बुंदेलखंड की लड़कियों को भी आजादी मिलनी चाहिए - कुशराज झाँसी
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 पर विशेष...
लेख - " बुंदेलखंड की लड़कियों को भी आजादी मिलनी चाहिए "
मैं गिरजाशंकर कुशवाहा उर्फ कुशराज झाँसी बीकेडी कॉलेज, झाँसी में वकालत का छात्र हूँ और बुंदेलखंड के दिल, वीरभूम जिला झाँसी का रहने वाला हूँ। जिस झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई की वीरता और साहस से भरी कहानियों से सारी दुनिया अब तक प्रेरणा लेती आ रही है लेकिन आज उसी झाँसी की लड़कियों को कई पाबंदियों का सामना करना पड़ रहा है और अपने सपनों का गला घोंटना पड़ रहा है।
सबसे पहले हम बुंदेलखंड की लड़कियों की शिक्षा संबंधी और सामाजिक समस्याओं को उजाकर करने के लिए अपनी काबिल दोस्त और लॉ क्लासमेट दिव्या तिवारी के साथ रहकर जिन समस्याओं का अनुभव किया उन्हें आपके साथ साझा कर रहा हूँ -
हम और दिव्या जनवरी 2021 से दोस्त हैं, एलएलबी में हम लोगों का एडमिशन नवम्बर के महीने में हुआ था क्योंकि वैश्विक कोरोना महामारी के कारण सारे व्यवस्थाएं अस्त - व्यस्त हो गईं थी तो नया शैक्षिक सत्र देरी से शुरू हुआ, इससे पहले तक सत्र जुलाई - अगस्त में शुरू हो जाता था। जबसे हम और दिव्या दोस्त हैं तब से कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है सबसे पहले बुंदेलखंड में लैंगिक - असमानता किस तरह व्याप्त है, उस पर चर्चा करते हैं -
बुंदेलखंडी समाज में लैंगिक - असमानता की खाई जितनी गहरी है, उससे कहीं ज्यादा लैंगिक - भेदभाव यानी लड़के - लड़कियों में भेदभाव यहाँ के कॉलेज कैम्पसेज में होता है, कॉलेज में, क्लासरूम में लड़कों को अलग पँक्तियों में बैठाया जाता है और लड़कियों को अलग पँक्तियों में। यहाँ तक कि सहपाठी लड़के - लड़कियों को एक ही व्हाट्सएप ग्रुप में भी नहीं रखा जाता है।
लैंगिक असमानता की बजह से ही बुंदेलखंड में शिक्षा का स्तर बहुत निम्न है। यहाँ के सरकारी कॉलेजों में स्टूडेंट्स क्लासेस पढ़ने बहुत कम जाते हैं और प्राईवेट कॉलेजों में तो क्लासेज लेने बिल्कुल भी नहीं जाते हैं। बुंदेलखंड में तकरीबन 90% स्टूडेंट्स ऐसे हैं जो कॉलेज सिर्फ परीक्षा देने जाते हैं, जिन्होंने कभी क्लासेज ली ही नहीं होती हैं। ऐसा नहीं है कि बुंदेलखंड के स्टूडेंट्स पढ़ना नहीं चाहते। वो सच में पढ़ना चाहते हैं और वो अपना सामाजिक विकास भी चाहते हैं लेकिन उन्हें ऐसा माहौल मिल नहीं पा रहा है, जहाँ ये अच्छी पढ़ाई कर सकें और अपना सामाजिक विकास कर सकें।
यदि हम अपने ही क्लासमेट्स की बात करें तो हमारी क्लास एलएलबी में तकरीबन 220 स्टूडेंट्स के एडमिशन हैं, लेकिन पहले सेमेस्टर में ही क्लासेज पढ़ने सिर्फ 20-30 स्टूडेंट्स ही आते थे और अब तो 10-15 ही आते हैं। अब आप ही बताइए कि जब कानून की पढ़ाई करने वाले ही कॉलेज अटेंड नहीं कर पा रहे तो और अन्य कोर्सों के स्टूडेंट्स का क्या हाल होगा? स्टूडेंट्स का कॉलेज में क्लासेज अटेन्ड न करने का माहौल बनाने की दोषी हमारी शिक्षा - व्यवस्था है।
जब कॉलेज में, क्लासेस में अच्छी साफ - सफाई और पढ़ाई के अनुकूल वातावरण ही नहीं मिलेगा, पढ़ाने वाले योग्य प्रोफेसर ही नहीं मिलेंगे, जहाँ कामचोर और भ्रष्टाचार में लिप्त प्रोफेसर मिलेंगे तो वहाँ कौन पढ़ने जाएगा? मैं ये नहीं कह रहा कि सारे प्रोफेसर अयोग्य हैं या फिर भ्रष्ट हैं लेकिन ये जरूर कह रहा हूँ कि अधिकतर अयोग्य और भ्रष्ट ही हैं।
बुंदेलखंड के कॉलेजों में स्टूडेंट्स की दैनिक अनुपस्थिति का एक कारण ये है कि बुंदेलखंड के लोग गरीबी का जीवन जी रहें हैं, भुखमरी और बेरोजगारी से मर रहे हैं। इस आसमान छूती महँगाई के दौर में हर छात्र - छात्रा और उनके माता - पिता को पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल होता है। जब अधिकतर परिवारों की इतनी आमदनी ही नहीं है कि घर चलाने के साथ - साथ झाँसी जैसे शहर में रहकर पढ़ाई के लिए 5-6 हजार रुपए हर महीने खर्च कर सकें।
इसलिए हम सरकार और समाजसेवियों से विनती करते हैं कि हम बुंदेलखंडी स्टूडेंट्स के लिए शिक्षा - व्यवस्था दुरुस्त की जावे और हमारी आर्थिक मदद भी की जावे ताकि हम बुंदेलखंडी भी बाकी देश और दुनिया के साथ चल सकें।
हम सर्वोच्च न्यायालय से दरख़्वास्त करते हैं कि हम बुन्देलखंडियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जाए। हम लोगों के समानता, शिक्षा, संस्कृति और जीवन के अधिकार को बहाल कराने के लिए समुचित कार्यवाही की जाए। बुंदेलखंड के शैक्षिक संस्थाओं और समाज में लैंगिक - समानता लाने के लिए समुचित पाठ्यक्रम और कार्यक्रम चलाए जाएँ जिससे बुंदेलखंडी समाज जागरूक बनकर लैंगिक असमानता को खत्मकर दुनिया के साथ कदम - से - कदम मिलाकर चल सकें।
बुंदेलखंड में व्यापक लैंगिक - असमानता की समस्या को विस्तार से हम इस प्रकार समझ सकते हैं -
कॉलेजों में भी लड़का-लड़की आपस में बातचीत नहीं कर सकते, वे साथ नहीं बैठ सकते। उनकी दोस्ती तो दूर की बात। यदि लड़का - लड़की आपस में दोस्त हैं और साथ पढ़ रहें हैं, घूम रहे हैं। तो क्लासमेट और सोसायटी वाले उन दोस्त लड़का - लड़की को बॉयफ्रेंड - गर्लफ्रैंड समझेंगे भले ही वो आपस में दोस्त ही हैं सिर्फ। ऐसा हम और दिव्या के साथ हुआ है, वो वाक्या आपको भी सुनाता हूँ। पहले सेमेस्टर के एग्जाम थे। हमलोग एग्जाम देने बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी कैम्पस साथ जाते थे और साथ में ही लौटते थे। उस दिन पहला ही पेपर था तो हम लोग 1 घण्टे जल्दी पहुँचकर एग्जाम सेंटर पर प्रश्नोत्तर के रिवीजन के लिए आपस में डिस्कस करने लगे और फिर एग्जाम रूम में पहुँचे तो सहपाठी लड़के कहने लगे कि अरे भाई जीएस! तुम अपनी गर्लफ्रैंड का बहुत ध्यान रखे हो? ऐसे ही कई सवाल किए...।
तो मैंने उन्हें समझाने वाले अपने अंदाज में जबाब दिया - यार पता भाईयों! अपने बुंदेलखंड की और अपन जैसे शिक्षित युवाओं की अब तक सोच बहुत नीची है क्योंकि हमलोग दुनिया के प्रगतिशील नजरिए से नहीं सोचकर यदि लड़की दोस्त है तो उसे गर्लफ्रैंड समझ रहे हैं, जो अन्यायपूर्ण है। क्योंकि जैसे लड़के - लड़के, लड़कियाँ - लड़कियाँ आपस में अच्छे दोस्त होते हैं ठीक वैसे ही लड़के - लड़कियाँ भी आपस में अच्छे दोस्त होते हैं या हो सकते हैं। लड़का - लड़की की दोस्ती को कोई और नाम देना ठीक नहीं है।
लेकिन हमारे बुंदेलखंड में एक निश्चित उम्र के बाद लड़के - लड़कियों का आपस में बातचीत करना, साथ में पढ़ना - लिखना, साथ घूमना - फिरना और मिलना - जुलना बन्द कर दिया जाता है घरवालों की तरफ से। घरवालों की तरफ से लगाई गईं इन पाबंदियों को न मानना सामाजिक कायदों का उल्लंघन माना जाता है, अपनी और घरवालों की बदनामी मानी जाती है। जो लड़के पाबंदियों को तोड़ते हैं उन्हें बुरे लड़के, गैरसंस्कारी लड़के, बदचलन लड़के आदि नाम से पुकारा जाता है और लड़कियों को बुरी लड़कियाँ, गैरसंस्कारी लड़कियाँ, बदचलन लड़कियाँ कहकर बुलाया जाता है। और जो इन पाबन्दियों के अनुसार चलते हैं उन लड़के - लड़कियों को अच्छे लड़के - अच्छी लड़कियाँ, संस्कारी लड़के - संस्कारी लड़कियाँ, लाड़ले बेटे - लाड़ली बेटियाँ मानकर समाजहितैषी माना जाता है। वाह रे वाह! हमाओ बुंदेलखंडी समाज...।
लड़कों तो बहुत छूट है सब कुछ करने की लेकिन लड़कियों की तो और हालात खराब है वो अकेले किसी सहेली की बर्थडे पार्टी या शादी आदि प्रोग्रामों में नहीं जा सकती हैं जब तक उनका भाई या परिवार का कोई अन्य सदस्य उनके साथ न जाए।
अभी एक महीने पहले दादी ने बहिन रोशनी को भी अकेले अपनी सहेलियों के साथ एक शादी में नहीं जाने दिया था और ये कहकर मना कर दिया था कि तुम अब बड़ी हो गई हो, जमाने के हिसाब से अकेले जाना ठीक नहीं है...। जबकि दादी के हिसाब से हम कहीं भी घूम सकते हैं, दिल्ली जाकर पढ़ाई कर सकते हैं और क्षेत्र में राजनीति भी कर सकते हैं क्योंकि हम लड़के जो ठहरे। यदि हम लडक़ी होते तो हम भी सामाजिक समस्याओं के शिकार होते।
हमारी दिल्ली यूनिवर्सिटी में बैचमेट्स रही युवा लेखिका प्रेरणा मिश्रा अपने व्हाट्सएप कैप्शन में लिखी है -
" आपहुदरी यानी वह स्त्री जो अपनी शर्तों पर अपनी मर्जी से अपना जीवन जीती है। "
इस कैप्शन से हम बहुत प्रभावित हुए हैं। सच में हमारी दोस्त प्रेरणा सबकी प्रेरणा है। वो आपहुदरी है। एक बात और पाठकों! पता, हम और प्रेरणा की अभी तक आमने - सामने मीटिंग नहीं हई, हम लोग एक - दूसरे को सिर्फ सोशल मीडिया से ही जानते हैं फिर भी अच्छे दोस्त हैं।
हम लोग कभी - कभार इन्हीं सब सामाजिक समस्याओं पर कॉलिंग और सोशल मीडिया पर बहुत डिस्कस करते हैं। प्रेरणा भी समाजसुधार करना चाहती है, हम भी समाजसुधार चाहते हैं और दिव्या भी समाजसुधार चाहती है।
हमलोग समाजसुधार तो करके रहेंगे, चाहे कुछ भी हो। प्रेरणा वैसे भी आपहुदरी है और हम भी तो आपहुदरा हैं जो लड़का अपनी शर्तों पर अपनी मर्जी से अपना जीवन जी रहा है। और रही बात दिव्या की तो वो भी समय के हिसाब से बदल जाएगी। जल्द ही हम बुंदेलखंडी के ऐसे दिन आएंगे कि जब यहाँ की लड़कियाँ खुले आसमान में अपने सपनों की उड़ान भर सकेंगीं।
सबखों हमाई ताएँ सें दुनियाई औरत दिनाँ की भौत - भौत बधाई और जै - जै बुंदेलखंड।।
©️ कुशराज झाँसी
_07/03/2022_5:55भोर_झाँसी
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