हे कुशराज! तू

आत्मप्रेरणादायी कविता - " हे कुशराज! तू "


हे कुशराज! तू ये मत सोच
तू कॉलेज में क्लास नहीँ करता
तू किताबें कम पढता है
तू हमेशा अतिरिक्त पाठ्यक्रम कार्यकलापों में लगा रहता है
तू हमेशा सामाजिक कार्य करता रहता है
तू लिखने और सोचने में ज्यादा व्यस्त रहता है
इसका मतलब ये नहीँ
तू कुछ नहीँ सीखता
तू सीखता है बहुत कुछ
तू करता है औरों से अलग
तू रहता है औरों से अलग
तू कई काम एक साथ करता है
लेकिन उनका लक्ष्य एक ही होता है
तू जिस काम को पकड़ता है
तू उसे परिपूर्ण करके मानता है
तू आत्मविश्वास रखता है
तू अतिविश्वास नहीँ 
तू जिसको पाने के लिए सोचता है
तू उसको हरहाल में पा ही लेता है
तू कभी - कभी ठगा भी जाता है
तू कभी - कभी अपनी मेहनत का फल नहीँ पा पाता है
फिर भी
तू हमेशा खुश रहता है
तू कभी भी दुःखी क्यूँ नहीँ होता? 
क्योंकि तू जानता हूँ जीवन में उतार - चढ़ाव आते रहते हैं
हर समय एक जैसा नहीँ होता
कभी न कभी फल जरूर मिलता है
तू लोगों की सब बातों पर ध्यान क्यों नहीँ देता
तू लोगों की सब बातें क्यों नहीँ मानता
क्योंकि तू जानता है लोग भला - बुरा कहते हैं
तो कहने दो
उनका काम ही कहना
लोगों का निंदा करना स्वभाव है
तू हमेशा अपनी अन्तरात्मा की सुनता है
तू हमेशा कुछ न कुछ करने में व्यस्त रहता है
और कहता है
काम करेगा जो - नाम करेगा वो
तू हर काम बड़े सोच - विचार कर करता है
तू लोगों से बहुत कुछ सीख लेता है
तू हमेशा नया करता रहता है
तू अपने में नूतनता लाता रहता है
तू  जिस काम में लगा हुआ है
उसी में पूरे जोश और होश के साथ लगा रह
तू उसी के लिए बना है
तुझे उसी में कामयाबी मिलेगी
तू उसी में खुश रहेगा
तेरे काम करने का अंदाज मिसाल बनेगा
यही तेरे जीवन का सार बनेगा

 
- कुशराज झाँसी

_ 21 / 5 / 2018 _ 3:55 दिन _ दिल्ली

           




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