भारत में राष्ट्रीय पुरुष आयोग का हो गठन - कुशराज (National Men's Commission should be formed in Bharat - Kushraj)
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भारत में राष्ट्रीय पुरुष आयोग का हो गठन
(National Men's Commission should be formed in Bharat)
भारतीय समाज की संरचना विविधताओं से परिपूर्ण है। सामाजिक संबंधों, रक्त संबंधो और जाति संबंधों के आधार पर भी विभिन्न समाजों, धर्मों, जातियों, कबीलों, कुलों आदि में युगानुकूल परिवर्तन होते रहे हैं। भारतीय समाज में बड़ी चालाकी से यह भ्रामक आमधारणा चस्पा की गई है कि पुरुष वर्चस्ववाद सदैव स्त्रियों पर हाबी रहा है। जबकि हमारी वैदिक व्यवस्थाओं, मान्यताओं, परंपराओं और जीवन मूल्यों में स्त्रियों को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश, मान्यताएं और उनके सामाजिक कर्तव्य-अधिकार निर्धारित किए गए हैं। वहीं ऋषि परंपरा के द्वारा स्त्री शक्ति को संरक्षण, संवर्द्धन देकर उसे सहगामिनी, सहधर्मिणी और अर्धांगिनी जैसे शब्दों से अलंकृत और सुशोभित करते हुए पुरुष का पूरक बताया गया है।
वर्तमान समय वैश्विक समय है। हमारे भारतीय दर्शन की प्राचीनकाल से ये मान्यता रही है - वसुधैव कुटुम्बकम यानि सारा विश्व एक परिवार है। आज संपूर्ण विश्व एक परिवार बन चुका है। ऐसे ग्लोबल परिवार में जिसे वैश्विक परिवार भी कह सकते हैं, भारतीय परिदृश्य और भारतीय ज्ञान परम्परा में पुरुष सदैव पितृसत्तात्मक प्रतीक के रूप में परिभाषित और व्याख्यायित किया गया है। जबकि सत्य तो ये है कि अनेकानेक अवधारणाएं और मान्यताएं सामाजिक परिस्थितियों, विचारधाराओं, तत्कालीन व्यवस्थाओं, विडंबनाओं, विद्रूपताओं, रूढ़ियों आदि के कारण बनती-बिगड़ती हैं और उनमें तदनुरूप परिवर्तन भी होता है और परिवर्द्धन भी होता है।
आज के भौतिक युग में संपूर्ण भारतीय समाज भोगवाद की चकाचौंध वाली दुनिया में खोया हुआ है। भारत के संदर्भ में जब हम विचार करते हैं तब यहाँ पुरुषों का दोहन, शोषण और उत्पीड़न के ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जो किसी समाचार की हैडलाइन नहीं बनते, किसी टीवी शो में बहस का मुद्दा नहीं बनते। जबकि स्त्रियों द्वारा पुरुषों के उत्पीड़न के मामले आए दिन घटित हो रहे हैं। स्त्रियों द्वारा पुरुषों का बलात्कार करना, विवाहित स्त्रियों द्वारा परपुरुषों से यौन संबंध रखना, अपने पति को धोखा देना, पति का शोषण करना और यदि बात आगे बढ़ जाए तो प्रेमी के साथ मिलकर या अकेले ही पति की हत्या कर देना जैसे जघन्य अपराध आए दिन अब अखबारों की सुर्खियों में बने रहते हैं।
आजकल विवाहेत्तर प्रेम प्रसंग के चलते पत्नी द्वारा प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या करने की घटनाएँ रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। मेरठ का सौरभ राजपूत हत्याकांड इक्कीसवीं सदी में भारतीय परिवार व्यवस्था पर सबसे ज्यादा करारी चोट है। पिछले महीने मुस्कान रस्तोगी ने प्रेमी साहिल शुक्ला के साथ मिलकर अपने पति सौरभ राजपूत की हत्या कर दी थी। हत्या के बाद लाश के टुकड़े कर नीले ड्रम में भरकर ऊपर से सीमेंट का घोल डाल दिया था। इस घिनौनी घटना के बाद पत्नियों द्वारा पति को ड्रम में पैक करने की धमकियाँ देने के कई मामले सामने आए हैं।
अभी तक पुरुष विमर्श (Purush Vimarsh) यानी नरवाद (Narvad) को लेकर कोई नई अवधारणा, कोई नया एजेंडा नहीं था। 2019 में जब हम दिल्ली में रहकर हंसराज कॉलेज से स्नातक करते हुए छात्र-राजनीति में सक्रिय थे तब हमने 9 मई 2019 को अपने ब्लॉग कुसराज की आबाज पर नरवाद यानि पुरुष विमर्श नामक दार्शनिक सिद्धान्त प्रकाशित किया था। हंसराज कॉलेज में जूनियर रहे युवा पत्रकार सूर्या प्रजापति ने कल हमें दिल्ली के जंतर-मंतर पर आज 19 अप्रैल 2025 को हो रहे पुरुष सत्याग्रह का पोस्टर भेजा। सूर्या ने फेसबुक लिखा, नारीवादी लेखिका कमला भसीन अभिनेता आमिर खान से एक परिचर्चा में पूँछती हैं कि पितृसत्ता का उल्टा क्या होगा? तब आमिर खान कहते हैं मातृसत्ता। कमला भसीन कहती हैं नहीं, इसका उल्टा होगा लैंगिक समानता। नारीवाद की तरह नरवाद के आंदोलन ने इस बीच जोर पकड़ा है। बात 2019 की है, जब मैं दिल्ली आया ही था, किसान गिरजाशंकर कुशवाहा कुशराज छात्र राजनीति कर रहे थे और उनके मेनिफेस्टो में नरवाद की परिकल्पना देखी थी। तब तक वाद-विवाद से पाला नहीं पड़ा था, परिकल्पना वाद कम विवाद ज्यादा लग रही थी। पुरुष सत्याग्रह का पोस्टर देख कर वो दिन याद आ गया।
सूर्या के माध्यम से नरवाद दर्शन के साकार होने संबंधी शुभ समाचार पाकर प्रसन्नता हुई। आज आपको अवगत कराते हुए हमें सुखद आश्चर्य हो रहा है कि अब समाज, साहित्य, शिक्षा, राजनीति, सिनेमा और संस्कृति में पुरुष विमर्श यानी नरवाद का सूत्रपात होने जा रहा है। पत्नी पीड़ित पुरुषों के संगठनों और पुरुष अधिकार कार्यकर्त्ताओं, समाज सुधारकों ने हमारी पुरुष विमर्श की विचारधारा को, हमारे एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए पुरुष विमर्श के द्वार खोलने में एक अच्छी वैश्विक पहल की शुरुआत कर दी है। वेद, पुराणों, रामायण, महाभारत की प्रणेता धरती बुंदेलखंड के लिए गौरव की बात है कि झाँसी से नरवाद यानि पुरुष विमर्श का प्रवर्त्तन हुआ है, जिसे विश्व पटल पर स्थापित करने हेतु हम संकल्पित हैं।
हमारे नरवाद की अवधारणा के मुख्य अंश इस प्रकार हैं, क्रांति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं। हर युग में क्रांतियाँ हुईं हैं, आंदोलन हुए हैं और आज भी हो रहे हैं। जिससे व्यवस्था में परिवर्तन हुआ है और निरंतर विकास का मार्ग प्रशस्त करने में कामयाबी मिल पायी है।
प्राचीनकाल से ही समाज में वेश्यावृत्ति यानि रण्डीबाजी का चलन रहा है। कई स्त्रियाँ वेश्या बनकर जीवन यापन करती रहीं हैं। आज भी वेश्यावृत्ति का चलन जोरों पर है। वेश्यावृत्ति एक धंधा बना हुआ है। वेश्यावृत्ति विवाहित पुरुषों और अविवाहित स्त्रियों के लिए घातक है। वेश्यावृत्ति के चलते पारिवारिक रिश्तों में दरार आयी है और समाज में संवेदनहीनता, लालच और स्वार्थीपन सर्वत्र फैल चुका है।
बीसवीं सदी में नारीवाद, फेमिनिज्म यानि स्त्री विमर्श की अवधारणा का प्रवर्त्तन हुआ। जिसके तहत जागरूक और दूरदर्शी स्त्रियों और पुरुषों ने नारी शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई। अनेक नारीवादी आन्दोलन हुए, क्रांतियाँ हुईं, जिनके फलस्वरूप स्त्रियों के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक समानता के अधिकारों को प्राप्त किया गया। नारीवादी विचारधारा के आने से समाज में स्त्रियों की दशा में काफी सुधार हुआ। नारीवादी आंदोलन होने से नारीवादी साहित्य की होड़ लग गयी और स्त्री विमर्श चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया।
आज नारीवादी आंदोलन होने से और साहित्य जगत में स्त्री विमर्श यानि नारीवाद आने के परिणामस्वरूप स्त्रियाँ हर क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार पाती जा रही हैं। नारीवाद की अति हो जाने के कारण स्त्रियों ने पुरुषों के समान धूम्रपान और मदिरापान करना भी शुरू कर दिया है। जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। स्त्रियों के स्वास्थ्य का प्रभाव उनकी सन्तानों पर अत्यधिक पड़ता है। अतः स्त्रियों को अपनी सन्तानों का भी ख्याल जरूर रखना चाहिए।
जितने जोरों पर आज नारीवाद यानि स्त्री विमर्श की चर्चा चल रही है। उतने ही जोरों से नरवाद, मेनिज्म यानि पुरुष विमर्श की चर्चा करने की बेहद जरूरत है। पुरुषों के सामाजिक, राजनैतिक शोषण से मुक्ति और सभी पुरुषों को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार प्राप्त होना ही नरवाद, मेनिज्म यानि पुरुष विमर्श है। जिसमें आंदोलन, क्रांतियाँ करना बाजिब हैं।
जब से धरती पर पुरुष ने जन्म लिया तभी से शक्तिशाली पुरुषों और शक्तिशाली स्त्रियों ने कमजोर पुरुषों का शोषण किया। इन पुरुषों से गुलामी करवाई और शारीरिक-मानसिक शोषण किया। स्त्रियों द्वारा पुरुषों के शोषण के अनेक उदाहरण वैदिक काल से लेकर पौराणिक काल में भी देखने को मिले हैं। मातृसत्तात्मक व्यवस्था में पुरुषों का यौन शोषण भी किया गया है।
आज जिस प्रकार से समाज का चारित्रिक पतन हुआ है उसमें अनेक ऐसी घटनाएं, दुर्घटनाएं और वीभत्स दृश्य सामने आए हैं, जहाँ स्त्रियों ने अपने जीवनसाथी को मृत्यु दी है। उसे छला है। कहीं न कहीं एक स्त्री द्वारा कई पति भी रखे जा रहे हैं।
आज भी पुरुषों का शोषण हो रहा है। बालकों का वरिष्ठजनों द्वारा शोषण किया जा रहा है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में युवा छात्रों का तथाकथित प्रोफेसरों द्वारा शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है। युवा छात्रों की आवाजों को दबाया जा रहा है। महिला प्रिंसिपलों द्वारा छात्रों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है और कॉलेज प्रशासन पर मनमाना शासन किया जा रहा है। प्रोफेसर छात्रों को चापलूसी यानि चाटुकारिता करने को विवश करते हैं और छात्रों से अपने अनुसार काम करवाते हैं। यहाँ तक की घरेलू कामकाज भी करवाते हैं।
आज देश-दुनिया के महानगरों में वेश्यावृत्ति यानि रण्डीबाजी की तर्ज पर पुरूष वेश्यावृत्ति यानि रण्डाबाजी का चलन जोरों पर चल रहा है। यौन कुण्ठा की शिकार स्त्रियाँ जिंगोलों यानि पुरुष वेश्या के द्वारा अपनी काम भावना की पूर्ति कर रहीं हैं। एक युवती कई प्रेमी रख रही है। कई लड़के एक ही लड़की के प्यार में पागल पड़ रहे हैं और अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। एक लड़की प्यार का नाटक करके कई लड़कों से यौन संबंध स्थापित करने को तैयार हो रही है। जब लड़कों को इस बात का पता चल रहा है कि मेरी प्रेमिका किसी और की भी प्रेमिका है, तब लड़के आत्महत्या तक कर रहें हैं। लड़कियों द्वारा लड़कों का इमोशनली ब्लैकमेल किया जा रहा है और उन्हें यूज करके छोड़ दिया जा रहा है। यहाँ तक कुछ झूठी प्रेमिकाएँ अपने दूसरे प्रेमी के चक्कर में एक प्रेमी की हत्या करवाने को उतारूँ हो रही हैं। जो सरासर गलत है।
आज कई देशों में सामान्य पुरुषों के अधिकारों को छीना जा रहा है। स्त्रियाँ पुरुषों पर अपना रुतवा जमा रहीं हैं और उनका शोषण भी कर रहीं हैं। आवश्यकता है युवा प्रेमियों को अपनी ईमानदार प्रेमिका चुनने की और हर मुशीबत का सामना करने की। साथ ही साथ लड़कियों के प्रति झिझक मिटाने की। समकालीन परिस्थितियों को देखते हुए नरवाद यानि पुरुष विमर्श की आवश्यकता पड़ी है। जिसका अभी सफर बाकी है।
हम चाहते हैं कि विश्व पटल पर स्त्री विमर्श की भाँति पुरुष विमर्श को भी मान्यता मिलनी चाहिए। विश्व पुरुष आयोग भी बनना चाहिए। भारत में राष्ट्रीय पुरुष आयोग का गठन शीघ्र होना चाहिए। भारतीय पुरुष अधिकार अधिनियम लागू होना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ को सार्वभौमिक पुरुष अधिकार विश्व स्तर पर लागू करने चाहिए। स्त्री-पुरुष समानता ही भारत और विश्व की समाज व्यवस्था और परिवार व्यवस्था को बचा सकेगी।
- किसान गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज’
(नरवाद के प्रवर्त्तक)
झाँसी, अखंड बुंदेलखंड
ईमेल - kushraazjhansi@gmail.com
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