बुंदेली कबीता : बूढ़े बाप-मताई हैं साँचे हितैसी - सतेंद सिंघ किसान 'कुसराज झाँसी'

 बुंदेली कबीता - " बूढ़े बाप-मताई हैं साँचे हितैसी "


अरे सिरकारी नौकरीबारे भज्जा,

सुवारथिन लुगाई की बातन में आकें,

बूढ़े बाप-मताई खों नोंईं धिक्कारो।


दुनिया के चकाचौंधीं में परकें,

सिरफ आपाधापी में जीबन नोंईं गुजारो,

जौन बाप-मताई नें किसानी करकें,

अपनों जीबन दुःखन में गुजारो,

तुमाई पढ़ाई-लिखाई के लानें करजा लौक ले डारो।


जेई बूढ़े बाप-मताई हैं साँचे हितैसी,

बिनसो कोनऊँ नईंयां साँचो,

ई दुनिया में सबई जनें सुवारथ के भूके,

चाय होए लुगाई, दोस्त, यार उर रिस्सेदार।


ऐईंसें हमाओ कैबो मानों,

बूढ़े बाप-मताई की सेबा के लानें,

मताई के दूद कौ करज चुकाबे खातर,

तुम दोई लोग-लुगाई बखत निकारो,

सिरफ आपाधापी में जीबन नोंईं गुजारो।


©️ सतेंद सिंघ किसान 'कुसराज झाँसी'

(संस्तापक - अखंड बुंदेलखंड़ महाँपंचयात, झाँसी) 

रचना की बेरा - ३०/०५/२०२४, ११:१५दिन,  झाँसी

पतौ - नन्नाघर, जरबौगॉंओं, बरूआसागर, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड़

मो. - 8800171019, 9569911051

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