कविता : मत रुकना तूँ - कुशराज झाँसी

आत्मप्रेरणादायी कविता - " मत रुकना तूँ "



मत रुकना तूँ कभी मत रुकना तूँ
समाज बदलना है तुझे
देश बदलना है तुझे
विश्व - कल्याण करना है तुझे
दुनिया में शांति लाना है तुझे
मत रुकना तूँ कभी मत रुकना तूँ

जानता हूँ तूँ अकेला बढ़ रहा है
समाज - देश की समस्याओं पर विचार रहा है
तूँ ऐसा परिवर्तन लाना चाह रहा है
जहाँ स्त्री - पुरुष सब समान हों
मत रुकना तूँ कभी मत रुकना तूँ

तुझे सबको शिक्षा दिलाना है
स्त्रियों को भी उनका हक दिलाना है
विचारजगत में किसान - विमर्श लाना है
अन्नदाता किसानों की आय कई गुना बढ़ाना है
मत रुकना तूँ कभी मत रुकना तूँ

तुझे देश कल्याण हेतु हिंदी को राष्ट्रभाषा बनवाना है
हिंदी को विश्वभाषा बनाकर विश्वकल्याण करना है
स्वदेशी को अपनाकर विदेशी को भगाना है
भारतीय संस्कृति का विश्वविजयी झण्डा लहराना है
मत रुकना तूँ कभी मत रुकना तूँ

स्त्रियों पर हो रहे दुष्कर्मों को रोकना है
सबसे पहले स्त्रियों को ही शिक्षा देकर जागरूक करना है
अत्याचारी - बलात्कारियों को मौत के घाट उतारना है
तुझे समाज सुधारकर देश बदलना है
मत रुकना तूँ कभी मत रुकना तूँ

✍ कुशराज झाँसी

 _14/1/2019_11:34 रात _ दिल्ली


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