आस्ट्रेलिया की वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार आदरणीया 'शन्नो अग्रवाल जी' द्वारा किसान विमर्श की हमारी कहानी 'अंतिम संस्कार' पर टिप्पणी - कुशराज झाँसी

आस्ट्रेलिया की वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार आदरणीया 'शन्नो अग्रवाल जी' द्वारा किसान विमर्श की हमारी कहानी 'अंतिम संस्कार' पर टिप्पणी करके हमें अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान करने हेतु उनका भौत-भौत आभार।

- कुशराज झाँसी


आप सभी 'अंतिम संस्कार' कहानी इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं -

https://sahityacinemasetu.com/kahani-antim-sanskaar/


आदरणीया शन्नो अग्रवाल जी द्वारा की गई टिप्पणी -

बहुत ही सशक्त कहानी। 

महिन्द कक्का ने अपने जीवन काल में अपने ग्राम में नये प्राण डाल दिये। उन्होंने उसकी उन्नति में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी। और यह सब उनके शिक्षित होने का ही परिणाम था। अगर वह और जीते तो शायद और भी ग्राम-सुधार करने की योजनायें बनाते। 

गाँव व वहाँ के जन-जीवन को लेकर समस्यायें हल करना, उनके जीवन को प्रगति की ओर अग्रसर करना और सबके प्रति सद्भावना रखने से वह न सिर्फ उस गाँव की जान थे बल्कि अड़ोस-पड़ोस के गाँवों के लिये भी शक्ति स्तंभ थे। और उसी तरह थी उनकी बिटिया मेघना भी। 

उच्च शिक्षा प्राप्त मेघू स्त्रियों के अधिकारों की तरफ सजग थी। और उनके प्रति समाज की कुरीतियों को दमन करने की ओर भी अग्रसर रही। न केवल स्त्रियों के अधिकारों के लिये बल्कि बुंदेलखंड में छात्र संगठन बनाकर उनके चुनावी मुद्दे को लेकर भी मेघना अपनी आवाज उठाती है। पिता की तरह बेटी में भी सभी के हित की चाह है। अंत में उसने सबको चुनौती देते हुये अपने पिता महेंद्र सिंह कुशवाहा के मृत शरीर को मुखाग्नि देकर सिद्ध कर दिया कि बेटियों को भी अपने पिता के शव के दाह संस्कार करने का उतना ही हक है जितना बेटों को। शव के साथ ही मेघना ने बेटियों से जुड़ी एक कुरीति का भी अंतिम संस्कार कर दिया।

कहानी में आपकी भाषा-शैली अच्छी है। गाँव के परिवेश के अनुसार क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग से कहानी की रोचकता अंत तक बरकरार रहती है।  

लेखन पर आपको बहुत बधाई व भविष्य के लिये शुभकामनायें।

- शन्नो अग्रवाल

(प्रवासी साहित्यकार, ऑस्ट्रेलिया)

27/11/2024, आस्ट्रेलिया

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