हकीकत
कविता - " हकीकत "
हम उसे समझ गए, वो मुझे समझ न पायी।
मोह-माया जाल में फँसे थे हम, अंदर से आवाज आयी।।
बेटा! इस जग में सब नश्वर है, अमर है केवल नाम;
पूरे मन से तूँ काम कर, जग जानेगा तेरा नाम।
इक दिन, वो भी सोचेगी लेकर तेरा नाम;
क्या नेक वंदा था, जिसे मैंने ठुकराया।
उसने मुझे सही ठुकराया, मेरा ऐसा सुवक्त बनाया।
मैं धन्यवाद् देता हूँ उसे, जिसने मुझे इस काबिल बनाया।।
- कुशराज झाँसी
_7/10/2018_ 9:58रात _ दिल्ली
Comments
Post a Comment