कहानी (Story) : तीन लौण्डे (Teen Launde) - कुशराज झाँसी (Kushraj Jhansi)
*** कहानी (Kahani) - " तीन लौण्डे " (Teen Launde) ***
( हमारी पाँचवी कहानी 'तीन लौण्डे' है। यह दिल्ली के विश्वविद्यालयीय जीवन की कहानी है। इस कहानी में दिल्ली की कॉलेज लाइफ का जीवंत चित्रण हुआ है। इसमें तीन मुख्य पात्र हैं - मेहू, रॉनी और निहाल। मेहू सिविल सेवा की तैयारी करने वाला गंभीर छात्र है और रॉनी और निहाल दोनों आवारा, नशाखोर, लड़कीबाज हैं। इन तीन लौंडों के माध्यम से समाज की स्त्रियों, लड़कियों के प्रति सोच को उजागर किया गया है। साथ ही समाज के लिए वेश्याओं / रंडियों की जरूरत को दिखाया गया है और नशाखोरी, आवारागर्दी के नुकसान भी बताए गए हैं। क्या भारत के युवाओं को इन लौंडों जैसा जीवन जीना चाहिए या इन लौंडों जैसे साथियों से युवा - युवतियों को दूरी बनाकर सतर्क होकर जीवन जीना चाहिए ? )
मेहू आज कूड़ा फेंक दिया। नहीँ भैया, आज भी आंटी नहीँ आयी। चलो ठीक है। कल ध्यान से ये सब कूड़ा और वियर की बोतल भी फेंक देना। वैसे एक हफ्ता से पड़ा है, भौत बदबू मार रहा है। खाने वाली आंटी भी बोल रही थी शाम को। जब तुम मल्कागंज तरफ गए थे अपने दोस्तों से मिलने।
मैंने कह दिया - "आंटी कल जरूर फिकवा देंगे। मेरा मेहू ही कूड़ा फेंकता है, फ्लैट में ऊकी जा ड्यूटी है। हम दोनों तो आठ बजे तक सूते रहते हैं। वो ही सवेरे पाँच बजे जग जाता है। ये ऊकी आदत है कायकी वो हर काम बड़ी लगन से करता है। यूपीएससी में लगन बड़ी जरूरी है। हमें लगता है कि दो साल में ही मेहू आईएएस ऑफिसर बन जाएगा।"
"हाँ भैया! आप लूगन को भी नाम ऊँचो होईगो।
हम भी धन्य हो जाऊँगी। ऑफिसर बनके कभी मिलेगा तो हम भी काम पड़ने पे ऊसे अपना काम करा लेबी।"
"हओ आंटी।"
बड़ा नेक दिल है मेहू। टाइम पे पैसा देता है, ऊमें कॉलेज के लौण्डों जैसे कोई एमाल भी नहीँ हैं। न ही सिगरेट फूँकता है और न ही गुटका खाता। कभी कभार हम लोगों के साथ बैठ जाता है, जब वियर चल रही होती है। वियर का तो पैग नहीँ लगाता। सिर्फ थोड़ा भौत चिखना खा लेता है और घण्टों बैठकर बतियाता रहता है।
"अरे रॉनी भैया! ये बताओ आज खाने में क्या बनाना है?"
"आंटी, अभी आलू के परांठे बना दो। शाम को मटर पनीर और रोटी बना देना।"
"ओके। "
"निहाल भैया तो तीन - चार दिन से बिल्कुल नहीँ दिख रहे हैं। कितै गए हैं वो?"
"आंटी! वो अभी गाँव गए हैं। उनके बड़े भाई की शादी है इसी 21 को।"
"अच्छा!!!"
"उनकी साली बड़ी सेक्सी है। झक्कास माल है, एक नम्बर। निहाल फोन में फोटो दिखा रहा था। एक बार वीडियो कॉलिंग भी कर रहा था। जब मैं भी ऊके बगल में ही बैठा था, तब ऊने हमाई भी वीडियो कॉलिंग कराई ती। कह रहा था - यार रॉनी! रेखा बड़ी अच्छी लगती है, मुझे प्यार हो गया है उससे। भैया की शादी निपट जाए फिर हम भी भाभी से बात करते हैं अपने और रेखा की शादी के बारे में।"
मैं फिर भी तुमको चाहूँगा.......फोन की रिंगटून बजती है। निहाल का फोन आया था......
"हैलो निहाल!"
"हाँ भाई"
"क्या कर रहा है। तूँने तो फोन ही नहीँ किया जब से तूँ गया। आज पाँच दिन हो गए बिना बतियाए…..।"
"कुछ नहीँ भाई। परसों भैया की शादी है, उसी की तैयारी में बिजी हूँ। कल बुआ यहाँ बाँदा गया था। बुआ को लिबाने के लिए। अभी सवा घण्टे पहले ही लौटा हूँ। बहुत थक चुका हूँ। जब से दिल्ली से आया हूँ, तभी से इधर - उधर के चक्कर काट रहा हूँ। चैन से बैठ ही नहीँ पा रहा…..।"
"कोई न भाई। शादी के बाद चैन से बैठना ही है। और ये बता, रेखा भी आएगी न।"
"हाँ भाई।"
"और तूँ नहीँ आ रहा।"
"नहीँ भाई। सॉरी!!!"
"काय?"
"23 को एनिमल डायवर्सिटी का इंटरनल है। अभी पता चला है। चौक पर गया था तो चाय वाले पर हिस्ट्री वाला पवन मिला था। तो बोल रहा था। भई तूँ तो आठ दिन से क्लास ही नहीँ जा रहा है। तुझे पता नरसों दीपिका मैम दो यूनिट्स का टेस्ट ले रही हैं। बोल रहीं थीं। जो इस बार और नहीँ आया तो मैं उसका फिर से टेस्ट नहीँ लूँगी। ये दूसरी बार टेस्ट हो रहा है। समझे बच्चो। यस मैम।"
"अरे बेंचो! भई तूने नोट्स तो बनाए होंगे न। मुझे भी दे दे यार कुछ मेरा भी भला हो जाए। अभी तक कुछ भी नहीँ पढ़ा हूँ। तेरे पीजी तक चलता हूँ। इन दो - तीन दिनों में तेरे नोट्सोँ से भौत कुछ पढ़ लूँगा। पास होने लायक तो हो ही जाएगा।"
"कोई न भाई। अच्छे से इंटरनल देना।"
"ओके भाई।"
" और भाई तूँ, भैया - भाभी को मेरी तरफ से शादी की बधाई दे देना और अंकल - आंटी को सादर नमस्कार बोल देना।"
"ठीक है भाई।"
"ओके बाय! टेक केयर।"
शाम को मेहू ने रॉनी से पूँछा -
"भैया खाना लगा लें।"
"अभी नहीँ। तुम खा लो, मैं बाद में खा लूँगा।"
"ओके भैया।"
"यार ध्यान से मुझे सुबह छह बजे जगा देना। इंटरनल है अभी तीन चैप्टर ही पढ़ पाए हैं। पाँच चैप्टर बाकी हैं। इसलिए तुम ध्यान से सुबह जगा दिया करना........।"
"ओके भैया।"
खाना खाकर मेहू नीलोत्पल मृणाल जी की डार्क हॉर्स उपन्यास पढ़ने लगा। इसके बारे में दोस्तों से बहुत सुना था। आज ही वो पटेल चेस्ट से इसे खरीद लाया था। उसके पास पैसे न होने के बावजूद अपनी दोस्त रश्मि से पाँच रूपये उधार लिए। एक सौ बीस की तो डार्क हॉर्स खरीदी और बाकी के तीन दिन के खर्चे के लिए बचा लिए। क्योंकि तीन दिन में ही दादाजी पैसे भेजने वाले थे। नौ बजे से उपन्यास पढ़ते - पढ़ते रात के दो बज गए और वो हाथ में किताब पकड़े ही सो गया क्योंकि आज पाँच बजे कॉलेज से आने के बाद वो सो भी नहीँ पाया था इसलिए ज्यादा थकान महसूस कर रहा था। सत्तर परसेन्ट किताब पढ़ चुकी थी। जो थोड़ी बहुत बची थी, वो अगले दिन लाइब्रेरी में ही पढ़ डाली।
सुबह साढ़े पाँच बजे मेहू जाग गया। फ्रेश होकर फिर से पढ़ने वाला ही था। पहली क्लास जीई - इंग्लिश वूमन एण्ड एम्पावरमेंट इन कंटेम्पोररी इण्डिया की थी। जिसमें मैम को बेगम रोकैया की कहानी - सुल्ताना का सपना पढ़ानी थी। क्लास के व्हाट्सएप ग्रुप में रात को मैम ने कहानी की लिंक भी भेजी थी और मैसेज किया था कि सभी स्टूडेंट्स इसे जरूर रीड करके आना।
जैसे ही मेहू स्टडी टेबल पर पढ़ने बैठा तो उसे ध्यान आया कि रात में रॉनी भैया ने जगाने को कहा था। तो वह उठकर रॉनी भैया के रूम की ओर जाता है। गेट को नॉक करता है और कुंदी भी बजाता है। सात - आठ बार कॉल भी कर चुका होता है। फिर भी रॉनी को कुछ असर नहीँ पड़ता है। सात बजे फिर से रॉनी को जगाता है तो वह उसके दो बार आवाज लगाने पर ही जाग जाता है।
"जागो भैया जागो। साथ बज गए हैं। आप तो बोल रहे थे, छह बजे जगा देना। आप तो अब ऐसे सो रहे हैं जैसे कुम्भकर्ण हों। उठ जाओ अब बहुत हो गया आलस - मालस। जागो और पढ़ो। इंटरनल है आपका.......।"
"चलो ठीक है। जाग गया हूँ। भाई ऐसे ही रोज जगा दिया करना।"
आज शाम छः बजे मेहू कॉलेज से लौटकर आया तो रॉनी से बोला -
"भैया! क्या आप आज भी कॉलेज नहीँ गए थे?"
"नहीँ।"
'क्यों?"
"तुम्हें पता नहीँ। आज तुम्हारी भाभी आयी थी। जैसे ही मैं कॉलेज के लिए निकलने ही वाला था, तभी उसका कॉल आ गया। वो बोली - "यार जानू! मैं आ रही हूँ।"
"कहाँ?"
"तुम्हारे फ्लैट पर।"
"आओ जानू। मैं भी कॉलेज नहीँ जा रहा हूँ। बहुत दिनों के बाद मिल रही हो...................।"
"भैया कौन - सी?"
"वही, लाइफ साइंस वाली, महक।"
"अच्छा!"
"वोई वाली, जो दो महीने पहले विश्वविद्यालय मेट्रो पर मिली थी।"
"हाँ मेहू।"
"भैया! भाभी तो बड़ी मस्त लग रही थी उस दिन ब्लैक हॉट जीन्स और ऑरेंज टॉप में........।"
"अगली बार आए तो मिल बाईएगा जरूर।"
"ओके भाई।"
"भैया! और ये बताओ कि भाभी कितनी देर पहले इतै से चली गई।"
"अभी बीस मिनिट पहले ही उसे उसके पीजी कमलानगर तक छोड़कर आया हूँ।"
"खाना क्या बना है आज?"
"हमें नहीँ पता यार! तुम जाकर देख लो।"
"क्या आपने नहीँ खाया?"
"नहीँ भाई। रोमांस करते - करते ही एक बज गया थाऔर अम्बा सिनेमा में मूवी भी देखने गए।"
"कौन से मूवी लगी थी?"
"धड़क"
"अच्छा!'
"बहुत मजा आया आज। सारा खर्चा महक ने ही किया।"
"अरे वाह! आप इसलिए तो ज्यादा खुश हैं। अब पता चली असली बात................।"
"और कल के इंटरनल की क्या तैयारी है?"
"हो गयी तैयारी ठीक ठाक। बड़े दिनों में हो महक मिली थी। इंटरनल तो फिर दे देंगे.................।"
"ठीक है भैया। आप जानें और आपका काम..........।"
"मैं तो चला खाना खाने। लगातार क्लासेज होने से लंच तक नहीँ कर पाया। अभी क्लासमेटों के साथ सुदामा पर चाय पी कर आ रहा हूँ। बहुत जोर से भूख लगी है।"
"चलो तुम खाना खा लो। मैं तो सोने जा रहा हूँ।"
खाने में आलू गोभी, रोटी और रायता बना हुआ था। आस्ते से खाना खाने के बाद मेहू भी सो गया। रात में फिर दस बजे जागा और उपन्यास लिखने लगा। चार बजे तक लिखता रहा और फिर सो गया। सुबह साढ़े आठ बजे जगा इसलिए पहली क्लास छोड़नी पड़ी। रॉनी इंटरनल देने कॉलेज जा चुका था। ये भी कॉलेज पहुँचा। लंच में कैण्टीन में मेहू रॉनी से मिलता है और हाय - हैलो करता फिर बोलता -
"भैया! कैसा हुआ इंटरनल?"
"अच्छा हुआ। ठीक ठाक।"
"क्या खाओगे तुम?"
"मैं मसाला डोसा और फ्रूटी।"
"ओके।"
दो दिन बाद निहाल भी लौट आता है। अभी सुबह पाँच बजे ही ट्रेन से नई दिल्ली पर उतरा था। फिन करके बोला था -
"हैलो रॉनी! अगर फ्री हो तो स्टेशन आ जाओ, सामान बहुत है।"
"ओके आता हूँ।"
फटाक से ओला किया और जा पहुँचा और फिर दोनों साढ़े छह बजे फ्लैट आ गए।
फ्लैट पर ही आज शाम को अपने भाई की शादी की खुशी में निहाल ने दोस्तों के लिए पार्टी रखी थी। पार्टी में सात - आठ दोस्तों ने खूब वियर पी। सिगरेट की पन्द्रा - सोलह डिब्बियाँ फूँकी और दो ने तो दारू भी गटकी। चिकन का मजा चखा। धीरज ने तो इतनी पी ली थी कि रात को बॉमटिंग करता फिरा और सबको डिस्टर्ब करता रहा। बेफिजूल गरियाता रहा - हट भोसड़ी के। बेन्चो। झाँट तुम औरें कुछ नहीँ कर पाओगे। साले लौण्डों! तुम सब हरामी हो........।"
रात में एक बजे दो रण्डियाँ बुलाईं। सातों - आठों ने बारी - बारी से रण्डियों के साथ मजे किए सिर्फ मेहू अपने रूम में जाकर सो गया था। रात भर बकचोदी चलती रही। आज दस - ग्यारह हजार खर्च हुए। छः हजार रण्डियों में और बाकी वियर - चिकन में। सारे जागते रहे। जागते - जागते ही सुबह हो गयी। इस दिन कोई भी कॉलेज नहीँ गया। ये तीन लौण्डे - मेहू, रॉनी और निहाल भी........।
_27/01/2019 _ 09:08 रात _ मल्कागंज दिल्ली
( 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी-संग्रह से...)
©️ कुशराज झाँसी
(प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा, बुंदेलखंडी युवा लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता)
" 'तीन लौंडे', जैसा कि कहानी के शीर्षक से ही स्पष्ट हो जाता है। यह आवारागर्दी करते हुए बड़े घरों के लड़कों की कॉलेज लाइफ की फ्री स्टाइल कहानी है। "
- डॉ० रामशंकर भारती 'गुरूजी' (साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी)
२७/११/२०२३, झाँसी
" 'तीन लौंडे' एक अधूरी प्रतीत होने वाली कहानी है, जो दिल्ली में रहने वाले विद्यार्थियों की जीवन शैली को दिखाकर बिना कोई तार्किक अंत दिए खत्म हो जाती है। यह इस कहानी की बहुत बड़ी कमी मानी जानी चाहिए। "
- प्रो० पुनीत बिसारिया
(आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष - हिन्दी विभाग, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी)
20/12/2023, झाँसी
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