झाँसी के युबा कबी सतेन्द सिंघ किसान कीं तीन कछियाई - बुंदेली कबिताएँ
झाँसी के युबा कबी सतेन्द सिंघ किसान कीं तीन कछियाई - बुंदेली कबिताएँ
१. " किताबें "
Kitabein - किताबें - Books
दोस्ती और पियार में
सिरप किताबेंईं देऊत
दूसरन की तराँ
नईं देऊत फूला
फूला भी देंएं चज्जे
नौकरी लग जाबे पे
या काम - धंदे में लग जाबे पे
इसकूल और कालेज के टैम
उर बेरुजगारी में नईं
फूला देबो उतेक जरूरी नईंयां
जितेक जरूरी हैगो किताबें लेबो - देबो
कायकी किताबन सेंईं हुज्जे नई किरानती
जीसें बदले हमाओ समाज
आए बिरोबरी
देहाती उर सैहरी में
किसान उर बेपारी में
गरीब उर अमीर में
सबसें जादाँ जनीमान्सन में
जनीमान्सन खों बिरोबरी मिलेंईं चज्जे
समाजिक, सिक्छाई, धनाई और नेताई
ऐईसें हम दोस्ती और पियार में
हमेसां देहैं किताबें
फूला कभऊँ नईं
काम - धंदे में लग जाबे पे भी नईं
किताबेंईं फूला हैंगीं
हमाए लानें।
२. " डाँग बचाओ "
Dang Bachao - जंगल बचाओ - Save forest
डाँग बचाओ, डाँग बचाओ।
रूख लगाओ, रूख लगाओ।।
डाँग हुज्जे तबईं बरसा होए,
बरसा होए तबईं पानूँ होए।
पानूँ हुज्जे तबईं खेती होए,
खेती होए तबईं नाज होए।
नाज हुज्जे तबईं रोटी बनपे,
रोटी बनपे तबईं हमाई भूँक मिटपे।
भूँक मिटपे तबईं जीव बचपें,
जीव बचपें तोई जीबन बचपे।
जीबन बचपे तोई हम सब बचपें,
डाँग नईं बचपे तौ हम नईं बचपें।
ऐईसें...
डाँग बचाओ, डाँग बचाओ।
रूख लगाओ, रूख लगाओ।।
३. " पैचान "
Paichan - पहचान - Identity
तुम सब कछू देखतई,
बिन ढकें अंखियन खों।
फिर काय रोकत हमें?
दुनिया की असलियत देखबे खों।
काय हमें परदा - घूंगट करबे खों दबाव डारतई?
धरम के कानूनन की जंजीरन में जकड़तई।
काय कुरीत - परम्परा चलाऊतई?
उर हमें नीचो दिखाऊतई।
आखिर काय?
चारदीबार में कैद रखतई।
तुम ऐसो काय करतई?
जुवाब देओ हमें।
अब हम जग गए हैंगे,
अपनी गरिमा पैचान गए हैंगे।
तुमाई कौनऊँ कुरीत - परंपरा नईं मानहैंगे,
अब हम भी दुनिया देखहैंगे।
चेरा नोंईं ढाकें अब हम अपनी पैचान दिखाहैंगे,
बहुद्दरी उर गरिमा सें नओ इतिहास बनाहैंगे।
कौनऊँ मौ कन्यादान ना करबे,
मोए लानें कौऊ दहेज ना देबे,
कौनऊँ मोई पेट में हत्या ना करबे,
उर ना कौऊ मौ बलात्कार करबे।
जा चेतावनी हैगी सारे जहाँ खों,
सुदर जाओ, संभल जाओ।
अगर हम नईं रै पैहैं यी दुनिया में,
तो मोए बिन तुमाओ कौनऊँ अस्तित्त्व नईंयां।
कायकी हमईं तुमें जनम देऊतई,
तुमाओ लालन - पालन करतई,
सिक्छा - संस्कार भी तो देऊतई,
फिर भी तुम हमेंईं धिक्कारतई।
समझ जाओ, संभल जाओ।
हम तुमसें कभऊँ ना कम हते,
ना हैं उर ना होएं।
हर मोड़ पे तुमाओ सामनो करहैं,
कायकी हम साहसी हैं,
बीरांगना हैं और जगत जननी भी।।
©️ सतेन्द सिंघ किसान
(बुंदेलखंडी युबा लिखनारो, सदस्य : बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, समाजिक कारीकरता)
रचनाटैम :- ११ जनबरी २०२३, झाँसी
बिधा :- कबिता (काब्य)
मातभासा :- कछियाई - किसानी - बुंदेली (बुंदेलखंडी)
लेखन :- हिन्दी और बुन्देली में शोध, लेख, कविता, कहानी, डायरी इत्यादि।
शिक्षा :- दिल्ली विश्वविद्यालय से बी०ए० हिन्दी ऑनर्स, बुंदेलखंड कॉलेज झाँसी से कानून स्नातक एवं एम० ए० हिन्दी।
प्रकाशित किताब :- पंचायत (हिन्दी कहानी एवं कविता संग्रह) २०२२
ईमेल :- kushraazjhansi@gmail.com
सम्पर्क :- 8800171019, 9569911051
पतो :- नन्नाघर, जरबौ गॉंव, बरूआसागर, झाँसी (बुंदेलखंड) – २८४२०१
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