Tuesday 18 April 2023

पर्यावरण, मुँह के छाले और बुंदेलखंडी नुख्से - गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'

 लेख - "पर्यावरण, मुँह के छाले और बुंदेलखंडी नुख्से "



पिछले 4 - 5 दिनों से हमें बेजोड़ गर्मी से मुँह में बहुत ज्यादा छाले हो गए हैं क्योंकि आजकल हम संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के प्रोजेक्ट पर काम कर रहें हैं और भयंकर गर्मी में भी झाँसी जिले के गाँवों और कस्बों में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवनी लिखने जा रहे हैं। इतिहास लेखन का ये मेरा पहला अनुभव है और इससे हम बहुत सारी जरूरी बातें सीख रहे हैं। हद से ज्यादा पड़ रही है आजकल। इस गर्मी में जीना मुश्किल हो रहा है। ऊपर से हमाओ बुंदेलखंड पठारी इलाका है तो यहाँ दूसरे इलाकों की अपेक्षा गर्मी कुछ ज्यादा ही पड़ती है। गर्मी क्यों पड़ रही है ये भी बताते हैं हम -  क्योंकि हम मनुष्य पिछले 3 - 4 दशकों (30 - 40 सालों) से भोगविलास और आरामदायक जिंदगी जीने की होड़ में प्रकृति और पर्यावरण से लगातार खिलवाड़ करते जा रहे हैं। सारे दुनिया में अनियंत्रित बढ़ रही आबादी के लिए रोटी, कपड़ा और मकान आदि जरूरी जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों को काटते जा रहें हैं। पेड़ों को बचाओ और पौधों को लगाने के हम नाममात्र के दिखावी प्रयास कर रहे हैं। अपनी भोगवादी सुख - सुविधा के लिए फ्रिज और ए०सी० का हद से ज्यादा प्रयोग कर रहे हैं। भारत देश के दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता जैसे महानगरों समेत वर्तमान में कस्बाई नगरों में भी फ्रिज औए ए० सी० का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। गांवों में भी लोग कस्बाई अमीरों की नकल करते हुए फ्रिज का प्रयोग कर रहे हैं। सूर्य से आने वाली जानलेवा पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करने वाली ओजोन परत को सबसे ज्यादा नुकसान फ्रिज और ए० सी० से निकलने वाली सी० एफ० सी० - क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस ही पहुँचा रही है। सी० एफ० सी० से ओजोन परत में छेद हो गया है। जिससे जानलेवा पराबैंगनी किरणें सीधे हमारी धरती माता पर आ रहीं हैं और दुनिया का तापमान बड़ा रहीं हैं। दुनिया का तापमान बढ़ने से यानी वैश्विक तापन - ग्लोबल वार्मिंग होने से हद से ज्यादा गर्मी पड़ रही है और अप्रैल महीने में ही हमाए बुंदेलखंड में लपटें और लू चलने लगी है।  45 - 50 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर तापमान पहुँच रहा है गर्मी के मौसम में। इतने ज्यादा तापमान में जीना मुश्किल है। यदि ऐसे ही हम मनुष्य प्रकृति से खिलवाड़ करते रहे और उसकी रक्षा हेतु नहीं जागे तो 50 - 100 साल के अंदर ही ये दुनिया खत्म हो जाएगी। इसलिए यदि खुद बचना है और सबका जीवन बचाना है तो प्रकृति से नाता जोड़ना होगा। हमारे इस नारे 'प्रकति की ओर लौटो' को ध्यान में रखकर अभी से हर काम करना होगा सबको। फ्रिज की जगह माटी के मटके का और ए० सी० की जगह कूलर का प्रयोग सभी को करना होगा चाहे हो राष्ट्रपति हों, प्रधानमंत्री हों, अधिकारी हों, डॉक्टर हों, वकील हों, अमीर हों या आमआदमी हों। जब सब लोग माटी के मटकों और कूलर का प्रयोग करेंगे और ज्यादा से ज्यादा पेड़ - रूख लगायेंगे और जंगल -  डाँग बचायेंगे तभी दुनिया बच पाएगी और हम सब भी बच पायेंगे। 



झाँसी की लेखिका साथी आशा ठाकुर ने भी ठीक ही कहा है कि भोगवादी और एशोआराम की चीजें खासकर ए० सी० और फ्रिज बहुत बुरी हैं। ये सही बात है। इन सबमें लिप्त होने की बजह से हम लोग प्रकृति से कोसों दूर चले जाते हैं। प्रकृति से दूर होने से कोई भी इंसान अचानक आए बदलाओ को झेल नहीं पाता और तब बीमारियां घर कर जाती हैं। हमें प्रकृति से जुड़ना चाहिए तभी बेहतर होगी हमारी जिंदगी।


हमाओ बुंदेलखंड हर मामले में आगे है। हमाए बुंदेली लोक में हर मर्ज की दवा है। मुँह के छालों से छुटकारा पाने के बुंदेलखंडी नुख्से बहुत अनोखे हैं। जब हमने अपनी दादी - बाई रामकली कुशवाहा किसानिन को बताया कि बाई हमें मों में भौत बेजां छाले हो गए तब बाई ने बताई कि सिसेन्द बेटा! ऐतबार / रविवार - बुद्धबार / बुधवार खों दही या मठा से कुल्ला कर लिज्जो और कुल्ला करकें  तिगैला या चौराए पे बुलक आजजो सो ठीक हों जें तुमाए छाले। जब हमने अपनी दोस्त, बकालत की साथी दिव्या तिवारी से बात की तब उसने भी दादी जैसा उपाय बताया। जब हमने पापा / पिताजी किसान हीरालाल कुशवाहा से बात की तो पापा ने बताया कि सतेन्द बेटा! कत्था और पान खा लेना जिसकी ठंडक से छाले ठीक हो जें। आज सोमवार खों हमने कत्था और पान खाया जिससे बहुत आराम मिला। तीन दिन से अंग्रेजी दवाई खा रहा था जिससे तबीयत में कोई सुधार नहीं हो रहा था ऊपर से छाले और फैलते जा रहे थे। हमने आज 17 अप्रैल 2023 को दही भी खाया लेकिन दही से कुल्ला बुधवार को करेंगे। झाँसी की लेखिका साथी प्रीतिका बुधौलिया ने भी मुँह के छालों से छुटकारा पाने के ये नुख्से बताए - : अमरूद की कोंपल चबाने से भी मुंह के छाले ठीक होते हैं ; चमेली के पत्तों का रस लगाने से भी मुंह के छालों में आराम मिलता है; सादा पान खाने से भी मुंह के छाले बहुत जल्द ठीक हो जाते हैं। अतः इस प्रकार मुँह के छालों से छुटकारा पाने के बुंदेलखंडी नुख्से ये हुए - 

१. रविवार और बुधवार को दही / मठा से कुल्ला करना चाहिए और कुल्ला करके किसी तिगैला या चौराहे पर बुलकना चाहिए।

२. कत्था और पान खाने से भी मुँह से छालों से छुटकारा मिल जाता है।

३. अमरूद की कोंपल चबाने से भी मुँह के छाले ठीक होते जाते हैं।

४. चमेली के पत्तों का रस लगाने से भी मुँह के छालों में आराम मिलता है।


अब हम सब लौटते हैं प्रकृति की ओर...।


©️ गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'

(संस्थापक - बदलाओ की आवाज, झाँसी)

_17/4/2023 _ 10:50 रात _ झाँसी



Sunday 9 April 2023

राम महोत्सओ - २०२३, ओरछा में हम

 

*** राम महोत्सओ - २०२३, ओरछा में हम ***



बुंदेलखंड की अजुध्या नाओं सें जानी जाबे बारी इतिहासिक नगरी ओरछा के रुद्रानी बुंदेली कला गाँओं और सोद संस्तान में ५ अपरेल सें ९ अपरेल २०२३ लौक चल रए दुनियाई राम महोत्सओ  - २०२३ में ७ अपरेल २०२३ खों हमाओ जाबो भओ। पथरा की टाल खुसीपुरा झाँसी सें चाचाजी पिरदीप पांडे की कार सें गुरूजी रामसंकर भारती जी और चाचाजी स्यामसरन नायक जी के संगे राम महोत्सओ में ढाई बजे दिन में पौंचे। महोत्सओ के कर्त्ता - धर्त्ता, संजोजक उत्तर परदेस सरकार में बुंदेलखंड बिकास बोड के उपाध्यक्छ, जाने माने अभिनेता और राजनेता पूजनीय राजा बुंदेली जू सें राम - राम करकें मिलाप करौ और फिर 'लोक में राम' बिसै पे गोस्ठी सभा कौ आयोजन भओ। जीके अध्यक्छता पूजनीय स्वामी जी ने करी और बक्ता के रूप में झाँसी के नामी समाजसेबी, सीपरी की रामलीला १७ साल राम का अभिनय करबे बारे रंगकरमी आदरनीय पिरदीप कुमार पांडे जी; फरीदाबाद हरयाना की कालेज पिरींसिपल, राम चरित की बिख्यात जानकार आदरनीया डॉ० सुमन रानी जी; सागर दुनियाईग्यानपीठ सागर के पिरोफेसर, राम कथा के बिसेस जानकार डॉ० घनस्याम भारती जी, कोंच की रामलीला के अभिनेता संजय जी और देस के जाने माने अभिनेता, फिलम सेंसर बोड के सदस्य अमित भार्गओ जी रए। संचालन देस के जाने माने साहित्यकार, बुंदेली संसकिरती के बिसेस जानकर डॉ० रामसंकर भारती जी ने करौ और झाँसी के साहित्यकार, बकील स्यामसरन नायक जी ने आभार जताओ। यी औसर पे संजोजक राजा बुंदेला जी,  रामान केंद्र भोपाल के निदेसक, सैसंजोजक राजेस श्रीबास्तओ, अभिनेता राम बुंदेला समेत रामभक्त, सादू, संत, साहित्यकार, नेता, अभिनेता, आदमी, जनिएं, मौडी, मौडा और उमदा सुनैया उपस्थित रए।


गोस्ठी सभा के बाद नामी हस्तियों के संगे फोटू भईं और फिर राम पे आधारित चित्तकला पिरदरसनी देखी। जा पिरदरसनी ललित कला बिभाग, बुंदेलखंड दुनियाईग्यानपीठ झाँसी के पिरोफेसर डॉ० अजै गुप्ता जी के संजोजन में लगाई गई है।


राम महोत्सओ कीं झलकियाँ इन फोटूअन में देखौ...

©️ सतेंद सिंघ किसान
/ गिरजासंकर कुसबाहा 'कुसराज झाँसी'
(युबा बुंदेलखंडी लिखनारो, समाजिककारीकरता; जरबौ गाँओं बरूआसागर झाँसी)

०९/०४/२०२३ _ ८:३५दिन _ झाँसी


Friday 7 April 2023

बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी में आयोजित बुन्देली साहित्य उत्सव में साहित्यकारों ने बुंदेली भाषा और बुन्देली लोक साहित्य का महत्त्व समझाया

 *** बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी में आयोजित बुन्देली साहित्य उत्सव में साहित्यकारों ने बुंदेली भाषा और बुन्देली लोक साहित्य का महत्त्व समझाया ***

रिपोर्ट - गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'



विगत 30 मार्च 2023 को हिन्दी विभाग, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ एवं डॉ० मनुजी स्मृति ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविद्यालय परिसर झाँसी में बुंदेली साहित्य उत्सव और राष्ट्रीय पुस्तक मेला आयोजित हुआ। 

बुन्देली साहित्य उत्सव का ये दूसरा दिन था जिमसें बुंदेली साहित्यकारों और बुन्देली भाषा विशेषज्ञों ने अपनी रचनाओं की प्रभावशाली प्रस्तुति के माध्यम से छात्र - छात्राओं और बुन्देली प्रेमियों को बुन्देली भाषा और बुन्देली लोक साहित्य के महत्त्व को समझाया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता झाँसी महानगर निवासी विख्यात साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी डॉ० रामशंकर भारती जी ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में अपनी एक रचना 'जानकी अब सब जान गई' सुनाई और कहा कि आज माताओं ने गाना बंद कर दिया है। यह चिंता का विषय है। उन्होंने आगे कहा कि बोलियों को भाषा बनाने की जिद पर भी गम्भीरता से विचार करना चाहिए। यदि बुंदेली को अलग भाषा मान लिया जाए तो हिन्दी का भविष्य भी प्रभावित होगा। लोकभाषा का शब्दों का प्रयोग सामान्य तौर पर करना चाहिए। भाषण और व्यवहार में विरोधाभास नहीं होना चाहिए। 


महोबा से पधारे सारस्वत अतिथि प्रसिद्ध बुंदेली साहित्यकार संतोष पटैरिया ने अनेकों बुंदेली कहावतों और मुहावरों का सही रूप समझाया। उन्होंने 'अटकन चटकन ढाई चकोटन' और 'धोबी को कुत्ता घर को न घाट को' का सही रूप समझाते हुए लोक साहित्य पर चिंता व्यक्त की। इसके साथ ही आल्हाखंड पर भी चर्चा की। 


फिर सारस्वत अतिथि बरूआसागर झाँसी निवासी प्रसिद्ध साहित्यकार और पूर्व आईएएस डॉ० प्रमोद कुमार अग्रवाल उर्फ पी० के० अग्रवाल जी ने अपनी रचनाओं की जानकारी साझा करते हुए अपनी आत्मकथा के कुछ अंश सुनाए। उन्होंने कहा कि माँ के साथ हम बुन्देली भाषा में ही बात करते थे। बुंदेली बहुत प्यारी भाषा है। उन्होंने आगे कहा कि मेरे उपन्यास 'साकार होते सपने' में भी बरूआसागर का चित्रण है। अभी हाल ही में प्रकाशित उपन्यास 'झाँसी की वीरांगना' में मैंने झाँसी की रानी का प्रशासनिक दृष्टिकोण से मूल्यांकन किया है। 


झाँसी निवासी प्रसिद्ध व्यंग्यकार देवेन्द्र भारद्वाज जी ने अपनी पुस्तक 'लाल किताब' में प्रकाशित एक व्यंग्य रचना 'किट का कमाल' सुनाई। इसके साथ ही उन्होंने एक शेर 'आईना बनने से बेहतर है कि पत्थर बनो, यदि कभी तराशे गए तो देवता बन जाओगे' भी सुनाया। 


झाँसी निवासी प्रसिद्ध साहित्यकार निहाल चंद्र शिवहरे ने कहा कि हम आपको जगा आए है। बुन्देली भाषा को अपनाने आए हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बुन्देली अभी संविधान की आठवीं अनुसूची में नहीं आई है जबकि इसका प्रयोग सात करोड़ लोग करते हैं। उन्होंने सभी छात्र - छात्राओं और बुंदेली प्रेमियों से बुंदेली को आठवीं अनुसूची में जुड़वाने हेतु व्यापक अभियान छेड़ने का आह्वान किया। इसके बाद उन्होंने कई मुहावरे और हाईकू भी सुनाए और बुन्देली भाषा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों से प्राप्त होने वाले रोजगार के तौर तरीके भी बताए।


झाँसी निवासी विख्यात बुन्देली साहित्यकार साकेत सुमन चतुर्वेदी ने कुछ स्वरचित बुन्देली रचनाएँ सुनाईं। इसके साथ उन्होंने एक नौटंकी का प्रसंग भी सुनाया। उन्होंने युवाओं कहा कि "कुशराज बुन्देली के लिए लगन और मेहनत से बेहतर काम कर रहे हैं। हम कुशराज के  बुंदेली के विकास हेतु किए जाने वाले कामों की सराहना करते हैं।" युवाओं को कुशराज से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब आप काम करते हैं तो नाम जरूर होगा। 



झाँसी निवासी विख्यात साहित्यकार राजेश तिवारी मक्खन ने माँ सरस्वती को नमन करते हुए अपनी बुन्देली रचनाएँ सुनाईं "खुशी को नौंनों सो अवसर आओ, हम बुन्देली साहित्य उत्सव मना रए"। उन्होंने कहा कि मताई की भासा खों ना भूलें। अब तो मताई की भासा में टीबी पे सीरियल और बतकाव आ रए। उन्होंने बुन्देली भाषा प्रेम को समर्पित एक रचना "नौनीं बुंदेली है बानी, ईको कोऊ नईं सानी" भी सुनाई। 


इससे पहले सभी अतिथि साहित्यकारों को पुष्पगुच्छ और अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया। उत्सव के संयोजक प्रो० मुन्ना तिवारी ने सभी अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया और छात्र - छात्राओं से आव्हान किया कि आप अपनी मातृभाषा को बिना किसी झिझक से गर्व के साथ बोलें। ऐसा करके आप हिन्दी को ही समृद्ध करेंगे। इस अवसर पर डॉ० अचला पाण्डेय, डॉ० जयसिंह, डॉ० श्रीहरि त्रिपाठी, डॉ० नवीनचंद्र पटेल, डॉ० उमेश शुक्ल, डॉ० शैलेन्द्र तिवारी, डॉ० प्रेमलता श्रीवास्तव, डॉ० द्युतिमालिनी, डॉ० सुनीता वर्मा, डॉ० पुनीत श्रीवास्तव, डॉ० उमेश कुमार, डॉ० प्रशान्त मिश्रा, डॉ० श्वेता पांडेय, अभिषेक कुमार, अतीत विजय, शाश्वत सिंह समेत अनेक बुंदेली भाषा प्रेमी - प्रेमिकाएँ और छात्र - छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ० अजीत सिंह ने और आभार डॉ० सुनीता वर्मा ने व्यक्त किया।

हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी खों अथाई की बातें तिमाई बुंदेली पत्तिका भेंट.....

  हिंदी बिभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी में मुखिया आचार्य संजै सक्सेना जू, आचार्य नबेन्द कुमार सिंघ जू, डा० स्याममोहन पटेल जू उर अनिरुद्ध गोयल...