किसानवादी कविता - किसान की आवाज




तुम मारते रहे भयंकर मार
और मार रहे हो अब तक
धीरे - धीरे से
धर्म, जाति, कर्ज और कुरीतियों में बाँधकर
अंधविश्वास, जुमले और निर्रथक कानून बनाकर
शिक्षा से वंचित करके
लूटते रहो हो हमें

लेकिन
अब हम जाग गए हैं
अपने कर्म की कीमत पहचान गया हूँ
अब से हम अपने फसलों के दाम खुद तय करेंगे
अपनी मेहनत का पूरा फल चखेंगे

तुम भी हमाए कर्म की कीमत को पहचानो
भूख मिटाने वालों का साथ दो
नहीं तो तुम भी मारे जाओगे
जल्द ही 
हम किसानों की परिवर्तनवादी क्रान्ति में
सिर्फ बचेंगे अन्न उगाने वाले
और परिवर्तनकारी लोग....

✒ कुशराज झाँसी
    झाँसी बुन्देलखण्ड
_4/12/19_11:50रात




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