"अब मैं अबला नहीं, सबला हूँ।"


हे नारी! 
अब तुम अबला नहीँ; सबला हो
फिर भी तुम क्यूँ ठगी जाती हो?
मुझे समझ नहीँ आता
तुम जल्द ही किसी के प्रेमजाल में क्यूँ फँस जाती हो?
और हर बार तुम ही दोषी साबित होती हो
मैं ये नहीँ कहता - 
प्रेम करना बुरी बात है
लेकिन ये जरूर कहता हूँ - 
कि प्रेम सोच समझकर करो
क्यूँकि जमाना बदल गया है
और उसके साथ ही साथ लोग 
और उनकी सोच और मानसिकता भी
वो आज भी तुम्हें भोग-विलास की वस्तु समझते हैं
फिर भी तुम सब कुछ जानते हुए भी
अबला ही बनी रह जाती हो
अपने ठगियों को क्यूँ नहीँ समझाती हो
क्यूँकि अब तुम अबला नहीँ, सबला हो
तुम ईंट का जबाव पाथर से दो
जो तुम्हें ठगता है
उनसे कहो -
अब मैं अबला नहीँ, सबला हूँ
पहले मैं तुमको कई बार परखूँगी
फिर तुम्हारे प्रेमजाल में फसूँगी
अगर फिर भी तुम ठगोगे
तो तुम पर दया न बरतकर
तुम्हें उसकी कड़ी से कड़ी सजा दूँगी
यहाँ तक मौत भी
इसलिए सचेत करती हूँ -
अब तुम सुधर जाओ और सम्भल जाओ
मुझ पर अत्याचार करना बंद करो
क्या तुम्हें पता नहीँ -
कि जहाँ नारियों का सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते हैं
यदि तुम मेरा सम्मान नहीँ करोगे
तो मैं भी तुम्हारा सम्मान नहीँ करुँगी
अब मैं बार - बार मिलन - जुदाई के चक्कर में नहीँ फसूँगी
एक बार ही सोच - समझकर प्रेम करुँगी
अब मैं अबला नहीँ, सबला हूँ।

- कुशराज झाँसी

_ 22/4/2018 _ 4:32शाम _ दिल्ली

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