डॉ० रामशंकर भारती की कविता 'बीज' पर कुशराज की टिप्पणी

आचार्य पुनीत बिसारिया द्वारा संचालित 'साहित्य के आदित्य' व्हाट्सएप समूह में 06 अक्टूबर 2024 को प्रसारित डॉ० रामशंकर भारती की कविता 'बीज' पर कुशराज की टिप्पणी -

"गुरूजी! रोशनी के बीजों का जीवित रहना बहुत जरूरी है क्योंकि आज के समय में अधिकतर अंधकार की जंगल खड़े हो गए हैं और वो ईर्ष्यावश होकर अच्छे लोगों के जीवन को क्षतिग्रस्त बनाने में लगे हुए हैं कभी आँधी से तो कभी दावानल से। इसलिए इस धरती पर कल्याणकारी जीवन बनाने हेतु और पुष्प जैसा खिला हुआ खुशहाल जीवन जीने हेतु रोशनी के बीजों को बोना जरूरी है और उनसे उगे वटवृक्षों की छत्रछाया में रहना जरूरी है।

गुरूजी! आपकी 'बीज' कविता समकालीन जीव-जगत की स्थिति और जीवन के दर्शन को प्रस्तुत करती है। " 

- कुशराज

(युवा आलोचक)

6/10/2024, झाँसी


डॉ० रामशंकर भारती की कविता -

 ' बीज '


फूल तोड़ना नहीं सीखा कभी

झर गए हैं जो बीज धरती पर 

बिखर गए हैं हवाओं में उड़कर

इधर-उधर बंजर-ऊसर 

रेगिस्तानों में

उठा लाता हूँ ढूँढ़कर

फिर बो देता हूँ बड़े सुकून से 

घर के पिछवाड़े पड़ी

सोंधी गंधवाली माटी में उन्हें

फूल बनने के लिए 

बीज फूलों के हों या रोशनी के

बीज गर जीवित रहेंगे तो

आते रहेंगे आलोकमयी 

सुवासित वसंत 

शुष्क और पथराए मन को 

जीवन-गंध देने ...।


© डॉ० रामशंकर भारती




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