कहानी (Story) : पंचायत (Panchayat) - कुशराज झाँसी (Kushraj Jhansi)

*** कहानी - " पंचायत " (Panchayat) *** 




(हमारी तीसरी कहानी 'पंचायत' है। ये स्त्री विमर्श एवं पुरुष विमर्श, बदलाओकारी नरवाद की कहानी है। ये एक प्रेम - कहानी भी है। पंचायत कहानी में बुंदेलखंड के  प्रेमप्रसंगों और प्रेमप्रसंगों से उपजी समस्याओं को दिखाया गया है। पहला प्रेमप्रसंग शूरपुरा गाँव के ब्राह्मण लड़के सुनील तिवारी औरत शूद्र लड़की आयुषी चमार के बीच चलता है। सुनील आयुषी को एक दिन गॉंव से भगा ले जाता है और पंद्रह दिन बाद दोनों घर वापिस भी आ जाते हैं। आज भी गॉंवों में किसी दूसरी जाति के लड़का - लड़की के प्रेमप्रसंग को बड़ी बुरी नजर से देखा जाता है मनुवादी जातिवाद के कारण। आयुषी का बाप रमली चमार पंचायत बिठाता है और सुनील को उसकी बेटी भगा ले जाने के अपराध में सजा देना चाहता है। जबकि आयुषी और सुनील जाति - बंधन तोड़कर विवाह करना चाहते हैं लेकिन पैसों का लालची रमली सुनील के घर वालों से तीन रूपए भरी पंचायत में लेकर उसका अपराध माफ कर देता है। कुछ दिनों बाद आयुषी बिनब्याही माँ बन जाती है तो फिर उससे कोई विवाह नहीं करता। उसे आजीवन अविवाहित रहना पड़ता। आखिर आयुषी के उसके पितृसत्तात्मक परिवार, सुनील के परिवार और समाज ने उसके भावनाओं को नहीं समझा ? दूसरा प्रेमप्रसंग वीरगंज कस्बे के शूद्र लड़के निमेंद्र बसोर और वैश्य लड़कियों स्नेहा और मालती सेठ के बीच चलता है। स्नेहा और मालती दोनों सगी बहनें हैं और निमेंद्र से प्रेम करतीं हैं। स्नेहा और मालती के बाप खेमू सेठ को प्रेमप्रसंग का पता चलता है तो वो शहर में पढ़ रहीं अपनी दोनों बेटियों को घर ले जाता है और उनकी पढ़ाई रोककर विवाह करा देता है। खेमू सेठ अपनी बेटियों के प्रेमी निमेंद्र बसोर की हत्या भी करा देता है। आखिर किस बजह से निमेंद्र की हत्या हुई ? क्या निमेंद्र तथाकथित नीची जाति का था ? क्या निमेंद्र को ऊँची जाति के उन लड़कियों से प्रेम करने का अधिकार नहीं जो उससे प्रेम करती हैं ?)


श्यामू पंडितजी का शूरपुरा गॉंव में सिक्का चलता है। गांव में ही नहीं; पूरे मौजे में कथा वाचते हैं, विवाह पढ़ते हैं और सारे पंडिताई के काम - काज करने के साथ - साथ खेती भी करते हैं। पंडित जी की साठ - सत्तर बीघा जमीन है। सारी भूमि उपजाऊ है। हर खेत पर कुँए और नहर की व्यवस्था है। सारा काम मजदूर ही करते हैं। वे सिर्फ खेती की देखरेख करने जाते हैं और मजदूरों को काम बताकर अपनी पंडिताई करने चले जाते हैं। 



रेखा पंडिताइन पूजा - पाठ और घर - गृहस्थी के कामकाज में ही सारा दिन निकाल देती हैं। इनके एक बेटी है दिव्या तिवारी और एक बेटा भी है सुनील तिवारी। दिव्या जितनी खूबसूरत, सुशील और संस्कारी है। सुनील उतना ही कुरूप, बदचलन और आवारा है। 



दिव्या हाईस्कूल में शहर वीरगंज के शारदा बालिका शिक्षा मंदिर में पढ़ती है। पढ़ने में तेज होने के साथ - साथ नृत्य भी बेमिसाल करती है। समय से स्कूल जाती है और समय से ही लौटती है। लेकिन उसका भाई सुनील वीरगंज के ही बल्देव माते इंटर कॉलेज में इंटरमीडिएट में पढ़ता है। वो कभी - कभार ही क्लास लेता है। दिनभर दोस्तों के साथ बाईक पर सवार होकर इधर - उधर घूमता रहता है। वो माँस - मच्छी भी खाता है और शराब भी पीता है। ज्यादा पढ़ता - लिखता कुछ नहीं। निराट ढोर है वो।



सुनील कॉलेज में मास्टरों से झगड़ा करता है। लेकिन क्लास की लड़कियों की बहुत इज्जत करता है। गांव में भी दोस्तों के साथ घूमता - फिरता ही रहता है। मम्मी - पापा बहुत समझाते हैं लेकिन वो बिल्कुल मानता ही नहीं। 



वो दूसरे मुहल्ले के रमली चमार की बेटी आयुषी चमार से प्रेम कर बैठता है। रमली गांव में मोची का काम करता है। आयुषी अभी गांव के ही सरकारी हाईस्कूल में कक्षा नौ में पढ़ रही है। पढ़ाई के साथ वो सिलाई का काम भी करती है क्योंकि गरीब घर में इस महँगाई के जमाने में खर्चा चलाना मुश्किल होता है। धीरे - धीरे वो भी सुनील से बेइन्तहाँ प्यार करने लगती है। होली के दिन सुनील आयुषी को गांव से भगाकर ले जाता है। सारे गांव में इनके भागने की खबर सेकेण्डों में ही फैल जाती है। जिससे पंडित जी की बहुत बदनामी होती है।



अगले दिन रमली चमार पंडित से झगड़ने पहुँच जाता है। वो धमकी देकर कहता है -

"अरे पंडित ! तेरे बेटे ने मेरी बेटी भगाकर अच्छा नहीं किया, इसका इल्जाम बड़ा भयंकर होगा। समझे!"

"पंडित जी रमली के आगे हाथ जोड़कर माफी माँगते हैं।"

"रमली पंडित जी पर और क्रोधित हो जाता है।"



पंद्रह दिन बाद शाम को सुनील और आयुषी वापिस गांव लौट आते है। दोनों अपने - अपने घर चले जाते हैं। सुनील को घरवालों द्वारा बहुत ताड़ा जाता है, धिक्कारा जाता है। आयुषी के साथ भी यही सलूक होता है। जो सुनील के साथ हुआ। अगली सुबह पंचायत बैठायी जाती है। पंचायत में गोविंद माते , पंकू मुखिया , निहाल बाबू , कृष्णा महाराज जैसे सात - आठ पंच समेत पंडित जी और रमली के घरवाले बैठते हैं।



पंचायत में रमली चमार कहता है -

"हम पुलिस खों रपोर्ट लिखाबे जा रए। यी पंडित खों सजा जरूर दिलाहों।"

रमली को अपनी इस बात पर अड़े रहने पर पंचों द्वारा समझाया जाता है। बहुत समझाने के बाद वो तीन लाख रुपए में राजीनामा करने को सहमत हो जाता है। रमली अपनी बेटी के यौन - शोषण की कीमत तीन लाख सुनील पंडित के पिता श्यामू से भरी पंचायत में ले लेता है और गुनाह माफ कर देता है। पंचायत में सुनील , श्यामू पण्डित जी और उनकी धर्मपत्नी आयुषी, रमली चमार और उसकी धर्मपत्नी के पैर छूते हैं और माफी मांगते हैं।



पाँच महीने बाद आयुषी गर्भवती दिखाई देने लगती है। रमली चमार उसके विवाह के लिए वर का घर ढूंढने लगता है। वर ढूंढते - ढूंढते ही मकर संक्रांति को आयुषी से एक सुंदर कन्या का जन्म होता है। कन्या के जन्म के बाद आयुषी से कोई भी विवाह करने को राजी नहीं होता है। उसे जिन्दगी भर अविवाहित रहना पड़ता है। 



वह अपने पिता रमली से गुस्साते हुए कहती है - "अरे मोए बाप! तोय तनक भी सरम नईं आई, तोए बड़ी रूपज्जन की भूंक हती। धन - दौलत के लानें तैनें अपनी फूल सी बिटिया खों बेंच दओ। ऐसे बाप पे थू - थू....।"



"हमाओ सुनील मौसें शादी करबें खों तईयार हतो। लेकिन तैनें और यी मताई नें धन - दौलत की लालच में आकें जब मोए बहला - फुसलाकें सुनील सें शादी करबे के लानें मनें करबाई, मौसें सुनील पे झूठे इल्जाम लगबाए।" 



"तुमऔरन जैसे बाप - मताई  पे धिक्कार है। जिननें अपने स्वार्थ के लानें अपनी बिटिया की इज्जत खों नीलाम कर दओ। ऐसे बाप - मताई पे थू - थू...।"



एक साल बाद सुनील और आयुषी जैसे और किस्से सुनने में आते है। धीरपुर ग्राम पंचायत, वीरगंज न्यायपंचायत की दो सगी बहनें स्नेहा और मालती तेली वीरगंज में किराए पर कमरा लेकर हाईस्कूल कर रही थीं। कमरे पर निमेंद्र बसोर सप्ताह में तीन - चार बार आता जाता रहता था। कभी - कभार वहीं रात भी बिताता था।



एक दिन स्नेहा से कमरे वाले अंकल ने पूंछा - " कौन है ये लड़का ? जो कमरे पर बार - बार आता है।"

"अंकल ! ये मेरे जीजाजी हैं।"

" कोई बात नहीं बेटा ! मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था।"



एक महीने बाद अचानक स्नेहा के पिताश्री खेमू सेठ कमरे पर पहुंच जाते हैं। निमेन्द्र पलंग पर लेटा हुआ है और दोनों बेटियां खाना पका रही हैं। अचानक पिताश्री को देखकर दोनों बहनें बहुत डर जाती हैं और शर्मसार हो जाती हैं।



खेमू सेठ मालती से पूछता है - 

" ये लड़का, जो पलंग पर लेटा है। कौन है? कहाँ का है?"

" पापा ये मेरा दोस्त है निमेंद्र। हल्कागढ़ के करोड़े अंकल का बेटा।"

" कौन करोडे अंकल ?"

" वही जो टोकरी, पिरा और हाथ के पंखा बनाते हैं और बेचते हैं ।"

" अच्छा! कोई बात नहीं।"



इतना सुनकर सेठ कमरे के मालिक से अपनी बेटियों और उस लड़के के बारे में पूछताछ करते हुए कहते हैं -

" भाई ! सच - सच बताना कि मेरी बेटियों और उस लड़के के बारे में आपको क्या - क्या पता है। बताओ, प्लीज...!"

" अरे बड़े भाई ! आपकी बेटियों और उस लड़के के बारे में ज्यादा कुछ तो पता नहीं। जितना पता है, वो सब बताता हूँ। एक दिन की बात है कि जब मैंने स्नेहा से उस लड़के के बारे में पूंछा था तब उसने जवाब में अपना जीजाजी बताया था। मैंने समझा सच में जीजाजी ही होगा तभी बार - बार आता है और बाकी का भगवान जाने….।"



" बड़े भाई! आप ही बताइए, क्या वो लड़का आपका दामाद है?"

" नहीं भाई ! वो मेरे गांव का लड़का है। आज पहली बार ही मैंने इस कमरे पर देखा है। पहले ज्यादा कभी ध्यान नहीं दिया था। उसके बाप को जरूर जानता हूँ।"

" अरे बड़े भाई! ये तो बहुत गलत हो रहा है आपके और आपकी बेटियों के साथ। इसमें गलती आपकी बेटियों की ही हैं...।"



इतना सुनकर खेमू सेठ आग बबूला हो जाते हैं और बेटियों के कमरे में जाकर गुस्साते हुए कहते हैं - " कहाँ गया वो लड़का? देखता हूँ उसे कैसा तुम्हारा दोस्त है और कैसा जीजा?"



" फटाफट सामान पैक करो और घर चलो अभीहाल इसी वक्त। हो गई हाईस्कूल तुम लोंगों की, यहाँ पढ़ने आयी थी या इश्कबाजी करने। पहले घर चलो फिर बताते हैं...।"


खेमू सेठ दोनों बेटियों को लेकर जैसे ही घर पहुंचते हैं तभी दरवाजे पर पत्नी सुनयना मिल जाती हैं।

"वो पूछती है - क्यों ले आये इन्हें?"

" चलो अंदर फिर बताते हैं। ये हमरी नालायक बेटियाँ, दोनों की दोनों उस बसोर के लड़के से वहाँ इश्क लड़ा रही थीं। हम लोंगों की नाक कटवा रही थीं। पढ़ाई का सिर्फ नाम था। ये सब तो मुझे तब समझ में आया जब मैंने कमरे के मालिक से इनके बारे में पूंछताछ की...।"


" हे भगवान ! ऐसी है हमरी बेटियां...।"


अब दोनों बहिनें एक कोने में सामान पटककर पलंग पर बैठकर आंसू बहा रही होती हैं और फिर माँ - बाप की डांट - फटकार सुनकर सो जाती हैं।



दो माह बाद स्नेहा की शादी रितेश से और मालती की शादी मोहित से कर दी जाती है। दोनों के ससुराल वालों का अच्छा खासा व्यवसाय है। एक की फर्नीचर की दुकानें हैं और  तो दूसरे की सीमेंट की एजेंसी...।



तथाकथित अपमानित सामाजिक व्यक्ति खेमू सेठ अपनी बेटियों की शादी करने के बाद निमेंद्र बसोर का मर्डर करवा देता है जिसकी किसी को भनक तक नहीं लगती। ये है आज के गरीबों और अमीरों, देहाती और शहरी समाज का हाल...।



_25/12/2018 _ 10:00 रात _ जरबो गाँव, झाँसी


( 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी-संग्रह से...)

©️ कुशराज झाँसी (प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा, बुंदेलखंडी युवा लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता)


" इस संग्रह की एक अत्यंत महत्वपूर्ण कहानी है 'पंचायत'। 'पंचायत' कहानी में अंतरजातीय विवाह की समस्या को प्रमुखता से उठाया गया है। सवर्ण जाति के पण्डित लड़के सुनील तिवारी का गाँव के रमली चमार की बेटी आयुषी के संग प्रेम प्रसंग दिखाया गया है। दोनों गाँव से भाग जाते हैं। गाँव की पंचायत के दबाव के कारण सुनील तिवारी आयुषी को गाँव वापस लाता है। लड़की भगा ले जाने के आरोप में पंचायत द्वारा ब्राह्मण परिवार पर तीन लाख रुपए का दंड लगाया जाता है, जिसे पण्डित स्वीकार लेते हैं। इस दौरान आयुषी सुनील के बच्चे की बिन ब्याही माँ बन जाती है। जिसके कारण आयुषी का कहीं रिश्ता नहीं हो पाता है। आयुषी धन लोलुप माँ-बाप को कोसती रहती है। दूसरा प्रसंग भी इस कहानी में अंतरजातीय प्रेम प्रसंग से संबंधित है। बसोर जाति का लड़का निमेंद्र बनिया जाति की लड़कियों से प्रेम करता है। जब परिवार वालों को इस बात का पता लगता है तो इसकी परिणति बसोर जाति के प्रेमी लड़के निमेंद्र की हत्या से होती है। यह कहानी खाप के सामंतवाद का बखूबी उद्घाटन करती है। "

- डॉ० रामशंकर भारती 'गुरूजी' (साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी) २७/११/२०२३, झाँसी


" तीसरी कहानी 'पंचायत' है, जिसमें अस्पृश्यता और सामाजिक पाखण्ड की किरचों को उधेड़कर रखने का साहसिक प्रयास लेखक ने किया है, साथ ही निम्न वर्ग की धन तृष्णा और उच्च वर्ग द्वारा झूठी शान के लिए बेटी के प्रेमी निम्न वर्ग के युवा की हत्या करा देने जैसे जघन्य कृत्य को दिखाकर लेखक ने समाज की नग्न वास्तविकता को सामने रखने का प्रयास किया है, जो सराहनीय है क्योंकि ऐसी घटनाएँ लगातार हमारे समाज को खोखला करने में लगी हुई हैं। " - प्रो० पुनीत बिसारिया (आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष - हिन्दी विभाग, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी) 20/12/2023, झाँसी


साहित्य सिनेमा सेतु पत्रिका में 20 जनवरी 2024 को प्रकाशित -

https://sahityacinemasetu.com/kahani-panchayat/





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