Monday 25 June 2018

मेरे सपनों का समाज - कुशराज झाँसी

      भारतीय नारीवादी लेख : " मेरे सपनों का समाज "
            


      समाज में सच्ची दोस्ती लड़कों के बीच, लड़कियों के बीच होती है और लड़का - लड़की के बीच भी। लड़का - लड़की की दोस्ती ज्यादा सच्ची होती है। इस दोस्ती को लोग सच्चे प्यार का नाम देते हैं। मेरी दोस्ती भी अधिकतर लड़कियों से ही है।     

                       इस सन्दर्भ में मैं कहता हूँ - "मेरे सफल जीवन में स्त्रियों का हाथ रहा है। पुरुषों से ज्यादा स्त्रियों का साथ रहा है।।"

                              
मेरा मानना है कि लड़कियाँ लड़कों को कदापि धोखा नहीं देतीं और न ही वो लड़कों का साथ छोड़ती हैं। वो हमेशा साथ निभाती हैं। उनकी दोस्ती में सम्मान होता है। वो लड़कों का बहुत सम्मान करतीं हैं। जब लड़के उनका सम्मान करना बंद कर देते हैं तो वो भी उनका नहीँ करतीं। आजकल जीवन में अधिकतर कॉलेज लाइफ में लड़के लड़की से दोस्ती कर लेते हैं और उससे उसकी मर्जी से या जबर्दस्ती सेक्स करने के बाद लगभग छः माह के अंदर छोड़ देते हैं और फिर दूसरी लड़की को देखते हैं। उसके साथ भी पहली लड़की जैसा व्यवहार करते हैं। ऐसा ही सिलसिला चलता रहता है। विवाह के बाद भी लड़के लड़की की कोई कमी निकालकर या लड़की का चालचलन ठीक नहीँ है, कहकर उसे तलाक दे देते हैं और छोड़छुट्टि कर देते हैं। लड़के लड़कियों को सिर्फ मनोरंजन और भोग - वासना की वस्तु समझते हैं। लड़के हमेशा लड़कियों को ठगते रहते हैं। जब इन लड़कियों को पता चलता है कि उस लड़के ने हम लड़कियों को धोखा दिया। तब वे लड़के से बदला लेतीं हैं।

                             

इस सन्दर्भ में मेरी कविता "अब मैं अबला नहीं, सबला हूँ।" उल्लेखनीय है -:

हे नारी!
अब तुम अबला नहीँ; सबला हो
फिर भी तुम क्यूँ ठगी जाती हो?
मुझे समझ नहीँ आता
तुम जल्द ही किसी के प्रेमजाल में क्यूँ फँस जाती हो?
और हर बार तुम ही दोषी साबित होती हो
मैं ये नहीँ कहता -
प्रेम करना बुरी बात है
लेकिन ये जरूर कहता हूँ -
कि प्रेम सोच समझकर करो
क्यूँकि जमाना बदल गया है
और उसके साथ ही साथ लोग
और उनकी सोच और मानसिकता भी
वो आज भी तुम्हें भोग-विलास की वस्तु समझते हैं
फिर भी तुम सब कुछ जानते हुए भी
अबला ही बनी रह जाती हो
अपने ठगियों को क्यूँ नहीँ समझाती हो
क्यूँकि अब तुम अबला नहीँ, सबला हो
तुम ईंट का जबाव पाथर से दो
जो तुम्हें ठगता है
उनसे कहो -
अब मैं अबला नहीँ, सबला हूँ
पहले मैं तुमको कई बार परखूँगी
फिर तुम्हारे प्रेमजाल में फसूँगी
अगर फिर भी तुम ठगोगे
तो तुम पर दया न बरतकर
तुम्हें उसकी कड़ी से कड़ी सजा दूँगी
यहाँ तक मौत भी
इसलिए सचेत करती हूँ -
अब तुम सुधर जाओ और संभल जाओ
मुझ पर अत्याचार करना बंद करो
क्या तुम्हें पता नहीँ -
कि जहाँ नारियों का सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते हैं
यदि तुम मेरा सम्मान नहीँ करोगे
तो मैं भी तुम्हारा सम्मान नहीँ करुँगी
अब मैं बार - बार मिलन - जुदाई के चक्कर में नहीँ फसूँगी
एक बार ही सोच - समझकर प्रेम करुँगी
अब मैं अबला नहीँ, सबला हूँ।


                        बदला लेना भी चाहिए। जितना समाज पर अधिकार लड़कों का है उतना ही लड़कियों का भी। समाज हिन्दू धर्म में लड़कों को अधिकतम सात विवाह करने का अधिकार देता है और हिन्दुओं की ही उच्च जातियों जैसी ब्राह्मणों और क्षत्रियों में लड़की का दूसरा भी विवाह नहीँ होता। समाज लड़कियों को भी लड़कों के समान सात विवाह करने का अधिकार दे। उन्हें अपने अनुसार जीने का अधिकार दे। विवाह होने के बाद लड़के लड़कियों पर अपना अधिकार जमा लेते हैं और अपने अनुसार काम करने को बाध्य करते हैं। 

                             गाँवों में अधिकतर बुन्देली किसान माँ - बाप लड़कियों को दूर पढ़ने नहीँ भेजते। वे कहते हैं - " जमाना ख़राब चल रहा है। बेटी! तुमने आठ पास कर लिया, यही बहुत है।" गाँवों में यदि कोई लड़की जिद करके दूर जाकर पढ़ लेती है और उच्च शिक्षा ग्रहण कर उच्च पद पा लेती है। तो वो लड़की यदि प्रेमविवाह कर लेती है तो समाज कुछ नहीँ कहता और उसे ससम्मान स्वीकार करता है। यदि कोई अशिक्षित लड़की प्रेमविवाह करती है तो समाज उसका अपमान करता है। यहाँ तक उसके बिरादरी वाले ही उसे अपने यहाँ किसी सुअवसर जैसे - विवाह, जन्मोत्सव आदि पर नहीँ बुलाते और उसे बिरादरी से बंद कर देते हैं।

                              समाज में जिन लड़कियों के माँ - बाप ये बात कहकर लड़कियों को दूर पढ़ने नहीँ भेजते कि जमाना खराब चल रहा है। वो मेरी "अरे! इंसानों समय से साथ बदलो। तभी सब कुछ कर पाओगे।।" को अपनाकर अपनी सोच को उच्च करकर और अपने मन के भ्रमों को मिटाकर लड़कियों को दूर उच्च शिक्षा के लिए भेजेँ क्योंकि लड़का तो एक परिवार का नाम रौशन करता है और लड़की दो परिवारों एक अपने माँ - बाप के परिवार और दूसरा विवाहोपरान्त पति और सास - ससुर के परिवार का नाम रौशन करती है। इसलिए मैं कहता हूँ - "हर बुन्देली किसान माँ - बाप अपने बेटा - बेटियों को हरहाल में शिक्षा अवश्य दिलाएँ। मैं जानता हैं कि बुन्देलखण्ड में बहुत सूखा पड़ती है, पीने के पानी के लिए भी लोग मुहताज हैं। खेती होना तो दूर की बात। फिर भी मजदूरी करके या कर्ज लेकर बच्चों को शिक्षा अवश्य दिलाएँ क्योंकि शिक्षा के द्वारा ही सबकुछ प्राप्त किया जा सकता है। और ज़ल्द ही हमसब बुन्देलखण्डी युवाओं को शिक्षित कराकर अपनों सपनों का पृथक प्रान्त बुन्देलखण्ड राज्य निमार्ण कराएँ।"

                             हे बुन्देली किसान माँ - बाप! आप तो जानते ही हैं कि आप यदि अपनी लड़की को अधिकतम आठ पास ही कराते हैं और उच्च शिक्षा न दिलाकर उसका कम उम्र में ही विवाह कर देते हैं। विवाह में लड़के वालों की माँगकर के अनुसार दहेज नहीँ दे पाते हैं तो लड़के के परिवार वाले आपकी लड़की में कमियाँ निकालते हैं कि लड़की को खाना बनाना नहीँ आता, घर का काम करना नहीँ आता। और सुबह - शाम लड़की की सास उसे डाँटती रहती है और ताने देती रहती है। लड़की से सारे ससुराल वाले बुरी तरह बर्ताव करते हैं। यहाँ तक लड़का उसकी मारपीट भी करता है। और अंत में लड़की इन सब हालातों से तंग आकर फाँसी लगाकर, कुँए में गिरकर या आग लगाकर आत्महत्या कर लेती है या लड़का या उसके घर वाले लड़की की हत्या कर देते हैं।

                           आप अपनी लड़की की मृत्यु के बाद उसके ससुराल वाले हत्यारों का कुछ नहीँ कर पाते हैं। कुछ समय न्यायालय में मुकद्दमा चलता है और फिर राजीनामा होने से मुकद्दमा बंद हो जाता है। आपको सच्ची बात पता नहीँ चलती कि आपकी लड़की के साथ क्या हुआ, उसकी हत्या हुई या आत्महत्या, ये रहस्य ही बना रह जाता है और न ही सच्चा न्याय हाथ लगता है।

इसलिए मैं कहता हूँ - "आप लड़की को उच्च शिक्षा अवश्य दिलाइए। उच्च शिक्षा पाकर लड़की वकील, शिक्षिका और अधिकारी बनकर अपनी रक्षा स्वयं करेगी और साथ ही नारी सम्मान और आपके सम्मान की रक्षा करेगी। समाज में प्रचलित दहेज प्रथा जैसीं कुप्रथाओं का स्वयं अंत करेगी। लड़कों के समान ही लड़कियों के लिए अधिकार यानि समानाधिकार के लिए लड़ेगी और अधिकार प्राप्त करेगी। साथ ही साथ पर्दा प्रथा का भी अंत करेगी।"

               कहा भी जाता है - "पढ़ी - लिखी लड़की, रौशनी घर की।" जब समाज में हर लड़की शिक्षित हो जाएगी। तब समाज में व्याप्त हर समस्या जैसे - बलात्कार, आत्महत्या आदि का समाधान हो जाएगा।

 समाज में सभी नारियों का सम्मान करेंगे और
"लड़का - लड़की एकसमान। सबको शिक्षा सबका सम्मान।।" का नारा गूँज उठेगा। मनुस्मृति के अनुसार - "यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता।" का पालन सारा समाज करेगा।


    - कुशराज झाँसी 
   
_ 24 जून 2018 _ 5:48शाम _जरबौगांव


आलोचना ( Critical Views) -:

Kushraaz Sir has very beautifully explained the Relationship between a man and women in the beginning. Then the current scenario is presented, where the Girls are humiliated and betrayed by Men. With a lot of pain and anguish, through his poem He is encouraging the Girls to be strong and fight for themselves. In particular, Love Relationship is discussed in the poem.  Later, He discusses about his own place that is Bundelkhand and discusses the different Problems and Social evils prevalent. 
The Writer is trying to encourage people to extend their helping hands towards the progress of girls and he looks forward for a reform that will Change the plight of the Girls.

✍ Divyansha Khajuria (दिव्यांशा खजूरिया)
(साथी हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय)






           
                     
     

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