कहानी : भागकर की शादी - कुशराज झाँसी
कहानी - " भागकर की शादी "
उतरत दिसंबर की भोर अम्मा ने साक्षी को जगाते हुए बड़े लाड़-प्यार से कहा - "उठो बिन्नू! उठो! मुहल्ला के सारे मोड़ी-मोड़ा जग गए हैं। का तुम्हें उठने नईंयांँ? जितेंद्र सर की टूशन की बेराँ होबे बाई हैगी, बीसई मिनट बचे हैं। फटाफट तज्जार हो जाओ। काय यी साल तुमाई दो-ढाई मईना बाद हाईस्कूल की परीक्षा है। सो तनक पढ़ाई-लिखाई में सीरियस हो जाओ। संजाँ-सवेरें उम्दा से पढ़-लिख लिया करो।"
"हओ अम्मा! अबे हाल उठ रए रोज तो उठजाऊत। आज तनक ठण्ड ज्यादा लग रई थी। और एतवार भी तो है। स्कूल की छुट्टी है। लेकिन जितेंद्र सर पिछले दो हफ्ता से छुट्टी के दिनाँ दो घण्टे पढ़ा रए हैं। वैसें एकई घण्टा की टूशन क्लास होत हमाई।"
"अच्छा! उठो जल्दी और तज्जार हो। जब तक हम पोहा बनाएँ दे रए। थोड़ा खाकर चले जाना। संजाँ को पापा बजार से सेवफल भी लाए हतै। ये रखे हैं डलिया में। खाकर जाना काय तुमने रात कैं भी नईं खाए ते। भज्जा ने तो खा लए ते।"
साक्षी पंद्रह मिनट के भीतर तैयार हो गई। जब तक अम्मा ने पोहा बनाकर तैयार कर दिया था। और प्लेट में उसके लिए परोस भी दिया था। पोहा के संगे सेवफल भी रख दिया था। झट से खाया -पिया और वो टूशन के लिए रेंजर साईकिल से रवाना हो गई। टूशन घर से आदा किलोमीटर दूर था। सो आज वो पन्द्रा-बीस मिनट लेट हो गई। आज सरजी को भी कुछ अर्जेंट काम आ गया था। वो अपने लौरे भज्जा को बाईक से झाँसी रेल्वे टे़शन तक छोड़बे गए थे क्योंकि उसका आज शाम चार बजे आगरा में एसएससी - सीजिएल का एग्जाम था। सर भी लौटते वक़्त लेट हो गए। क्योंकि बेतवा पुल पर भारी-भरकम जाम लग गया था। डम्फरों की भौत लम्बी-लाइन लग गई थी। फिर भी साढ़े सात बजे तक टूशन लौट आए। अभी आदा घण्टे ही देरी हुई थी।
स्टूडेंटो से सरजी ने पूछाँ-क्या पढ़ना हैं? पुल अगर जाम न लगो होतो तो टाइम सें आ जाते।
"साक्षी बोली-सरजी! आज परिसंचरण तन्त्र के बारे में समझा दो और ह्रदय का डायग्राम भी।"
"ठीक है।"
सरजी ने चालीस मिनट में ह्रदय के दो डायग्राम बोर्ड पर बनाकर तैयार कर दिए। इनके बारे में डिटेल में बताकर बच्चों को भी डायग्राम की बार-बार प्रैक्टिस करने को कहा। फिर परिसंचरण तन्त्र पर गहन चर्चा की।
छुट्टी में साक्षी अपनी बेस्ट फ्रेंड सोनाली से बोली -"यार तूँ एक हफ्ते से टूशन क्यों नहीं आ रही थी। किते गई थी तूँ। तेरे बिना हमाओ मन ही नहीं लग रओ तो।"
"अरे यार ! मैं अपने ननिहाल गई थी, खजुराहो। छोटे मामा सत्येंद्र की शादी में। शादी में बड़ा मजा आया। मामा सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और मामी भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। दोनों क्लासमेट रहे हैं। आईआईटी दिल्ली से कम्प्यूटर साइंस में बीटेक किया है। मैं मामा से पाँच साल बाद मिली थी। मामा घर पर कम ही आते थे। जब वो आते थे। तब मैं नहीं जा पाती थी और जब मैं जाती थी तब उनकी छुट्टियांँ नहीं होती थीं। भले फोन पर डेली बात हो जाती थी और कभी-कभार वीडियो-कॉल भी।
शादी पर मामा जी ने मुझे आईफोन-एक्स गिफ्ट किया है। मामा जी बोल रहे दो-चार महिने मे लैपटॉप भी दिलवा देंगे। बहुत चाहते है मामा हमें और अपनी बहिन दीपा को। हमाई मामी बहुत खूबसूरत हैं। बिल्कुल अप्सरा जैंसीं और मामा भी कोनऊ हीरो से कम नयीं लगत। मामी में जितनी फिजिकल ब्यूटी है, उतनी ही स्पीरिचुअल ब्यूटी। माइंड से बहुत क्रिएटिव हैं। उर्दू में शायरियांँ लिखती हैं, हिंदी में उपन्यास तो अंग्रेजी में रोमेंटिक कविताएँ। मामी कॉलेज में स्टूडेंट ऑफ द ईयर भी रह चुकीं है और मिस फ्रेशर भी। वो मॉडलिंग भी करती हैं और सोशल एक्टिविस्ट भी हैं। मामा ने भी हिंदी में चार कहानियांँ और बुंदेली में काव्य-संग्रह की रचना की है। वो अभी अंग्रेजी में उपन्यास लिख रहे हैं। मामा-मामी दोनों में एक जैसे टेलेन्ट हैं। भगवान ने उन्हें बड़े सोच-समझकर बनाया होगा।"
"अच्छा ! और ये बता कि तेई एग्जाम की तैयारी कैसी चल रही है? मुझे तो ट्रिकनोमेट्री के सवाल बिल्कुल भी समझ में नही आ रहे हैं और न ही फिजिक्स के न्यूमेरिकल लग पा रहे हैं।"
"यार ! मेरी तैयारी तो बहुत अच्छी चल रही है। कल से तू मेरे घर आया कर शाम को चार बजे । हम तुझे सवाल और न्यूमेरिकल समझा देंगे। अपन दोनों सात बजे तक अच्छे से पढ़ लिया करेंगे।"
"ओके! बाय-बाय । आती हूँ कल से तेरे यहाँ , आज मार्केट जाना है, ड्रेस खरीदने...।"
" चलो ठीक है। कल से जरूर आना...।"
अगले दिन से साक्षी रोजाना शाम चार बजे सोनाली के घर जाने लगी। सोनाली का घर किसान बाजार में साक्षी के घर से सात - आठ सौ मीटर दूर था। ढाई - तीन घंटे दोनों लगन से पढ़ाई करने लगीं । सोनाली के परिवार में उसके मम्मी - पापा और बड़े भाई हर्ष समेत चार सदस्य थे। मम्मी और पापा दोनों शहर के बरुआसागर राजकीय इंटर कॉलेज में लेक्चरर थे। पापा सोशलॉजी पढ़ाते थे तो मम्मी बायलॉजी।
अभी हर्ष बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी , झांसी में बी. एस.सी. फॉरेंसिक साइंस, फर्स्ट ईयर में था। वो यूनिवर्सिटी हॉस्टल में ही रहता था। लेकिन हर शनिवार को शाम को घर आता था और रविवार की शाम को वापिस लौट जाता था। साक्षी को देखकर वो मोहित हो गया और उससे बहुत प्यार करने लगा। मार्च के लास्ट में साक्षी और सोनाली की परीक्षाएँ समाप्त हुईं। दोनों के पेपर बहुत अच्छे हुए। जून के सेकेंड वीक में रिजल्ट आया तो सोनाली स्कूल में सेकेंड टॉपर रही और साक्षी ने जिला टॉप किया। दोनों के घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। साक्षी के माता - पिता किसान थे। साक्षी और सोनाली फिर से एक ही क्लास में पढ़ने लगीं और अब साक्षी सेशन की शुरूआत से ही सोनाली के साथ उसके घर पर पढ़ने लगी।
एक दिन हर्ष ने साक्षी को प्रपोज का दिया और साक्षी ने खुशी - खुशी इसका प्रपोजल एक्सेप्ट भी कर लिया है। दोनों एक - दूसरे से बहुत प्यार करने लगे। इन दोनों की प्रेमीकहानी की भनक दो साल तक किसी को न लगी । यहाँ तक की सोनाली को भी नहीं। दोनों की व्हाट्सएप पर चैट होने लगी और कभी - कभार वीडियो कॉलिंग भी हो जाती। रविवार को साक्षी हर्ष से तीन - चार घंटे बात करती है और उसके प्यार में पागल रहती है।
जब साक्षी इंटरमीडिएट में पढ़ रही थी तब उसने प्री - बोर्ड एग्जाम के एक महीना पहले हर्ष के साथ झांसी में रोमांस कर लिया। इंटरमीडिएट में फर्स्ट डिवीजन से पास हुई ।
इंटरमीडिएट के रिजल्ट के अगले दिन जब सोनाली ने उससे पूछा- " यार ! हाईस्कूल में तो तूने जिला टॉप किया था और अब स्कूल टॉप भी न कर पाई। क्या हुआ तुझे?"
"कुछ नहीं यार! बस प्यार के पागलपन में ये सब हुआ है। प्यार के सिवाय और कुछ अच्छा ही नहीं लगता । किताब तो उठाई ही नहीं जाती । दिन - रात व्हाट्सएप चैटिंग में ही निकल जाता है।"
"अच्छा ! किसके प्यार में पागल हो?"
" जानू हर्ष "
"कौनसा हर्ष?"
" तुम्हारा भाई "
"ओह!"
" यार! सोनाली मेरी लवस्टोरी के बारे में किसी को भी मत बताना , प्लीज।"
" नहीं बताऊंगी।"
" प्रोमिस!"
" हां प्रोमिस!"
शाम को डिनर के वक्त सोनाली बेझिझक साक्षी और हर्ष की लवस्टोरी अपने मम्मी - पापा को सुनाती है। जब हर्ष भी मम्मी के बगल में बैठा खाना खा रहा होता है। लवस्टोरी सुनकर वो भौचक्का रह जाता है। मम्मी और पापा दोनों उससे पूँछते हैं कि - " ये सब कब से चल रहा है? ये हो रही है तुम्हारी बी. एस. सी. फोरेंसिक साइंस। कल से कॉलेज मत जाना। रहो यही घर पर...।"
"कुछ नहीं पापा! अभी डेढ़ - दो साल ही हुआ है। कुछ ज्यादा नहीं।"
" नालायक ! डेढ़ - दो साल ज्यादा नहीं है तो क्या तुझे बीस - तीस साल ऐसे ही रहना है। एडवोकेट हितेंद्र की बेटी राधा से तेरा रिश्ता तय कर रहा हूँ जो तेरी ही क्लासमेट है। शादी होने पर ही तेरी अक्ल ठिकाने पर लगेगी।"
हर्ष थोड़ी देर चुप रहकर चिल्लाकर बोलता - "हमें नहीं करनी किसी और से शादी। करूँगा तो सिर्फ साक्षी से ही....।"
"उससे तो तुम्हारी शादी होने से रही। तुम्हारी साक्षी से कभी भी शादी न होने दूँगा..."
" देखता हूँ, कैसे नहीं होने देंगे आप?"
इतना कहकर हर्ष अपने कमरे में चला जाता है और आधी रात को साक्षी को वीडियो कॉल करता है। वो भी उसकी कॉल का इंतजार कर रही होती है। हर्ष पापा - मम्मी के साथ जो बातें हुईं, वो सब बताता है और कहता है, मेरे पापा बोल रहे हैं कि तुम्हारी शादी साक्षी से कभी भी नहीं होने देंगे। अब तुम बताओ । क्या करना चाहिए हम लोगों को ? चलो घर से भाग चलते हैं...।"
रविवार की शाम को हर्ष और साक्षी दोनों घर से भाग निकले और सोमवार को सुबह रामराजा मंदिर में भगवान राम और सीता मैया को साक्षी मानकर शादी रची। साक्षी ने भागकर की शादी तो अगले साल उसका नीट में सिलेक्शन हो गया और मेडिकल कॉलेज से एम. बी. बी. एस. करने लगी। और एक बात और बताएँ कि शादी के एक महीने पहले ही हर्ष ने सी. बी. आई. का एग्जाम क्रेक किया था।
जब इनके घरवालों, रिश्तेदारों और समाज को पता चलता है, इनकी भागकर शादी करने के बाद की स्तिथि का तो सब लोग बहुत खुश होते हैं और समाजवाले कहते हैं - "पढ़े - लिखे लोगों के लिए सब जायज है। गवारों - आवारों के लिए ही समाज के नियम - कानून बने हैं और जिनका उन्हें पालन हरहाल में करना ही चाहिए क्योंकि शिक्षित लोग ही सारी दुनिया चलाते हैं इसलिए यदि किसी को परम्पराएं तोड़कर नई शुरुआत करनी है तो उसे उच्च शिक्षा पाकर समाजहितैषी बड़े काम करने चाहिए चाहे सरकारी पद पर रहकर या फिर नेता बनकर। जै हो....।
©️ कुशराज झाँसी
_ 03/02/2019_12:08दोपहर_दिल्ली
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