संस्मरण : नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2019 - कुशराज झाँसी

संस्मरण - " नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2019 " 


विश्व पुस्तक मेला घूमने की मेरी बड़ी प्रबल इच्छा थी। जो जाकर आज तारीख 6 जनवरी सन 2019 को पूरी हुई। दरअसल ये मेरा दूसरा पुस्तक मेला है जिसके बारे में बहुत खूब सुना था। पिछले साल भी पुस्तक मेला जाना था लेकिन ईस्वी नव वर्ष के शुभारम्भ एक जनवरी से ही चेचक यानी चिकन पॉक्स (बड़ी माता) से ग्रसित हो गया। पूरे चौदह दिन में ठीक हो पाया। शरीर कमजोर हो गया था। सारे बदन के साथ - साथ चेहरे पर भी दाने के स्पॉट बन गए थे। दूसरा सेमेस्टर एक जनवरी से ही प्रारम्भ हो गया था लेकिन मैं मकर संक्रांति महापर्व के दिन 15 जनवरी की रात में जन्मभूमि झाँसी बुन्देलखण्ड से कर्मभूमि दिल्ली आ पहुँचा। अगले ही दिन अपने हंसराज कॉलेज में सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार 'तेजेन्द्र शर्मा जी', महान लेखिका ' काउंसलर जकिया जुबैरी जी' और मीडिया विशेषज महोदया 'डॉ. रमा जी', प्राचार्या हंसराज कॉलेज का एक साहित्यिक कार्यक्रम था। जिसमें अपने सहपाठी मित्रों, शिक्षकों, साहित्यसेवियों और हिंदीप्रेमियों के साथ प्रतिभाग किया। 

मेरे दिल्ली आने के एक - दो दिन पहले ही विश्व पुस्तक मेला 2018 समाप्त हो चुका था। लेकिन इस साल मैंने घर पर दृढ़ निश्चय कर लिया था कि पुस्तक मेला अवश्य जाऊँगा इसलिए 31 दिसम्बर की रात को ही दिल्ली आ गया था। घर पर किसानी का कार्य बड़ा जोरों पर चल रहा था। मताई - बाप और कक्का - काकी मजूरों को साथ लेकर आलू खुदवाते थे और दादाजी पीताराम कुशवाहा आलू बेचने सब्जी मण्डी झाँसी जाते थे। दादी छोटे भाई - बहिनों के साथ नगर बरुआसागर में रहती थीं क्योंकि ये सब यहीँ से स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। छुट्टियों के चौदह - पन्द्रह दिनों के बीच कभी अपने गाँव जरबौ में रहा तो कभी पुष्पा बुआ के यहाँ ग्राम बांसार बिजना और कभी नगर बरुआसागर।

गाँव में खेतों पर हरियाली देखकर तो थोड़ा बहुत अच्छा लगता था। दो - तीन साल के बाद तो अच्छी बारिश हुई थी। इससे पहले तो भयंकर सूखा पड़ रही थी। सब क्षेत्रवासी दाने - दाने को मुहताज हो रहे थे। सारा बुन्देलखण्ड सूखे की मार को झेल रहा था। बूँद - बूँद पानी को तरस रहा था लेकिन इस साल अच्छी बारिश हो गयी तो फसलों के दाम गिर गए। फायदे की तो दूर की बात, फसल की लागत तक निकालना मुश्किल पड़ रहा है। मजूरों को भी खेतों में मजूरी नहीँ मिल रही है क्योंकि किसान को फसल से नाममात्र की आमदनी हो रही है। सारी दुनिया की भूख मिटाने वाला किसान खुद अपना पेट नहीँ भर पा रहा है। अच्छे ढंग से जीविका नहीँ चला पा रहा है।

शिक्षा का बाजारीकरण होने से महँगी शिक्षा अपने बच्चों को नहीँ दिला पा रहा है। किसान के बेटे - बेटियाँ अच्छी शिक्षा प्राप्त नहीँ कर पा रहें हैं। देश की आधे से ज्यादा आबादी वाले किसानों के युवा बेटे - बेटियाँ ही नहीँ शिक्षा पा पाएँगे तो भारत का भविष्य कैसे उज्ज्वल होगा? भारत कैसे विकसित देश बनेगा? और कैसे पुनः विश्वगुरू बनकर उभरेगा। इस ओर हम सबको ध्यान केंद्रित करने की सख्त जरूरत है क्योंकि भारत 'किसानों का देश' है। ग्रामीण सरकारी स्कूलों और प्राईवेट कॉलेजों के साथ ही कुछ सरकारी कॉलेजों की हालात बड़ी खराब है। स्कूलों में क्लासें तो होती है लेकिन सुव्यवस्थित पढ़ाई नहीँ कराई जाती। बच्चों को अंग्रेज मैकाले की शिक्षा - पद्धति पर आधारित वर्तमान शिक्षा से भारतीय संस्कृति का ज्ञान नाममात्र का ही हो पा रहा है। हम सब संस्कारों और मानवीय मूल्यों को खोते जा रहे हैं। अब जरूरत है भारतीय संस्कृति और भारतीय शिक्षा - पद्धति का प्रचार - प्रसार करने की।

कुछ तथाकथित शिक्षक छात्रों के मिड-डे-मील का सामान अपने घर चोरी से ले जाकर देश के भविष्य इन छात्रों का हक मारकर अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं। कुछ तथाकथित कॉलेजों में छात्र - छात्रायें दाखिला तो ले लेते हैं लेकिन सिर्फ और सिर्फ परीक्षाएँ देने जाते हैं और सारा साल आवारागर्दी में गुजार देते हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में शिक्षा - व्यवस्था के ऐसे सोचनीय और निंदनीय हालातों को देखते हुए - "मैं सरकार से माँग करता हूँ कि स्कूलों में सीसीटीवी कैमरों पर नजर रखी जाए। माह में दो बार अभिभावकों की मीटिंग बुलाई जाए और निरंतर स्कूलों का निरीक्षण किया जाए। साथ ही साथ मिड-डे-मील हजम करने वाले शिक्षकों को सजा दी जाए। तथाकथित कॉलेजों को बन्द कर दिया जाए। तभी किसान और आमजन के बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर पाएँगे और देश का कल्याण हो सकेगा।"

चौथे सेमेस्टर की शुरुआत एक जनवरी से ही कॉलेज अटेण्ड किया। संयोगवश इस दिन मंगलवार था इसलिए आर्यसमाजी कॉलेज होने के नाते, माह से पहले इस मंगलवार को भी हर बार की भाँति वैदिक यज्ञ में जाकर पुण्य कार्य किया और 4 जनवरी को सभागार में कॉलेज प्राचार्या महोदया डॉ. रमा मैम को बड़े हर्षोल्लास के साथ जन्मोत्सव मनाया। चारों दिन क्लासें अटेण्ड कीं और 5 जनवरी को कॉलेज की छुट्टी होने के बावजूद इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित महोत्सव 'अयोध्या पर्व' में प्रतिभाग किया। "राम के आयाम" विषय पर परिसंवाद और "हम भारतीय अपनी सांस्कृतिक-ऐतिहासिक धरोहर के प्रति गम्भीर नहीँ हैं।" विषय पर अंतर महाविद्यालयीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में सक्रिय योगदान दिया और पर्व में अयोध्या के खान - पान और लोक - परम्परा एवं संस्कृति का आनंद लेते हुए कला केंद्र का शोधपूर्ण भ्रमण भी किया। शाम आठ बजे फ्लैट आ पाया। बहुत थक  चुके थे क्योंकि लगातार दो दिन से कार्यक्रमों में जा रहा था।

अभिषेक भैया से पुस्तक मेला साथ चलने की बात पहले से ही थी। रात में निश्चय हो गया कि सुबह साढ़े दस बजे विश्वविद्यालय मेट्रो से मेले के लिए निकल लेंगे। मैंने मेले संबंधित फोन पर उमांशी, अदिति, विभव, श्रीकृष्णा और रूपाली से भी बात की। उमांशी, अदिति और रूपाली साथ चलने को तैयार हुईं। लेकिन सुबह रिमझिम - रिमझिम बारिश हो रही थी जिससे कड़ाके की ठण्ड भी लग रही थी। इसलिए इन तीनों ने जाने से मना कर दिया। बारिश में भीगते हुए जैसे ही साढ़े नौ बजे फ्लैट से मुकीमपुरा गली से मैन रोड पहुँचा तो गली में एक बिजली का तार टूटकर नीचे गिर पड़ा था जिसे निगम पार्षद गुड्डी आंटी को फोनकर सही कराया और रिक्शे से विश्वविद्यालय मेट्रो पहुँचकर अभिषेक भैया को साथ लिया और मेट्रो से ही प्रगति मैदान पहुँच लिए।

इस वर्ष 5 से 13 जनवरी के बीच प्रगति मैदान में लगे एशिया से सबसे बड़े पुस्तक मेले 'नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला' में साढ़े ग्यारह बजे जा पहुँचे। दोनों का प्रवेश टिकट लेकर भारतीय भाषा के प्रकाशक हॉल संख्या 12 (ए) में पहुँचकर सर्वप्रथम दृष्टि - द विजन आईएएस कॉचिंग के स्टॉल पर यूपीएससी संबंधित पुस्तकें देखकर, राजकमल, लोकभारती और राधाकृष्ण प्रकाशन के संयुक्त स्टॉल से मैला आँचल - फणीश्वरनाथ रेणु, भारत-भारती - राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, कामायनी - जयशंकर प्रसाद, ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद, एक किशोरी की डायरी - अने फ्रांक, प्राचीन भारत में राजनीतिक विचार एवं संस्थाएँ - रामशरण शर्मा और प्रतिनिधि कहानियाँ - मुंशी प्रेमचंद जैसी कालजयी कृतियाँ खरीदीं तो अन्य स्टॉल से हंस पत्रिका का हिंदी सिनेमा के सौ साल विशेषांक और नवसंचार के जनाचार विशेषांक खरीदे। उर्दू भाषा के स्टॉल से कुरआन मजीद और कुरआन का समझना हुआ आसान जैसे धर्मग्रंथ खरीदे तो लोकभारती प्रकाशन के दूसरे स्टॉल से बुंदेली शब्दकोश - डॉ. रंजना मिश्रा और बुन्देलखण्ड : सांस्कृतिक वैभव - डॉ. रंजना मिश्रा जैसे मातृभाषा संबंधित ग्रन्थ खरीदे। साथ ही साथ हिन्द युग्म के स्टॉल से विख्यात उपन्यास डार्क हॉर्स - नीलोत्पल मृणाल खरीदा और आर्यसमाजी धर्मप्रचारकों से सिर्फ दस रुपये में सत्यार्थ प्रकाश - स्वामी दयानंद सरस्वती लिया। 

ईसाई धर्मप्रचारकों ने पवित्र शास्त्र नाम से बाइबिल का हिंदी अनुवाद मुफ्त में ही पकड़ा दिया। अभिषेक भैया की कला स्नातक हिंदी विशेष, दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम संबंधित लोक -नाट्य, हिंदी रंगमंच, इतिहास और आलोचना पर किसी भी स्टॉल पर बहुत ढूँढने के बावजूद भी कोई पुस्तक न मिली। जिससे भैया को और मुझे बड़ी निराशा हुई कि इतने बड़े मेले में पाठ्यक्रम की ही पुस्तकें नहीँ मिल रही हैं और विश्वविख्यात महान कृतियाँ तो हर जगह मिल रही हैं। वहीँ मेले में सहपाठी मित्र आशुतोष, अनिल, अमनप्रताप और सुयश भैया, अनुपम भैया के साथ ही साथ ही साथ महिपाल, नितेश मिश्रा, शैलेंद्र गुप्ता, उमांशी और अंकित यादव भी मिले।  जलपान करके शाम पाँच हम आशुतोष लोग मेले से घर के लिए रवाना हुए। घर पर मेला घूमकर बहुत सुखद अनुभव हुआ। जितने प्रकार की पुस्तकें आज देखीं उतनी मैंने अभी तक नहीँ देखी थीं इसलिए विश्व पुस्तक मेला में सभी का जाना चाहिए और पुस्तकें खरीदकर अच्छे से अध्ययन करना चाहिए। पुस्तकें पढ़ने से ज्ञान बढ़ाना चाहिए और अपना बौद्धिक विकास करना चाहिए। मैंने कहा भी है - "पुस्तक में है सारा संसार समाया। इसे अनेक विद्वानों ने बनाया।।"

     ✍ कुशराज झाँसी

_ 6/1/2019_11:20 रात _ दिल्ली

#कुशराज
#संस्मरण
#विश्वपुस्तकमेला
#प्रगतिमैदान
#नईदिल्ली
#पुस्तक
#Kushraaz
#WorldBookFair
#NewDelhi
#Books
#2019



Comments