Sunday 21 October 2018

सभ्य समाज - उज्जवल भारत

कविता - "उद्धार"

शरहद से फांसले अनेक,
पर हम सबका मालिक एक।

दिलों में है नफ़रत का जहर
शहरों में दरिंदों के खौफ़ का कहर

भारत माता का नारा लग रहा
देवी मां का जयकारा भी दोहरा रहा
फिर भी नारी का सम्मान क्यों नहीँ हो रहा

जिन हाथों ने चलना सिखाया
उन्हें बेसहारा कर दिखाया
आखिर क्यों ये दिन दिखलाया

उन्हें जीते जी क्यों मार गिराया
नाइंसाफी का सिलसिला बहुत बढ़ा है
हमारी आँखों में पानी भरा है

हम ने भी अब उद्धार करना है ठाना
अपने देश को जन्नत बनाना।

✍ दिव्यांशा खजूरिया

'उद्धार' नामक कविता में दिव्यांशा जी ने आज के भारत देश के हालातों को बखूबी चित्रित किया है। शरहद यानि जाति, धर्म आदि के आधार पर हम इंसान आपस में बँट गये हैं जो सत्य है। हम सबका मालिक एक नहीँ है। किसी का मालिक भगवान राम है तो किसी का अल्लाह। किसी का मालिक भगवान बुद्ध है तो किसी का ईसा मसीह और किसी का बिरसा मुण्डा। इस विभाजन से इंसानों में एक - दूसरे के प्रति नफ़रत पैदा हो गयी है और साथ – साथ दरिन्दों का कहर हद से ज्यादा बढ़ गया है। जिसका जीता जागता उदाहरण आशिफा और गीता जैसीं मासूम कन्याओं का बलात्कार है। जो बहुत गलत है। इसे बड़े सिरे से रोकना है। जिसे अब मीटू अभियान के तहत रोक भी जा रहा है। इस दरिंदगी को को ख़त्म करने और नारियों को उनका सम्मान दिलाने का दिव्यांशा जी ने संकल्प लिया है। हम भी उनके साथ है और आप सभी से भी विनम्र निवेदन करते हैं कि इस संकल्प को सिद्धि तक पहुँचाने में पूरा साथ दें। कोई एक किसी काम की शुरुआत करता है लेकिन वो हम सबका साथ लेकर उस काम को बड़े बेहतर तरीके से सम्पन्न कर लेता है। इसलिए हम सब साथ मिलकर अपने देश और दुनिया से दरिंदगी, बलात्कार, यौन शोषण, अत्याचार, आतंकवाद और भ्रष्टाचार को जड़ से ख़त्म करेंगे और सभ्य समाज का निर्माण करेंगे। अपने देश में फिर से रामराज्य की स्थापना करके जन्नत का अनुभव करेंगे और दुनिया के समक्ष अनोखा उदाहरण पेश करेंगे।

- कुशराज झाँसी

- 21/10/2018_3:35दिन _ दिल्ली

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