Monday 21 October 2019

देश को विकसित बनाने के लिए जनता को करनी होगी क्रान्ति ...


    21वीं सदी को विकास की सदी की संज्ञा देना ठीक है क्योंकि इसी सदी में ही हर क्षेत्र में विकास हो रहा है, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी, इंटरनेट और सोशल मीडिया की अहम भूमिका है। इंटरनेट के कारण हर खबर क्षण भर में सारी दुनिया में फैल रही है और इसके कारण ही भाषा, समाज और संस्कृति में कई सार्थक परिवर्तन हुए हैं।

    हर क्षेत्र में परिवर्तन होने भी चाहिए क्योंकि क्रान्ति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं। आज भारत में इंटरनेट और सोशल मीडिया का प्रयोग ज़ोरों पर हो रहा है। गाँव-गाँव में सोशल मीडिया का सार्थक उपयोग होते हुए देखा जा रहा है। जो खबरें और समाचार अखबारों और पत्रिकाओं में कुछ घंटों बाद मिलती थीं, वह सोशल मीडिया पर तत्काल मिल रही है, वह भी अधिक प्रमाणिकता के साथ।
    सोशल मीडिया ने हर आदमी को अभिव्यक्ति की सच्ची आज़ादी दी है। यह दौर है, बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे अर्थात् अपनी हर बात सब तक बेझिझक पहुंचाने का। हर लेखक को सच्चाई लिखकर समाज का सही मार्गदर्शन करके विश्व कल्याण में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

    आज कुछ लेखक अच्छा कर रहे हैं -
    आज युवा लेखक और नए लेखक बहुत बेहतर कर रहे हैं लेकिन स्थापित लेखक नहीं। तथाकथितों द्वारा ऐसा माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में भारत विकसित बनकर उभरा और देश में विकास की गंगा बही लेकिन हकीकत कुछ यूं है कि इस दौर में किसान आत्महत्याओं और बलात्कार के मामले हद से ज़्यादा सामने आए।

    महाराष्ट्र में सन् 2015 से 2018 के बीच तकरीबन 12 हज़ार से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्याएं की। सारी दुनिया की भूख मिटाने वाले धरती पुत्र को दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं हुई। 

    यत्र-तत्र किसान आंदोलन हुए लेकिन तानाशाही सरकार से किसान अपना हक पाने में नाकामयाब रहे। मज़दूरों की हालात भी बहुत बुरी रही और सूखे की मार से ग्रसित बुन्देलखण्ड हमेशा उपेक्षित रहा।

    किसानों-मज़दूरों के बच्चोँ की अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई क्योंकि कुछ को छोड़कर ज़्यादातर सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था अस्त-व्यस्त रही।
    प्राईवेट शिक्षण संस्थानों और कॉन्वेंट स्कूलों का हाल और बुरा रहा। छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद रोज़गार और नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। भारत में शिक्षित बेरोज़गार युवाओं की भरमार हो गई है और युवाओं को सरकार सिर्फ जुमले दे रही है। 

    आरक्षण घातक सिद्ध हुआ -

    भारत के लिए आरक्षण घातक सिद्ध हो रहा है, आरक्षित लोग ही नौकरी पाने में सफल हो रहे हैं। इसमें वह ही लोग हैं, जो कुछ हद तक सम्पन्न हैं लेकिन आज भी गरीब किसान मजदूर और आदिवासियों के बच्चे आरक्षण नहीं पा रहे हैं क्योंकि देश में जागरूकता का अभाव है।

    अब भारत के हालात बहुत ठीक हो चुके हैं और अब समय आ गया है, आरक्षण को खत्म करने का। मोदी सरकार ने सन् 2018-19 में 10% सवर्णों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था करी। आरक्षण देना अब भारत के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि विश्व गुरू भारत के निवासी वैसे ही प्रतिभाशाली होते हैं और आज के युवा तो 21वीं सदी के हैं, जो बहुत ज़्यादा प्रतिभाशाली हैं।

    भुनाए गए कुछ मुद्दे -

    सन् 2014 का आम चुनाव अयोध्या राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर जीता गया लेकिन अभी तक राम मंदिर नहीं बना और ना ही बनने की संभावना है। सन् 2019 का आम चुनाव पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर जीता गया लेकिन देश के अंदर के विवादों को सुलझाने की कोशिश भी नहीं की जा रही है।

    अब धर्म और सीमा सुरक्षा को चुनावी मुद्दा बनाना भारत के हित में नहीं है। भारत के हित में है- शिक्षा, पर्यावरण, महिला सुरक्षा, किसान, मजदूर कल्याण और रोज़गार को चुनावी मुद्दा बनाकर चुनाव जीतना और भारत को विकसित भारत बनाने में अपना अतुलनीय योगदान देना।

    क्रान्ति से ही आएगा परिर्वतन -

    अब लगने लगा है कि देश का पतन हो रहा है लेकिन सब चुप बैठे हैं। अपने काम से मतलब है और किसी से कोई लेना-देना नहीं। देश को बचाने के लिए सरकार के खिलाफ सशक्त क्रान्ति करो, तभी हम भी बच पाएंगे।

    मोदी सरकार ने देश की ऐतिहासिक इमारत लाल किले समेत अनेकों सरकारी कम्पनियों को बेच दिया है और निजीकरण कर दिया है। जागरूक देशवासियों अपना एक ही लक्ष्य बनाओ- क्रान्ति मन, क्रान्ति तन और क्रान्ति ही मेरा जीवन।



    भाषायी भेदभाव बढ़ गए -

    देश में भाषायी भेदभाव कुछ ज़्यादा ही देखने को मिले। हर ओर हिन्दी बनाम अंग्रेज़ी का बोलबाला रहा। आज हिन्दी भाषा आधुनिक भारतीय भाषाओँ का नेतृत्त्व कर रही है और देश की आधी से अधिक आबादी हिन्दी का प्रयोग कर रही है।
    हिन्दी दुनिया में सबसे ज़्यादा बोली जानेवाली भाषा भी बन गई है फिर भी उसकी जन्मभूमि भारत में ही हिन्दी और उसकी जननी संस्कृत की घोर उपेक्षा की जा रही है।

    आजकल सिर्फ अंग्रेज़ी का दौर है  -

    आज दुनिया के विभिन्न देशों के स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा और साहित्य का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है और हमारे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में भारतीय संघ की राजभाषा और देश की सम्पर्क भाषा, कई राज्यों की राजभाषा होने के बावजूद विदेशी भाषा अंग्रेज़ी से मात खाती हुई दिखाई दे रही है, जो हम सबके लिए सोचनीय है। 

    आजकल हमारे देश में उस अंग्रेज़ी को विकास की भाषा, आधुनिक बुद्धजीवियों और प्रतिभाशालियों की भाषा करार दिया जा रहा है। हर जगह हिन्दी सह अंग्रेज़ी की बदौलत हिन्दी बनाम अंग्रेज़ी नज़र आ रही है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348  में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में संसद व राज्य विधानमण्डल में विधेयकों और अधिनियमों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा उपबंध होने तक अंग्रेज़ी जारी रहेगी। 

    जब देश की आम जनता को न्याय उसकी मातृभाषा में ही ना सुनाया जाए तो इससे बड़ा अन्याय और क्या हो सकता है? आखिर कब हमें न्याय अपनी भाषा में मिलेगा?

    गाँव-गाँव में अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल -

    आज हमारे लिए सबसे बड़ी दुःख की बात यह है कि भारतीय संस्कृति पर नाज करने वाली, हिन्दूवादी एवं राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्त्व वाली योगी सरकार प्रदेश के गाँव-गाँव ने अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल खोल रहे हैं और देश के भविष्य छात्रों को अंग्रेज़ी का मानसिक गुलाम बना रहे हैं और हमारी मातृभाषा हिन्दी का अपमान कर रहे हैं।

    हमारी शिक्षा व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त ना होने की वजह से इन गाँवों के सरकारी स्कूलों में हिन्दी माध्यम की पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं हो रही है। ऊपर से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के माता -पिता, किसान या मजदूर हैं, जिन्हें अपने काम से ही फुर्सत नहीं मिलती। यदि फुर्सत मिले तो ही यह अपने बच्चों की पढ़ाई का जायजा भी ले सकें।

    यह किसान और मजदूर कर ही क्या सकते हैं, जो करना है सरकार को करना है। सरकार द्वारा अंग्रेज़ी माध्यम के सरकारी स्कूल खोलकर जनमानस में बेरोज़गारी और कुशिक्षा को बढ़ावा देने की साजिश नज़र आ रही हैं।

    क्षेत्रीय भाषाओँ में स्कूल खुलने चाहिए -
    अंग्रेज़ी माध्यम की जगह सरकार को क्षेत्रीय भाषाओँ और बोलियों वाले माध्यमों में स्कूल खोलने चाहिए ताकि विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा प्राप्त कर सके और मातृभाषा का विकास कर सके।

    सरकार को अंग्रेज़ी माध्यम में संचालित होने वाली संस्थाओं पर प्रतिबंध भी लगाना चाहिए। माननीय मुख्यमंत्री को हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत भाषा को अनिवार्य करना चाहिए और अंग्रेज़ी का पूर्णतः बहिष्कार करना चाहिए तभी हमारी भारतीय संस्कृति की विजयी पताका सारी दुनिया में लहरा सकेगी और भारत देश विकसित देश बन सकेगा।

    ✍ परिवर्तनकारी कुशराज झाँसी बुन्देलखण्ड___13/6/2019__9:00अपरान्ह
    Kushraaz.blogspot.com
    Parivartanwriters.WordPress.com

    1 comment:

    सुब मताई दिनाँ - सतेंद सिंघ किसान

    किसानिन मोई मताई 💞💞💞  सुब मताई दिनाँ शुभ माँ दिवस Happy Mother's Day  💐💐💐❤️❤️❤️🙏🙏🙏 'अम्मा' खों समरपत कबीता - " ममत...