कार्यालयी भ्रष्टाचार और इंसानियत की जमीनी हकीकत को दिखाती हैं आचार्य पुनीत बिसारिया की लघुकथाएँ - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'
*** कार्यालयी भ्रष्टाचार और इंसानियत की जमीनी हकीकत को दिखाती हैं आचार्य पुनीत बिसारिया की लघुकथाएँ - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी' ***
आचार्य पुनीत बिसारिया
महान शिक्षाविद, साहित्य, सिनेमा के विश्वविख्यात विशेषज्ञ, बुंदेली साहित्य और बुंदेलखंड की शिक्षा में अमूल्य योगदान देकर बुंदेलखंड के हिन्दी और बुन्देली साहित्यकारों को प्रकाश में लाने वाले कुशल संपादक, आलोचक, लेखक, हिन्दी विभाग, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी के आचार्य एवं पूर्व विभागाध्यक्ष पूजनीय आचार्य पुनीत बिसारिया जी Puneet Bisaria द्वारा लिखीं गईं दो लघुकथाएँ 03 दिसम्बर 2023 को प्रवासी हिन्दी साहित्यकार डॉ० तेजेन्द्र शर्मा द्वारा संपादित अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका 'पुरवाई' में प्रकाशित हुईं हैं।
पहली लघुकथा 'पेन ड्राइव' में भारत देश के सरकारी और अर्द्धसरकारी कार्यालयों में व्याप्त भष्ट्राचार को बखूबी उजाकर किया गया है। ऑफिसों में रिश्वतखोरी अग्रेंजों के जमाने से आज तक जारी है, जो सरकार के देश के विकास में शुरू की गई योजनाओं का सफल कार्यान्वयन रोकती है और रिश्वतखोंरों के काले कारनामों के कारण सरकार भी बदनाम होती है। 21वीं सदी का विकसित भारत बनाने में कार्यालयों में व्याप्त भष्ट्राचार और रिश्वतखोरी यानि अधिकारियों, कर्मचारियों, बाबुओं की ऊपरी कमाई सबसे बड़ी बाधा है। विकसित भारत बनाने के लिए कार्यालयी भ्रष्टाचार और ऑफिसियाई रिश्वतखोरी को जड़ से मिटाना जरूरी है।
पेनड्राइव के ईमानदार और रिश्वतखोरी को रोकने वाले नायक का उसकी ऑफिस के बेईमानी और रिश्वतखोर सहकर्मियों द्वार ऑफिस और जिन्दगी के पत्ता साफ करना यानी हत्या जैसे काले कारनामों को अंजाम देना आज की सच्चाई है। इस सच्चाई को बदलने के लिए बेईमानों और रिश्वतखोरों की काली गैंग को मिटाने किए सफल सरकारी प्रयास किए जाने चाहिए। जैसा योगी जी के राज में हो रहा है। भ्रष्टाचारी, दबंग और अपराधी नेताओं के घरों पर बुलडोजर चल रही है और वो पुलिस मुठभेड़ में एनकाउंटर में मारे जा हैं। आखिर वो दिन कब आएँगे, जब ऑफिस के बेईमान और रिश्वतखोर बाबूओं, कर्मचारियों, अधिकारियों, कुलपतियों और प्रोफेसरों के घरों पर बुलडोजर चलेगी और उन्हें भी कड़ी से कड़ी सजा - आजीवन कारावास या तत्काल फाँसी की सजा दी जाएगी ???
दूसरी लघुकथा 'इंसानियत' में 06 दिसंबर 1992 में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद में अयोध्या में हुए दंगों की भीषण त्रासदी को बयाँ किया गया है। दंगों के बीच लघुकथा के हिन्दू नायक द्वारा मुस्लिम कल्लू मियाँ की बच्ची को बचाने लिए अपनी जान जोखिम में डालना इंसानियत को दिखाता है। इंसानियत का कोई धर्म नहीं होता। इंसानियत न हिन्दू होती है, न मुस्लिम, न सिख और ईसाई। इंसानियत तो खुद ऐसा धर्म है, जिसे मानवधर्म कहते हैं, जो हमेशा मनुष्य की भलाई के लिए काम करती है। मनुष्य का मनुष्य के लिए सहयोग करना। मनुष्यों का सुख - दु:ख में एक - दूसरे का साथ देना और स्त्री - पुरुष में कोई भेद न समझना। स्त्री को भी इंसान या मनुष्य समझना है इंसानियत है, वही इंसानियत का धर्म है, वही हर मनुष्य का कर्म है। वही सच्चा मानव धर्म है।
लेकिन आज 21वीं सदी के तीसरे दशक में इंसानियत समाज और दुनिया से खत्म होती नजर आ रही है। अपने स्वार्थ सिद्ध करने और अपना काम बनाने के लिए इंसानियत को ताक पर रख दे रहे हैं 21वीं सदी के मशीनी मानव। चाहे वो स्त्रियाँ हों या पुरूष अधिकतर में इंसानियत खत्म हो गई है। इंसानियत के खत्म होने से आज के स्त्री - पुरूष के रिश्तों में खटास आ गई है, पैसा कमाने की अंधी दौड़ में भावनाएँ मर रहीं हैं। यदि आज के स्त्री - पुरुष को अपनी जिंदगी खुशहाल बनानी है और चिंता से मुक्ति पानी है तो इंसानियत के धर्म पर चलना चाहिए उन्हें। स्त्री - पुरूष का सुख - दु:ख में एक - दूसरे का साथ देना चाहिए। स्त्री को स्त्री और पुरुष को पुरुष लिए अहयोग की भावना को त्यागना चाहिए। 21वीं सदी के मशीनी युग में इंसानियत को बचाना है सबसे बड़ी समस्या है। इंसानियत को बचाने के लिए दुनिया के हर स्त्री - पुरुष को मिलकर का करना चाहिए तभी दुनिया खुशहाल बन सकेगी और हम सबके जीवन में भी खुशहाली आ सकेगी।
पूजनीय आचार्य पुनीत बिसारिया जी को समकालीन श्रेष्ठ हिन्दी लघुकथाओं के लेखन और प्रकाशन हेतु भौत - भौत बधाई।
©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'
(बुंदेलखंडी युवा लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता)
०३/१२/२०२३, जरबोगाँव, झाँसी, बुंदेलखंड
प्रो० पुनीत बिसारिया की लघुकथाएँ -
https://www.thepurvai.com/short-stories-by-prof-puneet-bisaria/
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