कहानी (Story) : रीना (Reena) - कुशराज झाँसी (Kushraj Jhansi)

 *** कहानी (Kahani) - " रीना " (Reena) ***



( 'रीना' हमारी पहली हिन्दी कहानी है। जो हमने 18 दिसंबर 2018 को लिखी थी। यह किसान विमर्श की कहानी है। बुंदेली किसान परिवार की कहानी है। किसानिन रीना और उसके पति किसान शिम्मू के जीवन-संघर्ष की कहानी है। इसमें बुन्देलखंड के गॉंववालों का जीवन, शिक्षा के प्रति समर्पण की भावना और 21वीं सदी के बुंदेलखंड की दशा और दिशा दिखाई गई है। नायिका रीना का फटी - पुरानी साड़ी पहनना और खपरैल घर में रहना, बुंदेलखंड की 90% स्त्रियों की गरीबों को सामने लाता है। इस कहानी में मुख्यरूप से ग्रामीण जीवन की समस्या, पेयजल की समस्या, ग्रामप्रधानों द्वारा गॉंव की जनता का शोषण, रिश्वतखोरी, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा की समस्या को उजागर किया गया है। रोजगार के लिए दिल्ली जैसे महानगरों में पलायन करना, बुंदेलखंड की पलायन की समस्या को दिखाता है। साहूकार नमेश सेठ द्वारा किसान का उत्पीड़न और कर्ज में डूबे किसान शिम्मू का फाँसी लगाकर खेत पर आत्महत्या करना हम सबको सोचने को मजबूर करता है। आखिर किस व्यवस्था के कारण किसान आत्महत्या कर रहा है या व्यवस्था उसकी हत्या कर रही है ? )



      रीना भोर अपने आँगन में झाडू लगा रही थी। नाटे और गोरे बदन पर फटी - पुरानी साड़ी पहने, कड़ाके की ठण्ड से रोम - रोम खड़े हो रहे थे और वह मैला - कुचैला हल्का साल ओढ़े रोजाना का काम निपटा रही थी। उसने भुनसारें चार बजे डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित कुएँ से पीने और खर्च के लिए पानी भर लिया था क्योंकि घर के पास वाला हैण्डपम्प खराब पड़ा था।



                 पानी भरने के साथ ही गोबर इकट्ठा कर लिया था। जिससे झाडू से निपटने पर ईंधन हेतु कण्डे पाथे और डलिया लेकर तरकारी बेचने गाँव में निकल गयी। बड़ी मधुर आवाज दे रही थी - " बाई हरौ, भज्जा - बिन्नू  ले लो भटा; ताजे - ताजे हाले भटा। बीस रूपए में डेढ़ किलो, नाज  के बराबर।" माते भज्जा ने तीन किलो भटा खरीदे और मन्नू काकी ने नाज के बराबर। आज सवा सौ रूपए और चार किलो नाज की आमदनी हुई। हाथ - मुँह धोया और खाना पकाने बैठ गई। चना की दाल बनाई और जब रोटी सेंक रही थी तो लकड़ियों और भटन के डूठों का धुआँ आँखों में हद से बेजां लग रहा था। आँखे मडीलते - मडीलते लाल हो गईं, बड़ी मुश्किल से रोटी सेंक पाईं। 



                इतने में पतिदेव शिम्मू हार से पिसी में पानी देकर लौट आए। ढाई बीघा के आधे खेत में पिसी लगी थी और आधे में तरकारियाँ और मटर। माघ की अँधेरी रात में शिम्मू गायों से खेत की रखवाली करते, उसी सस्ते और रद्दी कम्बल को ओढ़कर जो पिंटू नेताजी ने पिछले चुनाव में बाँटा था। हल्की सी टपरिया डाले, मूँगफली के टटर्रे से तापते - तापते रात गुजारते। दिन में कलेवा करके खेत में लग जाते, कभी रीना के साथ तरकारियाँ तोड़वाते तो कभी पिसी में खाद देते।



               रीना डाँग में बकरियाँ चराने निकल जाती। दोपहर का भोजन न करके कन्दमूल फलों से गुजारा करती। देर रात तक बड़े बेटे करन के साथ जागती रही थी क्योंकि वह डाकिया की परीक्षा देने झाँसी जा रहा था। इसलिए उसको नींद आ गयी और तीन पागल कुत्तों ने उसकी एक बकरी को तोड़ दिया। बिलखती हुई आज जल्दी घर आ गई। शाम को पतिदेव ने उसे बहुत डाँटा और अगले सुबह तीनों बकरियाँ खटीक को बेच दी गईं। अब बाल - बच्चे दूध से भी बंचित हो गए। ये बकरियाँ ही उनकी गायें थीं।



                  छोटा बेटा वरुन बगल के गाँव में एक हॉटल में बर्तन धोने का काम बड़ी जिम्मेदारी से करता। वह सिर्फ कक्षा छह तक पढ़ा है। वह हमेशा कहता - " अम्मा! बड़े भज्जा पढ़ जाएँ, हम तो ऐसे ही ठीक हैं।" करन वरुन से बहुत प्यार करता। वह किसी भी परिस्थिति में उसे दुःखी नहीँ होने देता। करन ने बीस किलोमीटर साईकिल भांजकर इण्टर तक पढाई पूरी की और डाकिया बन गया। वरुन बेचारा अब भी जूठी प्लेटें धोता और अम्मा - पापा खेत में दिनरात लगे रहते हैं।



                रीना दूसरों के खेतों में मजूरी करती और कभी बेलदारी करके अपनी लाड़ली पिंकी के विवाह हेतु धन इकट्ठा करती। हफ्ते में एक बार जंगल में लकड़ियाँ काटने जाती। शाम को चिलमी जलाकर अपने कच्चे - खपरैल घर में उजाला करके रात का खाना पकाती। एकसाथ सब प्रेम से खाना खाते और शिम्मू रोजाना की भाँति खेत की रखवाली हेतु हार को निकल जाते। लाड़ली का वैशाख में विवाह आ गया। लड़के वालों ने डेढ़ लाख का दहेज माँगा है। करन की नौकरी को अभी चार महीने ही हुए हैं। घर में जैसे - तैसे एक लाख रूपए का बंदोबस्त हुआ और पचास हजार तीन प्रतिशत प्रति सैकड़ा की मासिक दर से नमेश सेठ से कर्जा लेकर लाड़ली का विवाह किया।

                  


                 पिंकी की सास सुबह - शाम ताने मारती और छोटी - छोटी बातों पर झगड़ती रहती। बार - बार कहती - " तेरे बाप ने फ्रिज नहीँ दिया, वॉशिंग मशीन नहीँ दी।" खाने में भी कानून करती - " तरकारी में तेल ज्यादा डाल दिया, नमक का तो स्वाद ही नहीँ है।"  पिंकी को भरपेट खाना भी नहीँ खाने देती। वह चिंता में रात को बिना खाए ही सो जाती। एक साल के अंदर पिंकी का पति भी उसकी मारपीट करने लगा। वह अपनी पड़ोस की युवती ऋतु के प्रेमजाल में फँसा था। उसे पिंकी की बिल्कुल भी परवाह नहीँ थी, वह उसे घर की नौकरानी से बदत्तर समझता था। डेढ़ साल के अंदर पिंकी ने दुष्ट पति और कपटी सास से तंग आकर पंखे से लटककर अपनी इहलीला समाप्त कर ली।


                 

                 करन की भी नौकरी छूट गई क्योंकि ग्रामप्रधान ने रिश्वत देकर उसकी जगह अपने बेटे की नौकरी लगवा दी। रीना के घर पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। शिम्मू बेचारा, सीधा - साधा बुंदेली किसान पिंकी के ससुराल वालों का कुछ न बिगाड़ सका। पिंकी के मरने के चार साल बाद करन का गरीब लड़की से संबंध तय हुआ। विवाह में दहेज की तो दूर की बात, बहु के रिश्तेदारों के स्वागत - सत्कार की व्यवस्था शिम्मू ने ही की। शिम्मू तीन - चार लाख के कर्ज में डूब गया। पिछले दो साल से भयंकर सूखा पड़ रही थी। सारा परिवार दाने - दाने के लिए मुहताज हो गया। कुछ गाँववासी मजूरी करने दिल्ली निकल गए तो कुछ अपने दूर के रिश्तेदारों के यहाँ रोजगार करने लगे। नमेश सेठ बार - बार शिम्मू से कर्ज चुकाने  के लिए गालीगलौच करता। शिम्मू डर जाता और मंगलवार को टेंशन में आकर इमली से लटककर फाँसी लगा लेता और कर्ज में ही अपने और किसान भाईयों की भाँति वही कहानी दुहराता।



_18/12/2018_ 01:02 दिन _ जरबो गॉंव, झाँसी


( 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी-संग्रह से...)


©️ कुशराज झाँसी

(प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा, बुंदेलखंडी युवा लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता)



" 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी संग्रह की पहली कहानी व कुशराज की पहली कहानी 'रीना' में मन को झकझोरने वाली दहेज समस्या पर आधारित कथा है, जिसके कारण निर्दोष पिंकी को आत्महत्या करनी पड़ती है। वहीं गाँव के सूदखोरों के कर्ज में दबा किसान शिम्मू भी कर्ज न चुकाने के कारण आत्महत्या कर लेता है। "  
- डॉ० रामशंकर भारती 'गुरूजी' 
(साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी)
 २७/११/२०२३, झाँसी 


" 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी संग्रह की पहली कहानी 'रीना' बुन्देलखण्ड के किसान जीवन की विभीषिका से साक्षात्कार कराती है, जिस पर गोदान के होरी की छाया भी दिखती है। शैलपिक दृष्टि से कहानी प्रभाव भले न छोड़ती हो किन्तु इसका स्वर कृषक जीवन की दुरावस्था को अवश्य वर्णित करता है। " 
- प्रो० पुनीत बिसारिया
 (आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष - हिन्दी विभाग, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी)
20/12/2023, झाँसी


अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका - 'पुरवाई' में 30 दिसम्बर 2023 को प्रकाशित - 

साहित्य सिनेमा सेतु पत्रिका में 18 जनवरी 2024 को प्रकाशित -

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