नरवाद यानि पुरुष - विमर्श (Manism) ~: कुशराज झाँसी


     सिद्धांत -  " नरवाद " यानि " पुरुष - विमर्श " (Manism) 


क्रांति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं। हर युग में क्रांतियाँ हुईं हैं, आंदोलन हुए हैं और आज भी हो रहे हैं। जिससे व्यवस्था में परिवर्तन हुआ है और निरंतर विकास का मार्ग प्रशस्त करने में कामयाबी मिल पायी है।

इस धरती पर जब से जीवन की उत्पत्ति हुई है, तभी से निरंतर कई परिवर्तन होते आए हैं। जीवन की उत्पत्ति के साथ पेड़ - पौधों, जीव - जन्तुओं और मानव का जन्म हुआ। मानव यानि मनुष्य (Human) इस पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान प्राणी है इसलिए इसका वैज्ञानिक नाम 'होमो सेपियन्स' रखा गया है। मानव को भी लिंग के आधार नर यानि पुरुष (Man) और नारी यानि स्त्री (Woman) में विभाजित किया गया है। विभाजन और वर्गीकरण की प्रक्रिया जीवन चक्र में निरंतर चलती रहती है, जो आवश्यक भी है।

ऐसा माना जाता है कि जब से धरती पर नारी (स्त्री) की उत्पत्ति हुई तभी से नरों (पुरुषों) द्वारा उसका शोषण होता आ रहा है। जो सत्य भी है। यहाँ तक की स्त्रियों ने स्त्रियों का भी शोषण किया है। आज की भाँति पितृसत्तात्मक व्यवस्था में नारी का पुरुषों द्वारा यौन - शोषण किया जाता रहा है। नारी को सिर्फ और सिर्फ भोग - विलास की वस्तु समझा जाता रहा है। नारी को हमेशा चारदीवारी में कैद रहने के लिए विवश किया जाता रहा है। नारी को कभी भी स्वतंत्र नहीं करने की बात हमेशा होती रही है। हमारे भारत देश में नारी को देवी मानकर पूजनीय माना गया है। मानवधर्म ग्रन्थ 'मनुस्मृति'  के अनुसार - यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता। अर्थात् जहाँ नारी  की पूजा होती है, वहाँ देवता वास करते हैं। मनुस्मृति में ही अन्य जगह लिखा है कि एक स्त्री को कभी भी स्वतंत्र नहीं रहना चाहिए और उसे हमेशा पुरुष के संरक्षण में रहना चाहिए। बाल्यावस्था में पिता की, वयस्कावस्था में पति की और वृद्धावस्था में पुत्र की सुरक्षा में रहना चाहिए। स्त्री को पुरुष के संरक्षण में जीना चाहिए ऐसी अवधारणा रही है। इस अवधारणा का मैं पुरजोर विरोध करता हूँ और कहता हूँ कि स्त्री को भी हमेशा आजाद रहना चाहिए। तभी जीवन में सन्तुलन बना रह सकता है।

हिन्दू धर्म में जहाँ ब्राह्मणों और क्षत्रियों में पुरुषों द्वारा बहुविवाह करने का चलन (फैशन) रहा है और आज भी हिन्दू पुरुष अधिकतम सात विवाह कर सकता है। हिन्दू राजा कई रानियाँ रखते थे। वहीं आज भी ब्राम्हण और क्षत्रियों में विधवाओं का पुनर्विवाह होना मुश्किल हो रहा है। हिन्दू धर्म में स्त्रियों द्वारा घूँघट करने की कुप्रथा चली आ रही है। वहीं इस्लाम भी पैगम्बर की ही अनेक पत्नियाँ थीं और बादशाहों द्वारा कई बेगमें रखने का प्रावधान रहा है। इस्लाम में पर्दा प्रथा निरतंर चली आ रही थी और मुस्लिम स्त्रियों द्वारा बुर्खा पहनने की परम्परा भी है। दहेज प्रथा तो समाज में हर जगह विद्यमान है। इन सब प्रथाओं का धीरे - धीरे अंत भी हो रहा है और होना भी चाहिए।

प्राचीनकाल से ही समाज में वेश्यावृत्ति यानि रण्डीबाजी का चलन रहा है। कई स्त्रियाँ वेश्या बनकर जीवन यापन करती रहीं हैं। आज भी वेश्यावृत्ति का चलन खूब है। वेश्यावृत्ति एक धंधा बना हुआ है। जो स्त्रियों और पुरुषों दोनों के लिए घातक है। वेश्यावृत्ति के चलते पारिवारिक रिश्तों में दरार आयी है और समाज में संवेदनहीनता, लालच और स्वार्थीपन सर्वत्र फैल चुका है।

बीसवीं सदी में नारीवाद यानि स्त्री - विमर्श (Feminism) अवधारणा का प्रवर्त्तन हुआ। जिसके तहत जागरूक और दूरदर्शी स्त्रियों और पुरुषों ने नारी - शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई। अनेक नारीवादी आन्दोलन हुए, क्रांतियाँ हुईं, जिनके फलस्वरूप स्त्रियों के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक समानता के अधिकारों को प्राप्त किया गया। नारीवादी विचारधारा के आने से समाज में स्त्रियों की दशा में काफी सुधार हुआ। नारीवादी आंदोलन होने से नारीवादी साहित्य की होड़ लग गयी और स्त्री - विमर्श चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया।
आज नारीवादी आंदोलन होने से और साहित्य जगत में स्त्री - विमर्श अर्थात् नारीवाद आने के परिणामस्वरूप स्त्रियाँ हर क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार पाती जा रही हैं। नारीवाद की अति हो जाने के कारण स्त्रियों ने पुरुषों के समान धूम्रपान और मदिरापान करना भी शुरू कर दिया है। जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। स्त्रियों के स्वास्थ्य का प्रभाव उनकी सन्तानों पर अत्यधिक पड़ता है। अतः स्त्रियों को अपनी सन्तानों का भी ख्याल जरूर रखना चाहिए।

जितने जोरों पर आज नारीवाद अर्थात् स्त्री - विमर्श की चर्चा चल रही है। उतने ही जोरों से 'नरवाद' अर्थात् 'पुरुष-विमर्श' (Manism) की चर्चा करने की बेहद जरूरत है। मेरे अनुसार - " पुरूषों के सामाजिक, राजनैतिक शोषण से मुक्ति और सभी पुरुषों को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार प्राप्त होना ही नरवाद यानि पुरुष - विमर्श (Manism) है। जिसमें आंदोलन, क्रांतियाँ करना बाजिब हैं।"

जब से धरती पर पुरुष ने जन्म लिया तभी से शक्तिशाली पुरुषों  और शक्तिशाली स्त्रियों ने कमजोर पुरुषों का शोषण किया। इन पुरुषों से गुलामी करवाई और शारीरिक एवं मानसिक शोषण किया। मातृसत्तात्मक व्यवस्था में पुरूषों का यौन - शोषण भी किया गया है। कहीं न कहीं एक स्त्री द्वारा कई पति भी रखे जा रहे हैं। शोषित पुरुषों को साहित्य जगत में 'दलित' की संज्ञा दी गई है।

आज भी पुरुषों का शोषण हो रहा है। बालकों का वरिष्ठजनों द्वारा शोषण किया जा रहा है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में युवा छात्रों का तथाकथित प्रोफेसरों द्वारा शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है। युवा छात्रों की आवाजों को दबाया जा रहा है। महिला प्रिंसिपलों द्वारा छात्रों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है और कॉलेज प्रशासन पर मनमाना शासन किया जा रहा है। प्रोफेसर छात्रों को चापलूसी यानि चाटुकारिता करने को विवश करते हैं और छात्रों से अपने अनुसार काम करवाते हैं। यहाँ तक की घरेलू काम - काज भी करवाते हैं।


आज देश - दुनिया के महानगरों में वेश्यावृत्ति यानि रण्डीबाजी की तर्ज पर पुरूष - वेश्यावृत्ति अर्थात् रण्डाबाजी का चलन (फैशन) जोरों पर चल रहा है। यौन कुण्ठा की शिकार स्त्रियाँ जिंगोलों अर्थात् पुरुष - वेश्या के द्वारा अपनी काम - भावना की पूर्ति कर रहीं हैं। एक युवती कई प्रेमी (बॉयफ्रेंड) रख रही है। कई लड़के एक ही लड़की के प्यार में पागल पड़ रहे हैं और अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। एक लड़की प्यार का नाटक करके कई लड़कों से यौन - संबंध स्थापित करने को तैयार हो रही है। जब लड़कों को इस बात का पता चल रहा है कि मेरी गर्लफ्रेंड किसी और की भी गर्लफ्रेंड है, तब लड़के आत्महत्या तक कर रहें हैं। लड़कियों द्वारा लड़कों इमोशनली ब्लैकमेल किया जा रहा है और उन्हें यूज़ करके छोड़ दिया जा रहा है। यहाँ तक कुछ झूठी प्रेमिकाएँ अपने दूसरे प्रेमी के चक्कर में एक प्रेमी की हत्या करवाने को उतारूँ हो रही हैं। जो सरासर गलत है।

आज कई देशों में सामान्य पुरुषों के अधिकारों को छीना जा रहा है। स्त्रियाँ पुरुषों पर अपना रुतवा जमा रहीं हैं और उनका शोषण भी कर रहीं हैं। आवश्यकता है - युवा प्रेमियों को अपनी ईमानदार प्रेमिका चुनने की और हर मुशीबत का सामना करने की। साथ ही साथ लड़कियों के प्रति झिझक मिटाने की।

  समकालीन परिस्थितियों को देखते हुए नरवाद यानि पुरुष - विमर्श की आवश्यकता पड़ी है। जिसका अभी सफर बाकी है।

✍  कुशराज झाँसी

_9/5/2019_1:50 रात _ दिल्ली

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