डॉ० लखनलाल पाल और डॉ० शिवजी श्रीवास्तव द्वारा कुशराज के लेख "समकालीन भारत में युवा-युवतियों के जीवन की पड़ताल" पर की गई टिप्पणियाँ


डॉ० लखनलाल पाल द्वारा कुशराज के लेख "समकालीन भारत में युवा-युवतियों के जीवन की पड़ताल" पर साहित्य के आदित्य व्हाट्सएप समूह में की गई टिप्पणी -

किसानवादी कुशराज झांसी जी के इस आलेख में उनकी अपनी विचारधारा झलकती है। इस विचारधारा में उनकी अपनी स्थापनाएं है। अच्छा है, युवा जोश है। यह सब देखकर खुशी होती है कि इस युवा में एक जोश है। कुछ करने का जज्बा है।

           इनकी स्थापनाओं में कुछ चीजें बहुत बढ़िया है तो कुछ से सहमत होने के लिए सोचना पड़ता है। जैसे -

पश्चिमी सभ्यता का भारतीय संस्कृति में प्रवेश 

युवा लड़के लड़कियों का लिव-इन, देह प्रदर्शन, पैसा कमाना आदि 

देश को नशामुक्त करना 

              उपर्युक्त दो नियमों में मुझे बुराई नहीं दिख रही है। तीसरे नियम में कुछ बुराई है। वह है ड्रग्स वाली बुराई 

        तो मैं कहूंगा कि पश्चिमी सभ्यता जितनी तेज रफ्तार से भारत में प्रवेश कर रही है उससे ज्यादा हम भारतीय पश्चिमी देशों में प्रवेश करते चले जा रहे हैं। मैं मानता हूं कि भारतीय संस्कृति संसार की सबसे पुरानी और अच्छी सभ्यता है। इसके बावजूद  हम पश्चिमी सभ्यता की ओर खिंच रहे हैं, उसे अपना रहे हैं। अगर वह संस्कृति इतनी बुरी है जिसे हम अक्सर पश्चिमी संस्कृति कहकर गाली सी देते हैं वहां लोग अभी तक आबाद क्यों है? पूरी दुनिया के चौधरी क्यों बने हुए हैं?

 युवा लड़के लड़कियां लिव-इन में रहते हैं। अच्छा तो नहीं लगता है पर माता पिता को चाहिए कि समय पर उनकी शादी कर दें।  जो कि नहीं करते हैं।  इस वर्ग के पेरैंट्स लड़के लड़कियों का लिव-इन में रहना स्वीकार कर रहे हैं।  आज देह की पवित्रता वाला भाव खत्म हो चुका है। पुरानी  फिल्मों में हीरोइन गंगा की तरह पवित्र नहीं रह पाती थी तो आत्महत्या कर लेती थी। आज ऐसा नहीं है। जानते हुए भी कि ये लिव-इन में रह चुके हैं फिर भी दूसरे लोग इनसे शादी कर रहे हैं।

नशामुक्त देश हो पाना मुश्किल है। एक तो यह सरकारी आय का साधन है। अगर इसे बंद किया जाएगा तो लोग चोरी से करने लग जाएंगे।

           आपके द्वारा स्थापित शेष स्थापनाएं मानवीय है। इन स्थापनाओं से मैं क्या सभी सहमत होंगे। 

          कुशराज जी आपके भीतर जो आग है उसे जलाए रखिएगा। बहुत-बहुत बधाई आपको।

- डॉ० लखनलाल पाल

(कथाकार, समीक्षक)

उरई, जालौन, बुंदेलखंड

9/2/2025, 4:00 शाम 


डॉ० शिवजी श्रीवास्तव द्वारा कुशराज के लेख "समकालीन भारत में युवा-युवतियों के जीवन की पड़ताल" पर साहित्य के आदित्य व्हाट्सएप समूह में की गई टिप्पणी -

युवाओं की समस्याओं पर केंद्रित आलेख में आपने वाजिब प्रश्नों को उठाया है, इन समस्याओं के समाधान हेतु भी युवाओं को आगे आना होगा, समस्याएं जटिल हैं, इनकी जड़ें गहरी हैं। विश्व बाजार के लिए खुले द्वारों से पाश्चात्य संस्कृति का आगमन  होना स्वाभाविक है... नशा और अमर्यादित काम निर्लज्ज पूँजी के सहज अस्त्र हैं जिनसे  वह किसी भी संस्कृति पर अपना अधिकार करती है.... आप जैसे युवकों को ही ऐसी चेतना फैलानी होगी कि इनसे बचा जा सके। एक अच्छे आलेख हेतु बधाई।

- डॉ० शिवजी श्रीवास्तव

 (आलोचक)

नोएडा

9/2/2025, 7:27 रात




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