बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी में आयोजित बुन्देली साहित्य उत्सव में साहित्यकारों ने बुंदेली भाषा और बुन्देली लोक साहित्य का महत्त्व समझाया

 *** बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी में आयोजित बुन्देली साहित्य उत्सव में साहित्यकारों ने बुंदेली भाषा और बुन्देली लोक साहित्य का महत्त्व समझाया ***

रिपोर्ट - गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'



विगत 30 मार्च 2023 को हिन्दी विभाग, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ एवं डॉ० मनुजी स्मृति ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविद्यालय परिसर झाँसी में बुंदेली साहित्य उत्सव और राष्ट्रीय पुस्तक मेला आयोजित हुआ। 

बुन्देली साहित्य उत्सव का ये दूसरा दिन था जिमसें बुंदेली साहित्यकारों और बुन्देली भाषा विशेषज्ञों ने अपनी रचनाओं की प्रभावशाली प्रस्तुति के माध्यम से छात्र - छात्राओं और बुन्देली प्रेमियों को बुन्देली भाषा और बुन्देली लोक साहित्य के महत्त्व को समझाया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता झाँसी महानगर निवासी विख्यात साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी डॉ० रामशंकर भारती जी ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में अपनी एक रचना 'जानकी अब सब जान गई' सुनाई और कहा कि आज माताओं ने गाना बंद कर दिया है। यह चिंता का विषय है। उन्होंने आगे कहा कि बोलियों को भाषा बनाने की जिद पर भी गम्भीरता से विचार करना चाहिए। यदि बुंदेली को अलग भाषा मान लिया जाए तो हिन्दी का भविष्य भी प्रभावित होगा। लोकभाषा का शब्दों का प्रयोग सामान्य तौर पर करना चाहिए। भाषण और व्यवहार में विरोधाभास नहीं होना चाहिए। 


महोबा से पधारे सारस्वत अतिथि प्रसिद्ध बुंदेली साहित्यकार संतोष पटैरिया ने अनेकों बुंदेली कहावतों और मुहावरों का सही रूप समझाया। उन्होंने 'अटकन चटकन ढाई चकोटन' और 'धोबी को कुत्ता घर को न घाट को' का सही रूप समझाते हुए लोक साहित्य पर चिंता व्यक्त की। इसके साथ ही आल्हाखंड पर भी चर्चा की। 


फिर सारस्वत अतिथि बरूआसागर झाँसी निवासी प्रसिद्ध साहित्यकार और पूर्व आईएएस डॉ० प्रमोद कुमार अग्रवाल उर्फ पी० के० अग्रवाल जी ने अपनी रचनाओं की जानकारी साझा करते हुए अपनी आत्मकथा के कुछ अंश सुनाए। उन्होंने कहा कि माँ के साथ हम बुन्देली भाषा में ही बात करते थे। बुंदेली बहुत प्यारी भाषा है। उन्होंने आगे कहा कि मेरे उपन्यास 'साकार होते सपने' में भी बरूआसागर का चित्रण है। अभी हाल ही में प्रकाशित उपन्यास 'झाँसी की वीरांगना' में मैंने झाँसी की रानी का प्रशासनिक दृष्टिकोण से मूल्यांकन किया है। 


झाँसी निवासी प्रसिद्ध व्यंग्यकार देवेन्द्र भारद्वाज जी ने अपनी पुस्तक 'लाल किताब' में प्रकाशित एक व्यंग्य रचना 'किट का कमाल' सुनाई। इसके साथ ही उन्होंने एक शेर 'आईना बनने से बेहतर है कि पत्थर बनो, यदि कभी तराशे गए तो देवता बन जाओगे' भी सुनाया। 


झाँसी निवासी प्रसिद्ध साहित्यकार निहाल चंद्र शिवहरे ने कहा कि हम आपको जगा आए है। बुन्देली भाषा को अपनाने आए हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बुन्देली अभी संविधान की आठवीं अनुसूची में नहीं आई है जबकि इसका प्रयोग सात करोड़ लोग करते हैं। उन्होंने सभी छात्र - छात्राओं और बुंदेली प्रेमियों से बुंदेली को आठवीं अनुसूची में जुड़वाने हेतु व्यापक अभियान छेड़ने का आह्वान किया। इसके बाद उन्होंने कई मुहावरे और हाईकू भी सुनाए और बुन्देली भाषा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों से प्राप्त होने वाले रोजगार के तौर तरीके भी बताए।


झाँसी निवासी विख्यात बुन्देली साहित्यकार साकेत सुमन चतुर्वेदी ने कुछ स्वरचित बुन्देली रचनाएँ सुनाईं। इसके साथ उन्होंने एक नौटंकी का प्रसंग भी सुनाया। उन्होंने युवाओं कहा कि "कुशराज बुन्देली के लिए लगन और मेहनत से बेहतर काम कर रहे हैं। हम कुशराज के  बुंदेली के विकास हेतु किए जाने वाले कामों की सराहना करते हैं।" युवाओं को कुशराज से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब आप काम करते हैं तो नाम जरूर होगा। 



झाँसी निवासी विख्यात साहित्यकार राजेश तिवारी मक्खन ने माँ सरस्वती को नमन करते हुए अपनी बुन्देली रचनाएँ सुनाईं "खुशी को नौंनों सो अवसर आओ, हम बुन्देली साहित्य उत्सव मना रए"। उन्होंने कहा कि मताई की भासा खों ना भूलें। अब तो मताई की भासा में टीबी पे सीरियल और बतकाव आ रए। उन्होंने बुन्देली भाषा प्रेम को समर्पित एक रचना "नौनीं बुंदेली है बानी, ईको कोऊ नईं सानी" भी सुनाई। 


इससे पहले सभी अतिथि साहित्यकारों को पुष्पगुच्छ और अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया। उत्सव के संयोजक प्रो० मुन्ना तिवारी ने सभी अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया और छात्र - छात्राओं से आव्हान किया कि आप अपनी मातृभाषा को बिना किसी झिझक से गर्व के साथ बोलें। ऐसा करके आप हिन्दी को ही समृद्ध करेंगे। इस अवसर पर डॉ० अचला पाण्डेय, डॉ० जयसिंह, डॉ० श्रीहरि त्रिपाठी, डॉ० नवीनचंद्र पटेल, डॉ० उमेश शुक्ल, डॉ० शैलेन्द्र तिवारी, डॉ० प्रेमलता श्रीवास्तव, डॉ० द्युतिमालिनी, डॉ० सुनीता वर्मा, डॉ० पुनीत श्रीवास्तव, डॉ० उमेश कुमार, डॉ० प्रशान्त मिश्रा, डॉ० श्वेता पांडेय, अभिषेक कुमार, अतीत विजय, शाश्वत सिंह समेत अनेक बुंदेली भाषा प्रेमी - प्रेमिकाएँ और छात्र - छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ० अजीत सिंह ने और आभार डॉ० सुनीता वर्मा ने व्यक्त किया।

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