कुशराज झाँसी के कहानी-संग्रह 'घर से फरार जिंदगियाँ' पर कथाकार, आलोचक डॉ० शिवजी श्रीवास्तव की आलोचनात्मक प्रतिक्रिया
** कुशराज झाँसी के कहानी-संग्रह 'घर से फरार जिंदगियाँ' पर कथाकार, आलोचक डॉ० शिवजी श्रीवास्तव की आलोचनात्मक प्रतिक्रिया **
मेरे बड़े कथाकारों ने शुरू में मेरी बहुत तीखी आलोचना की थी, तभी मैं कहानी लिखना सीख पाया। आपको आलोचना से डरना नहीं सीखना होगा।
'घर से फरार जिंदगियाँ' शीर्षक बड़ा आकर्षक और रोचक है। पुस्तक का मुख पृष्ठ भी सुंदर बनाया है। प्रो० पुनीत बिसारिया जी की भूमिका आपको बहुत बड़ा संदेश दे रही है। संग्रह की सारी कहानियाँ पढ़ने के बाद मैनें अनुभव किया कि आपके पास घटनाओं की जानकारी बहुत है, आप समाज को देख कर उसका गहन निरीक्षण भी करते हैं, समाज की रूढ़ मान्यताओं को समाप्त करने की भावना और उत्साह भी आपके अंदर है, पर अभी कहानी-कला की बारीकी और शिल्प की दृष्टि से कहानियाँ कमजोर हैं। दरअसल कहानी अपनी बात को कलात्मक ढंग से कहने की कला है। आप अपनी बात कहने की शीघ्रता में कलात्मक पक्ष की अनदेखी कर रहे हैं।कलात्मक दृष्टि से 'अंतिम संस्कार' और 'घर से फरार जिंदगियाँ' कहानियाँ मुझे अच्छी लगीं। इन कहानियों में कला पक्ष का सम्यक निर्वाह हुआ है। अन्य कहानियों में आपने इस पक्ष को अनदेखा किया है। वे कहानियाँ न होकर रिपोर्टिंग, समाचार या समाज सुधारक के भाषण जैसी लगती हैं। अच्छी कहानी में कहानीकार को अपनी ओर से कोई भी बात नहीं कहनी चाहिए। कहानी को ही अंदर से बोलना चाहिए, कहानी का उद्देश्य कहानी के अंदर वैसे ही चमकना चाहिए जैसे कि किसी बर्तन में पानी की सतह पर तेल की बूंद चमकती है।कथाकार जब स्वयं निष्कर्ष देते हैं तो कहानी का प्रभाव कम हो जाता है। आपके पास विषय बहुत हैं, बुंदेली भाषा पर भी आपकी पकड़ है। आप भविष्य में बहुत अच्छे कथाकार बन सकने की प्रतिभा से संपन्न हैं, पर आपको कहानी के शिल्प पक्ष को साधना होगा। आपको एक अभिभावक के रूप में मैं ये सलाह देना चाहूँगा कि कुछ कहानियों को आप अवश्य पढ़िए, उनको पढ़कर आप स्वयं कहानी की बारीकियों को समझ जाएंगे।
हिन्दी की प्रसिद्ध कहानियाँ ,जो अगर अब तक नहीं पढ़ी हैं तो अवश्य पढ़नी चाहिए -: उसने कहा था (चंद्रधर शर्मा गुलेरी), कफन, पूस की रात, मंत्र, नशा, बड़े घर की बेटी (प्रेमचंद), आकाशदीप, ममता, गुंडा(प्रसाद), पत्नी (जैनेंद्र), रोज (अज्ञेय), राजा निरबंसिया, दिल्ली में एक मौत (कमलेश्वर), जहाँ लक्ष्मी कैद है, टूटना (राजेंद्र यादव), आर्द्रा (मोहन राकेश), गुलकी बन्नो (धर्मवीर भारती), यही सच है (मन्नू भंडारी), कसाईबाड़ा, तिरिया चरित्तर (शिवमूर्ति)... साथ ही इन लेखकों के उपन्यास भी पढ़िए। हिन्दी कहानी का पूरा इतिहास है, प्रेमचंद परंपरा, प्रसाद परंपरा, मनोविश्लेषण की कहानियाँ, नई कहानी आंदोलन, अकहानी आंदोलन, समांतर कहानी आंदोलन, जनवादी कहानी आंदोलन, स्त्री विमर्श, दलित विमर्श। इस प्रकार हिन्दी कहानी में कई आंदोलन चले हैं। इन्हें पढ़िए तब कहानी के उद्देश्य और शिल्प को समझ सकेंगे।
वृन्दावनलाल वर्मा के सारे उपन्यास भी पढ़िए। रेणु जी के उपन्यास पढ़िए, मैत्रेई पुष्पा को पढ़ें। बुंदेलखंड क्षेत्र में इस समय कथा क्षेत्र में रिक्तता है। मैत्रेयी पुष्पा और वल्लभ सिद्धार्थ के बाद कोई बड़ा नाम नहीं है, आप उनका स्थान लीजिए। आप के अंदर प्रतिभा है पर शीघ्रता न करके पढ़कर शिल्प को संवारिए। मेरी शुभकामनाएँ हैं आप श्रेष्ठ लिखें और यशस्वी हों।
©️ डॉ० शिवजी श्रीवास्तव
विक्रम 301, गृहप्रवेश, सेक्टर 77, नोएडा (उ०प्र०)
19/02/2024, सोमवार
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