सब समान हों - कुशराज झाँसी

कविता - " सब समान हों "


चाहे हों दिव्यांग जन
चाहे हों अछूत
कोई न रहे वंचित
सबको मिले शिक्षा
कोई न माँगे भिक्षा

दुनिया की भूख मिटानेवाला
किसान कभी न करे आत्महत्या
किसी पर कर्ज का न बोझ हो
सबके चेहरे पर नई उमंग और ओज हो

न कोई ऊँचा 
न कोई नीचा
सब जीव समान हों
हम सब भी समान हों

न कोई बनिया नाजायज ब्याज ले
न कोई कन्यादान के संग दहेज ले
कोई बहु - बेटी पर्दे में न रहे
सबको दुनिया की असलीयत दिखती रहे

कोई न स्त्री को हीन माने
वह साहस की ज्वाला है
अब तक वह चुप रही
तो हुआ ये

सिर्फ मानवता की हीनता
और हैवानियत का चरमोत्कर्ष
अब सब कुरीतियों - असमानताओं को मिटाना है
मानवता और विश्व शांति लाना है

✍ कुशराज झाँसी

 _14/1/2019_11:56 रात _ दिल्ली


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