कवयित्री सीमा मधुरिमा की कविताओं की युवा आलोचक डॉ० रिंकी 'रविकांत' द्वारा की गई समीक्षा पर कुशराज झाँसी की टिप्पणी
*** कवयित्री सीमा मधुरिमा की कविताओं की युवा आलोचक डॉ० रिंकी 'रविकांत' द्वारा की गई समीक्षा पर कुशराज झाँसी की टिप्पणी ***
समकालीन भारतीय समाज में स्त्री की गहन पड़ताल करतीं और स्त्रियों में स्वाभिमान जगाने का काम करती इनकी कविताएँ युगांतकारीं हैं। तत्कालीन समाज की स्त्री का यथार्थ अंकन करने वाली पूजनीय कवयित्री सीमा मधुरिमा Seema Rai Dwivedi जी को भौत-भौत बधाई और उनकी कविताओं की समीक्षा करके समाज को सच्चे साहित्य और अच्छी कविताओं की महत्त्वता बताने वाली और पश्चिमी रंग में रंगी महिला साहित्यकारों - लेखिकाओं/कवयित्रियों की वास्तविकता बताकर उनका मार्गदर्शन करने वाली और समाज को और चरित्रवान पुरुषों को मेनका जैसी कामनियों से बचकर रहने की सलाह देने वाली युवा आलोचक, पूजनीय बड़ी बहिन डॉ. रिंकी 'रविकांत' जी को भी भौत-भौत बधाई 💐💐💐
आज के समय में विलासिता और वासना से भारतीय समाज को बचाना बहुत जरूरी है। चरित्र ही हर स्त्री-पुरूष का सच्चा गहना है। चरित्रहीन पुरुषों और चरित्रहीन स्त्रियों की समाज में कोई जरूरत नहीं। अर्धनग्न रहने वाले लोग पश्चिमी देशों में जाएँ, वहाँ उनकी दाल गलेगी। अर्धनग्न रहने वालों की अब से भारत में दाल नहीं गलने वाली। अपने समाज और अपने चरित्र को बचाने का साहसिक प्रयास हमें अपने आप से ही शुरू करना होगा। यदि कोई पुरूष संयम रखता है और दृढ़ता से चरित्र की सुचिता और पवित्रता बनाए रखना चाहता है तो उसे कोई भी मेनका जाल में नहीं फंसा सकती। यदि कोई स्त्री मां सीता जैसी चरित्र की पवित्रता रखती है तो रावण जैसा राक्षस भी उनके चरित्र की रक्षा करता है और आज के समय में समाज और धोबी के कहने पर उनका पति या प्रेमी पुरूष उनके चरित्र पर उंगली नहीं उठा सकता और न ही आज के समय में श्री राम जैसा पत्नीव्रता पुरूष समाज के कहने पर माँ सीता जैसी पत्नी को वनवास दे सकता है और न ही अपने साथ से वंचित कर सकता है....।।
पहले बदलाओ अपने आप में लाईये और भारतीय संस्कृति की वेशभूषा में हर समय नजर आईए।
हम सुधरेंगे तो दुनिया सुधरेगी।
।। जै हो।।
©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'
(युवा लेखक, आलोचक, प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा)
२६/०२/२०२४, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड
GirjaShankar Kushwaha Kushraaz
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