लेख : जागो हिन्दुस्तानी! जागो
डिजिटल समाज होना, मानवीय मूल्यों का खोना, रिश्तों की कोई अहमियत नहीँ होना आदि ये सब हम हिन्दुस्तानियों द्वारा पश्चिमी सभ्यता (यूरोपीय संस्कृति) को अपनाने का फल है। आज हम हिन्दुस्तानी उसी संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं, जिस संस्कृति में औद्योगिक क्रांति आने से सारा काम मशीनों से होने लगा। मशीनीकरण की दुनिया एकांत और सुनसान है। जहाँ अपनी पत्नी और बच्चों के सिवाय कोई अपना नहीँ है। यहाँ तक की मशीनें भी। जो मशीने हमारे ऑर्डर से सारा काम करती हैं, वही हमारी चूक से या वो अपनी मर्जी से हमारे प्राण भी ले लेतीं हैं, जिन्हें हम दुर्घटना का नाम देते हैं और इससे ज्यादा कुछ नहीँ। हमारी भारतीय संस्कृति (हिन्दू सभ्यता) में पहले भी ऋषि - मुनि विज्ञान के बल पर कई काम करते रहेेे हैं। जो हम आज यज्ञ करते हैं, वह हमारी अनादि काल से परंपरा रही है। जिससे वैज्ञानिक दृष्टि से पर्यावरण शुद्ध होता है और अनुकूल वातावरण का सृजन होता है। हमारे गाँवो में भी कहीं - कहीं संयुक्त परिवार मिल जाते हैं। जो मिशाल कायम कर रहे हैं। हम कितने भी आधुनिक हो जाएँ। लेकिन हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता, रीति - रिवाजों को नहीँ भूलना चाहिए। हमें मशीनी का प्रयोग तो करना चाहिए लेकिन एक सीमा के अन्दर ताकि हम कुछ काम अपने हाथों भी कर सकें और आलसी न बन पाएँ। हमें खुद बदलना होगा और आगे आना होगा अपने इस गुमराह समाज को भारतीय संस्कारों से सुसम्पन्न समाज बनाने के लिए। अपनी मातृभाषा हिंदी के विकास के लिए और अपनी संस्कृति और सभ्यता के विकास के लिए।
" हे हिन्दुस्तानी! पश्चिमी सभ्यता को इसी तरह अपनाओगे।
तो जल्द ही तुम अपना अस्तित्त्व नहीं बचा पाओगे।
इसी तरह विदेशी माल खरीदते जाओगे।
तो एक दिन अपना ही माल अपनों को ही नहीँ बेच पाओगे।
इसलिए सचेत हो जाओ।
यदि अपना अस्तित्त्व नहीँ खोना है।
तो भारतीय संस्कृति और मातृभाषा हिंदी का विकास करना है।
सबसे पहले तुम्हें खुद अपनी संस्कृति के अनुसार चलना है।
साथ ही साथ सारा कामकाज हिंदी में ही करना है।।"
- कुशराज झाँसी
_ 19/12/2018_6:45भोर _ जरबौगॉंव
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