बुड़की (Budki) - कुसराज (Kushraj)

बुंदेलखंडी युबा की डायरी - १३/१/२०२५, जरबौ गॉंओं, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड


*** बुड़की ***




पियारी किरांती,

                     बुड़की मनाबे कल्ल हम झाँसी सें अपने घरे जरबौ गॉंओं आ गए। बाई उर मताई नें कनक (गौंऊँ / पिसी), चांवर, तिली, मूमफली, लाई, देउल समेत केऊ तरा के लडूआ बांदे हैंगे, हर बुड़की पे घरे बने भए लडुआ उर खिचड़ी खाबे कौ रिबाज हैगो। तुमें पतौ हमाए अखंड बुंदेलखंड में 'मकर संक्रांति' खों 'बुड़की' कई जात। बुड़की खों 'संकरांत' भी कउत हम औरें। 


बुड़की कौ मिहत्तओ हम किसानन के लानें ईसें भौत जादां हैगो कायकी बुड़की के तेऔहार सेंईं नई फसल उर नई रितू की सुरूंआंत होउत। नई फसल उर नई रितू की अगुवाई उर सुआगत-सत्कार मेंईं बुड़की मनाई जाउत। इए भारत देस में मकर संक्रांति, खिचड़ी, लोहड़ी, पोंगल, बिहू, गुघुती आदि नाओं सें भी चीनत हैंगे। बुड़की पे सब जनन खों निसचित मुहूरत में सपरबौ जरुरी उर पुन्न पाबे बाऔ मानों जाउत। हिन्दू पंचांग के हिसाब सें बुड़की माव की परमा खों मनाई जाउत उर फिरंगी किलेंडर के हिसाब सें चउदा या पन्दरा जनबरी खों मनाई जाउत। 


बुड़की पे सपरबै कौ ईसें मिहत्तओ हैगो कायकी जाड़े के मौसम में मौडी-मौडा, युबा-यूबतीं, जन-जनीं उर बुड्ढा-बुढ़िया तीन-चार दिनाँ में एकाद बैर सपरतई, जी बजै सें सरीर अलसेया जाउत, फुरती कम हो जाउत। बुड़की पे सपरबे सें तन उर मन की सुद्दी होउत ऐईसें हर काम छोडकें बड़की लएं चज्जे सबखों। बुड़की लेकें सूर्र भगबान खों अरघ देएँ चज्जे उर उनें तिली चढाएं चज्जे कायकी सूर्र भगबान की उपासना करबे सें जीबन  निरोगी हो जाउत उर अपार सक्ति मिल जाउत। बुड़की पे पितरों कौ पटा (पिंडदान) करबे की भी परंपरा हैगी।


मेस, कुम्ब, तुला समेत बारा रासिन में हर रास के हिसाब से कौऊ खों बुड़की कौरीं (सुब) होत कौऊ खों कर्री (असुब)। बुड़की पे कुम्ब सपरबे सें सबसें जादां पुन्न मिलबे की मान्यता है उर घरे सपरबे सें सबसें कम पुन्न मिलबे की। बुड़की पे साबुन-सैम्पू सें नईं सपरो जाऊत, यी परब पे तिली सें उपटन करकें सपरो जाउत। बुड़की पे तिली कौ पाँच तरां सें दान करबे कौ मिहत्तओ है। तिली सूर्र भगबान खों चढ़ाओ, तिली पानूँ में छोरो, तिली आग में डारो, तिली खों खाओ और तिली कन्या खों दान करौ।


यी बरस कल्ल १४ जनबरी खों बुड़की मनाई जैहै। कल्ल पुन्नबेला भोर ०९ बजकें ०३ मिनिट सें लेकें संजाबिरियाँ ०५ बजकें ४६ मिनिट लौक हैगी। उर महाँपुन्नबेला भोर ०९ बजकें ०३ मिनिट सें लेकें १० बजकें ४८ मिनिट लौक हैगी। यी बेला में पूजा पाठ उर बामुनों खों छोडकें गरीब किसानन, मजूरन, बनबासियन उर जनीमांसन खों दान-पुन्न करबे सें सूर्र भगबान की बिसेस किरपा मिलहै। 


यी बरस १४४ बरसन बाद पूरौ महाँकुम्ब परौ हैगो उर  आज १३ जनबरी २०२५ सें पिरयाग में गंगा-जमुना-सुरसती के संगम पे उत्तर पिरदेस के मुखमंतरी बाबा योगी आदित्तनाथ जू उर भारत के पिरधानमंतरी नरेंद मोदी जू की अगुवाई में महाँकुम्ब मेला की सुरुआंत हो गई हैगी। महाँकुम्ब हिन्दू धरम कौ सबसें बड़ौ धारमिक मेला हैगो, जौ करोरन सनातनियों की आस्था की पैचान हैगी। महाँकुम्ब हिन्दू संसकिरती उर परंपरा कौ संगम हैगो। पिरयाग महाँकुम्ब में कुम्ब की बुड़की लेबे पूरी दुनियाँ सें सनातन के तकरीबन ४०करोड़ सिरद्धालू, सादु-सादबी, नेता-नेतरी, पंडित-पंडिताइन, हीरो-हीरोइन, बेपारी-बेपारिन, किसान-किसानिन, मजूर-मजूरिन उर बनबासी-बनबासिन आ रए। पैलो इमरित इसनान १४ जनबरी, मकर संकरांत खों, दूसरौ इमरित इसनान २९ जनबरी, मौनी अमाउस खों उर तीसरौ इमरित इसनान ०३ फरबरी, बसंत पाँचें खों हैगो। इमरित इसनान करकें सें पाप धुल जैहैं उर बिसेस पुन्न मिल जैहै। ऐईसें सब जनन सें जा बिनती हैगी के सब जनें महाँकुम्ब में बुड़की लेबें उर दुनियाँ में भारतीय संसकिरती की एकता की नई मिसाल पेस करबें।


बुड़की पे पतंगें उड़ाबे उर मेला घूमबे कौ भी भौत चलन  हैगो। बुड़की पे बरूआसागर में झिन्ना पे मेला भर रओ हर बरस की तरां। कल्ल झिन्ना कौ मेला घूमबे के बाद फिर बतकाओ कतरई अपन। 


तुमें उर पूरी दुनियां खों बुड़की की भौत-भौत बधाई 🌾🪷📚❤️🚩


।। राम-राम ।।

।। जै बुंदेली मताई ।।

।। जै जै बुंदेलखंड ।।

।। जै जै बुंदेली ।।


©️ किसान गिरजासंकर कुसबाहा 'कुसराज'

(बुंदेलखंडी युबा लिखनारो, बुंदेली-बुंदेलखंड अधिकार कारीकरता, किसानबादी बिचारक)

इमरित इसनान, पिरयागराज महाँकुम्ब, 

१३/१/२०२५, ११: ३९ दिन, जरबौ गॉंओं, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड


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