युवा जोश का स्वर है 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी संग्रह - प्रोफेसर पुनीत बिसारिया
कुशराज साहित्य
घर से फरार जिंदगियाँ
(कहानी - संग्रह)
©️ कुशराज झाँसी
प्रकाशक - लायन्स पब्लिकेशन, ग्वालियर
पहला संस्करण - दिसंबर 2023
* भूमिका *
" युवा जोश का स्वर है 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी संग्रह "
'घर से फरार जिंदगियाँ' युवा कहानीकार कुशराज का दूसरा कहानी संग्रह है। इससे पहले उनका 'पंचायत' संग्रह प्रकाशित हो चुका है। इस कहानी संग्रह की चर्चा किए जाने से पूर्व यह बताना आवश्यक है कि कुशराज मूलतः झाँसी के बरूआसागर स्थित जरबो ग्राम के निवासी हैं और उन्होंने स्नातक हिन्दी ऑनर्स दिल्ली के प्रतिष्ठित हंसराज कॉलेज से किया है, तत्पश्चात झाँसी के बुन्देलखण्ड महाविद्यालय से एम० ए० हिन्दी और एल० एल० बी० की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद से वे झाँसी में वकालत कर रहे हैं। कुशराज का यह परिचय दिया जाना आवश्यक था क्योंकि कुशराज के समीक्ष्य कहानी संग्रह की ग्यारह कहानियों में से सभी में उनका ग्राम जरबो, बरूआसागर, झाँसी अथवा दिल्ली कहीं-न-कहीं अवश्य उपस्थित है।
'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानी संग्रह की पहली कहानी 'रीना' बुन्देलखण्ड के किसान जीवन की विभीषिका से साक्षात्कार कराती है, जिस पर गोदान के होरी की छाया भी दिखती है। शैलपिक दृष्टि से कहानी प्रभाव भले न छोड़ती हो किन्तु इसका स्वर कृषक जीवन की दुरावस्था को अवश्य वर्णित करता है।
दूसरी कहानी 'सोनम : एक बहादुर लड़की' अतिरंजनापूर्ण है, किन्तु समाज में उपस्थित हवस के दरिंदों को सबक सिखाने का यत्न करती अवश्य दिखाई देती है। माँ-बाप की अकूत धन-दौलत पर ऐय्याशी करते युवा को एक युवा स्त्री द्वारा मार डालना और रातों रात देश-दुनिया का चेहरा बन जाना, नए धर्म का विश्व में फैलना अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, जिनसे बचकर लेखक कहानी को तार्किक परिणति तक ले जा सकता था, किन्तु लेखकीय प्रयासों की सराहना अवश्य की जानी चाहिए कि उसने इस महत्त्वपूर्ण समस्या पर कलम चलाने का निर्णय लिया।
तीसरी कहानी 'पंचायत' है, जिसमें अस्पृश्यता और सामाजिक पाखण्ड की किरचों को उधेड़कर रखने का साहसिक प्रयास लेखक ने किया है, साथ ही निम्न वर्ग की धन तृष्णा और उच्च वर्ग द्वारा झूठी शान के लिए बेटी के प्रेमी निम्न वर्ग के युवा की हत्या करा देने जैसे जघन्य कृत्य को दिखाकर लेखक ने समाज की नग्न वास्तविकता को सामने रखने का प्रयास किया है, जो सराहनीय है क्योंकि ऐसी घटनाएँ लगातार हमारे समाज को खोखला करने में लगी हुई हैं।
संग्रह की चौथी कहानी 'भूत' अंधविश्वासों को बढ़ावा देती है और प्रतिगामी सोच की परिचायक है, किन्तु इससे इक्कीसवीं सदी के समाज में भी ऐसी कुप्रथा जड़ें जमाए हुए है, यह स्पष्ट अनुभूत किया जा सकता है। लेखक को भविष्य में ऐसी कहानियाँ लिखने से बचना चाहिए।
'तीन लौंडे' एक अधूरी प्रतीत होने वाली कहानी है, जो दिल्ली में रहने वाले विद्यार्थियों की जीवन शैली को दिखाकर बिना कोई तार्किक अंत दिए खत्म हो जाती है। यह इस कहानी की बहुत बड़ी कमी मानी जानी चाहिए।
संग्रह की छठवीं कहानी 'घर से फरार जिंदगियाँ' है, जो युवा प्रेम और सफलता की कहानी है। इसे इस संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानी कहा जा सकता है क्योंकि कथा सूत्रों का यथोचित निर्वाह इस कहानी में हुआ है और कहानी पूर्णता को प्राप्त हुई है। प्रेम, अन्तर्जातीय विवाह, सफलता और सफलता के साथ बदलती सामाजिक सोच वे सूत्र हैं, जिनसे यह कहानी बुनी गई है और अपनी कहन शैली के कारण पठनीय बन गई है।
सातवीं कहानी 'मजदूरी' है, जो किसान की जुआ और नशाखोरी की समस्या पर आधारित है, किन्तु कथा सूत्रों का अति सरलीकरण इसे बेहतर नहीं बनने देता।
आठवीं कहानी 'प्रकृति' पर्यावरण संरक्षण पर आधारित है, जिसे थोड़ा अधिक विस्तार दिया जाता तो यह एक अच्छी कहानी बन सकती थी।
समीक्ष्य संग्रह की नवीं कहानी 'पुलिस की रिश्वतखोरी' लेखक की आपबीती घटना प्रतीत होती है और पुलिस की रिश्वतखोरी की प्रवृत्ति पर तंज कसती है, किन्तु कथा सूत्रों की शिथिलता इसे कहानी के स्थान पर आत्म कथ्य तक सीमित कर देती है।
संग्रह की दसवीं कहानी 'हिन्दी : भारत माता के माथे की बिंदी’ लेखक के हिन्दी के प्रति अनुराग का परिचायक है तथा भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हिन्दी में तकनीकी विषयों की पढ़ाई को प्रोत्साहन देने के सुखद परिणाम को सामने रखती है।
संग्रह की ग्यारहवीं और अंतिम कहानी 'अंतिम संस्कार' है, जो सामाजिक, धार्मिक बदलाव की पैरवी करती है और जातीय आधार पर व्यवसायों के निर्धारण का विरोध करती है, साथ ही अन्तर्जातीय विवाह के बहाने समाज में परिवर्तन की बात कहती है।
निष्कर्षतः कुशराज के समीक्ष्य संग्रह की सभी कहानियाँ ग्राम्य और नगरीय क्षेत्र विशेषकर ग्राम से निकलकर पढ़ने हेतु ग्राम्यांचल से नगर अथवा महानगर गए युवाओं की सोच को अभिव्यक्त करती हैं तथा लेखक के निजी जीवन के अनुभवों पर अपेक्षाकृत अधिक केंद्रित रही हैं, जिससे कहानियों में यथार्थता का समावेश है, किन्तु कथासूत्रों की शिथिलता, वैचारिकता के आग्रह और उपयुक्त निष्कर्ष की अप्रकटता कहानियों के शिथिल तत्त्व हैं, जिन्हें दूर करने से भविष्य में हिन्दी कथा जगत को कुशराज के रूप में एक उत्कृष्ट कथाकार मिल सकता है, इसमें किंचित संदेह नहीं है। मैं लेखक को उनके प्रयासों के लिए बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि भविष्य में वे और निखरकर कहानियों के क्षेत्र में मजबूती से अपनी छाप छोड़ने में सफल होंगे।
- प्रो० पुनीत बिसारिया
(आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष - हिन्दी विभाग, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी)
20/12/2023, झाँसी





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