसी



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