बुंदेलखंड़ कॉलेज, झाँसी (बुंदेलखंड़ विश्वविद्यालय, झाँसी) की 'परास्नातक हिन्दी' उपाधि हेतु प्रस्तुत लघु शोध-प्रबंध "21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" का 'उपसंहार' - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' (बुंदेली-बुंदेलखंड अधिकार कार्यकर्त्ता, युवा लेखक, इतिहासकार - सीसीआरटी, संस्कृतमंत्रालय, भारत सरकार एवं संस्थापक - अखंड बुंदेलखंड महाँपंचयात, झाँसी)

बुंदेलखंड़ कॉलेज, झाँसी (बुंदेलखंड़ विश्वविद्यालय, झाँसी) की 'परास्नातक हिन्दी' उपाधि हेतु प्रस्तुत लघु शोध-प्रबंध "21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" का 'उपसंहार' -



हमने ‘21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन’ नामक विषय पर शोध किया तो हमने पाया कि बुंदेली भाषा ‘अखंड बुंदेलखंड’ में प्रचलित मुख्य भाषा है, जिसकी लगभग 25 बोलियाँ भी प्रचलित हैं। बुंदेली अति प्राचीन भाषा है। जिसकी आदिजननी ‘संस्कृत’ है लेकिन जननी ‘अपभ्रंश’। 12वीं सदी में महाकवि जगनिक द्वारा रचित ‘आल्हा’ बुंदेली की पहली रचना है और इसी से बुंदेली साहित्य की शुरूआत हुई। ‘आल्हा’ को विश्व की सबसे बड़ी लोकगाथाओं में शामिल होने का गौरव प्राप्त है। लोकगाथा ‘आल्हा’ बुंदेलखंड के गॉंव-गॉंव में गाई जाती है। जगनिक के बाद महाकवि ईसुरी सबसे लोकप्रिय कवि हुए हैं, जिनकी फांगें लोक में बहुत प्रचलित हैं। इसी के साथ बुंदेली गद्य साहित्य में लोककथाओं, कहानियों, नाटकों आदि और लोकसाहित्य का बुंदेली भाषा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। 


21वीं सदी बुंदेली के लिए ‘स्वर्णयुग’ साबित हो रही है। वर्तमान में बुंदेली देहाती बुंदेलखंड और शहरी बुंदेलखंड में बोलचाल की भाषा है। समाज में बोलचाल बुंदेली में ही होता है। इसी के साथ बुंदेली भाषा का ज्ञान-विज्ञान के अनेक क्षेत्रों जैसे- साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, पत्रकारिता, सिनेमा, सोशल मीडिया आदि में प्रयोग किया जा रहा है।


21वीं सदी में बुंदेली साहित्य की अनेक पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है और आगे भी होगा क्योंकि अपनी भाषा में लेखन करना हर साहित्यकार अपना कर्त्तव्य समझ रहा है। 21वीं सदी के डॉ० रामनारायण शर्मा, डॉ० श्याम सुंदर दुबे, डॉ० बहादुर सिंह परमार, डॉ० रामशंकर भारती, डॉ० शरद सिंह, कुशराज आदि प्रमुख बुंदेली साहित्यकार हैं। बुंदेली संस्कृति की ओर नई पीढ़ी फिर से लौट रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आने से प्राथमिक शिक्षा बुंदेली माध्यम में दिया जाना संभव हो सका है। डॉ० हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी, महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड़ विश्वविद्यालय, छतरपुर आदि विश्वविद्यालयों में स्नातक और परास्नातक स्तर पर बुंदेली भाषा का अध्ययन-अध्यापन किया जा रहा है और बुंदेली पर शोध भी हो रहे हैं। इस सदी में ईसुरी, चौमासा, खबर लहरिया, बुंदेली बसंत, बुंदेली दरसन, बुंदेली अर्चन, बुंदेली बौछार, बुंदेली चुगली, बुंदेली वार्ता आदि पत्र-पत्रिकाओं ने बुंदेली को देश-दुनिया में जन-जन तक पहुँचाया है। इसी के साथ कन्हैया कैसेट, सोना कैसेट, बुंदेलखंड रिसर्च पोर्टल, बुंदेली झलक आदि वेबपोर्टलों ने भी बुंदेली के विकास में अहम भूमिका निभाई है। 


इस सदी में प्रथा, किसने भरमाया मेरे लखन को, ढ़डकोला, जीजा आओ रे, किसान का कर्ज, घरद्वार, एसडीएम पत्नी, गुठली लड्डू आदि बुंदेली फिल्मों और भाबी जी घर पर हैं, हप्पू की उलटन-पलटन आदि धारावाहिकों ने बुंदेली सिनेमा के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। 21वीं सदी में राजा बुंदेला, राम बुंदेला, सुष्मिता मुखर्जी, आशुतोष राणा, योगेश त्रिपाठी, आरिफ शहड़ोली, देवदत्त बुधौलिया, हरिया भैया, जित्तू खरे बादल, कक्कू भैया, मिसप्रिया बुंदेलखंडी आदि प्रमुख बुंदेली फिल्मकार हैं। 


इस सदी में राजनीति में भी बुंदेली का प्रयोग हो रहा है। यहाँ तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी बुंदेलखंड़ में जनसभाओं को बुंदेली में ही संबोधित करते हैं। इस सदी में सोशल मीडिया जैसे - यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप आदि ने बुंदेली को देश-दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई है। यूट्यूब के माध्यम बुंदेली फिल्में और बुंदेली खबरें प्रसारित हो रहीं हैं। फेसबुक के माध्यम से बुंदेली रचनाएँ प्रकाशन में आ रहीं हैं। सचिन चौधरी, डॉ० शरद सिंह, जित्तू खरे बादल, कक्कू भैया, मिसप्रिया बुंदेलखंडी, कुशराज, शिवानी कुमारी, बिन्नूरानी आदि प्रमुख रूप सोशल मीडिया पर सक्रिय बुंदेलीसेवी हैं। 


21वीं सदी में बुंदेली भाषा को संविधान ‘भारत विधान’ की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग जोरों पर है। सरकार को अब बुंदेली को आठवीं अनुसूची में शामिल कर देना चाहिए क्योंकि अब बुंदेली का प्रयोग ज्ञान-विज्ञान के हर क्षेत्र में बहुतायात हो रहा है। साथ ही बुंदेलखंड के साथ भाषाई-न्याय तभी हो सकेगा जब बुंदेली आठवीं अनुसूची में शामिल हो जाएगी। इसके साथ ही ‘अखंड बुंदेलखंड़’ की राजभाषा भी बुंदेली को बनना जरूरी है।चार बुंदेलीसेवियों के साक्षात्कार भी हमने इस शोध में शामिल किए हैं। शिक्षाविद् प्रो० पुनीत बिसारिया ने कहा कि पाठ्यक्रमों में बुंदेली भाषा और साहित्य शामिल हो। विश्वविद्यालयों में बुंदेली पीठ स्थापित हों और बुंदेली फिल्मों का अखिल भारतीय स्तर पर सिनेमाघरों में प्रदर्शन हो। संस्कृतिकर्मी डॉ० रामशंकर भारती ने कहा कि बुंदेली संस्कृति को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। बुंदेली भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज हो ताकि कालांतर में बुंदेली बुंदेलखंड की राजभाषा के रूप में स्वीकार्य हो सके। आलोचक डॉ० रामनारायण शर्मा ने कहा कि बुंदेली में आत्मकथा, जीवनी जैसी विधाओं में भी सृजन होना चाहिए। आठवीं अनुसूची में बुंदेली के शामिल होने से प्रशासनिक प्रतियोगी परीक्षाओं में बुंदेली को मान्यता मिलेगी और युवा अपनी भाषा के माध्यम उच्च पदों पर चयनित हो सकेंगे। अभिनेता आरिफ शहड़ोली ने कहा कि बुंदेलखंड़ के सिनेमाघरों में बुंदेली फिल्मों का प्रदर्शन अनिवार्य होना चाहिए। बुंदेली को बुंदेलखंड के पाठ्यक्रम में अनिवार्य कर देना चाहिए।


इस शोध में हमने अनुशंसा की है कि अखंड बुंदेलखंड़ के हर महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में बुंदेली विभाग की स्थापना हो। बुंदेली विश्वविद्यालय की स्थापना हो। बुंदेली संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हो। बुंदेली साहित्य अकादमी की स्थापना हो। बुंदेली फिल्म सिटी की स्थापना हो। बुंदेली को उत्तरप्रदेश-बुंदेलखंड और मध्यप्रदेश-बुंदेलखंड़ की द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता दी जाए।


अतः इस प्रकार हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि 21वीं सदी में बुंदेली भाषा ज्ञान-विज्ञान के हर क्षेत्र में प्रयोग की जा रही है, इसकी देश-दुनिया में लोकप्रियता बढ़ रही है। बुंदेली के विकास और संरक्षण हेतु इसे आठवीं अनुसूची में शामिल होना ही चाहिए और विश्वविद्यालयों में बुंदेली विभाग सहित बुंदेली को समर्पित अन्य सरकारी संस्थाओं की स्थापना होनी ही चाहिए।


©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'

(बुंदेली-बुंदेलखंड अधिकार कार्यकर्त्ता, युवा लेखक, इतिहासकार - सीसीआरटी, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं संस्थापक - अखंड बुंदेलखंड महाँपंचयात, झाँसी)


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