Saturday 19 October 2019

किसान - विमर्श : कुशराज झाँसी


सिंद्धात : " किसान - विमर्श "




जबसे इस धरती पर जीवन की उत्पत्ति हुई है तब से ही किसान खेती - किसानी करके खाद्य - सामग्री उत्पादित कर रहे हैं। यानि किसान ही सारी दुनिया के लिए भोजन हेतु खाद्यान्न, फल, सब्जियाँ और चारे का उत्पादन करते आ रहे हैं। इन धरतीपुत्र किसानों को 'अन्नदाता' भी कहा जाता है। लेकिन मैं इन्हें "दूसरा जीवनदाता" कहता हूँ। यदि किसान खेती - किसानी नहीं करेंगे तो खाद्यान्नों का उत्पादन नहीं होगा और जब खाद्यान्नों का उत्पादन नहीं होगा तो हमारे भोजन की भी व्यवस्था नहीं होगी। बिना भोजन के हमारा जीवित रहना असंभव ही नहीं नामुमकिन है। यदि हम भोजन नहीं करेंगे तो भूखों मर जाएँगे और कुछ भी नहीं कर पाएँगे...

आज हमारे देश भारत में ही नहीं सारी दुनिया में सबसे ज्यादा दुर्दशा किसानों की ही है। किसान सबके लिए तो अन्न उगा रहे हैं और खुद भूखों मरने के लिए विवश हैं। किसान अपनी फसलों से इतना नहीं कमा पाते कि वो अपने  परिवार के लिए ठीक - ठाक कपड़ों और शिक्षा का प्रबंध कर सकें। किसान दिन - रात एक करके अन्न उपजाता है। वो न जेठमास की तमतमाती धूप देखता है और न ही माव -  फूस की कड़ाके की ठण्ड। किसान जितना परिश्रमी और धैर्यवान कोई नहीं है। फिर भी किसान सुखी नहीं है। कभी वो भयानक अकाल (सूखा) की मार से मारा जाता है और कभी प्रलयकारी बाढ़ से। इन आपदाओं से ज्यादा तो किसान कर्ज के बोझ से आत्महत्या करने मजबूर होते हैं। अब तक की अधिकतर सरकारें किसान विरोधी रहीं हैं। सरकारों  ने कभी किसानों का भला करना नहीं चाहा इसलिए तो अब तक देश पीछे है। सरकारी और प्रशासनिक व्यवस्था किसान को ही हमेशा हर प्रकार से लूटती रही है और दमनकारी रवैया चलाती रही है। लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा। अब मेरे जैसे किसानों के बेटे जागरूक हो गए हैं  और किसान भी एकजुट हो गए हैं। वो अपने अधिकारों की आर - पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो गए हैं। बाजारवाद के इस दौर में किसान अपनी फसलों के आज से चार - पाँच गुने मूल्य पाने के लिए परिवर्तनवादी आन्दोलन कर रहे हैं और अपनी हालात बेहतर करके विश्वकल्याण में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। इन किसानों की विचारधारा परिवर्तनवाद का नारा है - दुनिया के किसानों एक हो।...

किसानों को अब से समाज, साहित्य, राजनीति और सिनेमा में अगल से सम्मानीय दर्जा दिया जाए। दुनिया के हर स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय के हर कक्षा के पाठ्यक्रमों में किसान - साहित्य और किसान विमर्श को अनिवार्यता के साथ शामिल किया जाए। क्योंकि किसानों के बिना ये दुनिया नहीं चल सकती। इसलिए किसानों की हर माँग को पूरा किया जाए। मेरे अनुसार किसान - साहित्य की परिभाषा इस प्रकार है : "किसान के जीवन पर लिखा गया अनुभूतिपरक एवं स्वानुभूतिपरक साहित्य ही किसान - साहित्य है और ऐसा विमर्श जिसमें किसानों हर मनोदशा, भावना और अधिकारों की अभिव्यक्ति हुई हो, वो किसान - विमर्श है।"



तथाकथितों द्वारा ऐसा माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में भारत ‘नवभारत – विकसित भारत’ बनकर उभरा और देश में विकास की गंगा बही। लेकिन हकीकत कुछ यूँ है – इस दौर में किसान आत्महत्याओं और बलात्कार के मामले हद से ज्यादा सामने आए। महाराष्ट्र में सन् 2015 से 2018 के बीच तकरीबन 12 हजार किसानों ने आत्महत्याएँ कीं। सारी दुनिया की भूँख मिटाने वाला, धरतीपुत्र किसान को दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं हुई। यत्र – तत्र किसान – आन्दोलन हुए लेकिन तानाशाही सरकार से किसान अपना हक पाने में नाकामयाब रहे। मजदूरों की हालात भी बहुत बुरी रही। सूखे की मार से ग्रसित बुन्देलखण्ड हमेशा उपेक्षित रहा। किसानों – मजदूरों के बच्चोँ की अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई क्योंकि कुछेक को छोड़कर ज्यादातर सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की शिक्षा – व्यवस्था अस्त – व्यस्त रही। प्राईवेट शिक्षण – संस्थानों और कॉन्वेंट स्कूलों का हाल और बुरा रहा। छात्र – छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद रोजगार और नौकरी के लिए दर – दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। भारत में शिक्षित बेरोजगार युवाओं की भरमार हो गयी है। युवाओं को सरकारें सिर्फ जुमले दे रही हैं।

सन् 2010 के बाद भारत के लिए आरक्षण घातक सिद्ध हो रहा है। आरक्षित लोग ही नौकरी – पेशा पाने में सफल हो रहे हैं। इसमें वो ही लोग हैं, जो कुछ हद तक सम्पन्न हैं लेकिन आज भी गरीब किसान – मजदूर और आदिवासियों के बच्चे आरक्षण नहीं पा रहे हैं क्योंकि देश में जागरूकता का अभाव है। अब भारत के हालात बहुत ठीक हो चुके हैं और अब समय आ गया है – आरक्षण को खत्म करने का। मोदी सरकार ने सन् 2018 -19 में 10% सवर्णों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था करी। आरक्षण देना अब भारत के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि विश्वगुरू भारत के निवासी वैसे ही प्रतिभाशाली होते हैं और आज के युवा तो 21वीं सदी के हैं, जो बहुत ज्यादा प्रतिभाशाली हैं।



किसान - विमर्श पर मेरा लेख -  "किसान बचाओ - देश बचाओ" उल्लेखनीय है। जो इस प्रकार है -:

           हमारा देश भारत प्रमुख कृषिप्रधान देश है, यहाँ पर लगभग 70% आबादी कृषि कार्य पर निर्भर है। इसलिए मैं अपने देश को 'किसानों का देश' कहता हूँ। आजकल देश में किसानों की हालात बहुत बदत्तर हो गयी है। प्रकृति की मार, अतिवृष्टि ने किसानों की फसलों को चौपट कर दिया है। तेज वर्षा के साथ ओलों के गिरने से फसलें सर्वनाश हो गईं हैं। किसानों को खुदका पेट भरने के लिए अन्न उत्पादन करना मुश्किल पड़ रहा है।
              आज भारत के आंध्र प्रदेश और बुन्देलखण्ड क्षेत्र में किसान अपनी फसल को चौपट देखकर आत्महत्या कर रहा है। सरकार इस घटना की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीँ दे रही है। सरकार को पीड़ित किसान को आर्थिक सहायता के रूप में फसल - सर्वेक्षण के आधार पर अधिक से अधिक मुआवजा देना चाहिए। सरकार को किसान के बिजली बिल और बैंक का ऋण माफ़ करना चाहिए।
             हमारी भारत सरकार को किसानों की इस स्थिति पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि किसान ही देश की शान हैं। किसान ही खाद्यान्न, फल, सब्जियों आदि खाद्य - पदार्थों का उत्पादन करता है और सरकार इन खाद्य - पदार्थों का निर्यात विदेशों को करती है और काफी विदेशी मुद्रा कमाती है एवं आर्थिक कोष में बढ़ोत्तरी करती है।
             किसान ही देश की जनता की भूँख मिटाते हैं इसलिए सरकार को किसानों के विकास की अनेक कल्याणकारी योजनाएँ बनानी चाहिए। जैसे - मुफ्त सिंचाई योजना, मुफ्त खाद योजना आदि। सरकार को देश में अनेक कृषि विद्यालय और विश्वविद्यालय खुलवाने चाहिए और किसानों को वैज्ञानिक तकनीक से कृषि कराने में मदद करनी चाहिए। सरकार को केन्द्रीय किसान आयोग और राज्य किसान आयोग का गठन करना चाहिए।
            जैसे सरकार भारी मुद्रा पार्क बनाने में, बड़े - बड़े राजनेता मूर्तियाँ बनवाने में, शादी, जन्मोत्सव, महोत्सवों में अरबों रुपये खर्च कर देते हैं। उन्हें ऐसा नहीँ करना चाहिए। सरकार और राजनेताओं को ये रुपये किसानों के विकास में खर्च करना चाहिए। सरकार को महँगाई कम करनी चाहिए।
           आज की तरह ही यदि किसान आत्महत्याऐं करते रहे तो हमें अन्न कौन देगा? और देश की अर्थव्यवस्था कैसे मजबूत होगी? भारत कैसे विकसित देश बनेगा? ऐसे हजारों प्रश्न उठते हैं। ऐसे प्रश्नों का जबाव सिर्फ और सिर्फ किसानों का विकास करना है और उन्हें किसी भी हालात में दुःखी नहीँ होने देना है। इसलिए तो मैं कहता हूँ कि 'किसान बचाओ - देश बचाओ।' किसान रहेंगे तो कृषि होगी और कृषि होगी तो अन्न होगा। अन्न होगा तो हम होंगे।
           किसानों पर स्वरचित पंक्तियाँ आपसे साझा कर रहा हूँ -:
                     'किसान'
बारहों महीने जो खेतों में करता है काम।
सच्चा किसान है उसका नाम।।
         खेतों को जोतता, बीज बोता,
         बीज उगकर जब तैयार हो जाता।
         तो फसल को सिंचित करता,
         खाद देता, दवाइयाँ देता।
आदि करता है काम।
सच्चा किसान है उसका नाम।।
          #कुशराज -: 20 मार्च 2015

किसान - विमर्श पर मेरी कहानी - " रीना " इस प्रकार है -:

 
                    रीना भोर अपने आँगन में झाडू लगा रही थी। नाटे और गोरे बदन पर फटी - पुरानी साड़ी पहने, कड़ाके की ठण्ड से रोम - रोम खड़े हो रहे थे और वह मैला - कुचैला हल्का साल ओढ़े रोजाना का काम निपटा रही थी। उसने भुनसारें चार बजे डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित कुएँ से पीने और खर्च के लिए पानी भर लिया था क्योंकि घर के पास वाला हैण्डपम्प खराब पड़ा था।
                      पानी भरने के साथ ही गोबर इकट्ठा कर लिया था। जिससे झाडू से निपटने पर ईंधन हेतु कण्डे पाथे और डलिया लेकर तरकारी बेचने गाँव में निकल गयी। बड़ी मधुर आवाज दे रही थी - " बाई हरौ, भज्जा - बिन्नू  ले लो भटा; ताजे - ताजे हाले भटा। बीस रूपए में डेढ़ किलो, नाज  के बराबर।" माते भज्जा ने तीन किलो भटा खरीदे और मन्नू काकी ने नाज के बराबर। आज सवा सौ रूपए और चार किलो नाज की आमदनी हुई। हाथ - मुँह धोया और खाना पकाने बैठ गई। चना की दाल बनाई और जब रोटी सेंक रही थी तो लकड़ियों और भटन के डूठों का धुआँ आँखों में हद से बेजां लग रहा था। आँखे मडीलते - मडीलते लाल हो गईं, बड़ी मश्किल से रोटी सेंक पाईं।
                       इतने में पतिदेव शिम्मू हार से पिसी में पानी देकर लौट आए। ढाई बीघा के आधे खेत में पिसी लगी थी और आधे में तरकारियाँ और मटर। माघ की अँधेरी रात में शिम्मू गायों से खेत की रखवाली करते, उसी सस्ते और रद्दी कम्बल को ओढ़कर जो पिंटू नेताजी ने पिछले चुनाव में बाँटा था। हल्की सी टपरिया डाले, मूँगफली के टटर्रे से तापते - तापते रात गुजारते। दिन में कलेवा करके खेत में लग जाते, कभी रीना के साथ तरकारियाँ तोड़वाते तो कभी पिसी में खाद देते।
                       रीना डाँग में बकरियाँ चराने निकल जाती। दोपहर का भोजन न करके कन्दमूल फलों से गुजारा करती। देर रात तक बड़े बेटे करन के साथ जागती रही थी क्योंकि वह डाकिया की परीक्षा देने झाँसी जा रहा था। इसलिए उसको नींद आ गयी और तीन पागल कुत्तों ने उसकी एक बकरी को तोड़ दिया। बिलखती हुई आज जल्दी घर आ गई। शाम को पतिदेव ने उसे बहुत डाँटा और अगले सुबह तीनों बकरियाँ खटीक को बेच दी गईं। अब बाल - बच्चे दूध से भी बंचित हो गए। ये बकरियाँ ही उनकी गायें थीं।
                    छोटा बेटा वरुन बगल के गाँव में एक हॉटल में बर्तन धोने का काम बड़ी जिम्मेदारी से करता। वह सिर्फ कक्षा छह तक पढ़ा है। वह हमेशा कहता - " अम्मा! बड़े भज्जा पढ़ जाएँ, हम तो ऐसे ही ठीक हैं।" करन वरुन से बहुत प्यार करता। वह किसी भी परिस्थिति में उसे दुःखी नहीँ होने देता। करन ने बीस किलोमीटर साईकिल भांजकर इण्टर तक पढाई पूरी की और डाकिया बन गया। वरुन बेचारा अब भी जूठी प्लेटें धोता और अम्मा - पापा खेत में दिनरात लगे रहते हैं।
                  रीना दूसरों के खेतों में मजूरी करती और कभी बेलदारी करके अपनी लाड़ली पिंकी के विवाह हेतु धन इकट्ठा करती। हफ्ते में एक बार जंगल में लकड़ियाँ काटने जाती। शाम को चिलमी जलाकर अपने कच्चे - खपरैल घर में उजाला करके रात का खाना पकाती। एकसाथ सब प्रेम से खाना खाते और शिम्मू रोजाना की भाँति खेत की रखवाली हेतु हार को निकल जाते। लाड़ली का वैशाख में विवाह आ गया। लड़के वालों ने डेढ़ लाख का दहेज माँगा है। करन की नौकरी को अभी चार महीने ही हुए हैं। घर में जैसे - तैसे एक लाख रूपए का बंदोबस्त हुआ और पचास हजार तीन प्रतिशत प्रति सैकड़ा की मासिक दर से नमेश सेठ से कर्जा लेकर लाड़ली का विवाह किया।
                  पिंकी की सास सुबह - शाम ताने मारती और छोटी - छोटी बातों पर झगड़ती रहती। बार - बार कहती - " तेरे बाप ने फ्रिज नहीँ दिया, वॉशिंग मशीन नहीँ दी।" खाने में भी कानून करती - " तरकारी में तेल ज्यादा डाल दिया, नमक का तो स्वाद ही नहीँ है।"  पिंकी को भरपेट खाना भी नहीँ खाने देती। वह चिंता में रात को बिना खाए ही सो जाती। एक साल के अंदर पिंकी का पति भी उसकी मारपीट करने लगा। वह अपनी पड़ोस की युवती ऋतु के प्रेमजाल में फँसा था। उसे पिंकी की बिल्कुल भी परवाह नहीँ थी, वह उसे घर की नौकरानी से बदत्तर समझता था। डेढ़ साल के अंदर पिंकी ने दुष्ट पति और कपटी सास से तंग आकर पंखे से लटककर अपनी इहलीला समाप्त कर ली।
                 करन की भी नौकरी छूट गई क्योंकि ग्रामप्रधान ने रिश्वत देकर उसकी जगह अपने बेटे की नौकरी लगवा दी। रीना के घर पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। शिम्मू बेचारा, सीधा - साधा बुंदेली किसान पिंकी के ससुराल वालों का कुछ न बिगाड़ सका। पिंकी के मरने के चार साल बाद करन का गरीब लड़की से संबंध तय हुआ। विवाह में दहेज की तो दूर की बात, बहु के रिश्तेदारों के स्वागत - सत्कार की व्यवस्था शिम्मू ने ही की। शिम्मू तीन - चार लाख के कर्ज में डूब गया। पिछले दो साल से भयंकर सूखा पड़ रही थी। सारा परिवार दाने - दाने के लिए मुहताज हो गया। कुछ गाँववासी मजूरी करने दिल्ली निकल गए तो कुछ अपने दूर के रिश्तेदारों के यहाँ रोजगार करने लगे। नमेश सेठ बार - बार शिम्मू से कर्ज चुकाने  के लिए गालीगलौच करता। शिम्मू डर जाता और मंगलवार को टेंशन में आकर इमली से लटककर फाँसी लगा लेता और कर्ज में ही अपने और किसान भाईयों की भाँति वही कहानी दुहराता।

✍ कुशराज झाँसी_ 18/12/18_01:02pm

किसान - विमर्श पर मेरी विकासवादी कविता : सब समान हों... इस प्रकार है-:

चाहे हों दिव्यांग जन
चाहे हों अछूत
कोई न रहे वंचित
सबको मिले शिक्षा
कोई न माँगे भिक्षा

दुनिया की भूख मिटानेवाला
किसान कभी न करे आत्महत्या
किसी पर कर्ज का न बोझ हो
सबके चेहरे पर नई उमंग और ओज हो

न कोई ऊँचा
न कोई नीचा
सब जीव समान हों
हम सब भी समान हों

न कोई बनिया नाजायज ब्याज ले
न कोई कन्यादान के संग दहेज ले
कोई बहु - बेटी पर्दे में न रहे
सबको दुनिया की असलीयत दिखती रहे

कोई न स्त्री को हीन माने
वह साहस की ज्वाला है
अब तक वह चुप रही
तो हुआ ये

सिर्फ मानवता की हीनता
और हैवानियत का चरमोत्कर्ष
अब सब कुरीतियों - असमानताओं को मिटाना है
मानवता और विश्व शांति लाना है...

✒ कुशराज झाँसी

_14/1/2019_11:56 रात _ झाँसी बुन्देलखण्ड

“कुरीतियों, असमानताओं को मिटाकर मानवता और विश्व शांति लाना है” https://www.youthkiawaaz.com/2019/06/we-need-a-equality-based-society-hindi-poem/#.XSpM0UXWFMI.whatsapp

 कुशराज झाँसी
    
_26/12/2018_11:49 दिन_ झाँसी बुंदेलखंड

(ब्लॉग - कुशराज की रचना, दुनिया के किसानों एक हो - कुशराज...)


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