" राम तूँ मेरे साथ ऐसा क्यूँ करता है ? "
राम तूँ मेरे साथ ऐसा क्यूँ करता है ?
मुझे समझ नहीं आता,
मैं कुछ खास दिनों में बीमार क्यूँ पड़ता हूँ।
मैं परेशान, साथ-साथ परिजन परेशान होते हैं।
पहली बार,
शायद आठवीं-नवमी मेँ पढ़ता हूँगा।
गर्मियों के दिन थे;
स्कूल की छुट्टियाँ थीं,
इक दिन शाम को;
घर के पास वाले कुआँ पर नहा रहा था।
वहाँ से आकर;
परिजन ब्याई करने जा रहे थे,
मुझसे माँ ने कहा;
काकी को पने के लिये आम भूनने को देकर आओ,
तभी अचानक;
मैं धड़ाक से आँगन में गिर पड़ा।
परिजन घबरा गये;
बाई फूट-फूटकर रोने लगी,
चाहने वाले;
देखने घर पर आने लगे,
हालत गम्भीर होने लगी;
ढेड़-दो माह दवा चली,
स्वस्थ्य हो गया।
बस;
हुआ था मलेरिया।
मुझे समझ नहीं आता ,
राम तूँ मेरे साथ ऐसा क्यूँ करता है।
दूसरी बार,
इण्टरमीडिएट कर रहा था;
जीवविज्ञान की कोचिंग से लौटते वक्त,
अचानक;
नगर बरुआसागर चौक पर बेहोश होकर गिर पड़ा,
सहपाठियों ने अस्पताल पहुँचाया;
परिजनों को सूचित कराया।
इलाज हुआ,
ठीक हो गया।
बस;
हुआ था बुखार,
ठीक होने के आठ-दस दिन बाद,
न जाने किसने टोना-टोटका करा दिया;
हालत बिगड़ने लगी,
देशी दवा चली;
झाड़-फूँक करायी,
ढेड़-दो माह में ठीक हो पाया;
पढ़ाई के समय की बर्वादी हुई,
चिन्तित हुआ।
फिर भी;
परीक्षा में करीबी लक्ष्य को पाया,
मुझे समझ नहीं आता,
राम तूँ मेरे साथ ऐसा क्यूँ करता है।
तीसरी बार;
दिल्ली में हंसराज से स्नातक कर रहा था,
पहले सेमेस्टर की परीक्षा थी।
उसी वक्त;
मलेरिया से ग्रसित हो गया,
दो पेपर इसी हालात में दिए;
परीक्षा देकर अवकाश में जन्मभूमि आ गया,
पंद्रह-सोलह दिन घर पर आनन्द किया।
और आज फिर;
नव वर्ष को बुखार, साथ-साथ नौघेरा से पीड़ित हो गया,
मुझे समझ नहीं आता,
राम तूँ मेरे साथ ऐसा क्यूँ करता है।
ऐसे हालात;
सत्कर्मों का फल हैं,
या;
कुकर्मों की सजा,
तेरी महिमा;
मुझे समझ नहीं आती,
तेरी महिमा;
अपरम्पार है,
मुझे समझ नहीं आता,
राम तूँ मेरे साथ ऐसा क्यूँ करता है।
- कुशराज झाँसी
मुझे समझ नहीं आता,
मैं कुछ खास दिनों में बीमार क्यूँ पड़ता हूँ।
मैं परेशान, साथ-साथ परिजन परेशान होते हैं।
पहली बार,
शायद आठवीं-नवमी मेँ पढ़ता हूँगा।
गर्मियों के दिन थे;
स्कूल की छुट्टियाँ थीं,
इक दिन शाम को;
घर के पास वाले कुआँ पर नहा रहा था।
वहाँ से आकर;
परिजन ब्याई करने जा रहे थे,
मुझसे माँ ने कहा;
काकी को पने के लिये आम भूनने को देकर आओ,
तभी अचानक;
मैं धड़ाक से आँगन में गिर पड़ा।
परिजन घबरा गये;
बाई फूट-फूटकर रोने लगी,
चाहने वाले;
देखने घर पर आने लगे,
हालत गम्भीर होने लगी;
ढेड़-दो माह दवा चली,
स्वस्थ्य हो गया।
बस;
हुआ था मलेरिया।
मुझे समझ नहीं आता ,
राम तूँ मेरे साथ ऐसा क्यूँ करता है।
दूसरी बार,
इण्टरमीडिएट कर रहा था;
जीवविज्ञान की कोचिंग से लौटते वक्त,
अचानक;
नगर बरुआसागर चौक पर बेहोश होकर गिर पड़ा,
सहपाठियों ने अस्पताल पहुँचाया;
परिजनों को सूचित कराया।
इलाज हुआ,
ठीक हो गया।
बस;
हुआ था बुखार,
ठीक होने के आठ-दस दिन बाद,
न जाने किसने टोना-टोटका करा दिया;
हालत बिगड़ने लगी,
देशी दवा चली;
झाड़-फूँक करायी,
ढेड़-दो माह में ठीक हो पाया;
पढ़ाई के समय की बर्वादी हुई,
चिन्तित हुआ।
फिर भी;
परीक्षा में करीबी लक्ष्य को पाया,
मुझे समझ नहीं आता,
राम तूँ मेरे साथ ऐसा क्यूँ करता है।
तीसरी बार;
दिल्ली में हंसराज से स्नातक कर रहा था,
पहले सेमेस्टर की परीक्षा थी।
उसी वक्त;
मलेरिया से ग्रसित हो गया,
दो पेपर इसी हालात में दिए;
परीक्षा देकर अवकाश में जन्मभूमि आ गया,
पंद्रह-सोलह दिन घर पर आनन्द किया।
और आज फिर;
नव वर्ष को बुखार, साथ-साथ नौघेरा से पीड़ित हो गया,
मुझे समझ नहीं आता,
राम तूँ मेरे साथ ऐसा क्यूँ करता है।
ऐसे हालात;
सत्कर्मों का फल हैं,
या;
कुकर्मों की सजा,
तेरी महिमा;
मुझे समझ नहीं आती,
तेरी महिमा;
अपरम्पार है,
मुझे समझ नहीं आता,
राम तूँ मेरे साथ ऐसा क्यूँ करता है।
- कुशराज झाँसी
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