निबंध - नोटबंदी

निबंध / लेख : " नोटबंदी "

                   
* रुपरेखा -: 1. प्रस्तावना 2. नोटबंदी से लाभ - (क.) कालाधन का बाहर निकलना (ख.) भ्रष्टाचार में कमी (ग.) आतंकवाद में कमी 3.नोटबन्दी से हानि - (क.) समय की बर्बादी (ख.) आमजन की परेशानी (ग.) किसानों की परेशानी (घ.) मजदूरों की परेशानी (ङ) महँगाई 4. उपसंहार।
* 1. प्रस्तावना -: नोटबंदी अर्थात् नोटों का बंद होना। हमारे भारत देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने तारीख 8-9 नवम्बर 2016 को भारतीय मुद्रा नीति में परिवर्तन करते हुए निर्णय लिया कि आज 8-9 नवम्बर 2016 से भारतीय मुद्रा ₹500 और ₹1000 के नोट बंद किए जाते हैं। इन ₹500 और ₹1000 के नोटों के बदले नए ₹500 और ₹2000 के नोट चलाए जाएँगे यानि प्रचलित किए जाएँगे। परिणामस्वरूप ₹500 और ₹1000 के नोट बंद हुए और सारे भारत देश में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अफरा - तफरी मच गई। हमारे देश में नोटबंदी नामक कदम मोदी सरकार का देश के विकास में अहम कदम है और प्रशंसनीय कार्य है।
          नोटबंदी पर किसी की एक कविता अग्रलिखित है -
" जब से नोटबंदी हो गई है,
सियासत और भी गन्दी हो गयी है।
सुना है काश्मीर भी साँसे ले रहा है,
पत्थरों की आवाजें मंदीहो गई हैं।
जो चिल्ला कर हिसाब माँगते थे सरकार से,
वही लोग रो रहे हैं जब पाबंदी हो गई है।
आपस में झगड़ते थे दुश्मनों की तरह ,
उन नेताओं में आजकल रजामंदी हो गई है।
वतन के बदलने का एहसास है मुझको,
पर एक शख्स को हराने के लिए सियासत अंधी हो गई है। "
* 2. नोटबंदी से लाभ -: नोटबंदी से कई सार्थक लाभ हुए हैं। जिनका विवरण अग्रलिखित है -
(क.) कालाधन का बाहर निकलना -:
कालाधन - "देश के नागरिक के पास संचित बेहिसाब धन यानि जिस धन का कोई हिसाब न हो। अर्थात् नागरिक जिस धन को आयकर चोरी, रिश्वतखोरी और घोटाले आदि करके बचाता है। वह संपूर्ण धन 'कालाधन' कहलाता है।"
नोटबंदी की कालेधन को बाहर निकालने में अहम भूमिका है। नोटबंदी होने से व्यक्तियों के पास रखे कालेधन को बैंकों में जमा कराया गया और उस पर आयकर बसूला गया। जमा करने की अधिकतम सीमा से अधिक धन जमा करने पर हिसाब पूछा गया तो व्यक्तियों द्वारा हिसाब न देने पर धन को जब्त यानि नीलाम कर लिया गया।
इस प्रकार सरकार ने आयकर में बढ़ोत्तरी की और कालेधन को बाहर निकालकर उसका खात्मा किया और कालेधन की समस्या से मुक्ति पायी।
(ख.) भ्रष्टाचार में कमी -:
भ्रष्टाचार - "भ्रष्टाचार अर्थात् भ्रष्ट आचरण। किसी व्यक्ति द्वारा नैतिकता और कानून के विरुद्ध आचरण करना 'भ्रष्टाचार' कहलाता है।"
भ्रष्टाचार हमारे देश में चरम सीमा पर पहुँच चुका है। इसके प्रमुख उदाहरण - रिश्वतखोरी, भाई - भतीजावाद, मुनाफाखोरी आदि हैं।
नोटबंदी होने से लोगों के पास बेहिसाब धन अर्थात् कालाधन नहीं बचा हुआ है। जिससे अब लोग रिश्वतखोरी (अर्थात् जिस काम के लिए किसी व्यक्ति को धन मिलता है फिर भी वह अन्य व्यक्ति से जो अतिरिक्त धन लेता है, वह 'रिश्वत' कहलाती है और यह प्रक्रिया 'रिश्वतखोरी' कहलाती है।) के लिए धन नहीँ बचा है। इसलिए रिश्वतखोरी में कमी आयी है। इसी प्रकार कई राजनेता किसी नौकरी के पद पर अपने ही सगे - संबंधियों को धन देकर या अन्य हथकण्डे अपनाकर आसीन कराते हैं। परन्तु अब नोटबंदी होने से इसमें भी पर्याप्त कमी आयी है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नोटबंदी होने से भ्रष्टाचार में पर्याप्त कमी आयी है।
(ग.) आतंकवाद में कमी -:
आतंकवाद - "आतंकवाद का अर्थ है - आतंक + वाद से बने इस शब्द का सामान्य अर्थ है आतंक का सिद्धांत। 'आतंक' का अर्थ होता है - पीड़ा, डर, आशंका। आतंक फैलाने वाले आतंकवादी कहलाते हैं। ये समाज के ऐसे अंग हैं, जिनका परम काम आतंकवाद के माध्यम से किसी धर्म, समाज या राजनीति का समर्थन कराना होता है।
आतंकवादी यह नहीँ जानते हैं कि -
"कौन कहता है कि मौत को अंजाम होना चाहिए।
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी का पैग़ाम होना चाहिए।।"
नोटबंदी होने से आतंकवाद में काफी कमी आयी है क्योंकि आतंकवाद के लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता पड़ती है। आतंकवादियों को आतंक फैलाने के लिए बम, हथियार और वाहन आदि आतंक सामग्री की व्यवस्था करनी होती है। जिसके लिए हमारे बीच के ही कुछ लोग इन्हें धन देते हैं। परंतु अब हमारे बीच के लोगों के पास बेहिसाब धन, अधिक धन बचा ही नहीँ है। तो ये आतंकवादियों को देंगे कहाँ से। इसलिए अब जब धन ही नहीँ है तो आतंकवाद कैसे होगा? अतः हम निष्कर्ष रूप में कहते हैं कि नोटबंदी होने से आतंकवाद में पर्याप्त कमी आयी है।
इस प्रकार नोटबंदी से होने वाले लाभों की पुष्टि होती है।
* 3. नोटबंदी से हानि -: नोटबंदी से कुछ हानियाँ भी हुई हैं। जिनका विवरण अग्रलिखित है -
(क.) समय की बर्बादी -: नोटबंदी होने से आमजन से लेकर अरबपतियों तक को बैंकों और डाकघरों में कतार में लगकर धन जमा करना पड़ा है। जिससे इनके अमूल्य समय की बर्बादी हुई है। जिस समय में ये अपना काम सुचारू रूप से कर सकते थे, उस समय की बर्बादी हुई है। परिणामस्वरूप इन्हें अपार हानि पहुँची है।
जैसे - अरबपतियों के मिनिटों में करोड़ों के धन्धे संपन्न होते हैं और ये धन कमाते हैं। इसी प्रकार आमजन या वो जो मजदूरी करता है या कृषि। मजदूर भी अपनी मजदूरी ठीक से नहीँ कर पाया है और न ही किसान अपनी खेती में भलीभाँति ध्यान दे पाया है। जिससे इन्हें भी पर्याप्त ठेस पहुँची है।
             अतः हम कहते हैं कि समय की बर्बादी के साथ - साथ आमजन से लेकर अरबपतियों तक सभी को हानि पहुँची है।
(ख.) आमजन की परेशानी -: नोटबंदी होने से आमजन को कई परेशानियाँ हुईं हैं। जैसे - यदि नोटबंदी के समय नवम्बर - दिसम्बर में आमजन को अपने लिए आवश्यक वस्तुएँ खरीदने में तथा परिवार की जीविका चलाने में काफी परेशानी हुई है। क्योंकि बाजार और कार्यालयों आदि में ₹500 और ₹1000 के नोट चलना बंद हो गए थे। ये नोट सिर्फ अस्पतालों और पेट्रोलपम्पों पर ही सामान्यतया चलन में थे। बाकी के शेष स्थानों पर जैसे - बाजार से यदि आमजन को खाद्य - सामग्री अथवा रोजाना की आवश्यक वस्तुएँ खरीदना है तो उसने इस समय अपने को असमर्थ पाया है और बेहद परशानी महसूस की है। समाज में ही यदि किसी व्यक्ति के पुत्र या पुत्री का विवाह सम्पन्न होना है तो वह भी नोटबंदी के समय सम्पन्न नहीँ हो पाया है।
           इसी प्रकार अनेक प्रकार की आमजन को परेशानियाँ झेलनी पड़ी हैं।
(ग.) किसानों की परेशानी -: हम सभी जानते हैं कि हमारा भारत देश  प्रमुख कृषिप्रधान देश है। यहाँ लगभग 70% आबादी कृषि करती है। नोटबंदी होने से किसानों को अनेक परेशानियाँ आयीं हैं। जैसे - नोटबंदी के समय यानि नवम्बर - दिसम्बर माह में किसानों को रबी की फसल - गेहूँ, जौ, चना, मटर, आलू आदि बोने के लिए धन की आवश्यकता पड़ी है। परंतु नोटबंदी होने से किसानों ने अपनी आवश्यकताओं को ठीक से पूरा नहीँ पर पाया है क्योंकि बैंकों से धन वापिस नहीँ निकल पा रहा था। केवल जमा हो रहा था। इसलिए किसानों की परेशानियों का समाधान नहीँ हो पा रहा था। कुछ दिनों पश्चात मुद्रा - विनिमय की स्थिति सामान्य हो गई। परिणामस्वरूप परेशानियों का समाधान हो गया।
(घ.) मजदूरों की परेशानी -: हमारे देश में कुछ लोग मजदूरी करके ही अपनी जीविका कमाते हैं। लेकिन नोटबंदी के समय इन्होंने मजदूरी नहीँ कर पायी है क्योंकि सारे देश में अफरा - तफरी, उथल - पुथल मची हुई थी। सारे देशवासी अपना धन बैंको, डाकघरों आदि में जमा करने में व्यस्त थे। कहीं भी मजदूरी कार्य नहीं चल रहा था, जिससे मजदूर अपनी जीविका चलाने यानि भोजन, रोजाना की आवश्यक सामग्री खरीदने में असमर्थ रहे। यही मजदूरों की सबसे बड़ी परेशानी रही।
(ङ) महँगाई -: नोटबंदी के समय महँगाई अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी थी। बाजार में नोट नहीँ चल रहे थे। लोगों के पास जो भी छोटे नोट जैसे - सौ, पचास, दस आदि और जो भी सिक्के ₹10, ₹5, ₹2, ₹1 आदि थे। उनसे उन्होंने आवश्यकताओं की पूर्ति की और हर वस्तु को महँगे दामों पर खरीदा। समाचारों में मैंने देखा कि नोटबंदी होने के दो - तीन दिन तक नमक ₹300 -₹400 प्रति किलोग्राम दर से बिका और अन्य चीजें भी महँगी हुईं। विदेशों से आयात - निर्यात रुक गया। देश में जो वस्तुएँ कम मात्रा में थी, वह महँगी हुईं और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध वस्तुएँ सामान्य रहीं।
            इस प्रकार नोटबंदी का महँगाई पर प्रभाव पड़ा।
           अतः इस प्रकार नोटबन्दी से होने वाली हानियों की पुष्टि होती है।
* 4. उपसंहार -: अतः इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नोटबंदी हमारे देश की महती आवश्यकता थी। नोटबंदी सरकार की महती उपलब्धि है। नोटबंदी निवर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का सराहनीय कार्य है। नोटबंदी होने से देश की और वैश्विक समस्याओं जैसे - भ्रष्टाचार, आतंकवाद, कालाधन आदि जटिल समस्याओं से छुटकारा पाने में पर्याप्त मदद मिली है। देश में इन समस्याओं से निजात भी मिला है। अतः नोटबंदी एक महान कार्य है।
              नोटबंदी पर स्वरचित पंक्तियाँ आपसे साझा कर रहा हूँ।
     "नोटबंदी से कालाधन बाहर निकला,
       घटा आतंकवाद - भ्रष्टाचार।
      सरकार का जो खूब प्रशंसनीय कार्य,
      शत् - शत् धन्य हो मोदी ख्याति पाओ अपार।।

          
- कुशराज झाँसी 

_ 14 नवम्बर 2016 _ 11:45दिन _ बरूआसागर




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