तुम नहीं रोक सकते - कुशराज झाँसी
कविता - " तुम नहीं रोक सकते "
तुम सब कुछ देखते हो,
बिना रोक - टोक के।
फिर हम क्यों न देखें?
ये दुनिया।
बिना रोक - टोक के।
फिर हम क्यों न देखें?
ये दुनिया।
हम भी देखेंगे असलीपन,
इस समाज का।
परम्पराएँ तोड़ेंगे।
पर्दा नहीँ करेंगे।
घूँघट नहीँ करेंगे।
न ही चेहरा ढ़केंगे।
इस समाज का।
परम्पराएँ तोड़ेंगे।
पर्दा नहीँ करेंगे।
घूँघट नहीँ करेंगे।
न ही चेहरा ढ़केंगे।
तुम नहीँ रोक सकते।
नहीँ रोक सकते हमें।
किसी भी हाल में.......।
नहीँ रोक सकते हमें।
किसी भी हाल में.......।
✍ कुशराज झाँसी
(झाँसी बुन्देलखण्ड)
(झाँसी बुन्देलखण्ड)
__6/2/2019 _11:00 दिन _ दिल्ली
कुशराज झाँसी
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